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श्री कामाख्या माहात्म्यम् भाग २ (निरंजन मनमाडकर )

श्री कामाख्या माहात्म्यम् भाग २    (निरंजन मनमाडकर )
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ॐ नमश्चण्डिकायै जय माँ कामाख्या!

श्री महादेव उवाच

श्रृणु सावहितो वक्ष्ये माहात्म्यं मुनिसत्तम |

कामरूपस्य तीर्थस्य यत्र साक्षात्स्वयं शिवा |

प्रत्यक्ष फलदा मर्त्ये स्थानं नास्ति ततोऽधिकम् ||

हे मुनिसत्तम! आप सावधान होकर सुनिए | मैं कामरूप तीर्थ का माहात्म्य बताता हूँ जहाँ प्रत्यक्ष फल देने वाली साक्षात भगवती शिवा विराजमान है | मृत्युलोक में इससे उत्तम कोई तीर्थ नही है |

यत्र देवाः सगन्धर्वा ब्रह्माद्याश्च सुरोत्तमाः |

प्रत्यहं समुपागत्य सेवन्ते भक्तितत्पराः ||

जहापर गन्धर्वोसहित देवगण तथा ब्रह्मादि श्रेष्ठ देवता प्रतिदिन आकर भक्तिपूर्वक पूजा करते है |

योनिरूपा महामाया पूर्णाद्या परमेश्वरी |

पृथ्व्यां लोकहितार्थाय यत्रास्ते निजलीलया ||

जहा पृथ्वीपर लोककल्याण हेतू भगवती महामाया पूर्ण आद्या परमेश्वरी लीलापूर्वक योनीरूपमें विराजमान होती है

यत्राकार्षीत्तपः पूर्वं ब्रह्मा विष्णुस्तथेश्वरः |

अभीप्सुर्भगवत्यासु कामाक्ष्ये मुनिसत्तम ||

हे मुनीश्वर! पूर्वकालमें भगवती के प्रत्यक्ष दर्शन हेतु प्रजापती ब्रह्मा विष्णु तथा शिवजीने उस कामाक्ष्य क्षेत्र मे तप किया था |

यत्र कृत्वा पुरश्चर्या वसिष्ठो मुनिसत्तमः |

सिद्धमन्त्रोऽभवत्पूर्वं सृष्टिकत्रेव चापरः ||

पूर्वकालमें जहाँ वसिष्ठ मुनीश्वर ने पुरश्चरण कर मन्त्रसिद्धि प्राप्त की एवं दुसरे सृष्टीकर्ता के भाँति हो गये

अव्याहताज्ञा ये चान्ये सिद्धा देवर्षयस्तथा |

ते सर्वे मुनिशार्दूल कामाख्यायाः प्रसादतः ||

हे मुनीश्रेष्ठ जो अन्य देवता, ऋषिगण, सिद्धगण अव्याहत आज्ञा कर्ता हुए है वे भगवती कामाख्या की कृपा से हुए है.

सिद्धमन्त्राः समभवंस्तत्र जप्त्वा महामनुम् |

खेचरत्वमनुप्रापुस्तथा देवाधिपूज्यताम् ||

वे सभी सिद्ध भगवती कामाख्या के महामन्त्र का जप करके मन्त्रसिद्ध हुए वे खेचरत्व याने आकाशगमन करने की सिद्धि प्राप्त कर्ता एवं देवताओं द्वारा पूजित हुए.

योनिरूपा भगवतीं सुगुप्तां मुनिसत्तम |

दृष्ट्वा स्पृष्ट्वा सुसमपूज्य जीवन्मुक्तो भवेन्नरः ||

हे मुनीश्वर! योनिरूपा अति गोपनीय भगवती कामाख्या के दर्शन, स्पर्श एवं पूजन करनेसे मनुष्य जीवन मुक्त हो जाता है.

विहरेत्पृथिवीपृष्ठे शूलपाणिरिवापरः |

निग्रहानुग्रहे शक्तो देवानामपि नारद ||

हे नारद! वह इस धरा पर दुसरे शंकरकी तरह विचरण करता है वह देवताओं को दण्डित तथा पुरस्कृत करनेंमें समर्थ हो जाता है.

तदाज्ञावशगाः सर्वे देवा इन्द्रपुरोगमाः |

नासाध्यं विद्यते तस्य मुने लोकत्रयं तथा ||

हे मुने इन्द्र आदि प्रमुखदेवतागण उसकी आज्ञाऽधीन हो जाते है तथा उसके लिए तिनों लोकोंमें कुछ भी असाध्य नही है.

तस्यैव जन्मसफलं यो गत्वा योनिमण्डले |

प्रणमेत्परया भक्त्या देवीं त्रिपुरभैरवीम् ||

जो मनुष्य योनिमण्डलमें जाकर भगवती त्रिपुरभैरवी कामाख्या को भक्तिपूर्वक प्रणाम करता है उसका जन्म सफल है.

क्षेत्रस्पर्शनमात्रेण ब्रह्महापि नरः क्षणात् |

मुच्यते नात्र संदेहः कामाख्यायाः प्रसादतः ||

ब्रह्महत्या करने वाला मनुष्य भी भगवती कामाख्या के पुण्य क्षेत्र का स्पर्श करने मात्र से उनकी कृपा से क्षणभरमें पापोंसे मुक्त हो जाता है इसमें कोई संदेह नही है.

कामाख्यादर्शनं वत्स देवानामपि दुर्लभम् |

तद्यः पश्यति कामाख्यां स देवपरिपूजितः ||

हे वत्स! भगवती कामाख्या का दर्शन देवताओं केलिए भी दुर्लभ है जो व्यक्ति उनका दर्शन करता है वह देवताओं द्वारा विशेष रूपसे पूजित होता है.

जन्मातरसहस्रैस्तु सञ्चितं पापपुञ्जकम् |

क्षणेन भस्मसात्कुर्यात्कामाख्यायाः प्रदर्शनम् ||

हजारों जन्म-जन्मातरमें कियें हुए सञ्चित पापसमूह भगवती कामाख्या के दर्शनमात्र से क्षणभरमें ही भस्मीभूत हो जाते है.

गोपनियं त्वया वत्स नान्यैतत्प्रकाश्यताम् |

कामाख्यासदृश्यं तीर्थं नास्त्येव धरणीतले ||

हे वत्स इस पृथ्वी पर कामाख्या शक्तिपीठ के समान कोई तीर्थ नही है.

यह गोपनीय रहस्य आपको अन्यत्र प्रकाशित नही करना चाहिए.

(©️निरंजन मनमाडकर पुणे महाराष्ट्र)

अङ्गप्रत्यङ्गपातेन सत्याः पुण्यतमो मुने |

देशो भारतखण्डेऽस्मिन्नॄणां पापप्रणाशकः ||

हे मुने इस भारत वर्ष में भगवती सती माताके अङ्ग प्रत्यङ्ग गिरने से यह देश मनुष्योंके पापोंका नाशक तथा पुण्यप्रदाता है.

अङ्गेषु भगवत्यासु योनिः श्रेष्ठतमा यतः |

योनिरूपा हि सा देवी सर्वासुस्त्रीष्ववस्थिता ||

भगवती के सभी अंगो में योनि - अंग सर्व श्रेष्ठ है :क्यों की वे देवी योनिरूप में सर्व स्त्रियों में अवस्थित है!

सा योनिः पतिता यत्र तत्र साक्षात्स्वयं सती |

तेन नास्ति समं स्थानं पुण्यदं धरणीतले ||

जिस स्थानपर वह योनि गिरी वहाँ साक्षात भगवती सती प्रतिष्ठित है.

इस धरातलपर उसके समान पुण्यदायक तीर्थ कोई नही है.

शम्भुर्वाराणसी क्षेत्रे नराणां मुक्तिदायकः |

आराध्यः सिद्धगन्धर्वैर्देवकिन्नरराक्षसैः ||

स शम्भुः काङ्क्षते यत्र मुक्तिं तस्मान्महेश्वरीम् |

प्रत्यहं समुपागत्य स्थानं नास्ति ततोऽधिकम् ||

सिद्धों, गन्धर्वों, देवताओं, किन्नरों और राक्षसों के आराध्य भगवान शिव वाराणसी क्षेत्र में प्राणियोंको मुक्ति प्रदान करते है, वे भगवान शिव भी जहाँ महेश्वरी कामाख्या के पास प्रतिदिन आकर मुक्ति प्रदान करनें का सामर्थ्य प्राप्त करने की आकाङ्क्षा करते है, अतः उस स्थान से बढकर पवित्र अन्य स्थान कोई नही है.

प्रदक्षिणं कृतं येन तीर्थं श्रीयोनिमण्डलम् |

कृतं लोकत्रयं तेन प्रदक्षिणमशेषतः ||

जिसने श्रीयोनिमण्डल की प्रदक्षिणा कर ली, उसने तीनों लोककी पूर्णरूपसे प्रदक्षिणा कर ली.

निर्माल्यं शिरसा यस्तु कामाख्यायाः प्रधारयेत् |

स देवपूज्यतामेत्य विहरेद्भैरवोपमः ||

जो भगवती कामाख्या का निर्माल्य सिरपर धारण करता है वह देवताओं द्वारा पूजित होकर भैरवके समान विचरण करता है!

न तस्य विद्यते भीतिः कुत्रापि धरणीतले |

भयदाः प्रपलायन्ते भयात्तस्य सुदूरतः ||

इस पृथ्वीपर कहीं भी उसको भय नही है! उसके भय से, भयप्रदान करने वाले भाग जाते है.

प्रसादो येन केनापि दत्तो देव्या महामुने |

प्राप्तीमात्रेण भोक्तव्यो नात्र कार्या विचारणा ||

महामुने जिस किसी के द्वारा भगवती का दिया गया प्रसाद प्राप्त होते ही ग्रहण कर लेना चाहिए, इसमें विचार करने की आवश्यकता नही है.

(©️निरंजन मनमाडकर पुणे)

उत्तमोऽपि मुने वर्णो न्यूनवर्णादवाप्य वै |

प्रसादं भक्षयेद्भक्त्या नत्वा च शिरसा पुनः ||

विभूतिं समवाप्नोति कैवल्यं तत्प्रसादतः ||

हे मुने उत्तमवर्णका व्यक्ति भी निम्नवर्णके व्यक्तिसे प्राप्त भगवती के प्रसादको भक्तिपूर्वक सिरसे प्रणाम करके उसे ग्रहण कर लेता है तो वह भगवती की कृपा दृष्टि से तत्क्षण ऐश्वर्य एवं मुक्ति प्राप्त कर लेता है.

तत्र श्राद्धं कृतं येन पितॄणां तृप्तिमिच्छता |

गयाश्राद्धं कृतं तेन सहस्राब्दं न संशयः ||

अपने पितरोंकी तृप्ति हेतु जिसने कामाख्या शक्तिपीठमें श्राद्ध किया उसने मानों हजारों वर्षोंतक गयाश्राद्ध करलिया.

लौहित्ये तु कृतस्नानः प्रयतः साधकोत्तमः |

पुरश्चर्या नरः कृत्वा सिद्धमन्त्रो भवेद्ध्रुवम् ||

जो जितेंद्रिय साधकोत्तम ब्रह्मपुत्र नद में स्नान करके भगवती के मन्त्र का पुरश्चरण करता है उसका मन्त्र सिद्ध हो जाता है.

अव्याहताज्ञः स भवेन्महेश्वर इवापरः |

भूचरः खेचरत्वं च प्राप्नुयात्तत्प्रसादतः ||

वह अमोघआज्ञावाला साधक होकर दुसरे शङ्कर के समान हो जाता है और उसके अनुग्रह से भूचर याने पृथ्वीपरचलने वाला खेचरत्व प्राप्त कर लेता है

कालादींस्तत्र मोहेन कदाचिन्न विचारयेत् |

पुरश्चर्याविधौ मन्त्र विचार्य नरकं व्रजेत् ||

भगवती कामाख्या के शक्तिपीठ में पुरश्चरण कालमें अज्ञानवशभी मुहुर्त का विचार नही करना चाहिए यदि वह ऐसा करता है तो वह नरक को प्राप्त होता है.

सुरत्वं सुरराजत्वं ब्रह्मत्वं वा शिवत्वकम् |

विष्णुत्वं सुलभं तत्र जपता भैरवीमनुम् ||

कामाख्या शक्तिपीठ में भैरवी मनुजप करनेवालों को सुरत्व, इन्द्रत्व, ब्रह्मत्व, शिवत्व तथा विष्णुत्व सुलभतासें प्राप्त होता है.

जमदग्निसुतो रामः कार्तवीर्यवधेच्छया |

तत्र कृत्वा पुरश्चर्यां प्रत्यक्षं विष्णुतामगात् ||

कार्तीवीर्यके वध करने हेतुसे जमदग्नि के पुत्र परशुरामजीने कामाख्या शक्तिपीठ में पुरश्चरण करके विष्णुत्व प्राप्त किया था.

तथैव भुवि ये चान्ये कुर्युस्तत्र पुरस्क्रियाम् |

ते सर्वे समतामेत्य अन्त्ये मोक्षमवाप्नयुः ||

उसीप्रकार पुरश्चरणविधी से जो अन्य लोग भगवती कामाख्या के शक्तीपीठमें मन्त्रजप करते है वे भगवती की सारूप्य मुक्ति प्राप्त करते है.

कामाख्या परमं तीर्थं कामाख्या परमं तपः |

कामाख्या परमो धर्मः कामाख्या परमागतिः ||

कामाख्या परमं वित्तं कामाख्या परमं पदम् |

विभाव्यैवं मुनिश्रेष्ठ न पुनर्जन्मभाग्भवेत् ||(©️निरंजन मनमाडकर पुणे)

हे मुनीश्वर!

कामाख्या सर्वश्रेष्ठ तीर्थ है

कामाख्या सर्वश्रेष्ठ तपस्या है

कामाख्या सर्वश्रेष्ठ धर्म है

कामाख्या परम गति है

कामाख्या सर्वश्रेष्ठ धन है तथा

कामाख्या परम-पद है इस प्रकार की भावना करने वालेंका पुनर्जन्म नही होता.

दर्शनं बहुसाहस्र्यजन्मान्तरसुसञ्चितम् |

विद्यते सुमहत्पुण्यं यस्य तस्यैव जायते ||

जिस मनुष्यके अनेक सहस्रजन्मोंके संचित महान पुण्यों से ही भगवती कामाख्या का दर्शन होता है

तीर्थं श्रीकामरूपाख्यं देवानामपि दुर्लभम् |

अन्येषां दुर्लभं ज्ञेयं देवीलोकं यथा मुने

हे मुने जिस प्रकार देवीलोक अन्यलोगों केलिए दुर्लभ है उसीप्रकार भगवती कामाख्या का श्रीकामरूप तीर्थ देवताओं के लिए भी दुर्लभ है.

©️ निरंजन मनमाडकर पुणे महाराष्ट्र

कामाख्या अम्बुवाची महापर्व २०२०

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