शिवपाल सिंह के पत्र के निहितार्थ और उत्तर प्रदेश की राजनीति पर उसका प्रभाव – प्रोफेसर (डॉ.) योगेन्द्र यादव

समाजवादी पार्टी के संस्थापक राष्ट्रीय अध्यक्ष मुलायम सिंह के साथ पार्टी को खड़ी करने में अपना सर्वस्व अर्पण करने वाले शिवपाल सिंह यादव, जिनकी पार्टी में एक समय तूती बोलती थी। पार्टी के युवा हस्ताक्षर व पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को उन्होने न सिर्फ बेटे की तरह पाला, अपितु अपने सगे बेटे से भी अधिक मान देते रहे । अखिलेश यादव भी अपने चाचा का सदा सम्मान करते रहे। चाहे चाचा के रूप में हो, या एक मंत्री के रूप में हो, उन्होने शिवपाल सिंह का सदा सम्मान किया । मुलायम सिंह के परिवार और परिवारिजनों के बीच के प्रेम की लोग मिसाल दिया करते थे। लेकिन उस परिवार को नजर लग गई। या यों कहें कि एक ऐसा षडयंत्र रचा गया। जिससे दोनों के मन में शक का बीज पैदा हो गया। जैसे ही शक का बीज पैदा हुआ। एक दूसरे की बात और कार्य दोनों के गलत अर्थ निकाले जाने लगे । उनके नजदीकी व्याख्याकारों ने भी गलत व्याख्या करके प्रेम की मिसाल माने जाने वाले चाचा-भतीजे के बीच ऐसी रेखा खीच दी, शिवपाल सिंह को अलग पार्टी बनाना पड़ा । जिसका जनता और समर्थकों के बीच में एक गलत संदेश गया। और दोनों का अलग होना, विगत विधानसभा चुनाव में हार का एक बड़ा कारण बना ।
लेकिन समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव और शिवपाल सिंह के बीच प्रेम की डोर पतली जरूर हुई, लेकिन वह टूटी नहीं । पार्टी बनाने के बाद भी बहुत दिनों तक शिवपाल सिंह यादव समाजवादी पार्टी के विधानसभा सदस्य के रूप में गिने जाते रहे। अलग पार्टी बना लेने के बाद अखिलेश यादव की नैतिक ज़िम्मेदारी बन गई कि वे उनकी विधानसभा सदस्यता रद्द करने की प्रक्रिया पूरी करें । वह प्रक्रिया की भी गई, लेकिन आधे-अधूरे मन से । इसी कारण उस आवेदन पत्र में अनेक जानबूझ कर अनेक कमियाँ छोड़ दी गई । विधानसभा निरस्त करने के आवेदन के बाद सपा के संस्थापक अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव सक्रिय हुए। वे नहीं चाहते थे कि जसवंत नगर में उपचुनाव हो। इस संबंध में उनकी अखिलेश के साथ कई बार बात हुई। उनके आदेश को मान कर अखिलेश यादव ने नेता प्रतिपक्ष चौधरी राम गोविंद चौधरी को आवेदन वापस लेने को कहा। उनके आवेदन को स्वीकार कर विधानसभा अध्यक्ष ने उसे वापस कर दिया । इसके बाद इटावा स्थित लोहिया भवन के लोकार्पण कार्यक्रम में आमंत्रित करने के लिए शिवपाल सिंह अखिलेश को आमंत्रित करने उनके घर गए । इस मिलन में दोनों के रिश्तों के बीच में जो बर्फ जम गई थी, वह पिघली । इसके बाद शिवपाल सिंह ने 29 मई को अखिलेश यादव को संबोधित करते हुए एक पत्र लिखा । आज उसी पत्र का मैं विश्लेषण आप लोगों के समक्ष प्रस्तुत कर रहा हूँ ।
1. प्रिय शब्द का इस्तेमाल : अपने पत्र के शुरुआत मे ही शिवपाल सिंह ने अखिलेश यादव के लिए प्रिय शब्द का इस्तेमाल किया है। इस शब्द के व्यापक निहितार्थ हैं। इसका सीधा सा अर्थ होता है कि समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव आज भी उनके लिए प्रिय हैं। अथवा पुन: पहले की अपेक्षा अधिक प्रिय हो गए हैं । इस शब्द में अपनापन झलक रहा है ।
2. श्री और जी शब्द का प्रयोग – अखिलेश यादव मुख्यमंत्री रहे हैं। समाजवादी पार्टी जैसे बड़े राजनीतिक दल के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं। इस कारण शिवपाल सिंह यादव ने उनके नाम के आगे श्री और नाम के अंत में जी शब्द लगा कर उन्हें सम्मान देकर अपने सम्बन्धों को मजबूती प्रदान करने का प्रयास किया है ।
3. स्नेहपूर्ण विश्वास : शिवपाल सिंह यादव ने अपने पत्र में स्नेहपूर्ण विश्वास शब्द का उपयोग करके अखिलेश यादव में अपना विश्वास व्व्यक्त किया है । वस्तुत: विश्वास और स्नेहपूर्ण विश्वास में अंतर होता है। वैसे हर विश्वास में स्नेह की थोड़ी – बहुत मात्रा तो रहती है। लेकिन जब विश्वास के साथ स्नेहपूर्ण शब्द जोड़ दिया जाता है। तो विश्वास का कारण स्नेह हो जाता है। यानि ऐसे दो नेताओं, व्यक्तियों के बीच का विश्वास, जिनके बीच स्नेहयुक्त संबंध रहे हों, या स्नेहयुक्त संबंध हैं। यानि इस शब्द से यह पता चलता है कि दिमाग पर एक बार फिर दिल प्रभावी हो गया है । चाचा – भतीजे के बीच की मधुर स्मृतियाँ एक बार फिर व्यापक होने लगी हैं। और जब – जब ऐसी स्थिति आती है, तब-तब संबंध पहले से अधिक प्रगाढ़ होते हैं ।
4. राजनीतिक परिघटना नहीं : शिवपाल सिंह यादव ने अपनी विधानसभा सदस्यता को रद्द किए जाने वाले आवेदन को वापस लेने की घटना को साधारण नहीं माना है । उन्होने अपने पत्र में उल्लेख करते हुए कहा है की यह सिर्फ एक राजनीतिक परिघटना नहीं है। बल्कि उससे ऊपर उठ कर लिया गया निर्णय है । शिवपाल सिंह के पार्टी के प्रमुख हैं। इसलिए वे अच्छी तरह जानते हैं कि हर पार्टी का एक संविधान होता है। नेता कुछ भी चाहे, लेकिन उसे संविधान के अनुरूप ही चलाना पड़ता है। ऐसे में जब शिवपाल सिंह ने एक नई पार्टी का गठन कर लिया है। राजनीति के हिसाब से उनकी सदस्यता समाप्त होना चाहिए। लेकिन राजनीति से ऊपर उठ कर प्रेमपूर्ण रिश्तों की एक बुनियाद जो अखिलेश ने डाली है, एकीकरण की जो प्रक्रिया शुरू की है, दुर्लभ है।
5. स्पष्ट, सार्थक व सकारात्मक हस्तक्षेप : अपनी विधानसभा निरस्तीकरण के लिए उठाए गए कदम को उन्होने स्पष्ट, सार्थक और सकारात्मक हस्तक्षेप जैसे शब्दों से अलंकृत किया है । स्पष्ट का अभिप्राय शुचितापूर्ण पारदर्शिता, सार्थक का अर्थ भविष्य की दृष्टि से उठाया गया लाभकारी कदम और सकारात्मक का अर्थ जिसमें दूरगामी परिणाम निहित हो । ऐसे में जब कोई प्रक्रिया चल रही हो, सकारात्मक पहल से ही वह प्रक्रिया बाधित हो सकती है । यानि एक अच्छी सोच, स्वार्थ से ऊपर उठ कर एक ऊर्ध्वगामी सोच । अखिलेश की यही सोच इस शब्द में प्रतिबिम्बित होती है ।
6. निर्विवाद नेतृत्व : इसी पत्र में शिवपाल सिंह यादव ने नेतृत्व शब्द का उपयोग कर यह संदेश देने का प्रयास किया है कि वे अखिलेश यादव के नेतृत्व में आगामी विधानसभा चुनाव लड़ने के लिए तैयार हैं । यह देखने में भी आया है कि विपक्ष में अखिलेश यादव एक ऐसा चेहरा है, जिस पर कोई विवाद नहीं है। तालमेल के बाद भी सभी दल मुख्यमंत्री या अपने नेता के रूप में अखिलेश को सहजता से स्वीकार कर लेंगे । इस प्रकार उनका नेतृत्व निश्चित रूप से निर्विवाद है ।
7. नव राजनीतिक विकल्प : शिवपाल सिंह यादव ने अपने पत्र में यह साफ कर दिया है कि उनके इस कदम से प्रदेश में एक नव राजनीतिक विकल्प तैयार होगा, जो आगामी विधानसभा चुनाव में उल्लेखनीय सफलता प्राप्त करेगा । इस शब्द का उपयोग वही व्यक्ति कर सकता है, जो राजनीति का बहुत अनुभवी नेता होगा । जो इतिहास, वर्तमान की बहुत अच्छी समझ रखता होगा । जो इतिहास और वर्तमान के आधार पर भविष्य का सम्यक चिंतन कर सकता होगा । जो सिर्फ राजनीतिक दलों की ही नहीं, जनता की भाव भंगिमा की अच्छी जानकारी रखता होगा।
8. नवाक्षर : पत्र के अंत में नवाक्षर शब्द लिख कर शिवपाल सिंह यादव ने सभी को विस्मृत कर दिया है। जिसका अर्थ है एक ऐसा अमिट राजनीतिक कदम, जो प्रदेश की राजनीति को नया आयाम देगा ।
प्रगतिशील समाजवादी पार्टी लोहिया के राष्ट्रीय अध्यक्ष शिवपाल और सपा प्रमुख अखिलेश यादव की बढ़ती नजदीकियों से एक बार फिर समाजवादी पार्टी मजबूत होकर उभरेगी। छोटे नेताओं और कार्यकर्ताओं के मन का मैल दूर होने में थोड़ा समय लगेगा, लेकिन आम जनता में इसका सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। बिखराव की वजह से पार्टी कमजोर है, यह संदेश अब जनता के बीच में नहीं रहेगा। शिवपाल सिंह और अखिलेश की इस एकजुटता के कारण उत्तर प्रदेश के छोटे दलों के साथ चुनाव के समय तालमेल बैठाने में आसानी होगी। जिस छोटे दलों से तालमेल का अखिलेश ने इशारा किया था, उन सभी छोटे दलों के प्रमुख के साथ शिवपाल सिंह यादव की आज भी प्रगाढ़ता है । इन दोनों नेताओं के बीच जो मधुर संवाद या पत्राचार का सिलसिला शुरू हुआ है। नेताओं की तो नहीं कह सकता हूँ, लेकिन कार्यकर्ताओं ने बहुत ही सकारात्मक तरीके से लिया है। हर कार्यकर्ता के चेहरे पर खुशी के लक्षण देखे जा सकते हैं।
समाजवादी पार्टी से शिवपाल सिंह के अलग होने, नई पार्टी बनाने के बाद भी समाजवादी राजनीति में एक ऐसा गुट सदैव दोनों नेताओं के बीच में सुलह की आस लिए अलख जगाता रहा । दोनों ने अलग होने का मूल्यांकन किया। अलग होने के कारण उत्तर प्रदेश की सत्ता खोई । लोकसभा चुनाव में ऐसी सीटों पर हार का स्वाद चखना पड़ा, जिसकी किसी ने कल्पना नहीं की थी । इसलिए अगर भविष्य में सत्ता पाना है, तो शिवपाल सिंह और अखिलेश का एक साथ आना जरूरी है । इससे वे एक बार फिर जनता के बीच राजनीतिक विकल्प बन कर उभरेंगे । जिसकी शुरुआत दोनों नेताओं ने कर दी है। इन दोनों नेताओं के आस-पास रहने वाले नेताओं ने भी इस बात का संकेत दिया है कि परिवार एक हो रहा है । जिसकी जरूरत भी है ।
लेकिन दोनों नेताओं को अभी लंबी दूरी करना है। इसलिए संवाद होना जरूरी है। अगर ये दोनों नेता समय-समय पर मिलते रहे, एक दूसरे के मन में जो है, उसे एक दूसरे के सामने अभिव्यक्त करते रहे । बिचौलियों से दूर रहे, तो एक दिन ऐसा फिर आयेगा, जब दोनों एक साथ, एक मंच पर दिखाई देंगे।
प्रोफेसर डॉ. योगेन्द्र यादव
पर्यावरणविद, शिक्षाविद, भाषाविद,विश्लेषक, गांधीवादी /समाजवादी चिंतक, पत्रकार, नेचरोपैथ व ऐक्टविस्ट