Janta Ki Awaz
भोजपुरी कहानिया

सावन अपने - अपने भाग का

सावन अपने - अपने भाग का
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साँझ से ही उमस है
अच्छा हुआ पछुआ सिहकने लगा
भगेलू अभी तक लौटे नही बाजार से
यहाँ , चंपवा घोंघा का खपड़ैया फोड़ रही है
कल से सावन शुरू हो रहा है
मांस - मछली एक महीना वर्जित रहेगा ।

अब एक पाव मास निकला है इतना मेहनत के बाद
खपड़ैया से लकीर खींच बच्चे कित - कित खेल रहे है ।

सौ रुपिया रोपनी वाला ले के गया है बाजार
ताड़ी और गांजा से बचा तो
दू किलो चाउर लाएगा खुदि वाला
लो आ ही गया !
लड़खड़ाहट ! पूरे मूड में है ।

अब , चंपवा जल्दी से बना रही है
भात और घोंघा मास
देरी हुई तो गरियाये लगेगा
अरे ! झींसी की शुरुआत हो गयी ।

भूदान वाला जमीन और पलानी
ई इंदिरा आवास कब बासे चढ़ेगा ?
दस हजार बीडीओ साहेब ले भी लिए है ।

भागेलुआ लवना और गुदरा बटोर के रखने लगा
खटिया भी रख रहा है
और बोला चंपवा से ,
" जल्दी कर ! लगता है बरियार बरखा होगा ।"
कल चार जगह बिया उखारना - रोपना है ।

चंपवा भात - घोंघा मास बना चुकी है
अब दूनू खा रहे है
चंपवा बोली ,
" तोहार मुँह केतना बसा रहा है ! ताड़ी कम नही पी सकते ? "
भागेलुआ बोला ,
" अरे ! चैन से खाने तो दे ! खा के नहा लेता हूँ बरखा में और तुझे भी नहलाता हूँ ... ( और थरिया में आधा खाना पड़ा ही है कि भागेलुआ चंपवा को खींच के पलानी से बाहर ले गया ।"

एक तो अन्हरिया और करिया बादर
दू डेग दूर भी कोई नही दिख रहा है
दोनों को सावन भिंगो रहा है
पछुआ का वेग ...
और पलानी का गिरना ...

इतने ही रोमांस के सीन थे
इनके सावन में
अब सरकारी स्कूल में दोनों रात गुजार रहे है ।

कल पलानी भी ठीक करना है
चार जगह रोपनी भी करना है
खर और बांस तो मिल जाएगा
रसरी खरीदना है ।

यही सब सोंचते भागेलुआ चंपवा से बोला ,
" अरे ! चंपवा .. तेरे भाई बहुत दिनों से नही आये ? नाही कवनो तोरे यहाँ का खबर ? शायद राखी के दिन कोई आये ? "

चंपवा बोली ,
" हाँ , राखी के दिन भैया आएगा और माई महुआ जरूर भेजेगी .. भादो में महुअर बनाऊँगी और लाटा तुम कुटना मेरे साथ .. "

तेज बूंदों से डर अब दोनों सिमट के करीब हो रहे है ।
अब इतने करीब है फिर भी चंपवा को भागेलुआ के
मुँह से घिन नही हो रही है ।
आंख लगने से पहले दोनों अपने वजूद को
खो कर अब अलग होने को बेताब है ।
यही है अपने - अपने भाग का सावन .....


सुधीर पाण्डेय
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