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"गोरख पाण्डेय छात्रावास पार्ट-3" देवेन्द्रनाथ तिवारी

गोरख पाण्डेय छात्रावास पार्ट-3    देवेन्द्रनाथ तिवारी
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पंच-टीला की पहाड़ियों के समीप स्थिति गोरख पांडेय छात्रावास प्रचलित नाम #जीपीएच के कक्ष संख्या-31 में एक जादो जी रहते हैं। जादो जी की बुद्धि-दानी का व्यापक विस्तार देख आप चकित हो जाएंगे। लेकिन जादो जी इसको और विस्तृत करने के लिए रोज पहाड़ी की कठिन चढ़ाई कर लाइब्रेरी में 9 से 6 बजे तक बैठते हैं। यह सच है कि कुछ लोग स्वभाव से पढ़ाकू नहीं होते, जबकि कुछ ऐसे भी होते हैं कि किताबों से अलग होने का नाम ही नहीं लेते। जादो भी उन्हीं में से एक हैं।

सामान्य कद-काठी के जादो जी का पेट, विगत् तीन वर्षों से असामान्य रूप से बढ़ रहा है। बढ़ते हुए पेट की वजह से चिंतित जादो जी को लगता है कि यह उनके बियाह की राह में सबसे बड़ा रोड़ा है। इसे कम करने के लिए उन्होंने योग का सहारा लिया है।

महर्षि पतञ्जलि ने योग को 'चित्त की वृत्तियों के निरोध' (योगः चित्तवृत्तिनिरोधः) के रूप में परिभाषित किया है। लेकिन जादो जी की चित्तवृति पर कोई निरोध नहीं है। वे रोज नियम से सुबह-दोपहर और शाम को ललित की दुकान पर दो-दो अंडे का सेवन करते हैं।

मनोविज्ञानी जादो जी, मानते हैं कि प्रेम तो मन में एक बार बसी छवि की ऐसी अनुभूति है जो शाश्वत होती है। समय के चिह्न भी फिर जिस पर दिखाई नहीं देते हैं। इसी सिद्धांत से आवेशित होकर वे सच्चे प्यार की तलाश में हैं।

जादो जी के परम मित्र कमल को उनका यह हाल देखा नहीं गया। सो उन्होंने अपनी साली संग उनके बियाह का प्रस्ताव रखा। जादो जी कमल की साली से मिलने के लिए जॉन-प्लेयर का नया शर्ट-जिंस और किलर का डियो मार कर पहुँचे। मुलाकात की तारीख तय हुई। बेसब्र जादो जी, मिलन के दिन अंगुली पर गिन रहे थे।

मनोविज्ञान की किताब में जादो जी ने पढ़ा था कि किसी भी आदमी को प्यार में पड़ने के लिए सिर्फ़ 4 मिनट ही काफी होते हैं। इसे अमल में लाते हुए वे, अपलक कमल की साली को निहारते रहे।

अब उनके मन में तारक मेहता वाले पोपट लाल की तरह बियाह से लेकर हनीमून तक के सपने सजने लगे। उनके पांव अब जमीन पर नहीं थे। तभी कमल की साली उठ कर अंगने में गई, कमल भी साथ में गए।

कमल की साली ने कहा - ए जीजा, हमके जहर दे दऽ बाकि इनका से बियाह करे के मत कहऽ... हम कुँआरे रह जाइब बाकि इनका संघे बियाह ना करबऽ...

कमल ने मनाने की खातिर तमाम उपाय आजमाया पर नाकामयाबी हाथ लगी।

कमल कमरे से बाहर आये और जादो जी को चलने के लिए कहा। दुआर पर आते ही जादो पूछ बैठे- ए इयार का भइल हऽ, अब हमार बियाह होई न...?

कमल जानते थे कि सच्चाई जान कर मनोवैज्ञानिक जादो जी को मानसिक सदमा लग सकता है, नतीजा उन्होंने झूठा अश्वासन दिया। जादो जी अब बियाह होने की खुशी में गिल रहते हैं... वे अब एक ऐसे मोड़ पर खड़े हैं जहां उन्हें स्वयं नहीं पता कि जो उन्हें हुआ है वह प्यार है भी या नहीं? प्यार की शुद्धता और सहजता से अनजान जादो जी, इस सवाल से जूझ रहे हैं कि कोई तो आए और उन्हें यह बताए कि 'हां, यही प्यार है...'

#जीपीएचनामा


देवेन्द्रनाथ तिवारी
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