कोरेना संकट और बुंदेलखंड की अनाज बैंक योजना

इस समय सम्पूर्ण विश्व कोरेना महामारी से त्रस्त है । जनसंख्या की दृष्टि से विश्व का दूसरा बड़ा देश होने के बाद भी यहाँ भौगोलिक और सांसकृतिक विविधताएँ भी हैं। इस संदर्भ में जब हम उत्तर प्रदेश को ही लेते हैं, तो भौगोलिक दृष्टि से यही प्रमुख रूप से चार भागों में विभक्त किया जा सकता है । आज हम उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड की बात कर रहे हैं। अपनी वीरगाथाओं के लिए मशहूर इस खंड में आज भी सामाजिक और संकृतिक विविधता विद्यमान है। उत्तर प्रदेश के अंतर्गत आने वाले बुंदेलखंड में 7 जनपद हैं - झांसी, ललितपुर, जालौन, चित्रकूट, बांदा, महोबा और हमीरपुर। इस भौगोलिक खंड में तमाम पहाड़ थे, जिन्हें तोड़ कर गिट्टी में परिवर्तित कर दिया गया। आज भी कंक्रीट की गिट्टी और बालू की सबसे अधिक सप्लाई इन्हीं जिलों से होती है। उत्तर प्रदेश स्थित बुंदेलखंड की आबादी करीब एक करोङ से ज्यादा हैं। औसत वर्षा 60 - 100 सेमी होती हैं। इस क्षेत्र में अरहर, चना,अलसी, सरसो, मटर, गेहूं मुख्य रूप से पैदा होता है। यमुना, बेतवा , केन, पहूज, धसान, चम्बल, काली, सिन्ध, टौंस व सोन नदियां यहाँ प्रवाहित होती हैं। सागौन, शीशम, चन्दन, आम, महुआ के पेड़ बहुतायत से पाये जाते हैं। यहां बोली बुन्देली नाम से जानी जाती हैं।
बुंदेलखंड में बेरोजगारी चरम पर है। इसी कारण इस खंड के जितने भी गावों का मैंने दौरा किया। अगर इक्का – दुक्का छोड़ दें, तो गावों में मर्द के नाम पर बुजुर्ग ही दिखाई पड़ते हैं । यहाँ के अधिकांश युवा काम की तलाश में दूसरे प्रदेशों को पलायन कर जाते हैं। ये लोग अपने-अपने घरों को बारिश के बाद लौटते हैं। जब गाँव में भोजन के साथ-साथ पानी भी आसानी से मिल जाता है। यहाँ के गावों में घूमते समय के और बात सामने आई। गाँव के कई घरो में ताले लगे हुए थे। बातचीत करने पर यह तथ्य उभर कर सामने आया कि अधिकांश युवा अपने बाल-बच्चों के साथ ही दूसरे प्रदेशों में काम करने के लिए जाते हैं। जिसकी वजह से उनके घरों में ताले लगे होते हैं। साल में एक या दो बार वे आते हैं। कुछ दिन रहते हैं और फिर पेट भरने के लिए रोजगार की तलाश में कहीं न कहीं चले जाते हैं। कोरेना संकट के हिसाब से देखे, तो बुंदेलखंड में लौटने वाले लोगों की संख्या बहुत है। कोरेना महामारी के पहले जो गाँव वीरान लगते थे। अब भरे-पूरे लगते हैं। लेकिन इन सभी युवाओं के माथे पर कल की चिंता है। उन्हें और उनके बच्चों के रोटी की व्यवस्था कैसे होगी। अभी तो कुछ राशन सरकार द्वारा और कुछ घर में रखा हुए राशन से काम चल रहा है । इस क्षेत्र में रोजगार सृजन की दिशा में अधिक कार्य करने की जरूरत है । कहीं – कहीं मानरेगा में कुछ लोगों को रोजगार मिला हुआ है ।
उत्तर प्रदेश स्थित बुंदेलखंड में दो प्रकार के लोग हैं। प्रथम ऐसे लोग हैं, जिनके पास अकूत संपत्ति है। जिनके पास पहाड़ तोड़ने और बालू आदि के ठेके हैं। इनके पास वे सारी लगजरी हैं। जो बड़े से बड़े शहरों में मौजूद होती हैं। दूसरे वे लोग हैं, जो बहुत गरीब हैं। जिनके खेतों में इतना भी अन्न नहीं होता है कि पूरे साल वे लोग आराम से दोनों जून भोजन कर सकें । हालांकि यहाँ की गरीबी दूर करने के लिए केंद्र और प्रदेश सरकारों ने बहुत प्रयास किए। यहाँ के विकास के लिए अपने खजाने खोल दिये। तमाम असरकारी संस्थाओं के माध्यम से यहाँ के विकास के साथ –साथ जीवन को गति देने का प्रयास किया। उसका प्रभाव भी दिखता है। आज बुंदेलखंड के कई ऐसे क्षेत्र हैं, जहां पर चौड़ी-चौड़ी और चिकनी सड़कें इसका अंदाजा ही नहीं लगने देती हैं कि यह वही दस साल पुराना बुंदेलखंड है।
महिलाओं की स्थिति - यहाँ की महिलाओं की स्थिति दयनीय है। पुरुषों का उनके ऊपर आधिपत्य है। रानी लक्ष्मीबाई जैसी वीरांगना देने वाले इस बुंदेलखंड में आज भी नारी पर्दा में जीने के लिए मजबूर है। कहीं – कहीं तो यह आलम है कि चप्पल होते हुए भी वह पुरुषों के सामने उसे नहीं पहन सकती । गर्मी हो या सर्दी उसके चेहरे पर हमेशा घूघट लटकता रहता है । पुरुषों के खाना खाने का बाद ही वे भोजन करती हैं। जिला मुख्यालयों को छोड़ दें, तो हर काम और अपनी कोई भी हसरत पूरी करने के लिए वे पुरुषों की ओर ही देखती हैं।
तमाम भौगोलिक और सामाजिक दुरूहताओं के होने बावजूद यहाँ के लोगों के इरादे बहुत मजबूत होते हैं। बूंद –बूंद पानी और एक – एक रोटी को मोहताज लोग पहाड़ों में से पानी और पथरीली ज़मीनों में अनाज उपजाने का हौसला रखते हैं। उन्हें अपनी मिट्टी से प्यार है। तमाम विसंगतियों के होते हुए भी जब कोरेना संकट की शुरुआत हुई, तो उन लोगों ने भी बिना ट्रेन और बस का इंतजार किए अपने – अपने गाँव की ओर पैदल ही चल दिये । पैदल चलने की वजह से सभी के पैरों में छाले पड़ गए। पुरुषों ने तो अपने पैरों में चप्पल या जूते पहन रखे थे। लेकिन यहाँ की महिलाएं तो तपती सड़कों पर भी नंगे पाँव चलती हुई देखि गई । उनके इरादे इतने मजबूत थे कि एक बार भी उन्होने उफ तक नहीं किया । उनकी यात्रा तभी रुकी, जब वे अपने गाँव पहुँच गई ।
अगर प्रवासी मजदूरों के हिसाब से बात करें। तो बुंदेलखंड की 80 प्रतिशत से अधिक प्रवासी मजदूर ही हैं। शिक्षा का स्तर अभी भी बहुत निम्न हैं। हालांकि जगह – जगह यहाँ के अमीर लोगों ने स्कूल और कालेज तो खोल लिए हैं । लेकिन आज भी वहाँ पढ़ने वालों की संख्या नगण्य ही होती है। छात्र, छात्राओं के नाम से सिर्फ रजिस्टर ही भरे होते हैं । नाम लिखाने के बाद अधिकांश युवक कमाने के लिए दूसरे प्रदेशों के लिए रवाना हो जाते हैं ।
अनाज बैंक बनाने की एक पहल की है, ताकि गांव में कोई परिवार भूखा न सोए। इसकी खास बात यह है कि इसका प्रबंध और संचालन यहाँ की महिलाओं द्वारा किया जा रहा है । इसमें हर परिवार अपने यहां होने वाली उपज का एक हिस्सा अनाज बैंक में रखता है और जरूरत पड़ने पर ले जाता है। फसल आने पर वह फिर से बैंक में अनाज जमा कर देता है। जरूरतमंद को गेहूं मिल जाता है। जो अनाज लौटाने की हालत में नहीं है उनसे हम अनाज वापस नहीं लेते हैं। अनाज और पानी की यहाँ हमेशा किल्लत रही है। पहले रजवाड़े हुआ करते थे। जहां पर अधिकांश अनाज लगान के रूप में चला जाता था। आज उनके पास खेती तो है, लेकिन पानी न होने की वजह से उपज भगवान भरोसे पर होती है। अगर समय से पानी बरस गया, तो फसल हो जाती है, नहीं तो कटाई के नाम पर तिनका –तिनका इकट्ठा करते हुए यहाँ के किसान देखे जा सकते हैं । कोरेना संकट के मद्देनजर यहाँ के सुदूर ग्रामीण इलाकों में अनाज बैंक की व्यवस्था की गई है। यह अनाज बैंक गाँव वालों द्वारा ही चलाया जाता है । जिसमें फसल होने पर हर किसान को एक निश्चित अन्न राशि इसमें जमा करना होता है, और जरूरत पड़ने पर वह इसे प्राप्त कर सकता है। अगर किसी को ज्यादा की जरूरत पड़ गई, तो वह उधार लेता है, और फसल होने पर उतना अतिरिक्त उसे भरपाई करना पड़ता है । लॉक डाउन और करोना संकट के दौरान आज कई परिवार इसी अनाज बैंक पर निर्भर हैं। हालांकि यह अनाज बैंक इसी कारण बनाए गए हैं, जिससे गाँव के किसी भी व्यक्ति को भूखा न सोना पड़े । लॉक डाउन के दौरान कुछ लोगों ने अनाज बैंक में अनाज दान भी दिये हैं ।
यहाँ के किसी गाँव में चले जाइए । उस गाँव में हर घर में बकरी और मुर्गी आपको दिखाई दे जाएगी। यही यहाँ का व्यवसाय है । बकरी और मुर्गी कम पानी में अपना गुजारा कर सकती हैं, साथ ही घास, पट्टियाँ और कीड़े – मकोड़े खाकर अपना गुजारा कर लेती हैं। जो इस क्षेत्र में इनके लिए पर्याप्त मात्रा में पाई जाती हैं । वैसे हर गाँव में कहीं – कहीं गाय और भैंस भी बंधी हुई देखी जा सकती हैं। कोरेना संक्रमण और लॉक डाउन के कारण यहाँ के लोगों का रोजगार छिन गया है। सभी लोग अपने – अपने घरों को लौट आए हैं। खेती और पानी का वही हाल है। ऐसे में उत्तर प्रदेश और केंद्र, दोनों सरकारों को बुंदेलखंड के लिए एक विशेष राहत पैकेज की घोषणा करना चाहिए। जिससे आने वाले समय में भूख और प्यास से कोई न मरे । साथ ही गावों में जो अनाज बैंक चलाये जा रहे हैं। ऐसे अनाज बैंकों को मुफ्त में पर्याप्त मात्रा मे खाद्यान भी उपलब्ध कराना चाहिए, जिससे आवश्यकता होने पर यहाँ के लोग अनाज बैंक से अपनी जरूरतें पूरी कर सकें ।
प्रोफेसर डॉ. योगेन्द्र यादव
पर्यावरणविद, शिक्षाविद, भाषाविद,विश्लेषक, गांधीवादी /समाजवादी चिंतक, पत्रकार, नेचरोपैथ व ऐक्टविस्ट