(सावन का मन्दिर- भोजपुरी मिश्रित)
BY Suryakant Pathak10 July 2017 12:59 AM GMT

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Suryakant Pathak10 July 2017 12:59 AM GMT
सावन का सोमवार गांव का मंदिर मेहररुओं से खचाखच भरा हुआ। शिव जी को छोड़ कौनो पीछे हटने वाली नहीं। आदमी लोग अपने लोटा में जल और छोटी छिपुलि में भांग धतूरा अक्षत मौली रोली लाचिदाना लिए दूर खड़े, कारण कौन पंगा ले? शिव जी को औरतों से छुड़ाने का। इसीलिए बेचारे अपनी बारी का इंतजार मन ही मन चाभुर कूट रहे थे। पुजारी जी दो बार पहले ही डंटा गए थे, शिव जी को औरतों से छुड़ाने में। बेचारे चुप्पे अपने आसन पर बैठे भुनभुना रहे थे।
उधर औरतें पूजा कम और लड़ाई ज्यादा कर रहीं थीं, जो एक बार शिव जी की पिंडी के पास बैठ गई वो जबतक किसी से झगरा न हो जाए तब तक वहां से उठने का नाम न ले। और उनका झगरा भी गजब, ज्यों ही पिंडी के पास बैठी मेहरारू ने शिव जी की पिंडी पर माथा टेका तभी पीछे वाली ने उसी के सिर पे लोटे वाला जल ढरका दिया, कवन ह रे...कवन ह रे ... कहते हुए जब तक माथा ऊपर किया तब तक बाकी का जल साइड से शिव जी पर चढ़ा दिया। अब वो बोली -हरे तूँ रहले, जवाब आया- हं रे ....बोल.... का करबे । आहि दादा ... भइल मार.... ढेर तूँ एत्थु भइल बाड़ू ..... वहीं झोंटा झोंटी हो गई। शिव जी बेचारे दम साध के बैठ गए कि तोहनी का मार क ल स पहिले, फेर पूजा पाठ देखल जाइ। एक तरफ ये चल रहा था तभी दूसरी तरफ कौनो अगरबत्ती जलाने के लिए माचिस धरा ( जला) दी, अब अगरबत्ती तो जली नहीं जली लेकिन शिव जी पर औरतों की उफनाती भीड़ में किसी के आंचल में आग पकड़ ली। बस जी वहीं हाहाकार मच गया... जरवलस जरवलस मार मार मार बुजरी के। कौन जलाया और कौन पिटाया पता नहीं चला। लेकिन थोड़ी देर मंदिर में हड़कम्प मचा रहा।
इसी बीच पंडी जी की नजर पड़ी एक औरत पर जो शिवजी पर रोली के बजाए सिंदूर चढ़ा रही थी। ये देख पंडी जी आग बबूला हो गए, हरे तूँ का करत बाड़े रे sss... शंकर जी प रोली चन्दन चढ़ेलाss कि सिंदूर रे ss... पगलेटिया। बस जी उस औरत ने काली माई का रौद्र रूप धारण कर लिया, ऐ पंडी जी ढेर बोलब न त बूझ लेब, 'अब्बे आ के बता देब कि शंकर जी प का चढ़ेsssला, ये सब बोलते हुए उसके लोटे की पोजिशन हाथ में ढेला फेंकने वाली स्टाइल में थी, ये देख के पंडी जी सिट्टी पिट्टी गुम हो गई और वो चुप चाप अपनी सीट मने गद्दी पर राम राम कहते हुए जा कर बैठ गए।
समरथ को नहीं दोष गोंसाई अर्थात् जो धक्का मुक्की जोर आजमाइश कर गया वो कर गया, और फटाफट शिव जी के पास पहुंचा और जल चढा कर निपट लिया। बाद वाले धक्का मुक्की फिर पूजा पाठ, इतना सब होने पर भी भीड़ में कोई कमी नहीं। कहीं अगरबत्ती धूप बत्ती से कपड़ों में छेद हो रहे हैं, रोली अक्षत शिवजी पर गिर रहा है भी कि नहीं श्रद्धालुओं द्वारा लाया गया दूध मिश्रित जल शिवजी पर चढ़ रहा है कि किसी के सर पर, लेकिन भगवान के प्रति आस्था में कोई कमी नहीं।
मजेदार अनुभव है, कभी शहर से निकल कर ग्रामीण क्षेत्रों में जा कर अनुभव कीजिये।
शिवेंद्र मोहन सिंह
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