शंख............
BY Suryakant Pathak12 July 2017 4:07 AM GMT

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Suryakant Pathak12 July 2017 4:07 AM GMT
बनवारी चौबे और शंभू परधान दोनों के लड़के एक्के जोड़ी-पारी के थे। हाईस्कूल पास करने के बाद दूनो,दौड़ बनाने में लग गये। दूनो लड़के भोर में ही उठकर पांच किलोमीटर दौड़ लगाते, रियाज़, बैठक करते। लड़के संघतिया थे दो दोनों के बाप में भी खूब छनती थी। मिलट्री की भर्ती आयी दूनों लड़के फार्म डाल दिये और लग गये तगड़ी तैयारी में। लेकिन किस्मत ऐसी कि बनवारी का लड़का मार दिया फिजिकल और शंभू का बेटवा कुछ डिसमिसा गया।
तीन महीना बाद मिलिट्री का रिजल्ट आया, बनवारी का लड़का फोर्स मे सलेक्ट हुआ पूरा गांव में चर्चा और खुशी का महौल बन गया। लेकिन पूरे गांव में एक घर था जहाँ शाम को सात बजे ही बत्ती बुझा दी गई, पूरे घर में सुत्ता पड़ गया। दुवार तक सन्नाटा पसर गया.......
सुबह सबसे पहले बनवारी चौबे मिठाई का डिब्बा लिये परधान के घर पहुंचे लेकिन परधान न तो अपने घर से बाहर आये और न ही किसी को मिठाई थामने दिये।
उसी दिन से परधान ने चौबे का विरोध शुरू कर दिया......धीरे-धीरे एक दूरी बनती गयी। हालांकि गांव वाले समझते थे कि जलन की मेन जड़ क्या है लेकिन लोग जान कर भी हंस कर टाल जाते।
नवरात्र में बनवारी के घर पर दुर्गा प्रतिमा की स्थापना पिछले बीस वर्ष से हर वर्ष होता था। हर वर्ष शंभू पहलवान प्रतिमा के लिये बढ़ कर चंदा देते और प्रतिदिन सुबह आरती में सम्मिलित जरूर होते थे। लेकिन अबकी साल परधान ने चंदा तो दिया नहीं अलबत्ता नौ दिन उनके घर की राह भी बदल दिये।
गांव वाले पूछते कि अरे परधान जी आजकल कहां रह रहे हो आप? एकदम चौराहे पर दीखते नहीं... परधान जी कहते कौन जायेगा उसके दुआर के सामने से, झूठ्ठे बनवरिया के घर माथा टेकना पड़ेगा।
वैसे, बनवारी चौबे थे बड़े धार्मिक, साल में चार बार सत्यनारायण बाबा की कथा जरूर सुनते। गांव की महिलायें फल-फूल लेकर पहुंचतीं। जब शंख बजता तो लोग अपने दुवार पर से हाथ जोड़ लेते लेकिन शंभू लगते उसी समय खरहरा से दुआर बुहारने, गोबर काढ़ने, कि हाथ न जोड़ना पड़े। एक दिन मंगरू कहार परधान से पूछ बैठे- ए परधान काहें शंख बजने पर हाथ नहीं जोड़ते हो ? परधान लजाकर बोले शरीर शुद्ध नाहीं हैं ए लिये नाहीं जोड़ते हैं। मंगरू महीन थे मुस्कुरा कर बोले,तू जानबूझकर गोबर और खरहरा उठा लेते हो और कहते हो कि अशुद्ध हैं। अरे परधान! गुस्सा और विरोध अलग है लेकिन सत्यनारायण बाबा और दुर्गा जी से कौन नाराजगी। ये तो सबकी हैं। हर बात क विरोध ठीक ना है परधान........
बिल्कुल ! जब शंख बजना शुरू हो जाये तो सब विरोध छोड़कर, हाथ जोड़कर खड़े हो जाना ही चाहिए। भले आप विरोधी ही क्यों न हों क्योंकि पार्टी और विचारधारा अलग हो सकती है पर देश और तिरंगा तो सबके लिये एक ही है। जब हमारे सैनिक शंख बजाना छोड़कर मंत्रोच्चार पर आ जायेंगे तो विरोध करने वाले उठा लें खरहरा और पूरा गांव बुहार आयें। भला रोक कौन रहा है।
आज शुद्ध मन से शंख की गूंज की अनुभूति करें और समर्पित हो जायें अपने देश और तिरंगे के लिये क्योंकि विरोध का अवसर भी तभी है जब यह देश है और उसकी मजबूत चहारदीवारी और उसमें फहरता हमारा तिरंगा।
जय हिन्द !
रिवेश प्रताप सिंह
गोरखपुर
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