सरकारी भर्ती प्रक्रिया में व्यवधान, सरकार और माननीय न्यायालय का दायित्व – प्रोफेसर (डॉ.) योगेन्द्र यादव

(69 हजार प्रायमरी शिक्षकों की भर्ती के संबंध में । )
भारत एक ऐसा देश है, जहां इसके हर नागरिक को संवैधानिक अधिकार मिले हैं, यदि उसके साथ सरकार, संस्थान या व्यक्ति द्वारा अन्याय किया जाता है, या किसी गलत प्रक्रिया द्वारा उन्हें वंचित किया जाता है, तो वह न्याय पाने के लिए माननीय न्यायालय का दरवाजा खटखटा सकता है। विधि सम्मत तरीके से माननीय न्यायालय के सामने अपनी बात रख सकता है, और न्याय पा सकता है।
लेकिन यहाँ सवाल दूसरा है। मैं अपना विश्लेषण उत्तर प्रदेश के संदर्भ में प्रस्तुत कर रहा हूँ। जहां हर साल कई सरकारी रिक्तियाँ निकलती हैं, लेकिन बिना न्यायालय से गुजरे कोई भी भर्ती सम्पन्न नहीं होती है ।
जहां तक उत्तर प्रदेश का सवा है, इसके बहुत से हिस्से ऐसे हैं, जहां का व्यक्ति अगर नौकरी नहीं करेगा, तो वह भूखे मर जाएगा। कहने को वह किसान पुत्र है। कहने को वह व्यापारी पुत्र है, लेकिन उसके पास इतनी खेती भी नहीं है, न ही योग्यता के अनुरूप व्यापार करने के लिए उचित संसाधन हैं । जिस पर वह निर्भर रह सके। इसलिए उत्तर प्रदेश के युवा नौकरी के पीछे भागते हैं। प्रयागराज, कानपुर, वाराणसी, मेरठ जैसे कई शहर हैं, जहां पर हजारों छात्र-छात्राएं उच्च शिक्षा प्राप्त करने के बाद प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करते हैं। उत्तर प्रदेश सरकार ही नहीं, सम्पूर्ण भारत में निकलने वाली रिक्तियों को भरते हैं और परीक्षाएँ देते हैं । अगर हम रिक्तियों का विश्लेषण करें तो उनके लिए दो ऐसे क्षेत्र हैं, जिसमें सामान्य छात्र भी सरकारी नौकरी के सपने सँजोता है। पहली है, प्रायमरी क्षिक्षक की नौकरी और दूसरी है पुलिस की नौकरी । जिसमे सबसे अधिक भीड़ पाई जाती है । इसमें प्रायमरी शिक्षक की नौकरी एक सम्मानित नौकरी मानी जाती है । इसके लिए स्नातक के बाद बीटीसी यह बीएड करना होता है। फिर टीईटी पास करना होता है। फिर विधि सम्मत संस्थाओं द्वारा परीक्षा आयोजित की जाती है। और जो सफल होता है, उसके शैक्षणिक योग्यता के परिपत्रों की जांच के बाद उसे स्कूल आवंटित कर दिया जाता है। इसके लिए बाकायदा उसकी काउन्सलिन्ग होती है। इसके बाद वह एक सरकारी शिक्षक के रूप में पदस्थ हो जाता है ।
लेकिन कुछ वर्षों से जब हम उत्तर प्रदेश की सरकारी नौकरियों की भर्ती प्रक्रिया पर नजर डालते हैं। तो कोई भी ऐसी भर्ती उत्तर प्रदेश में नहीं हुई, जो कोर्ट में न गई हो । एक लंबे समय तक वह कोर्ट में अटकी रहती है। एक कोर्ट के निर्णय के बाद असफल लोग अन्य माननीय उच्चतर न्यायालय का दरवाजा खटखटाते हैं और फिर वहाँ विधि सम्मत न्याय के लिए उसकी सुनवाई होती है, और इसमें एक लंबा समय जाता है। जो लोग सफल हो जाते हैं, उनकी भी खुशी काफ़ूर हो जाती है।
बात पिछले दिनों की है। उत्तर प्रदेश में 69 हजार शिक्षकों की भर्ती का परिणाम घोषित हुआ। सफल प्रतियोगी छात्र-छात्राएं खुशियाँ मनाने, एक दूसरे को मिठाई खिलाने के साथ ही काउंसिलिंग की तैयारी करने लगे। उनके माता-पिता और परिवारिजनों की खुशी का भी ठिकाना नहीं था । कम से कम उत्तर प्रदेश के एक लाख से ज्यादा परिवारों में खुशी का माहौल था। एक लाख से तात्पर्य यह है कि इसमें से अधिकांश प्रतियोगी छात्र – छात्राएं विवाहित होते हैं। इसलिए मायके और ससुराल पक्ष दोनों जगह खुशियाँ मनाई जाती है। इस भर्ती प्रक्रिया की आज से काउंसलिंग होना थी। लेकिन तभी कुछ लोगों ने कुछ विवादास्पद सवालों के आधार पर हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच में अपील दायर की। जिसे स्वीकार करते हुए हाई कोर्ट ने एक सप्ताह के अंदर विधायी संस्थाओं से जवाब मांगा है ।
इस प्रकार उत्तर प्रदेश में 69 हजार शिक्षकों की भर्ती का मामला एक बार फिर बाधित हो गया है। लखनऊ हाईकोर्ट ने इस मामले में सुनवाई करते हुए 69 हजार शिक्षक भर्ती पर रोक लगा दी। अब इस मामले में अगली सुनवाई 12 जुलाई को होगी । न्यायाधीश आलोक माथुर ने विवादित सवालों पर विशेषज्ञ समिति को अगली तारीख तक तटस्थ एवं प्रामाणिक उत्तर देने को कहा है। याचिका कर्ताओं के अधिवक्ता एच जी एस परिहार व मीनाक्षी परिहार के अनुसार न्यायालय ने विवादित सवालों को यूजीसी की विशेषज्ञों समिति को भेजकर रिपोर्ट मांगी है। याचिका में छह विवादित प्रश्नों को दर्शाया गया है । इस कारण आज कई जिलों में इस भर्ती परीक्षा की काउंसिलिंग थी, जिसे रोक दिया गया है। काउंसिलिंग कराने आए अभ्यर्थियों से उनके हस्ताक्षर लेकर उन्हें वापस जाने को कहा जा रहा है।
ऐसी भी सूचना प्राप्त हुई है कि शिक्षक भर्ती परिणाम जारी होने के बाद से ही विभाग छात्रों द्वारा दायर की गई दर्जनों याचिकाओं का जवाब लगाने में व्यस्त है। जिस प्रश्न पर सबसे ज्यादा विवाद है वह नाथ सम्प्रदाय के प्रवर्तक से जुड़ा है। विषय विशेषज्ञों ने नाथ सम्प्रदाय का प्रवर्तक मत्स्येन्द्रनाथ को माना है जबकि अभ्यर्थी साक्ष्यों के साथ गोरखनाथ सही जवाब बता रहे हैं। भारत में गरीबी का आकलन कैसे या किस आधार पर किया जाता है । इसी प्रकार के छ: सवालों को लेकर प्रतियोगी छात्रों ने याचिका डाली है।
इसके पूर्व भर्ती में सफल अभ्यर्थियों को यह सूचना दी गई थी कि जो भी अभ्यर्थी अर्ह होंगे, उन्हें काउंसलिंग के बाद नियुक्ति पत्र दिया जाएगा । चयनित शिक्षकों को स्कूलों का आवंटन ऑनलाइन किया जाएगा। जिन स्कूलों में शिक्षकों की जरूरत है, वे स्कूल उन्हें आवंटित किए जाएंगे । इस संबंध में एक दिन पूर्व बेसिक शिक्षा के महानिदेशक विजय किरन आनंद वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए सभी बेसिक शिक्षा अधिकारियों को निर्देशित किया था कि आज से शुरू होने वाली काउंसिलिंग पूरी शुचिता का ध्यान रखा जाए । प्रत्येक अभ्यर्थी के शैक्षिक व अन्य प्रमाणपत्रों की बारीकी से जांच की जाए । साथ ही सोशल डिस्टेन्सिंग का पालन कराया जाए ।
ऐसे में जब यह मामला माननीय न्यायालय में विचारधीन है। इस देश और प्रदेश के हर नागरिक के मन में एक सवाल है कि सरकार द्वारा जितनी भी भर्तियाँ की जाती हैं, सभी की सभी में कुछ न कुछ ऐसी त्रुटि होती है, जिसकी वजह से सभी भर्तियों को माननीय न्यायालय में चुनौती दी जाती है । माननीय न्यायालय भी उस प्रकरण पर न्याय देकर इतिश्री कर लेता है। हर बार वह सरकार और संबन्धित विभागों से सवाल करता है, उसका जवाब लेता है, और उसका फैसला सुना देता है। याचीगण अगर संतुष्ट नहीं होते हैं, तो वे उच्चतर अदालतों के दरवाजे खटखटाते हैं। वहाँ पर फिर सुनवाई होती है, और फिर वही जवाब-तलब और जिरह होती है। फिर न्यायालय एक निर्णय सुना देता है । इस प्रक्रिया में सालों लग जाते हैं। सिर्फ अभ्यर्थी ही नहीं, बल्कि पूरा सिस्टम इससे प्रभावित होता है। पूरा समाज और देश का उस पर किसी न किसी रूप में प्रभाव पड़ता है। इस दौरान सफल अभ्यर्थी, जिनका को दोष नहीं होता, सजा के रूप मे एक मानसिक पीड़ा से गुजरते हैं। उनका परिवार भी प्रभावित होता है। निराशा का एक वातावरण बना रहता है ।
ऐसे में माननीय न्यायालय उसे दंड क्यों नहीं देते, जो इस प्रक्रिया के दोषी होते हैं। जब सवालों की भरमार है, तो फिर विवादास्पद सवाल पूछे ही क्यों जाते हैं ? अगर पूछे भी जाते हैं, तो उसके पूर्व यह क्यों नहीं घोषित कर दिया जाता है कि ऐसे सवालों का जवाब जो एनसीआरटी की पुस्तकों में दिया गया होगा, वही सही माना जाएगा । ऐसे मामलों में माननीय न्यायालय को कड़ा रुख अपनाना चाहिए। इस प्रकरण में दोषी सरकारों और विभागीय अधिकारियों को दंडित करने के लिए कदम उठाना पड़ेगा, जिससे समय, संसाधन और फिजूलखर्ची के साथ-साथ सफल अभ्यर्थियों और उनके परिवारों को मिलने वाली मानसिक यातना से मुक्ति दिलाया जा सके । नैसर्गिक न्याय की कल्पना जो हमारे संविधान में की गई है, वह साकार हो सके। इससे एक ओर जहां माननीय न्यायालय की सामाजिक प्रतिष्ठा स्थापित होगी, वहीं दूसरी ओर इस प्रकार की गलतियाँ फिर किसी अन्य भर्ती में दुहराई नहीं जा सकेगी।
सिर्फ न्यायालय को ही नहीं, सरकार को भी इस सबंध में कड़ा रुख अपनाना चाहिए । अगर किसी सरकारी भर्ती पर रोक लगती है या लगाई जाती है, तो सबसे पहले लोग सरकार और उसकी निष्ठा को ही सशंकित दृष्टि से देखते हैं । इसलिए सरकार को सभी भर्ती बोर्ड को सख्त निर्देश जारी करना चाहिए कि सभी नियमों का सख्ती से पालन किए जाएँ। इसके बावजूद अगर कहीं कोई त्रुटि मिलती है, तो संबन्धित विभागीय अधिकारियों के खिलाफ विधिसम्मत कार्रवाई करना चाहिए । तभी सरकार की शुचिता की रक्षा हो सकेगी।
प्रोफेसर डॉ. योगेन्द्र यादव
पर्यावरणविद, शिक्षाविद, भाषाविद,विश्लेषक, गांधीवादी /समाजवादी चिंतक, पत्रकार, नेचरोपैथ व ऐक्टविस्ट