नजर लागी राजा तोरे बंगले पर........... .
BY Suryakant Pathak12 July 2017 3:23 AM GMT

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Suryakant Pathak12 July 2017 3:23 AM GMT
पता नही इस कालजयी गीत को पूरी अदा के साथ गुनगुनाती नायिका के मन में तब क्या क्या रहा होगा, पर उस गुनगुन के पचासों वर्ष बाद जब इस गीत की प्रासंगिकता दिखती है, तो लगता है कि उस समय वह मादक नायिका सिर्फ अपने नायक को रिझा नही रही थी, अपितु भारतीय लोकतंत्र का भविष्य बता रही थी। जिस प्रकार भारत के बुजुर्ग सठियाने के बाद और लालची हो जाते हैं, उसी प्रकार भारत के लोकतंत्र के सठियाने के बाद उसके नायकों के मन में मोह माया बढ़ गयी है, और इसी के कारण आजकल हर नेता बंगले पर नजर लगाने लगा है। वैसे तो हर नेता बंगले पर नजर लगाये ही पैदा होता है, पर कभी कभी बंगले और नेता दोनों के दिन आते हैं, और तब यह नजरबाज़ी बढ़ जाती है।
आजकल लखनऊ के एक लोकतान्त्रिक बंगले के दिन फिर रहे हैं, सो सबकी नजर उस बंगले पर लगी हुई है।
बड़ी मारक होती है यह नजर, बंगले के साथ साथ नजर लगाने वाले को भी बावला बना देती है। और चुकी बंगले पर नजर लगाना एक फ़िल्मी अदा है, सो नजरमारक को भी फ़िल्मी अदा दिखानी पड़ती है। आजकल लखनऊ वाले बंगले पर नजर गड़ाये बावले कुछ ज्यादा ही अदा दिखाने लगे हैं।
इसी बावलेपन में बंगले का एक प्रेमी कह देता है कि सारे बाभन सूअर हैं। उसकी नजर चमक उठती है। बंगले से उसके प्रेम की टीआरपी बढ़ जाती है।
अब उसकी बढ़ती टीआरपी से परेशान एक दूसरा प्रेमी और बड़ी अदा दिखाता है और एक दूसरे प्रेमी को वेश्या कह देता है।
वाह भाई... क्या बात है... अब जा के बंगले के प्रेमियों में ताव आया है, अब जा के रंग खुले हैं।
पर इसमें भी कुछ बेवकूफों को आपत्ति है। कहते हैं कि मर्यादा तार तार हो रही हैं, ये हो रहा है, वो हो रहा है....
अबे घोंचू, साफ जनता ही रह गए? अरे मियां, मर्यादा हमारे लिए होती है, न कि बंगले के प्रेमियों के लिए। वे तो नैतिकता मर्यादा के बंधन से मुक्त हैं। वे किसी को कभी भी कुछ भी कह सकते हैं। वो दिन गए जब सिर्फ अपनी सरकार को करप्ट कह देने पर अटल जी सदन में पुरे विपक्ष पर बरस रहे थे, और पूरा विपक्ष नतमस्तक सुन रहा था। अब वो दिन है जब दिल्ली का एक बंगला प्रेमी अपने बनियान में छेद हो जाने पर इसे डाइरेक्ट प्रधान मंत्री की साजिस बताता है और बरस पड़ता है।
यह युग बंगला प्रेमियों का है।
ये बंगला प्रेमी भी बड़ी अद्भुत जीव होते है।
वैसे एक सामान्य प्रेमी और एक बंगला प्रेमी में बहुत अंतर नही होता। सामान्य प्रेमी जब मोबाईल पर प्रेमिका से बात करता है, तो लगता है जैसे अपने कलेजे को सनसुई के जूसर में पेर कर उसका रस मोबाईल के स्पीकर में टप टप चुआ रहा हो, ठोपे- ठोप, बून्द बून्द....
और जब एक बंगला प्रेमी अपनी जनता प्रेमिका से बात करता है तो लगता है कि अपने कलेजे, फेंफड़े, किडनी, पैनक्रियाज, गॉल ब्लाडर और हर्निया को एके में पीस कर, उसका रसमलाई बना कर कह रहा हो- ए डार्लिंग, आओ न एक पीस खा लो।
जिस प्रकार एक प्रेमी के अंग अंग से प्रेमिका के प्रति टपकता प्यार बेचैन होता है कि कब प्रेमिका हाँ कहे कि हम मजनू का रिकार्ड तोड़ें, उसी प्रकार एक बंगला प्रेमी बेचैन होता है कि कब जनता प्रेमिका उसे मौका दे, कि वह ताबड़तोड़ सेवा करे। वह जनता कि दबादब सेवा करने के लिए चौबीसों घंटे बेचैन रह कर एक ही गीत गाता रहता है- मोका मिलेगा तो हम बता देंगे, तुम्हे केतना प्यार करते हैं सनम....
पर प्यार करने को बेचैन बंगला प्रेमी को यह जनता मोका दे तब तो वह प्यार करे। जनता मोका दे तब तो वह उसकी सेवा करे।
अब बेचारी जनता प्रेमिका भी करे तो क्या करे, कोई प्रेमी रसमलाई ले कर खड़ा है, तो कोई गुलाबजामुन। कोई बंगला प्रेमी समोसा ले के कहता है कि ए डार्लिंग उ सब मीठा खिला के तुमको डाइबिटीज पकड़वाना चाहता है, हेने आओ, हम नमकीन खिलाऊंगा।
अब जनता खाये तो किसकी मिठाई खाये?
जनता डार्लिंग की इस दुविधा से बंगला प्रेमी का कुछ नही बिगड़ता। वह तो हाथ में खून खींचने वाली सुई ले कर खड़ा है। बहलाता है, फुसलाता है, कहता है- हेने आओ डार्लिंग, हम इतना आराम से तुम्हारा खून घिंचूंगा कि तुमको थोडा भी दर्द नही होगा। उधर मत जाओ, उ सूअरों का पार्टी है उ जोर से खून घींचती है।
जनता नही समझती और किसी और से खून घींचवाने चली जाती है, तब भी यह बंगला प्रेमी नही घबड़ाता। वह मन ही मन कहता है- कब तक छिपोगी डार्लिंग, कभी तो हमारी ओर आओगी। हम फिर तुम्हारा इंतजार करूँगा। आखिर तुमको हमीं लोगों में से ही न चुनना है। अगली बार ही सही....
अगली बार बंगला प्रेमी नायक और ज्यादा अदा दिखाता है। खूब गाली बकता है, गर्दन काटने पर पैसा देने की घोषणा करता है, दूसरे बंगला प्रेमी को तवायफ, दलाल, जो जी में आये कहता है। इस तरह दूसरे बंगला प्रेमी बिदक जाते हैं फिर वे अदा दिखाना सुरु करते हैं।
जनता फिर दुविधा में पड़ जाती है।
वैसे हमारा कन्फ्यूजन बस यह है, कि जिस देश में हर साल लाखों महिलाओं को मज़बूरी में या जबरदस्ती वेश्या बनना पड़ता है, उस देश के नुमाइंदे खुद को.................
खैर छोड़िये। अभी सावन पुरे रंग में बरस रहा है, आप भी गाइये- नजर लागी राजा तोरे बंगले पर........
सर्वेश तिवारी श्रीमुख
गोपालगंज, बिहार
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