अन्नपूर्णा यादव की किसानों पर कविता : हम किसान हैं
BY Suryakant Pathak10 Jun 2017 2:27 AM GMT

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Suryakant Pathak10 Jun 2017 2:27 AM GMT
हम किसान हैं
चीरकर धरती का सीना
दाने हम उगाते हैं
फसल खिले तो खिल जाते हैं
फसल के साथ ही मुरझाते हैं
भूखे पेट हमारे हैं परंतु
दुनिया की भूख मिटाते हैं
रोता है आसमान जब भी
हमारी दुर्दशा को देखकर
तब हम खुशियां मनाते हैंं
और तभी हम मुस्कुराते हैं
कौन समझे हमारे दर्द भला
यहां सभी हमसे कतराते हैं
चुपचाप खुदकुशी कर ली कभी
तो कभी चिट्टी भी हम छोड़ जाते हैं
तोड़कर मौन मुखरित होने का
हौसला भी कभी बनाते हैं
परंतु कब सुना है
किसी ने लाचार की
हद हो गई है अब तो
अत्याचार की
हमारे सीने में बो दी गई गोलियां
लगता है कि अब लोग
अनाज नहीं खाते हैं ।।
अन्नपूर्णा यादव ''अनु''
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