हर पिता अपने बच्चों का हीरो होता है

अंग्रेजी मान्यताओं के अनुसार आज fathers day है, और चर्चा गर्म थी कि आज दुनिया समाप्त हो जाएगी। अंग्रेजी मान्यताओं का पालन तो नहीं करते हम, पर इतना अवश्य मानते हैं कि यदि किसी भी सभ्यता ने आज के दिन को पिता का दिन कह दिया है, तो आज के दिन दुनिया पर कोई संकट आ ही नहीं सकता।
अपने भाई बहनों या माँ से डर कर पिता के पैरों में छिपे किसी बच्चे की आँखों में झांक कर देखिये, भरोसे का चरम दिखता है उसमें... उसे लगता है जैसे दुनिया की कोई शक्ति अब उसका कुछ बिगाड़ ही नहीं सकती। माँ के आँचल में, या पिता के पीछे छिपा बच्चा दुनिया का सबसे निश्चिन्त बच्चा होता है। पिता इसी भरोसे का नाम है।
कुछ अपवादों को छोड़ कर हर व्यक्ति अपने जीवन में पिता बनता है। वह कितना भी कमजोर, डरपोक, कायर क्यों न हो, पर अपनी संतान के लिए मजबूत छत बनने का प्रयास करता ही है, और सफल भी होता है।
मेरे बाबा कहते थे, कभी किसी बच्चे के सामने उसके पिता का अपमान नहीं करना चाहिए। यह समूची प्रकृति का अपमान है। सच भी है, हर पिता अपने बच्चों का हीरो होता है और कोई पिता अपने बच्चों के सामने किसी से पराजित होना नहीं चाहता। वह सारी दुनिया के आगे हार कर रो सकता है, पर अपने बच्चों के सामने मुस्कुराते हुए आना चाहता है। वह नहीं चाहता कि उसके किसी दुख की छाया भी उसके बच्चों तक पहुँचे।
कुछ रङ्ग और... कभी बेटे की किसी गलती पर लट्ठ ले कर दौड़ा रहे बाप को देखिये, उस समय वह ऊपर से जितना कठोर दिखता है, अंदर से उतना ही कोमल होता है। और वही पिता जब सन्तान की किसी विपत्ति के समय जब उसे ढाढस बधाता है, तो ऊपर से जितना कोमल दिखता है अंदर से उतना ही कठोर होता है। दुनिया का कोई पुरुष अपनी प्रकृति में बदलाव करना नहीं चाहता, पर अपनी संतान के लिए अधिकांश पिता स्वयं को बदल देते हैं।
हमारे शास्त्रों में पुत्रमोह का एक नकारात्मक उदाहरण मिलता है धृतराष्ट्र का। और उसी के कारण हम मानते हैं कि पुत्रमोह बुरा होता है। मुझे लगता है यह मोह सत्ताधारियों के लिए बुरा है, सामान्य गृहस्थ के लिए नहीं... सन्तान का मोह होना ही चाहिए। धन, प्रसिद्धि, सम्मान, राज्य आदि का मोह केवल और केवल मनुष्यों में होता है, पर अपनी सन्तान का मोह सृष्टि के हर प्राणी में होता है। ईश्वर ने किसी प्राणी को इस मोह से मुक्त नहीं किया। यह मोह अपवित्र हो ही नहीं सकता।
हमारे गाँवों के बुजुर्ग कहते हैं, "मूल से अधिक सूद का मोह होता है।" मूल है सन्तान, और सूद उनके बच्चे... अपने बच्चों के प्रति पिता का जो मोह है, वह उनके बच्चों के प्रति दूना हो जाता है। शायद दो पिताओं का मोह मिल कर पितामह का मोह बनता है। कितना मीठा है न यह...?
सन्तान पिता की उपलब्धियों को अपनी उपलब्धि माने न माने, पिता सन्तान की उपलब्धियों को अपनी उपलब्धि मान कर खुश होता है। आपकी किसी भी सफलता पर यदि सचमुच कोई आपसे अधिक प्रसन्न होता है, तो वे पिता होते हैं।
यह पिता की प्रतिष्ठा का शिखर ही है कि मनुष्य ने जब ईश्वरीय शक्ति की कल्पना की तो उन्हें भी पिता कहा। परमपिता!
खैर! यदि जीवन में पिता हैं, तो पूजिये उन्हें... चले गए तो फिर न मिलेंगे।
और निश्चिन्त रहिये। वे जो हम सब के पिता हैं, वे न संसार को समाप्त होने देंगे, न सांसारिकता को...
सर्वेश तिवारी श्रीमुख
गोपालगंज, बिहार।