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भोजपुरी कहानिया

भारत 'गाथाओं' का देश है...

भारत गाथाओं का देश है...
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प्रभुनाथ चचा और रघुनाथ चचा दोनों चचेरे भाई थे। प्रभुनाथ जी शुरु से ही संत आदमी ठहरे। दिन भर 'मंगल भवन अमंगल हारी' करते रहते थे। पूरे पंडितान में अभी वैसा चटकार शंख बजाने वाला कोई हुआ नहीं। चार लड़के थे उनके, दो इंजीनियरिंग की तैयारी करते थे दो मेडिकल की।चारों गजब के शरीफ और सभ्य। गदहे को देखकर घर में जाकर मम्मी से कहते थे कि मम्मी-" गदहा जी दुआर पर खड़े हैं"।
लेकिन ठीक इसके विपरीत रघुनाथ चचा निकले। बलिया में उगाई जाने वाली सबसे बरियार गांजे की किस्म 'नगिनिया' के छह कश 'बरदास' करने वाले पूरे गाँव में एकलौते मरद यही थे। संयोग से इनके तीनों लड़के भी दबंग निकले। चट्टी चौराहे के नेताओं की दलाली और छोटे मोटे वसूली से काम निकाल लेते थे।
कहते हैं न कि होनी को टाला नहीं जा सकता। एक दिन दुआर पर खटिया भर जमीन के लिए प्रभुनाथ चचा और रघुनाथ चचा में झड़प हो गई। रात को रघुनाथ चचा के लड़के प्रभुनाथ जी के घर में घुस कर वो तांडव किए कि पूछिए मत। चारों लड़कों के साथ साथ प्रभुनाथ चचा और चाची को भी महीना भर हरदी दूध पीना पड़ा था । प्रभुनाथ चचा ठहरे सभ्य और उनके लड़के भी गजब के शालीन।उनके साथ मारपीट की घटना पर पूरे गाँव को बुरा लगा। हमको भी बुरा लगा। हमने तीनों लड़कों से कहा एक दिन कि- प्रभुनाथ चचा साक्षात देवता हैं उनको कांहे पीट दिए तुम लोग जी?
रघुनाथ चचा के बड़के लड़के ने कहा - "माट्साहब! लाठी जब चलती है न तो बस देह देखती है व्यक्ति नहीं"।
फिर तो यह आम बात हो गई। रघुनाथ चचा के लड़कों को जब मन करता तब प्रभुनाथ चचा को पीट देते। तीनों मिलकर उन चारों शरीफ बच्चों को लथार लथार कर मारते और कोई बचाने भी नहीं जाता। एक दिन की बात हो तब न कोई जाए। जब रोज रोज वही होगा तो कौन जाएगा और कब तक जाएगा!
उस दिन भी बाजार से आते हुए प्रभुनाथ चचा को साइकिल से ढकेल कर गिरा दिया था उन तीनों ने। किसी तरह दिन बीता, साँझ बीती। लेकिन रात को खूब हल्ला हंगामा सुनाई दिया। हमने जान लिया कि आज फिर प्रभुनाथ चचा और उनके चारों लड़के पिटाएंगे। पूरे गांव वालों ने अपने अपने घरों से प्रभुनाथ चचा के लिए दुआएँ की। लेकिन सुबह सबको आश्चर्य हुआ देखकर कि प्रभुनाथ चचा के लड़के एकदम टाइट चल रहे थे और रघुनाथ चचा और उनके लड़कों को हरदी भांग छापा गया था।
अगले दिन पंचायत हुई सबने एक स्वर से रघुनाथ चचा और उनके तीनों आवारा लड़कों का पक्ष लिया। न्याय रूपी नायिका की खूबी यही होती है कि हमेशा मजबूत मरद के साथ ही जाती है। मैंने भी प्रभुनाथ चचा के लड़के को खूब डांटा। और पूछा कि - अबे तुम अपने इंजीनियरिंग की तैयारी पर ध्यान दो। और झगड़े में तुमने रघुनाथ चचा को कांहे मारा बे?
इंजीनियरवा ने कमर से 'मेड इन मुंगेर' कट्टा निकाल कर दिखाते हुए कहा - 'माट्साहब गोली जब चलती है न तो केवल सीना देखती है व्यक्ति नहीं'।
मैंने डांट कर कहा - अरे ससुर अपना नहीं तो कम से कम प्रभुनाथ चचा के इज्ज़त का ख्याल करो।
इंजीनियरवा खिसिया कर अपने बाप से बोला - ए बाबू जी, गोलिया निकालिए तो थोड़ा। लगता है एक दो लाश यहीं गिराना पड़ेगा।
फिर सबने फटी हुई आँखों से देखा कि प्रभुनाथ मिसिर अपने शंख रखने वाले झोले में से चार गोली निकाल कर अपने सुपुत्र इंजीनियरवा के हाथ पर धर रहे हैं । इंजीनियरवा ने कट्टा लोड करके मेरे सीने पर सटा दिया और बोला - ए माट्साहब एक्को अच्छर बोले न अब तो बस...।
अगले मिनट में सारे पंच और सदस्य गायब हो गए। रघुनाथ चचा के लड़के रातों रात भाग गए कमाने। फिर गाँव में किसी ने प्रभुनाथ मिसिर को परेशान नहीं किया। हालांकि इंजीनियरवा उसी रात को मेरे घर आया था और कंधे पर सिर धरे रो रहा था कि भइया आपके कहने पर इतना बड़ा अपराध किए हैं हम।आपको कट्टा दिखाए हैं हम, हो सके तो माफ कर दीजिएगा।
बहुत बड़ा नहीं लिखना है। आजकल फेसबुक पर कहानियों का दौर चल पड़ा था सैकड़ों उदाहरणों के साथ कि युद्ध होगा तो हम हार जाएंगे, हमारी अर्थव्यवस्था बीस साल पीछे हो जाएगी, वगैरह वगैरह।
अब मूल बात करते हैं वही प्रभुनाथ मिसिर हैं हम। और रघुनाथ मिसिर है पाकिस्तान। रोज छेड़छाड़ करता था हमसे। जब मन करता था तब हमें दो चार चटकन लगा जाता था। लेकिन कल अचानक क्या हुआ कि प्रभुनाथ मिसिर के शरीफ लड़के रघुनाथ मिसिर के अँगना में कूद गए और प्रभुनाथ जी अपना शंख फेंक कर गोली बारुद भर लिए झोले में... सब ठीक हो गया है न अब।
और रही बात कथित चीन रूस और अमेरिका जैसे पंचों की तो पहले भी कह चुका हूं कि न्याय उस मेहरारु का नाम है जो मजबूत कंधे के साथ ही रहती है। चाणक्य ने कहा था कि- "कमजोर को इतना मारो कि बलवान देख कर डर जाए"। जिस दिन इंजीनियरवा ने मुझ पर कट्टा ताना था न उस दिन सभी मजबूत पंच भाग खड़े हुए थे। यही कूटनीतिक चाल है समयानुसार इसका भी इस्तेमाल जरूरी है। जिस दिन हमने कमजोर पाकिस्तान को ठीक से धो दिया उसी दिन से मजबूत समझे जाने वाले पंच गण सलाम करने लगेंगे।
पाकिस्तान को अब समझ लेना चाहिए कि प्रभुनाथ मिसिर ने शंख छोड़कर हथियार उठाया है वो भी अभी मात्र 'सर्जिकल स्ट्राइक' के तौर पर। जिस दिन 'मेड इन मुंगेर' का मुँह हमले के लिए खुला, उस दिन कोई आका और कोई काका नहीं आएगा बचाने।
कुछ भाइयों और बहनों ने तो इस्लामाबाद, कराची, रावलपिंडी आदि पाकिस्तानी क्षेत्रों से चुनाव लड़ने के बैनर तक टाँग दिए हैं। यह पोस्टर्स खूब तैरने चाहिए ताकि पाकिस्तान को मालूम हो जाए कि हम लोकतंत्र के ही समर्थक हैं। और पाकिस्तान में भी लोकतंत्र स्थापित कर देंगे नहीं मानोगे तो।
एक बहन की मार्मिक अपील तो मुर्दे में भी जोश फूंक देगी। यह जूनून कम नहीं होना चाहिए।
हालांकि सर्जिकल आपरेशन स्थगित कर दिया गया है लेकिन अगर युद्ध हुआ तो ध्यान रहे कि अबकी कश्मीर नहीं पूरा पाकिस्तान हमारा होगा। और लड़ेंगे हम पूरी ताकत से। ताकि हमारी पीढ़ियों को युद्ध न करना पड़े। क्योंकि अंततः विनाश ही सृजन की आधारशिला है और युद्ध शांति की...।
आखिरी बात उन नवोदित कथाकारों से कि बंद कीजिए कुछ दिन यह अपनी निराशा हताशा और मुर्दों वाली कहानियाँ... भारत 'गाथाओं का देश है 'कहानियों' का नहीं...

असित कुमार मिश्र
बलिया
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