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धोखेबाज चीन, भारतीय सैनिकों की शहादत और समाजवादी दृष्टिकोण – प्रोफेसर (डॉ.) योगेन्द्र यादव

धोखेबाज चीन, भारतीय सैनिकों की शहादत और समाजवादी दृष्टिकोण – प्रोफेसर (डॉ.) योगेन्द्र यादव
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चीन की धोखेबाज़ी जग विख्यात है। अपनी सीमाओं का विस्तार करने और दूसरे देशों के बाजार में अपना माल पाटने में वह किसी स्तर तक जा सकता है । एक ओर जहां उसने भारत के बाज़ारों को चीनी माल से भर दिया है, वहीं दूसरी ओर वह 45 दिनों से लगातार एक ओर बातचीत का ढोंग कर रहा है, और दूसरी ओर भारतीय सीमाओं पर कब्जा भी करता जा रहा है। ऐसे में उसके चाल और चरित्र किसी पर विश्वास नहीं किया जा सकता था। लेकिन भारत अपने जैसा अन्य देशों को भी समझता है । विदेश मंत्रालय द्वारा दी जा रही सूचना के अनुसार बातचीत से दोनों देश सीमा के मसले सुलझा लेंगे। पर 45 साल के बाद चीन ने एक बार फिर अपने धोखेबाज चरित्र को उजागर किया। बातचीत के लिए गए भारतीय सैनिकों पर उसने सुनियोजित तरीके से पत्थरों, कटीले तार लिपटी लाठियों और धारदार चीजों से अचानक हमला कर दिया। जिसमें 20 से अधिक सैनिको के मारे जाने की पुष्टि हो चुकी है। साथ ही अभी करीब 15 सैनिक लापता हैं। 20 अक्टूबर 1975 को अरुणाचल प्रदेश के तुलुंग ला में चीन ने असम राइफल की पेट्रोलिंग कर सैनिक दल पर धोखे से एम्बुश लगाकर हमला किया था। जिसमें भारत के 4 जवान शहीद हुए थे।

चीन इतना दोगलेबाज है कि वह एक बार में भारतीय सैनिकों के शव भी नहीं दे रहा है। थोड़ी-थोड़ी देर में ऊंची पहाड़ियों से शव गिरा रहा है । लद्दाख में स्थित 14 हजार फीट ऊंचाई पर जहां तापमान शून्य से नीचे है, उस गालवन घाटी में उसने इस घटना को अंजाम दिया है। धोखा देने के लिए एक बार फिर उसने उसी घाटी को चुना, जहां 1962 की जंग में 33 भारतीय सैनिकों को शहादत मिली थी। । इस घटना को अंजाम देने के बाद चीन ने एलएसी पर अपने सैनिकों का जमावड़ा बढ़ा दिया है। साथ ही अपने सैनिकों के शवों के एयर लिफ्टिंग के बहाने लगातार हेलीकाप्टरों से अपने नापाक इरादे का भी भान करा रहा है ।

इस सुनियोजित हमले के बाद भारतीय विदेश मंत्रालय में भी हलचल बढ़ गई है। तीनों सेनाअध्यक्षों के साथ मीटिंग की गई, जिसमें सभी तथ्यों को ध्यान में रखते हुए सीमा की स्थिति के अनुसार सेना को निर्णय लेने के लिए अधिकृत किया गया । अपनी कूटिनीतिक बढ़त बनाएँ रखने के लिए भारत चीन के साथ आपसी बातचीत की प्रक्रिया भी जारी रखना चाहता है । विदेश मंत्रालय द्वारा यह स्थिति साफ कर दी गई है कि भारत के सैनिकों ने अपनी सीमा के अंदर ही मूवमेंट किया है। जबकि चीन अपनी इस नापाक हरकतों को सिद्ध करने के लिए तरह-तरह की गलतबयानी कर रहा है ।

चीन के राजनेताओं पर इसलिए भी विश्वास नहीं किया जा सकता है कि वे अपने लाभ के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं। 1962 में चीन ने तत्कालीन चीनी नेता माओत्से तुंग ने 'ग्रेट लीप फॉरवर्ड' आंदोलन की असफलता के बाद पुन: सत्ता प्राप्त करने के लिए भारत के साथ युद्ध छेड़ दिया । चीन की पीकिंग यूनीवर्सिटी के स्कूल आफ इंटरनेशनल स्टडीज के डीन एवं चीन के विदेश मंत्रालय की विदेश नीति सलाहकार समिति के सदस्य वांग जिसी ने इस बात को स्वीकार करते हुए कहा था कि यह युद्ध आवश्यक नहीं था । वांग जिसी के अनुसार उन्होने तिब्बत के कमांडर को बुला कर पूछा – क्या चीन भारत से युद्ध जीत सकता है । उसने कहा कि हाँ, हम आसानी से युद्ध जीत सकते हैं । इस युद्ध का सीमा विवाद से कुछ भी लेना – देना नहीं था। तत्कालीन चीनी नेता माओत्से तुंग ने 'ग्रेट लीप फॉरवर्ड' आंदोलन की असफलता के बाद पुन: सत्ता प्राप्त करने के लिए भारत के साथ युद्ध छेड़ दिया । चीन के दोगलेपन का इसी से पता चलता है कि कई बार वह हमले के लिए अजीबोगरीब इल्जाम लगाता था कि भारतीय सैनिक उनकी भेड़ों के झुंड को भारत में हांककर ले गए हैं ।

1965 के युद्ध में जब भारत पाकिस्तान पर भारी पड़ने लगा तो पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब खाँ गुप्त रूप से चीन गए और भारत पर सैनिक दबाव बनाने के अनुरोध किया । इसके बाद चीन ने भारत को

सिक्किम की सीमा पर नाथु ला और जेलेप ला की सीमा चौकियों को खाली करने का आल्टीमेटम दिया । भारत ने उसे खाली कर दिया और जिस पर तुरंत चीन ने कब्जा कर लिया और सामरिक दृष्टि से अत्यंत महत्त्वपूर्ण भारत की इन दोनों चौकियों आज तक उसी के कब्जे में है। इन्हीं चौकियों से चीनी जब-तब घात लगाकर भारतीय सैनिकों पर हमला करते रहते हैं । इस सीमा पर जब कटीले तारों की बाड़ लगाने की कोशिश की गई, तो चीनी सैनिकों ने हमला कर दिया । जिसमें कई सैनिक देश के काम आए । लेकिन जब भारतीय सैनिकों के लिए असह्य हो गया तो उन्होने तोपों से हमला कर दिया, जिसमें चीन के 300 सैनिक मारे गए ।

15 सितंबर, 1967 को जब भारत और चीन के बीच युद्ध समाप्त घोषित कर दिया गया। इसके बाद धोखेबाज चीन ने 1 अक्तूबर 1967 को सिक्किम में ही एक और जगह चो ला में चीन ने भारत के सैनिकों पर हमला कर दिया । भारतीयों सैनिकों ने जम कर मुक़ाबला किया और तीन किलोमीटर चीन की सीमा के अंदर घुस कर मारा। जिसमें भारत के कई सैनिक भी शहीद हुए । इससे चीन के हौसले पस्त हो गए और चीनी सैनिक अजेय हैं, इसका भ्रम समाप्त हो गया । इस प्रकार 1962 में भारत चीन के युद्ध में चीन के 740 सैनिक मारे गए थे और 1967 में मात्र तीन दिनों में 300 चीनी सैनिकों से हाथ धोना पड़ा था।

जहां तक समाजवादी नेताओं की बात है। चीन के संबंध में उनकी स्थिति बेहद पारदर्शी रही है। डॉ राम मनोहर लोहिया से लेकर मुलायम सिंह – अखिलेश सहित सभी नेताओं ने चीन को ही दगाबाज, धोखेबाज और भारत का असली दुश्मन माना है ।

चीन की कुत्सित मानसिकता का इसी से पता चलता है कि 1962 की जंग में चीन ने पहले भारत की जमीन पर पर कब्जा जमा लिया और इसके बाद तिब्बत पर कब्जा कर लिया । इस मुद्दे को सबसे पहले समाजवादी नेता डॉ राम मनोहर लोहिया ने उठाया और कहा कि जब तक तिब्बत एक आजाद देश था, तब तक भारत और चीन के बीच कोई सीमा विवाद नहीं था । उन्होने तत्कालीन भारत सरकार को सावधान किया था कि वे भारत चीन सीमाओ को लेकर अतिरिक्त सावधानी की जरूरत है । इसके बाद 2017 में डोकलाम विवाद के बाद लोकसभा में समाजवादी पार्टी के संस्थापक व पूर्व रक्षामंत्री मुलायम सिंह यादव ने पिछली मोदी सरकार के समय लोकसभा में कहा था कि भारत का सबसे बड़ा दुश्मन पाकिस्तान नहीं, चीन है। पाकिस्तान हमारे देश का कुछ नहीं बिगाड सकता। असली खतरा चीन से है। चीन घात लगाये बैठा है, चीन धोखेबाज देश है। चीन कमजोर होगा तो चुपचाप बैठ जायेगा । लेकिन मजबूत होगा तो सामने आ जायेगा। चीन सिक्किम और भूटान पर कब्जे की साजिश रच रहा है। वह भारत पर हमले की पूरी तैयारी कर चुका है। भारत को तिब्बत किसी भी कीमत पर चीन को नहीं देना चाहिए थे। तिब्बत को चीन के हवाले करना ही सबसे बड़ी भूल है। भारत को तिब्बत की आजादी का जोरशोर से समर्थन करना चाहिए और दलाई लामा की हर संभव मदद भी करनी चाहिए। चीन अब कश्मीर में पाकिस्तान की मदद कर रहा है। वहीं, तिब्बत की सीमा पर युद्धाभ्यास में भी लगा हुआ है। भूटान और सिक्किम की रक्षा करना भारत की जिम्मेदारी है। मुलायम ने चीन द्वारा भारतीय बाजारों में भेजे जा रहे घटिया सामानों का भी विरोध किया ।

अखिलेश यादव ने अपने ट्वीट में कहा कि गलवान वैली, लद्दाख से चीनी मुठभेड़ में हमारे कमांडिग ऑफिसर और दो सैनिकों की शहादत का समाचार मिला है। भावपूर्ण नमन सरकार से इन हालातों में भारत-चीन सीमा पर वास्तविक स्थिति के स्पष्टीकरण की अपेक्षा है। अखिलेश ने अपने पिता मुलायम सिंह यादव के संसद में दिए जा रहे एक भाषण का वीडियों अपलोड़ कर कहा है कि चीन की तरफ से खतरे और चुनौती को लेकर नेताजी मुलायम सिंह यादव ने समय-समय पर सरकारों को चेताया है लेकिन सरकार चीन की चेतावनी को लेकर उदासीन है।

इससे एक बात तो सिद्ध है की चाहे 1962 हो, 1967 हो, डोकलम हो या फिर गालवन घाटी में सुनियोजित और धोखेबाज़ी से 20 से अधिक सैनिकों की हत्या हो। अगर समाजवादी नेताओं की बातों पर विश्वास करके तत्कालीन सरकारो ने कार्रवाई की होती, तो आज यह दिन न देखना पड़ता। एक बार चीन ने फिर छल करके जिस तरह से भारतीय सैनिकों को तड़फा-तड़फा कर मारा है, उसका उसे सबक सिखाना जरूरी है । और समाजवादी नेताओं की इस बात को गांठ बांध लेना चाहिए कि चीन उसका दुश्मन नंबर एक है। उसे सिर्फ सीमा पर ही नहीं, देश में भी उसके व्यापार को ठप्प कर देना चाहिए । भारत उसका सबसे बड़ा बाजार बना हुआ है। यहाँ के एक-एक नागरिक को भी यह संकल्प लेना चाहिए कि वे चीनी समान का उपयोग नहीं करेंगे । यही उसकी धोखेबाज़ी का माकूल जवाब होगा ।

प्रोफेसर डॉ. योगेन्द्र यादव

पर्यावरणविद, शिक्षाविद, भाषाविद,विश्लेषक, गांधीवादी /समाजवादी चिंतक, पत्रकार, नेचरोपैथ व ऐक्टविस्ट

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