गम्भीर अवसाद से हारकर आत्महत्या करने वालों को लोग कायर क्यों कहते हैं?

अतुल शुक्ला, गोरखपुर
एक पेशेवर मनोचिकित्सक मित्र से अवसाद पर बात हो रही थी। उन्होंने बताया कि 'कैंसर से हारकर मर जाने वाले के साथ लोग सहानुभूति जताते हैं लेकिन गम्भीर अवसाद से हारकर आत्महत्या करने वालों को लोग कायर क्यों कहते हैं? दो की दोनों गम्भीर बीमारियां ही तो हैं!'
वस्तुतः मैं भी उनकी बात से सहमत हूँ। हममें से कम ही लोगों का किसी गम्भीर अवसादग्रस्त मरीज से पाला पड़ा होगा। हमने डिप्रेशन को आम बोलचाल में प्रयोग करके एक आम शब्द बना दिया है, जबकि यह वाकई में गम्भीर समस्या है। संयोग से मैं सीवियर डिप्रेशन के एक मरीज को नजदीकी तौर पर जानता हूँ। पन्द्रह साल से ज्यादा ही हो गए लेकिन उनकी कोई रिकवरी नही है।
दरअसल सेलिब्रिटीज को टारगेट करना हमारे हीनताबोध की ग्रन्थि है। सोशल मीडिया ने सेलिब्रिटी को टारगेट करना बेहद आसान कर दिया है। मैं अक्सर देखता हूँ कि फेमस लोगों की प्रोफाइल पर कमेंट बॉक्स में लोग गाली-गलौज करते हैं। इससे हमारे हीनताबोध को थोड़ा सुकून हासिल होता है।
हर व्यक्ति अपने आजीविका के क्षेत्र में गलाकाट प्रतिस्पर्धा का सामना कर रहा है। एक मित्र एकदिन बातचीत में बताने लगे कि दिल्ली मेट्रो में जेबकतरों के भी कार्यक्षेत्र तय हैं। और कोई गिरोह दूसरे के इलाके का अतिक्रमण नही कर सकता। अगर बाहरी जेबकतरा दिल्ली में जाकर जेब कतरकर ही आजीविका चलाना चाहे तो उसके लिये भी उसे सिंडिकेट में शामिल होना पड़ेगा। अब सोच लीजिये कि चोरी चिकारी के फील्ड में भी आप बिना सिंडिकेट को हिस्सा दिए दो जून की रोटी नही कमा सकते।
हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में कौन क्या झेल रहा है आप अपने घर मे बैठे कैसे जान जाओगे? हर शहर के अपने कायदे होते हैं। मुम्बई के भी हैं। गोरखपुर में आप पान की दुकान पर एक घण्टे कुहनी टेककर चूना काट सकते हैं लेकिन मुम्बई में दुकानदार भगा देगा। गांव में आप ताड़ी के पेड़ के नीचे भूजा लेकर दो घण्टे ज्ञान बांच सकते हैं महानगर में यह सुविधा नही मिलेगी।
हर व्यवसाय की अपनी चुनौतियां हैं। कौन कहाँ थक जाएगा, क्या गारंटी है। आपके घर मे नेनुआ और सरपुतिया की सब्जी के विवाद में थालियां फिंक जा रही होंगी तो किसी के साथ कोई और समस्या भी हो सकती है। यह कहना कि कोई पैसे वाला है तो उसको कोई समस्या ही नही होगी, मूर्खता की बात है। हर आदमी को खाने के लिये एक थाली, सोने के लिये एक बिस्तर और हगने के लिये बस एक कमोड की जरूरत होती है। बाकी सबकी प्रोफेशनल और पर्सनल समस्याएं अलग अलग हैं। कोई किसी की समस्या तबतक नही समझ सकता, जबतक उसी परिस्थिति में, उसी जगह पर न जा खड़ा हो!
बहुत आसान है किसी की आत्महत्या को कायरता बोल देना। लेकिन आप खुद सोचिये कि जीवट से भरा हुआ किसान फसल बर्बाद होने पर आत्महत्या कर बैठता है। पचीस-पचास बोरे धान गेहूं का इंसानी जीवन के सामने क्या मोल है? फसल ही तो बर्बाद होती है! खेत तो नही उजड़ जाते!! फिर भी किसान आत्महत्या कर बैठता है।
सीमा पर दिनरात प्रतिकूल मौसम में डटे रहने वाले जवान छुट्टी न मिलने पर चार लोगों को मारकर खुद भी गोली मार लेते हैं, क्या वो सब कायर हैं?
अवसाद एक गम्भीर मनोरोग है। कोई भी घटना इस बीमारी में स्विच बन जाती है और बीमार कुछ अनहोनी कर बैठता है।
दरअसल सेलिब्रिटीज को गाली देना आपकी कुंठा है। इरफान, ऋषि कपूर, ओमपुरी ने तो आत्महत्या नही की थी... गालियां उन्हें भी पड़ रही थीं। असल में आपको गाली देने का बहाना चाहिए। कोई एक्सीडेंट में मरेगा तो आपके पास दूसरे तरह की गाली होगी और कोई बीमार होकर मरेगा तो तीसरे तरह की।
आपको लगता है कि किसी को गाली देकर आप कूल बन जाते हैं लेकिन ऐसा है नही भई!