कोरेना, छोटे बच्चों की स्कूली शिक्षा और अभिभावकों की चिंता – प्रोफेसर (डॉ.) योगेन्द्र यादव

इस समय सम्पूर्ण विश्व कोरेना महामारी से संक्रमित है। कोई ऐसा देश नहीं है, जहां पर कोरेना को लेकर विशेष सतर्कता नहीं बरती जा रही हो । कोरेना संक्रमित मरीजों की संख्या में लगातार हो रही वृद्धि से हर देश के नागरिक दहशत में हैं। एक लंबे समय तक पूरे देश को लॉक डाउन नहीं किया जा सकता है। इस कारण भारत ने चार चरण के बाद अनलॉक की शुरुआत कर दी है। इस समय अनलॉक – 1 चल रहा है। लेकिन जैसे ही लॉक डाउन खोला गया। तब से संक्रमित मरीजों की संख्या में निरंतर इजाफा हो रहा है। अनलॉक एंन सभी विश्व स्वास्थ्य संगठन और भारत सरकार द्वारा निर्धारित दिशा-निर्देश का पालन कर लेंगे। सभी दूकाने, प्रतिष्ठान, कार्यालय, कल-कारखाने भी मास्क और सोशल डिस्टेन्सिंग के साथ अपनी कार्य कलाप को सुचारु रूप से संचालित कर सकते हैं।
सबसे अधिक चिंता कक्षा एक से लेकर आठवीं तक के बच्चों की स्कूली शिक्षा को लेकर है। इन बच्चों की उम्र इतनी नहीं होती है कि वे हर पल सोशल डिस्टेन्सिंग का पालन कर सकें, हर वक्त चेहरे पर मास्क लगाए रख सकें। बच्चे तो बच्चे होते हैं। उन्हें खेलने, एक दूसरे के पास बैठने और जरा-जरा सी बात पर गुत्थम-गुत्था होते हुए देखा जा सकता है। दूसरा छोटे बच्चों से माता-पिता को विशेष लगाव होता है। ऐसे अभिभावक जिनके एक ही बच्चे हैं, वे तो और भयभीत हैं। तमाम अभिभावकों से बातचीत में यह भी पता चला कि लोग अपने छोटे बच्चों को स्कूल भेजें के बजाय घर पर ही रख कर स्वाध्याय या ट्यूशन वगैरह देकर पढ़ाने की रणनीति बना रहे हैं। उनकी यही इच्छा है कि सरकार छोटे बच्चों के लिए अपने नियमों में कुछ ऐसा बदलाव करे, जिससे बच्चों को कोरेना से संक्रमित होने से बचाया जा सके ।
जहां तक देखने में आया है कि भारत सरकार और प्रदेश सरकारें भी इस प्रकरण को लेकर बहुत चिंतित हैं। इसी कारण वे अनुभवी लोगों के साथ निरंतर संवाद कर कोई रास्ता निकालने का प्रयास कर रही हैं । इसके लिए भारत सरकार की ओर से एडवाइजरी भी जारी की गई है। जिसमें स्कूली छात्रों के लिए उपयोगी टिप्स दिये हुए हैं । स्कूलों को हिदायत दी गई है कि वे कोरेना महामारी काल में उन्हें अपने यहाँ क्या-क्या सतर्कता और बदलाव करना चाहिए । भारत सरकार द्वारा जारी गाइड लाइंस के अनुसार -
1. हर स्कूल यह सुनिश्चित करे कि स्कूली छात्र भीड़ के रूप में परिवर्तित न हों। स्कूल टाइम में बच्चे एक ही जगह एकत्र न होने पाएँ ।
2. हर स्कूल कालेज प्रत्येक विद्यार्थी के बारे में पूरी जानकारी रखे। अगर 28 दिनों में कोई छात्र या स्टाफ ऐसे देश में गया हो जहां पर कोरोना का असर हो, तो ऐसे छात्र या स्टाफ को तुरंत क्वारंटीन करवाया जाए, और पूरी जांच के बाद जब यह निश्चित हो जाए कि यह बच्चा यह स्टाफ पूरी तरह निगेटिव है । तब उसे स्कूल आने के लिए कहा जाए ।
3. अगर किसी बच्चे में खांसी-जुकाम-बुखार के लक्षण दिखाई दें, तो तुरंत उसके अभिभावक या माता-पिता को सूचित किया जाए, साथ ही यह सुनिश्चित किया जाए कि वे तुरंत उसकी जांच कराएं कि कहीं वह कोरेना से संक्रमित तो नहीं है ।
4. स्टाफ, प्रिंसिपल और टीचर्स आदि के द्वारा प्रतिदिन बच्चों को हाथ धोने, छींक के दौरान मुंह ढंकने, टिशू के इस्तेमाल के बारे में जानकारी दिया जाए, साथ ही उसे व्यवहार में लाने के लिए प्रेरित किया जाए ।
5. बच्चों को इस प्रकार जागरूक किया जाए कि वे दरवाजे के हैंडल, स्विचबोर्ड, डेस्कटॉप, हैंड रेलिंग को न छूएन ।
6. प्रत्येक स्कूल में उत्तम क्वालिटी की चिकित्सकों द्वारा प्रमाणित सैनेटाइजर की व्यवस्था की जाए ।
7. हर स्कूल के बाथरूम या रेस्ट रूम में साबुन-पानी की सुनिश्चित व्यवस्था की जाए । साथ ही बच्चों को कहा जाए कि वे बाथरूम से आने के बाद कम से कम 20 सेकंड तक साबुन लगाकर हाथ अवश्य धोएँ ।
8. अगर स्कूल में हॉस्टल की सुविधा दी जाती हो तो उसकी सफाई पर विशेष ध्यान दिया जाए। प्रतिदिन उसे सेनेटाइज्ड किया जाए और समय – समय पर स्थानीय हॉस्पिटल को बुला कर उसकी जांच कराई जाए ।
भारत सरकार ने बच्चों को स्कूल लाने और ले जाने के लिए उपयोग में लाये जाने वाले परिवहन के लिए भी गाइड लाइंस जारी की है -
1. 55 सीटर वाली स्कूल बस में एक साथ केवल 25 बच्चों को ही बैठाया जायेगा।
2. एक सीट पर एक ही विद्यार्थी बैठेगा। यह नियम एक और दो सीट दोनों पर ही लागू होगा।
3. स्कूल वैन में एक सीट पर दो विद्यार्थी बैठ सकते हैं।
4. स्कूल बस हो या वैन में दो विद्यार्थियों के बीच दो फूट का अंतर होना आवश्यक है ।
5. बस में बैठने के दौरान सभी विद्यार्थियों को मास्क लगाना अनिवार्य है।
6. हर दिन स्कूल बसों को निर्धारित मानक के अनुसार सेनेटाइज करना अनिवार्य है ।
7. बस पर चढ़ते और उतरते समय सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करना अनिवार्य है ।
8. बस या वैन ड्राइवरो को विशेष तरीके से सेनेटाइज किया जाएगा।
9. बस या वैन ड्राइवरों के बीच नियमित रूप से जागरूकता अभियान चलना आवश्यक है ।
इतना ही नहीं, स्वास्थ्य मंत्रालय भारत सरकार द्वारा जारी एडवयाजरी के बाद राष्ट्रीय बाल अधिकार आयोग ने भी सभी स्कूलों को पत्र जारी कर बच्चों को ध्यान रखने की निर्देश दिया है ।
कोरेना संक्रमण की वैक्सीन न होने की वजह से हर माता-पिता अपने बच्चों की पढ़ाई को लेकर चिंतित हैं। सभी स्कूल भेजने के बजाय किसी आल्टर्नेट की तलाश में हैं। हालांकि लॉक डाउन के दौरान सरकार की ओर से कई प्रयोग किए गए , लेकिन वे सभी उपाय स्कूली शिक्षा का पर्याय नहीं बन पा रहे हैं । कई स्कूल शिक्षकों ने पाठ की रिकार्डिंग कराई, अभिभावकों के पास भेजा कि जब आप घर पर हों, इस रिकार्डिंग को बच्चों को सुनाएँ, अगर उसके कोई डाउट्स हों, तो उसे हमें बताएं, संबन्धित शिक्षक उस उत्तर की रिकार्डिंग करके फिर अभिभावक के पास भेज देगा। कहीं कहीं वाट्सअप और फेसबुक के जरिये यह प्रयोग किए गए । कई निजी स्कूल ज़ूम और माइक्रोसोफ्ट टीम के ज़रिए कक्षाएं ली।
लेकिन ऑनलाइन क्लासेस के लिए जो जरूरी समान हैं, जैसे कम्प्यूटर, टेबलेट, प्रिंटर, राउटर, इंटरनेट, एंडरायड मोबाइल आदि सभी अभिभावकों के पास नहीं हैं । अगर किसी के पास लैपटॉप या कंप्यूटर है, भी तो वह एक ही है, और घर में बच्चे दो या उससे अधिक हैं। इसके अलावा माता-पिता को भी अपना काम उसी पर निपटाना है। इस वजह से तमाम परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है । भारत जैसे देश में आधे से अधिक ऐसे परिवार हैं, जिनके पास इस प्रकार की सुविधा नहीं है । इस प्रकार अगर सब परेशानियों में से ऑन लाइन शिक्षा का कोई रास्ता निकाला भी जाए । तो करीब 60 प्रतिशत बच्चे शिक्षा से वंचित हो जाएंगे । और करीब 10 प्रतिशत बच्चों को आधी-अंधूरी शिक्षा ही मिलेगी । आज भी भारत में ऐसे बहुत से परिवार हैं, जिन्हें इंटरनेट, मोबाइल और लैपटॉप आदि का प्रयोग करना ही नहीं आता। उनके बच्चों के लिए तो अलग समस्या होगी ।
हालांकि मानव संसाधन मंत्रालय भारत सरकार ने लॉक डाउन के समय कई ऑन लाइन शिक्षा के कई प्रयोग किए, पर वे भारत जैसे विविधता वाले देश के लिए कितने उपयोगी सिद्ध होंगे, यह सोचने की बात है । आइये उनकी भी संक्षिप्त जानकारी कर लेते हैं -
दीक्षा– मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने सहयोग से कक्षा एक से 12वीं कक्षा तक के लिए सीबीएसई, एनसीईआरटी, और स्टेट/यूटी की ओर से बनाई है । जिसमें अलग-अलग भाषाओं में 80 हज़ार से ज़्यादा ई-बुक्स हैं । इस ऐप को डाउनलोड करके विद्यार्थी शिक्षा ग्रहण कर सकते हैं ।
ई-पाठशाला: कोरेना महामारी को देखते हुए मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने ई पाठशाला नाम से एक वेब पोर्टल बनाया है जिसमें कक्षा एक से लेकर 12वीं तक के लिए एनसीईआरटी ने अलग-अलग भाषाओं में 1886 ऑडियो, 2000 वीडियो, 696 ई-बुक्स का संग्रह किया है ।
ऑनलाइन एजुकेशन प्लेटफार्म – भारत सरकार के निर्देश पर मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने ऑनलाइन एजुकेशन प्लेटफार्म बनाया है ।
जिसमें अलग-अलग बशाओं में कुल 14527 फाइल्स हैं ये सभी फाइल्स ऑडियो, वीडियो, डॉक्यूमेंट, तस्वीरें, इंटरेक्टिव मोड में उपलब्ध हैं ।
यह प्लेटफार्म कक्षा 11वीं से अंडर ग्रेजुएट-पोस्ट ग्रेजुएट के छात्रों के लिए हैं। इस पोर्टल पर सभी विषयों में 1900 पाठ्यक्रम दिये गए हैं ।
भारत सरकार द्वारा किए गए ये सभी प्रयास सरहनीय हैं। नगरों और महानगरों में इसका कुछ उपयोग तो हो सकता है। लेकिन भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में इसका उपयोग कैसे होगा, जब वहाँ पर 21.76 प्रतिशत लोगों के पास ही इंटरनेट की सुविधा है । भारत सरकार द्वारा उठाए जा रहे इस कदम की सभी बुद्धिजीवी सराहना कर रहे हैं, लेकिन व्यावहारिक रूप से इसका लाभ केवल 20 से 30 प्रतिशत बच्चे ही पा सकेंगे । भारत सरकार रेडियो प्रोग्रामिंग के जरिये भी इसका समाधान खोजने का प्रयास कर रही है। जिससे विविध भारती के जरिये शिक्षा संबंधी कार्यक्रम चला कर बच्चों को शिक्षित किया जा सके । लेकिन सबसे बड़ी दिक्कत यह भी है कि सभी के पास रेडियों भी उपलब्ध नहीं है ।
कोरेना संक्रमण से बच्चों को बचाने के लिए भारत सरकार द्वारा हर दृष्टिकोण से विचार-विमर्श किया जा रहा है। सरकार द्वारा उठाए जा रहे इन सभी कदमों की जानकारी अभिभावकों को नहीं है। मैंने जब इस प्रकार की जानकारी कुछ अभिभावकों के साथ साझा की, तो भी उन्हें अपने ही बच्चों पर विश्वास नहीं है। वे कह रहे हैं कि अगर किसी तरह बच्चा स्कूल में संक्रमित हो गया। तो उसके संपर्क में आने की वजह से पूरा घर संक्रमित हो जाएगा । फिर बच्चे तो बच्चे होते हैं। वे कब तक इन नियमों का पालन कर सकेंगे। यह नहीं कहा जा सकता है। इस करना बहुत से अभिभावक अपने बच्चों को स्कूल भेजने के बिलकुल पक्ष में नहीं हैं । उनकी यह अनिश्चितता छोटे बच्चों को लेकर है। इसलिए कक्षा एक से लेकर आठवीं तक की प्रारम्भिक शिक्षा के लिए सरकार और स्कूलों दोनों को कोई न कोई और रास्ता खोजना होगा।
प्रोफेसर डॉ. योगेन्द्र यादव
पर्यावरणविद, शिक्षाविद, भाषाविद,विश्लेषक, गांधीवादी /समाजवादी चिंतक, पत्रकार, नेचरोपैथ व ऐक्टविस्ट