"आत्महत्या" किसी भी समस्या का समाधान नहीं है

प्रेम शंकर मिश्र
, आत्महत्या महापाप है , जो अपनी कहानी का जिन परिस्थितियों से पीछा छुडाने के लिये The end करता है , प्रकृति द्वारा अगले जन्म मे उसे वापस उन्ही परिस्थितियों से डाला जाता है ,क्योंकि कर्म-फल भोगे बिना नष्ट नहीं होता है।
इस संसार मे एसा कोई नहीं है जिसे कोई दुःख ना हो:--
दीन कहे धनवान सुखी,
धनवान कहे सुख राजा को भारी।
राजा कहे महाराजा सुखी,
महाराजा कहे सुख इन्द्र को भारी।
इन्द्र कहे सुख ब्रह्मा को,
ब्रह्मा कहे सुख विष्णु को भारी।
तुलसी दास कहे विचारी,
बिनु हरि भजन सब जीव दुखारी।
जब आप भौतिक सांसारिक जीवन से ऊब जाते है या संसार मे आपको सिवाय दुःख के कुछ नहीं मिलता तब आपको अपनी ऊर्जा संसार से हटाकर आध्यात्मिक जीवन मे लगाना चाहिये।
आपको खोज करनी चाहिये कि मुझे दुःख क्यों मिल रहा है ?
इस दुःख का अंत सदा के लिये कैसे हो सकता है ?
इस संसार के सारे सुख क्षणभंगुर है , क्या कोई एसा सुख भी है जो कभी समाप्त ना हो ?
खाना-पीना सोना यह सब तो बिना बुद्धि वाले पशु भी करते है ,
फिर बुद्धिमान मनुष्य ओर पशुओं मे क्या अंतर हुआ ?
मनुष्य जीवन का लक्ष्य क्या है ?
जब आप स्वयं खोज करते है तब आपके मन मे अनेक प्रश्न उठेंगे , तब आपको "गुरु"कि आवश्यकता महसूस होगी , क्यूँकि गुरु के बिना ज्ञान नहीं होता ।
लेकिन इस कलियुग मे वास्तविक गुरु मिलना अत्यंत दुर्लभ है ।
इसलिये किसी के चक्कर मे ना पङकर भगवद्गीता ओर रामचरितमानस को अपना गुरु मान ले, इन दोनों ग्रन्थों मे जो शिक्षा दी गई है उसके अनुसार अपने जीवन को बनाये,आपको किसी गुरु कि आवश्यकता नही रहेगी।
वास्तविक गुरु कि पहचान यही है कि वह आपको अपना शिष्य बनायेगा ही नही , वह आपसे बचेगा क्योंकि वास्तविक गुरु को अपने शिष्य कि देखरेख एक पुत्र कि भाँति करनी होती है, अब कोन वास्तविक संत इस झमेले मे पङना चाहेगा, हाँ वह आपको ज्ञान दे सकता है ,मार्ग बता सकता है लेकिन शिष्य जल्दी से कभी स्वीकार नहीं करेगा।
एक बात हमेशा अपने दिमाग मे 24 घंटे रखे कि आपके जीवन मे जो भी परिस्थिति चल रही है वह सदा नहीं रहने वाली है अगर महान से महान दुःख चल रहा है तो वह भी समय के साथ समाप्त हो जायेगा , ओर जो सुख मिल रहा है समय के साथ वह भी समाप्त हो जायेगा। कुछभी टिकने वाला नहीं है । यह संसार एक नदी कि भाँति समय कि धारा के साथ बहे जा रहा है ।