आपातकाल की दरिंदगी और वर्तमान संकटों से लड़ने का संकल्प – प्रोफेसर (डॉ.) योगेन्द्र यादव

आज से 45 साल पहले तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने देश में आपातकाल लगा दिया था। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने राजनारायण बनाम उत्तर प्रदेश के मुकदमे ने इंदिरा गांधी को चुनावों में धांधली का दोषी पाया था । इस कारण 12 जून 1975 को उनकी रायबरेली से संसद सदस्यता को अवैध घोषित कर दिया और अगले 6 साल तक उन्हें कोई भी चुनाव लड़ने पर पाबंदी लगा दी । ऐसी विषम परिस्थिति में वह या तो राज्य सभा की सदस्य बने या प्रधानमंत्री का पद छोड़ दें । इसी दुविधा में 25 जून, 1975 की आधी रात को उन्होने आपातकाल की घोषणा कर दी । इलाहाबाद हाइकोर्ट के इस फैसले पर कांग्रेस पार्टी के वरिष्ठ नेताओ में गहन मंत्रणा की । तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष डीके बरुआ ने उन्हें अंतिम फैसला आने तक प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा देने और खुद प्रधानमंत्री बनने की पेशकश की । लेकिन इन्दिरा गांधी के पुत्र संजय गांधी इसके लिए तैयार नहीं थे। उन्होंने इंदिरा गांधी को समझाया कि प्रधानमंत्री के रूप में पार्टी के किसी भी नेता पर भरोसा नहीं किया जा सकता । अपने बेटे के तर्कों से वे सहमत हो गई और हाईकोर्ट के इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने का फैसला किया । 23 जून को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई। सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के फैसले पर पूर्ण रोक लगाने से मना कर दिया । उन्हें प्रधानमंत्री बने रहने की अनुमति दे दी, लेकिन अंतिम फैसला आने तक सांसद के रूप में मतदान करने पर पाबंदी लगा दी । हाई कोर्ट के निर्णय के अनुरूप वेतन और भत्ते पर रोक बरकरार रखी ।
वहीं दूसरी ओर लोक नारायण जय प्रकाश की अगुवाई में गुजरात और बिहार के छात्रों द्वारा किया जा रहा आंदोलन अपने चरम पर था । सभी छात्र नेता कांग्रेस के खिलाफ लामबंद हो चुके थे । बिहार की कांग्रेस सरकार इस्तीफा का दबाव लगातार बढ़ रहा था । ऐसे में सुप्रीम कोर्ट के आदेश ने उन्हें और आक्रामक बना दिया । उन लोगों ने और प्रचंडता के साथ आंदोलन चलाने का निर्णय लिया । 25 जून को दिल्ली के रामलीला मैदान में जेपी की रैली पहले से ही आयोजित थी। लोकनायक जयप्रकाश इंदिरा गांधी को स्वार्थी और महात्मा गांधी के आदर्शों से भटका हुआ बताते हुए उनसे इस्तीफे की मांग कर रहे थे । इस रैली में राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर की कविता - सिंहासन खाली करो कि जनता आती है । स्लोगन के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा था । उन्होने देश की पुलिस और सेना से भी अनुरोध किया कि वे अपना नैतिक कर्तव्य निभाते हुए सरकार का असहयोग करें । सुप्रीम कोर्ट के आदेश और लोकनायक जय प्रकाश के आंदोलन की वजह से देश में ऐसी स्थिति पैदा हो गई कि इन्दिरा गांधी दिन पर दिन अकेले पड़ती जा रही थी। उनके खिलाफ लगातार जनमानस तैयार होता जा रहा था । सुप्रीम कोर्ट का आदेश आने के बाद समूचा विपक्ष सड़क पर उतर चुका था । दूसरी ओर तत्कालीन प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी किसी भी स्थिति में प्रधानमंत्री पद से हटना नहीं चाहती थी। उन्हें अपनी पार्टी के किसी नेता के ऊपर विश्वास नहीं था। अपनी इस मंशा को अमली जामा पहनाने के लिए इन्दिरा गांधी ने लोकनायक जय प्रकाश के एक बयान को आधार बनाते हुए 26 जून, 1975 को सुबह राष्ट्र के नाम संदेश में कहा - कि जन नायक सेना और पुलिस को विद्रोह के लिए भड़का रहे हैं । ऐसे में देश की एकता और अखंडता बचाने के लिए आपातकाल लगाना जरूरी हो गया है । और उन्होने आपातकाल की घोषणा कर दी ।
देश के सभी प्रमुख नेताओं को गिरफ्तार कर बिना मुकदमा चलाये जेल में डालने और यातना देने का आदेश जारी हो गया। उस समय देश के सभी छोटे-बड़े नेताओं को पकड़ पकड़ कर जेल मे डाल दिया गया। लोकनायक जय प्रकाश को यातना और जहर देकर जान से मारने की कोशिश की गई। इन्दिरा गांधी ने ऐसा खेल खेला कि पूरे देश में भय का माहौल बन गया। अब कोई भी इन्दिरा गांधी के खिलाफ बोलने के लिए तैयार नहीं था। न कोई सभा, न कोई मीटिंग, न किसी प्रकार की बयानबाजी । सब निषिद्ध कर दिया गया । संविधान द्वारा प्रदत्त सारे मौलिक अधिकार छीन लिए गए । लेकिन आजादी की लड़ाई में अंग्रेजों के दांत खट्टे कर देने वाले, अपनी रणनीतियों और आंदोलनों से अंग्रेजों को बैकफुट पर जाने को विवश कर देने वाले नेताओं का मनोबल तोड़ना इन्दिरा गांधी के लिए आसान नहीं था । तमाम यतनाओं के बाद भी पूरा विपक्ष इन्दिरा गांधी द्वारा लगाए गए इस आपातकाल का विरोध करता रहा। भले ही उसके लिए उन्हें रोज कठोर यातनाओ से क्यों न गुजरना पड़े ।
सन् 1975 में आपातकाल के दौरान तीन महीने इंदौर की जेल यातना सहने वाले तत्कालीन नेता शशीन्द्र जलधारी ने एक कविता लिखी थी, जिसमें आपातकाल के दौरान की गई ज़्यादतियों के दर्शन होते हैं । उन्होने अपनी कविता में आपातकाल की तुलना घनघोर अंधेरे से की। जिसमें कुछ भी दिखाई न पड़ता हो और सभी के मूल अधिकारों को भी समाप्त कर दिये गए –
छा गया आपातकाल का अधियारा ।
कतर दिए मौलिक अधिकारों के पर।।
अपनी कविता की अगली चार पंक्तियों में उन्होने जो लिखा, वह आँखें खोल देना वाला है । उन्होने लिखा कि जो भी इन्दिरा के खिलाफ बोलता उसे घोर यातना दी जाती और जेल में ठूस दिया जाता । किसी को यह पता नहीं था कि वे जेल से निकलेगे या यहीं पर जीवन लीला का अंत हो जाएगा । उन्होने लिखा -
था वो जुल्मो-सितम का दौर
नहीं पता था होगी भोर,
ठूंस-ठूंस कर भर दी जेलें
रौंद डाला कानून चहुंओर।।
उन्होने इन्दिरा गांधी को अपनी इस कविता में तानाशाह बताया और लिखा कि वह सत्ता के खातिर तानाशाह बन बैठी है। देखने में तो वह नारी है, पर उसका दिल बहुत ही शातिर है । उसने पूरे देश को ही एक तरह से कारागाह में परिवर्तित कर दिया । जहां न अपील की जा सकती है, न दलील सुनी जा रही है और न ही किसी के अनुनय विनय पर ही विचार किया जाता था । उस समय के इस हालात को कवि हृदय ने इस प्रकार शब्दांकित किया -
वो बन बैठी थी तानाशाह
केवल सत्ता की खातिर,
कहने को तो थी वो नारी
पर थी वो दिल से अति शातिर।।
पूरा देश ही बना दिया था
एक किस्म का बंदीगृह,
न अपील थी न दलील थी
न सुना जा रहा था अनुग्रह।।
कवि हृदय नेता ने आपातकाल को भारतीय इतिहास का काला अध्याय निरूपित करते हुए कहा कि चाहे जितना भी अत्याचार इन्दिरा गांधी कर ले, लेकिन हम उन हाथों को तोड़ देंगे और किसी भी हालत में लोकतन्त्र का गला घोटने नहीं देंगे। उसके लिए चाहे जितना भी बलिदान देना पड़े, वह देंगे। लेकिन जनतंत्र को कायम रखेंगे । उनके यह मनोभाव उनकी कविता की इन पंक्तियों मे झलकता है –
स्वतंत्र भारत के इतिहास की,
था वो एक काला अध्याय,
जिसकी हर पंक्ति में लिखा
था मनमानी और अन्याय।।
दोबारा वो काले दिन
अब हम नहीं लौटने देंगे,
तोड़ देंगे उन हाथों को
जो जनतंत्र का गला घोंटेंगे
कवि हृदय लोक प्रहरी यह कहते हैं कि तानाशाही का विरोध करना अगर देशद्रोह है, तो यह देशद्रोह हम बार –बार करेंगे, चाहे इसके लिए हमें अपने प्राणों की आहुति क्यों न देनी पड़े ।
तानाशाही की मुखालिफत
को नाम दिया था देशद्रोह,
अगर यही सच है तो फिर
हम करेंगे बार-बार विद्रोह।।
वहीं दूसरी ओर हिन्दी साहित्य के प्रसिद्ध कवि धर्मवीर भारती ने आपातकाल की स्थिति को इन शब्दों में वर्णन किया -
ख़बरदार रहें,
और अपने-अपने किवाड़ों को अंदर से,
कुंडी चढ़ा कर बंद कर लें,
गिरा लें खिड़कियों के परदे,
और बच्चों को बाहर सड़क पर न भेजें,
क्योंकि,
एक बहत्तर बरस का बूढ़ा आदमी,
अपनी काँपती कमज़ोर आवाज़ में,
सड़कों पर सच बोलता हुआ निकल पड़ा है!
उसी आपातकाल को आज पूरा राष्ट्र याद कर रहा है। आपातकाल के दौरान जिन नेताओं ने बिना झुके अपने प्राणों की आहुति दे दी। उनको श्रद्धांजलि दे रहा है । साथ ही यह संकल्प कर रहा है कि ऐसी स्थिति वे फिर देश में कभी नहीं आने देंगे। देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी ट्वीट कर आपातकाल पर अपनी भावनाओं को इन शब्दों में प्रकट किया - आज से ठीक 45 वर्ष पहले देश पर आपातकाल थोपा गया था। उस समय भारत के लोकतंत्र की रक्षा के लिए जिन लोगों ने संघर्ष किया, यातनाएं झेलीं, उन सबको मेरा शत-शत नमन! उनका त्याग और बलिदान देश कभी नहीं भूल पाएगा।
आज फिर देश एक विकट स्थिति से गुजर रहा है, पूरा देश कोरेना संक्रमण से लड़ रहा है। भारत चीन सीमा पर वह चीन के नापाक मंसूबे खिलाफ एक छद्म जंग का भी सामना कर रहा है। पाकिस्तान आतंकवादी गतिविधियों के माध्यम से भारत को शांत बैठने नही दे रहा है । इन विपरीत परिस्थितियों ने नेपाल भी हमें आँखें दिखा रहा है । ऐसे में आज आपातकाल काल की बरसी पर भारत के प्रत्येक नागरिक को यह संकल्प लेना है कि वह अंदर बाहर से हो रहे सभी आक्रमणों का सामना करेंगे और एक बार फिर जैसे आपातकाल के खिलाफ खड़े होकर, तमाम यातनाओं को सहते हुए उससे मुक्ति पाई। वैसे इससे भी मुक्ति पाएंगे ।
प्रोफेसर डॉ. योगेन्द्र यादव
पर्यावरणविद, शिक्षाविद, भाषाविद,विश्लेषक, गांधीवादी /समाजवादी चिंतक, पत्रकार, नेचरोपैथ व ऐक्टविस्ट