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आइये ममत्व का संसार बनाएँ - प्रोफेसर (डॉ.) योगेन्द्र यादव

आइये ममत्व का संसार बनाएँ - प्रोफेसर (डॉ.) योगेन्द्र यादव
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धीरे-धीरे रिश्तों के मायने खतम होते जा रहे हैं। रिश्तों के बीच का प्रेम सूखता जा रहा है। रिश्तों की गर्माहट तभी तक होती है, जब तक उनकी जरूरतें पूरी हो रही हो । हर व्यक्ति की ख्वाहिशें बढ़ती जा रही हैं । उसे पूरा कर पाना किसी के वश की बात नहीं है । जैसे ही लगता है, ख्वाहिशें नहीं पूरी होंगी, रिश्तों में एक तनाव पनपने लगता है । पहले जरूरत भर या औपचारिकता भर ही बातें होती हैं, समय के साथ वह भी बंद हो जाती है। इस दुनियाँ में हर कोई दूसरे के लिए जीता है। यह बात और है कि कोई अपने बच्चों के लिए जीता है, कोई अपनी पत्नी के लिए जीता है, कोई अपने भाई-बहनो के लिए जीता है । लेकिन इन्हीं रिश्तों की जब चाहत पूरी नहीं होती है, तो सभी रूठ जाते हैं । एक अबोलपन की स्थिति हो जाती है। भोजन मिलता है, खा लेते हैं, पानी मिलता है, पी लेते हैं, कोई मुस्करा देता है, तो यंत्रवत मुस्करा देते हैं। धीरे-धीरे जिंदगी एकांत में कटने लगती है। कोई बात करने वाला नहीं होता है आदमी अपने से ही बात करने लगता है, बड़बड़ाने लगता है । मोबाइल या लैपटॉप पास होता है, तो जो मन में आता है, उसे लिखने लगता है। हर शब्द, हर वाक्यांश, हर वाक्य के बड़े मायने होते हैं। लेकिन उस दुख को कोई नहीं समझता । समझने वाली केवल माँ होती है। और वह पास नहीं होती है। व्यक्ति डिप्रेशन में चला जाता है। मन में केवल और केवल नकारात्मक विचार आते हैं। कभी-कभी उनसे निकलने का प्रयास होता है, लेकिन कोई सहारा देने वाला नहीं होता है। एकांत और पीड़ा जब इस स्तर तक बढ़ जाती है कि सांस भी पराई हो जाती है, शरीर भी अपना प्रतीत नहीं होता है। जीवन बेकार लगता है, तब व्यक्ति ऐसा कदम उठा लेता है, अपने जीवन को समाप्त कर लेता है, और दुनियाँ उसे कायर कहती है। व्यक्ति बड़ी से बड़ी कठिनाइयों से लड़ सकता है। बड़ी से बड़ी महाभारत में विजय प्राप्त कर सकता है। लेकिन प्रेम से टूटा व्यक्ति, अपनों के विमुख होने पर एकांत में अपने से लड़ता हुआ व्यक्ति कब हार जाता है, और सुशांत सिंह राजपूत जैसा कदम उठा लेता है, दुनिया स्तब्ध हो जाती है.......सभी के चेहरे पर एक नीरव शांति छा जाती है ...........लेकिन यह सच है .....प्रेम विहीन एक जिंदगी, अपनों के प्रेम से वंचित एक जिंदगी अपने ही हाथों खुद को समाप्त कर लेती है ।

आइये एक नया समाज बनाएँ । रिश्ते सिर्फ प्रेम के लिए बनाएँ, रिश्ते सिर्फ स्नेह के लिए बनाएँ । पहले वाला समाज बनाएँ । ऐसा समाज बनाएँ जहां हर जुबान पर, हर दिल में प्रेम पलता हो, हर निगाह में एक दूसरे का अश्क दिखता हो। एक नहीं दिखे, तो दूसरे को बेचैनी हो, एक न बात न करे, तो अधीर हो जाएँ । ममत्व का संसार, माँ का संसार ।

प्रोफेसर (डॉ.) योगेन्द्र यादव

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