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मनोज तिवारी मृदुल!

मनोज तिवारी मृदुल!
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मनोज तिवारी मृदुल का दिल्ली भाजपा में प्रदेश अध्यक्ष बनना एक महत्वपूर्ण घटना थी।

दिल्ली प्रदेश की राजनीति में मनोज तिवारी पहले पूर्वांचली हैं, जिन्हें किसी राष्ट्रीय पार्टी ने प्रदेश अध्यक्ष बनाया था। साथ ही साथ वे पहले व्यक्ति हैं जो किसी गैर राजनीतिक क्षेत्र से आकर किसी राष्ट्रीय पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष तक पहुँचे हैं।

मनोज ने अध्यक्ष रहते हुए भाजपा को नगर निकाय चुनावों में जबरदस्त जीत दिलाई थी। उनके अध्यक्ष रहते भाजपा ने दिल्ली की सातों लोकसभा जीती। एक मजेदार तथ्य यह भी है कि वे भाजपा के शायद अकेले प्रदेश अध्यक्ष थे जिनके बारे में दूसरे राज्य के लोग भी जानते थे, नहीं तो किसी अन्य राज्य के प्रदेश अध्यक्ष का नाम कौन जानता है?

मनोज की आलोचना होती है अरविंद केजरीवाल से हारने के कारण। होनी भी चाहिए... ,पर यह भी सच है कि अरविंद केजरीवाल वर्तमान समय के क्षेत्रीय नेताओं में सबसे घाघ राजनीतिज्ञ हैं। मनोज इतने शातिर नहीं थे कि वे अरविंद को हरा पाते... मनोज सहज थे, राजनैतिक प्रपंच नहीं जानते थे। एक दो बार करने का प्रयास भी किये, पर ठीक से कर नहीं पाए सो सफल नहीं हुए। अरविंद सब जानते हैं। मुर्गी को शुतुरमुर्ग सिद्ध करने की कला अरविंद जानते हैं, मनोज नहीं जानते। सो हार गए... इसमें कुछ भी आश्चर्यजनक नहीं है।

मनोज भले पराजित हुए, पर उनका प्रभाव कम नहीं था। यह मनोज का ही प्रभाव था कि जो अरविंद बार-बार पूर्वांचलियों को अपमानित करते रहते हैं, उन्होंने भी अपने चुनावी घोषणापत्र में भोजपुरी को आठवी अनुसूची में जोड़ने के लिए प्रयास करने का वादा किया।

असल मे भाजपा को पता था कि अरविंद को कोई पूर्वांचली ही धूल चटा सकता है। कोई बिहारी, जो उड़ती चिड़िया को हल्दी लगाना जानता हो... उन्होंने मनोज को आगे किया। पर मनोज उतने तेज नहीं निकले। बात बस इतनी थी।

वस्तुतः मनोज एक बहुत अच्छे लोक-गायक हैं। मरे हुए भोजपुरी सिनेमा को पुनर्जीवित किया उन्होंने। हालांकि उनके ऊपर अश्लीलता को बढ़ावा देने का आरोप बनता है, पर यह भी स्वीकार करना होगा कि उस समय एक ही साथ पूरा भारतीय सिनेमा ही अश्लीलता के गर्त में गिरा... आज का हिन्दी सिनेमा भी भोजपुरी से कम गन्दा नहीं। मनोज चाह कर भी इसको रोक नहीं सकते थे।

कल से मनोज का खूब मजाक उड़ाया जा रहा है। वैसे तथ्य भी है कि मनोज का कार्यकाल दिल्ली चुनाव के पहले ही समाप्त हो गया था, पर उनका कार्यकाल चुनाव तक के लिए बढ़ाया गया था। चुनाव में हार के तुरंत बाद मनोज ने अपने पद से स्तीफा दे दिया था, फिर भी छह महीने तक उन्हें रोक कर रखा गया।

बिहार चुनाव सर पर है। यदि अगले कुछ दिनों में मनोज तिवारी मोदी मंत्रिमंडल में भी दिखें तो आश्चर्य न कीजियेगा... राजनीति के शतरंज में हर गोटी बजीर होती है। यहाँ कोई चाल सीधी नहीं चली जाती...

सर्वेश तिवारी श्रीमुख

गोपालगंज, बिहार।

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