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कामाख्या माहात्म्यम् भाग-१ (निरंजन मनमाडकर)

कामाख्या माहात्म्यम् भाग-१    (निरंजन मनमाडकर)
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ॐ श्री मात्रे नमः!

परमात्मा को प्राप्त करने के, परमात्मा को जानने के, परमात्मस्वरूप होने के अनंत मार्ग है, सम्प्रदाय है, कुल है, आचार है, भाव है,... ! तथापि मनुष्य को सबसे निकटतम एवं प्रियतम संबध तो केवल मातृभाव में ही अवगत होता है! प्राणी किसी भी योनिमें जन्मा हो वह अपनी जननीसें सबसे निकटवर्ती होता है. उत्पत्ती का स्त्रोत माता ही होता है. चाहे वह यह विश्व भी क्यों ना हो.

(यया जगत्सर्वमिदंप्रसूयते... आदी शंकराचार्य)

सहज भाव है तो मनुष्य भी परमात्मा को मातृ स्वरूप में शीघ्र तादात्म्य प्राप्त कर सकता है, अतः अपने देश के विविध सम्प्रदाय के संतोंने, सिद्धोंने, महात्माओंने परमात्मा को माता के स्वरूप में पुकारां है, मातृभाव में तादात्म्य पाया है.

परमात्मा के इसी मातृस्वरूप भाव को श्रेष्ठ मानकर, उस मार्ग का अनुगमन करने वाले पंथ को शाक्त पंथ कहा गया है! इस पंथ में परमात्मा को शक्ति एवं शक्तिधर दोनों माना गया है, वे ही ब्रह्म है तथा वे ही माया है, वे ही पुरूष है वे ही प्रकृती है! वे भगवती शबलब्रह्मस्वरूपिणी है!

भगवती स्वयं जगत् की जननी है! संसार की योनि है अरणि है! अतः वे मातृ जगत् का उपादान एवं निमित्त दोनो कारण है अतः उन्हे जगदंबा कहा गया है!

यद्यपि भगवती शबलब्रह्मस्वरूपिणी है स्वयं ब्रह्म है परमात्मा है (देव्युपनिषद् - देवी गीता) तथापि उन्हे प्रकृती, माया, शक्ति, चिती, कुण्डलिनी आदि रूपों में सभी सिद्धान्तोंने, शास्त्रोंने, स्वीकार किया है!

उन माता को तथा उनके प्रकट मातृत्व स्वरूपके उत्सव को ही अम्बुवाची महापर्व कहा गया है! प्रकृती के रजोदोष के चार दिन, प्रकृति के, धरती माँ के विश्राम के यह चार दिन बडे उल्हास के साथ आसाम राज्य के कामाख्या शक्तिपीठ में मनाएं जाते है.

स्त्रीयोंके मातृत्व का यह पर्व विविध आयामोंसे महत्वपूर्ण माना गया है! तांत्रिक एवं शाक्तसाम्प्रदायिन साधकों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण काल कहा गया है! जगन्माता के इसी पर्व एवं इस शक्तिपीठ संबंधित यथा संभव जानकारी देने का प्रयास इस लेख माला में किया जाएगा!

माँ कामाख्या रहस्य!

शाक्त सम्प्रदायिन सभी पुराणों में माँ के शक्तिपीठोंकी कथांए आती है? देवी भागवत महापुराणम्, कालिका पुराणम्, महाभागवत पुराणम् आदि.!

माँ भगवती की पूर्णावतार तथा प्रथमावतार भगवती दाक्षायणी सती को कहा गया है! वे मूलप्रकृति दक्ष प्रजापती की कन्या स्वरूप में प्रकट हुई,

या मूलप्रकृतिः शुद्धा जगदम्बा सनातनी |

सैव साक्षात्परं ब्रह्म सास्माकं देवतापि च ||

जो शुद्धा है शाश्वत है मूलप्रकृति है परब्रह्म है तथा शिव एवं विष्णुजी की भी आराध्य है! ऐसा वर्णन करके भगवती के चरित्र का आरंभ होता हैं.

तत्पश्चात दक्ष प्रजापती के यज्ञ का वर्णन आता है, ठिक इसी प्रकरण में सती माता को दशमहाविद्याओंकी मूल कहा गया है!

न पश्यति महादेव सतीं मां पुरतः स्थिताम् |

काली तारा च लोकेशी कमला भुवनेश्वरी ||

छिन्नमस्ता षोडशी च सुन्दरी बगलामुखी |

धूमावती च मातङ्गी.........

अर्थात भगवती कहती है, हे महादेव देखिए आपके सम्मुख मुझ सती को आप नही देख रहे है?

मैं ही काली हूँ, तारा हूँ, भुवनेश्वरी हूँ, बगलामुखी हूँ, छिन्नमस्ता हूँ, कमला हूँ, धूमावती हूँ, षोडशी हूँ.....!

यहापर इस प्रमाण का तात्पर्य भगवती सती माता का तथा कामाख्या का सभी महाविद्याओंका मूल कहा है!

शाक्त सम्प्रदाय के सभी कुलों में माँ कामाख्या को श्रेष्ठतम माना है!

काली कुल की वे माँ काली है

श्रीकुल की वे महाषोडशी है तथापि उनका अपना स्वतंत्र कुल है, उपासना प्रणाली है! अपितु वे ही मूल कही गयी है.

मूल का अर्थ क्या होता है?

शुरूआत, आरंभ तथा आधार! एक वृक्ष के बीज में जब अंकुरण होता है तब वह वृक्ष अपनी जडोंके आधार पर स्थिर होता है! चलिए देखते है... 👇🏻

विश्व का जन्म निर्माण जिससे हुआ वह मूलप्रकृति ही कामाख्या है! जिनको महद्ब्रह्म कहा जाता है!

उपासना की शुरूआत करते समय जिस मुद्रा से होती है उसेभी योनि मुद्रा कहा गया है.

षटचक्रों कें वर्णन करते हुए मूलाधार चक्र में निद्रित कुण्डलिनी शक्ति ही कामाख्या है!

जिनके आधार पर पूरा जगत् धरा हुआ है वे धरिणी तथा पृथ्वी देवी ही माँ कामाख्या है.

अतः अम्बुवाची महापर्व में पृथ्वी भी रजस्वला होती है, इस काल में खेतोंमें हल नही चलाया जाता है!

नवचण्डि अनुष्ठान हो या श्रीचक्रनवावरण पूजा माँ कामाख्या का पूजन तो होता ही है!

कामरूपपीठेश्वरसहितायां कामरूपपीठेश्वर्यंबा श्रीपादुकां पूजयामि नमः.......

सृष्टिक्रमसें देखें तो

अग्निचक्रे कामगिरी पीठे... नवयोनि चक्रात्मक. सृष्टिकृत्य....इच्छाशक्ती स्वरूपिणी.... श्रीमहाकामेश्वरी!

इस मंत्र में मुख्य बिंदू के पश्चात याने की ब्रह्म की ईच्छा स्वरूपमें कामरूप पीठ की अधिष्ठात्री महाकामेश्वरी याने कामाख्या की पूजा श्रीयंत्र के दुसरे आवरण में की जाती है.

काम याने की इच्छा और आख्या मतलब वह जो ईच्छा शक्तिके नामसे जानी जाती है!

अनंत परब्रह्म की जो ईच्छा है जो मूल प्रकृती है वही माँ कामाख्या है!

देवी भागवत महापुराण में माँ स्वयं कहती है..

नाहं पुरूषमिच्छामि परमंपुरूषंविना!

मै परमपुरूष के विना किसी की ईच्छा नही करती हूँ

तस्य चेच्छास्म्यहं दैत्य सृजामि सकलं जगत्!

मै उन परमात्मा की ईच्छा हूँ और जो संपूर्ण विश्वकी जननी है!

अतः माँ भगवती कामाख्या ही सभी प्राणियोंकी जननी है

मूलमाया है (मूळमाया है)

शिवशक्ती का अद्वैत जब द्वैत भाव में व्यक्त होता है तभी वे शक्ति, काली, प्रकृती, ललिता या कामाख्या स्वरूप में सर्वप्रथम व्यक्त होता है!

माँ कामाख्या को त्रिपुरभैरवी कहा है

श्रीमत्त्रिपुरभैरव्या कामाख्यायोनिमण्डलम्!

अतः वह कुण्डलिनी शक्ति की बाल्यावस्था स्वरूपा बाला त्रिपुरसुन्दरी भी है! कुण्डलिनी का आरोहण ही कामाख्या की कृपाप्रसाद है.... त्रिकोणोल्लसन्तिम्...

वही अधोत्रिकोणस्वरूपिणी योनि स्वरूपिणी जगदम्बा का मूल रूप ही कामाख्या है.

यहापर माँ की यह योनि जागृत है इसके रजोदर्शन को ही अम्बुवाची महापर्व कहा गया है!

चारदिन मंदिर के पट बंद रहते है!

मातृत्व की उपलब्धी उत्सवपूर्वक सभी शाक्तोंमें मनायी जातीं है!

ऐसा कहा जाता है इस काल में सभी सिद्धियाँ कामाख्या शक्तिपीठ में प्रकट हो जाती है, उनके सान्निध्य में साधना करने हेतु बहोत तांत्रिक साधक यहा जमा होते है! नीलाचल पर्वतपर स्थित इस महाशक्तीपीठ पर दिव्यत्व की अनुभूती होती है साधक को कदापि थकान महसूंस नही होती, वह भगवती का प्रत्यक्ष अनुभव कर साधना में अग्रेसर होता है. देवी भागवत में कहा गया है की इस शक्तिपीठ जैसा कोई भी स्थान इस धरा पर नही है जहा साक्षात् महामाया निर्गुणाशक्ति योनी रूप में अपनी दसों महाविद्याओंके साथ वास करती है.

आईए माँ कामाख्या की इस महिमा को इन चार दिनोंमे जानने का प्रयास करते है..

क्रमशः

लेखक ©️ श्रीविद्याउपासक निरंजन मनमाडकर पुणे महाराष्ट्र

अम्बुवाची महापर्व २२/०६/२०२०

ॐ नमश्चण्डिकायै

ॐ श्री मात्रे नमः

ॐ श्री गुरूभ्यो नमः

जय माँ कामाख्या

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