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लॉक डाउन, संवेदनशील मसले और मा. न्यायालयों की संवेदनशीलता – प्रोफेसर (डॉ.) योगेन्द्र यादव

लॉक डाउन, संवेदनशील मसले और मा. न्यायालयों की संवेदनशीलता – प्रोफेसर (डॉ.) योगेन्द्र यादव
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पिछले तीन महीने से अधिक समय से पूरा विश्व कोरेना संक्रमण से गुजर रहा है। कोरेना संक्रमण न फैले, इसके लिए सभी देशों ने अपने – अपने यहाँ लॉक डाउन लागू किया। इस लॉक डाउन में देश की सभी आंतरिक और वाह्य गतिविधियां पूरी तरह से बंद कर दी गई। सभी को अपने-अपने घरों में रहने के निर्देश दिये गए । देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृहमंत्रालय और प्रदेशों के मुख्यमंत्रियों ने सभी उद्योगपतियों और आम जनता से अपील की कि वे इस आपातकाल की स्थिति मे अपने कर्मचारियों के वेतन में कटौती न करें। मकान मालिक किराए के लिए अपने किराएदारों को विवश न करें । उस अपील का प्रभाव भी पड़ा। अधिकांश मकान मालिकों ने किराए के लिए अपने किरायेदारों को विवश नहीं किया। अधिकांश उद्योगपतियों ने अपने कर्मचारियों को आधा वेतन देना भी स्वीकार किया। कुछ ने दिया भी । लेकिन इसी बीच गृह मंत्रालय से एक आदेश निर्गत हुआ कि सभी कल – कारखाने के मालिक लॉक डाउन की अवधि काल का पूरा वेतन दें । सरकार का यह आदेश कल – कारखानों के मालिकों को रास नहीं आया । ऐसे अधिकांश उद्योगपतियों ने सरकार के इस आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट की शरण ली। न्याय पाने के लिए याचिका दायर की । याचिका दायर करने वालों में केंद्र सरकार के भी कई विभाग भी हैं । जिसमें से एमएसएमई प्रमुख है । इस मसले पर सुप्रीम कोर्ट में आज सुनवाई हुई । जिसमे लॉक डाउन की अवधि 54 दिन का वेतन देने या न देने का मामला था। सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस भूषण ने इस मामले में अपना फैसला सुनाते हुए कहा कि कर्मचारी और नियोक्ता कंपनी आपस में समझौते से यह मामला सुलझाए। दोनों पक्ष अपने इस मामले में राज्य के श्रम विभाग की मदद प्राप्त करें और सरकार सहानुभूतिपूर्वक इस पूरे प्रकरण में मदद करे । साथ में न्यायालय में यह भी व्यवस्था दी कि इस संबंध में सरकार की ओर से नियोक्ताओं के प्रति कोई दंडात्मक कार्रवाई नहीं होगी ।

सुप्रीम कोर्ट ने निर्णय देने में दोनों पक्षों की दलीलों को ध्यान से सुना । ऊपरी तौर पर ऐसा प्रतीत होता है कि सुप्रीम कोर्ट ने उद्योगपतियों को राहत दी है। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने उन उद्योगपतियों की इस दलील पर भी ध्यान दिया कि इस दौरान उद्योग धंधे पूरी तरह से बंद थे। माल की विक्री भी पूरी तरह से बाधित थी। ऐसे में इस दौरान उद्योगों की एक रुपये की कमाई नहीं हुई । इसके बावजूद अपनी क्षमता के अनुसार उन लोगों ने अपने कर्मचारियों, मजदूरों को वेतन का एक भाग दिया । कर्मचारियों के प्रति किसी प्रकार का अन्याय न हो, इसी कारण सुप्रीम कोर्ट ने इस पूरे मसले में श्रम विभाग को भी शामिल किया है और सरकार को भी निर्देश दिया है कि वे बिना कोई दंडात्मक कार्रवाई करते हुए दोनों से बातचीत करते हुए बीच का रास्ता निकाले। जिससे दोनों सहमत हो। हालांकि कोर्ट इस प्रकार के निर्णय बहुत कम लेती है। वह तो वकीलों द्वारा दी गई दलीलों और साक्ष्य के आधार पर अपने निर्णय सुनाती है। उसमें किसी के प्रति न तो निष्ठुर होती है, और न ही किसी के प्रति संवेदनशील होती है। लेकिन लॉक डाउन के इस मसले पर उसने जो संवेदनशीलता दिखाई है, उसकी निश्चित रूप से प्रशंसा करना चाहिए । कोर्ट ने यह भी नहीं कहा है कि पूरा वेतन नहीं दिया जाना चाहिए। वह तो दोनों पक्षों की चर्चा पर निर्भर है। अगर कोई कंपनी अपने कर्मचारियों को पूरा वेतन देना चाहती है, तो वह दे सकती है, या श्रम विभाग को ऐसा लगता है कि इस कंपनी को पूरा वेतन देना चाहिए, तो वह दिला सकता है । सरकार की भूमिका दोनों के साथ निष्पक्ष न्याय हो, यह देखने का है ।

लॉक डाउन के दौरान और उसे समाप्त करने के पश्चात भी कोरेना संक्रमित मरीजों की संख्या में हर दिन इजाफा हो रहा है , हालांकि केंद्र और प्रदेश सरकारों द्वारा उसे रोकने का पूरी क्षमता के साथ प्रयास किया जा रहा है ।

विश्व के अन्य देशों में जहां कोरेना वायरस के संक्रमित मरीजों की संख्या में कमी आ रही है, जबकि भारत में इसकी संख्या में लगातार वृद्धि हो रही है । आज स्थिति यह है कि देश में पहली बार चौबीस घंटों में कोविड-19 के 10,000 से अधिक संक्रमित मरीज चिन्हित किए गए । और संक्रमण के कुल मामले 2,97,535 हो गए हैं, जो विश्व के कई देशों से अधिक हैं। अगर विश्व स्तर पर इसका विश्लेषण करें तो कोविड-19 से प्रभावित तमाम देशों में भारत, रूस, ब्राजील और अमेरिका से पीछे है। रूस में कोरोना के 4.93 लाख, ब्राजील में 7.72 लाख और अमेरिका में 20 लाख अधिक संक्रमित मरीज हैं। स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार 1,41,842 लोग संक्रमण की चपेट में हैं जबकि 1,47,194 लोग स्वस्थ हुए हैं और एक मरीज विदेश चला गया है। अब तक 49.47 प्रतिशत मरीज स्वस्थ हो चुके हैं। विश्व में में अब जिन देशों में रोज सबसे अधिक लोग संक्रमित हो रहे हैं, उनमें भारत भी शामिल है। हालांकि टेस्टिंग में भी काफी तीव्रता आई है। अब तक देश में 54 लाख लोगों का कोरोना टेस्ट हो चुका है। इस समय तमिलनाडु और दिल्ली के बाद महाराष्ट्र में सबसे ज्यादा मामले हैं। अनलॉक-1 में मॉल, धार्मिक स्थल, रेस्त्रां और बसों, ट्रेनों की सेवाएं और घरेलू उड़ानों का संचालन शुरू होने से संक्रमण में तेजी आई है। दिल्ली में कोरोना संक्रमण की भयावह स्थिति है। इसके बावजूद केजरीवाल सरकार राज्य में लॉकडाउन बढ़ाने के पक्ष में नहीं है। वहीं दिल्ली में संक्रमित मरीजों की हुई मौतों को लेकर दिल्ली सरकार और नगर निगम में विवाद की स्थिति पैदा हो गई है । नगर निगम दिल्ली सरकार पर कोरेना संक्रमण से हो रही मौतों को छिपाने का आरोप लगा रहा है। कोरेना के बढ़ते संक्रमण को आधार बना कर हाई कोर्ट में लोक डाउन की अवधि बढ़ाने के लिए एक जनहित याचिका दायर की गई । जिसमें लॉक डाउन की अवधि 30 जून तक बढ़ाने की माग की गई । जनहित याचिका के वकील ने कहा कि दिल्ली सरकार ने स्वयं स्वीकार किया है कि राष्ट्रीय राजधानी में जून के अंत तक कोरोना वायरस संक्रमण के करीब एक लाख मामले सामने आएंगे और जुलाई के मध्य तक करीब 2.25 लाख एवं जुलाई के अंत तक 5.5 लाख होने की संभावना है। याचिका में यह भी अपील की गई है कि विशेषज्ञ चिकित्सकों की एक समिति गठित किया जाए, जो संक्रमण को नियंत्रित करने के लिए अपनी विस्तृत रिपोर्ट प्रस्तुत करे । याचिका में यह दिखाया गया है कि दिल्ली में आवागमन, सार्वजनिक परिवहन सेवा पुन: आरंभ करने, धार्मिक स्थल, मॉल, रेस्तरां और होटल खोलने निर्देशों के बाद संक्रमण तेजी से फैला है ।

लेकिन उस याचिका को खारिज करते हुए दिल्ली हाई कोर्ट ने यह कहा कि लॉक डाउन लगाना या हटाना सरकार की जिम्मेदारी है । इस प्रकरण में भी कोर्ट ने संवेदनशीलता के साथ विचार किया । हालांकि जनहित याचिका करता के वकील द्वारा जो तथ्य पेश किए गए थे, वे बिलकुल सही हैं। लेकिन वकीलों की दलीलों को सुनते हुए न्यायालय ने सरकार के पक्ष और उसके द्वारा किए जा रहे प्रयासो पर भी विचार किया। ऐसे समय में जब देश की सभी प्रांतीय सरकारें अपनी पूरी क्षमता के साथ कोरेना से जंग कर रही हैं। न्यायालय कोई ऐसा निर्णय करके कोई अवरोध पैदा नहीं करना चाहता । इस प्रकार इस मसले पर भी सरकार ने अपनी संवेदनशीलता का परिचय दिया। हालांकि मजदूरो और कर्मचारियों पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा जो निर्णय दिये गए, उसी प्रकार हाई कोर्ट के इस निर्णय पर भी सरकार का पक्ष लेने का आरोप लगाया जा सकता है। जो है नहीं ।

ऐसे समय में जब पूरा विश्व इस संक्रमण से जूझ रहा है। इससे बचने के लिए सावधानी ही बचाव है। इसको फैलने से रोकने के लिए मास्क और सोशल डिस्टेन्सिंग जरूरी है। लॉक डाउन कोई इसका हल नहीं है। अगर सभी लोग समय समय पर विश्व स्वास्थ्य संगठन, केंद्र सरकार, और सभी प्रदेश सरकारों के निर्णयों को माने और उसे अपने व्यवहार और आचरण में लाएँ, तो निश्चित रूप से कोरेना संक्रमण को फैलने से रोका जा सकता है। भारत में कोरेना संक्रमण का जो इजाफा हो रहा है । वह अपने देश के प्रवासी मजदूरों के एक स्थान से दूसरे स्थान यानि अपने कर्म क्षेत्र से अपने जन्म स्थली जाने पर हुआ है। दूसरे जिस समय कोरेना संक्रमण शुरू हुआ, उस समय भारत के पास केवल एक हॉस्पिटल था। अब उनकी संख्या 500 से अधिक हो गई है । जांच की क्षमता में भी निरंतर वृद्धि हो रही है। अध्क जांच होने की वजह से भी संक्रमित मरीजो की संख्या में इजाफा हो रहा है । फिलहाल जब यह तय हो गया है कि जब तक कोरेना संक्रमण की कोई वैक्सीन नहीं बन जाती, तब तक सभी को कोरेना के साथ ही जीना पड़ेगा। इस कारण फिर से लॉक डाउन लागू करने के बजाय अगर देश का प्रत्येक नागरिक यह संकल्प कर ले कि वह वह बिना मास्क के घर से बाहर नहीं निकलेगा। सोशल डिस्टेन्सिग का अक्षरश: पालन करेगा और सेनेटाइजर का उपयोग करेगा साथ ही अपने हाथ को कम से कम 30 सेकंड तक दिन में कई बार ढोइएगा। संक्रमित व्यक्तियों से दूर रहेगा । तो निश्चित रूप से इसके प्रसार पर रोक लग सकती है। तो इन सब तथ्यों को ध्यान में रख कर, लॉक डाउन के दौरान होने वाली कठिनाइयों को पर विचार करके जिस संवेदनशीलता का न्यायालय ने परिचय दिया है। उसकी प्रशंसा की जाना चाहिए ।

प्रोफेसर डॉ. योगेन्द्र यादव

पर्यावरणविद, शिक्षाविद, भाषाविद,विश्लेषक, गांधीवादी /समाजवादी चिंतक, पत्रकार, नेचरोपैथ व ऐक्टविस्ट

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