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भोजपुरी कहानिया

क्रांति कथा

क्रांति कथा
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लाखों सेकेण्ड पुरानी बात है, महाप्रतापी बाबा चुमण्डल अपने वातानुकूलित कक्ष में बैठे चु-चर्चा में निमग्न थे। चमचे चरण दबा कर धन्य हो रहे थे, पर बाबा को तनिक भी चैन न था, अपितु उनके मुखारविंदु पर बेचैनी की रेखाएं स्पष्ट झलक रही थीं। बेचैनी का कारण यह था कि प्रत्येक वर्ष की भांति इस वर्ष भी बाबा को उनकी खानदानी विमारी "कलकल" ने जकड़ लिया था। बाबा चुमण्डल जब खुजलाना प्रारम्भ करते तो मन ही मन उन्हें ऐसा लगता जैसे किसी मनुवादी बाभन को पटक के थूर रहे हों, वे आनंदित हो जाते। किन्तु शास्त्रों में कहा गया है कि आनंद क्षणिक ही होता है। बाबा मनुवाद को थुरने का आनंद कुछ क्षण ही ले पाते तबतक उनके कलकल से पानी निकलने लगता। फिर तो इतनी जलन होती कि बाबा को लगता जैसे सैकड़ों मनुवादी एक साथ मिल कर उनके "हेपेटाइटिस जी" का इलाज कर रहे हों। पर कलकल तो आखिर कलकल होता है, उसकी बेचैनी पत्रकारिता से भी ज्यादा होती है। बाबा पाकिस्तान खुजाते तब तक बंगलादेश में बेचैनी होने लगती, और बांग्लादेश खुजलाते तब तक पाकिस्तान बेचैन हो जाता। लगातार दस मिनट खुजलाने के बाद जब पाकिस्तान और बांग्लादेश दोनों लाल हो जाते और पीड़ा अपने चरम पर पहुच जाती तो बाबा चुमण्डल मन ही मन गाली देते- ये लाल, सलाम में ही अच्छा होता है, अगर अंग लाल हो जाय तो बड़ी पीड़ा होती है। पीड़ा से व्यग्र बाबा चुमण्डल जब ब्राम्हणों को सौ दो सौ गालियाँ दे लेते तो थोडा चैन मिलता।
उस दिन भी बाबा चुमण्डल पंद्रह मिनट खुजलाने और साढ़े नौ मिनट गरियाने के बाद थोड़ी शांति महसूस कर रहे थे, कि नौकर ने बताया- बाबा, आर्च विशप आएं हैं।
बाबा के अंग अंग प्रफुलित हो गए। बाबा के ईसाई बनने के बाद विशप महोदय बाबा के समस्त खर्चों का इस तरह ध्यान रखते थे जिस प्रकार एक आधुनिक कॉलेजिया प्रेमी( गौरव सिंह जैसा) अपनी प्रेमिका के खर्चों का ध्यान रखता है। बाबा चुमण्डल भी एक तरह से इस ईसाई पादरी की प्रेमिका ही थे, सो उसका नाम सुनते ही उनके मन में हु-लाला होने लगा।
बाबा ने तुरन्त विशप को बुलाया और देखते ही एक फ़्लाइंग किस छोड़ा। बाबा के फ़्लाइंग किस छोड़ते ही चमचे धन्य धन्य कर उठे। बाबा ने एक अदा से अपनी दायीं टांग उठा कर कहा- आइये डार्लिंग, आपके मिजाज तो अच्छे हैं?
पादरी ने चिढ कर कहा- सटप... ये क्या पुरानी फिल्मों की हीरोइन की तरह मिजाज पूछ रहे हो? कुछ काम भी करते हो या दिन भर बैठ कर कलकल खजुआते हो?
बाबा ने डर कर कहा- क्या हुआ प्रभु?
- इतने भोले न बनों, हम तुमको हर महीने लाखों रूपये इसलिए नही देते कि तुम बैठ कर दिन भर लैटरिंग में क्रांति करो, हम तुमको पैसा इसलिए देते हैं कि तुम दलितों को ईसू की राह में लाओ, उन्हें ईसाई बनाओ।
- पर डार्लिंग, मैं तो जी जान से इस काम में लगा हुआ हूँ। सुबह से ले कर शाम तक ब्राम्हणों को गाली देता हूँ, हिन्दू धर्म को गाली देता हूँ, दलितों को भड़काता रहता हूँ, पर ये कमबख्त मेरी बात सुनते नही हैं। मेरे साथ साथ गाली तो देते हैं पर ईसाई बनने के नाम पर उनकी जान जाने लगती है।
- वो सब छोडो, अगर अगले एक महीने में तुमने कम से कम दस लोगों का धर्मपरिवर्तन नही कराया तो हम तुमको पैसा देना बन्द कर देंगे। और हाँ, ये क्या डार्लिंग डार्लिंग लगाया है बे? तुम जैसा करियठ को मैं डार्लिंग बनाऊंगा। दुबारा कभी डार्लिंग कहा तो मार मार के तेरा गोबर निकाल दूंगा।
बाबा का गुस्से से मुह लाल हो गया। उन्होंने चाहा कि पादरी को दो झाँपड़ लगाएं पर ठीक उसी समय उनका कलकल खजुआने लगा और उनका हाथ अपने आप ही संक्रमित स्थान अर्थात पाकिस्तान खुजलाने लगा।
पादरी चला गया।
इधर बाबा आग में जल रहे थे। उनके हाथ जितनी तेजी से खुजला रहे थे उनके अंदर का गुस्सा उतनी ही तेजी से बढ़ रहा था। उनके दांत किटकिटाने लगे थे। वे अंदर ही अंदर उबल रहे थे। अचानक ही वे उठे और पूरी ताकत लगा कर चिल्लाये- मनुवाद का नाश हो।
किन्तु...... प्रत्येक क्रिया के विपरीत प्रतिक्रिया होती है।
जोर से चिल्लाने की प्रतिक्रिया हुई और बाबा का पैजामा गीला और पीला हो गया। बाबा के चमचों ने इस अद्भुत क्षण में जयकारा लगाया- बाबा चुमण्डल जिंदाबाद...
पर बाबा मन ही मन बोले- ये न्यूटनवा भी साला मनुवादी ही होगा।साला फिर धोना पड़ेगा।

बोलिये प्रेम से बाबा चुमण्डल की....जय

"श्रीमुख"
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