Janta Ki Awaz
लेख

(विश्व दूध दिवस पर विशेष) करोना संक्रमण और लॉक डाउन का दूध उत्पादन पर प्रभाव - प्रोफेसर (डॉ.) योगेन्द्र यादव

(विश्व दूध दिवस पर विशेष) करोना संक्रमण और लॉक डाउन का दूध उत्पादन पर प्रभाव - प्रोफेसर (डॉ.) योगेन्द्र यादव
X


(विश्व दूध दिवस पर विशेष)

पिछले तीन महीने से पूरा विश्व करोना संक्रमण को रोकने के लिए लॉक डाउन से गुजर रहा है। चार चरण पूरे करने के बाद भारत में अनलॉक की प्रक्रिया शुरू हो गई है। लॉक डाउन के दौरान सारे काम-धंधे, कल-कारखाने आदि सहित सभी गतिविधियां ठप्प पड़ी हुई थी। देश के गरीब लोगों के लिए खाने पीने की व्यवस्था सरकार से लेकर समाजसेवियों ने की। महानगरों के अन्ना पशुओं के लिए कुछ समाजसेवियों और सरकार की ओर से चारे की व्यवस्था की गई। जिससे नगरों में अन्ना पशुओं के मरने के समाचार नहीं मिले । लेकिन नगरों में जिन लोगों ने दुग्ध व्यवसाय के लिए चट्टे खोले थे, उनके सामने अपने गाय और भैसों को खिलाने के चारे का प्रबंधन करने में काफी मशक्कत करनी पड़ी। नगरों में टालों पर भूसा स्टोर रहता है, इस कारण एक – दो महीने चारे की कमी नहीं आई। लेकिन जैसे – जैसे समय बीतता गया। नगरों में दुग्ध व्यवसाय करने वाले चारे और भूसे की खोज में इधर-उधर भटकते देखे गए । लेकिन दुग्ध उत्पादन पर काफी प्रभाव पड़ा। चूनी-चोकर की दूकाने और परिवहन बंद होने के कारण दुग्ध व्यवसाय करने वालो ने भैसों और गायों को भरपेट चारा नहीं दिया। वे हर समय इसी चिंता में रहते थे कि अगर चारा खत्म हो गया, तो इन्हें कहीं भूखे न मरना पड़े। इसकी वजह से दूध न देने वाली गाय और भैसे जहां सूख कर काँटा हो गई, वहीं दूसरी ओर दूध देने वाली गाय भैसों को पूरी और पौष्टिक खुराक न मिल पाने की वजह से दूध उत्पादन कम हो गया । दूध उत्पादन से बनने वाली मिठाइयों, खोया आदि की मांग शून्य होने की वजह से भी जो दूध पैदा हुआ, उसकी भी बिक्री सीमित हो गई। जिससे जहां एक ओर गाय भैसों के स्वास्थ्य कमजोर होने के कारण दूध का उत्पादन कम हुआ, वहीं दूसरी ओर दूध और उसके उत्पाद की बिक्री न होने की वजह से नगरो में व्यवसाय करने वाले दुग्ध व्यवसायियों की कमर टूट गई। कल-कारखानों जैसा तो था नहीं कि बंद होने के बाद खर्चे कम हो गए । लॉक डाउन हो या कर्फ़्यू, मनुष्य और पशुओ को खाने के लिए भोजन और चारा तो चाहिए ही । इस कारण खर्चे और अधिक बढ़ गए, कमाई शून्य हो गई ।

हमारे देश में खेती और पशुपालन एक दूसरे के पूरक के रूप में काम करते हैं, साथ ही सामाजिक संघटना में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। एक ओर जहां पुरुष खेती का काम करता है, वहीं दूसरी ओर घर की महिलाएं पशुपालन में अपना महत्त्वपूर्ण योगदान देती हैं। पशुपालन से मिलने वाला गोबर और मूत्र खाद के रूप में प्रयोग किया जाता है। हमारे देश में पशुपालन दो उद्देश्यों से किया जाता है - पहला खेत जोतने के लिए और दूसरा दूध और मांस प्राप्त करने के लिए । हमारे देश की जनता अधिकांश जनता शाकाहार करती है। इस कारण मांस के पूरक के रूप में दूध और उससे बने उत्पाद से होता है । नगरों की तरह गावों में दूध का प्रयोग सिर्फ पीने के लिए ही नहीं किया जाता है। उसका उपयोग खाने खाने के रूप में होता है। लोग दूध – रोटी, दही- चावल आदि खाते हुए देखे जा सकते हैं। ऐसे में जब घर में दाल और सब्जी नहीं बनती है, तब लोग रोटी और चावल के साथ खाने के रूप में दूध, दही और छाछ का ही उपयोग करते हैं। पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कुछ जिलों में छाछ का उपयोग सब्जी बनाने के लिए भी किया जाता है ।

लॉक डाउन के दौरान जब मैंने गाँव के पशुपालकों से चर्चा की, तो उन्होने भी अपनी कठिनाइयों से मुझे अवगत कराया । उन्होने कहा कि लॉक डाउन सिर्फ शहरों के लिए तो हुआ नहीं है, गावों के लिए भी है। पुलिस की सख्ती के कारण लोग अपने घरों में रहने के लिए मजबूर हैं। इस कारण पशुओं के लिए हरा चारा लाने या पशुओं को चराने की ज़ो परंपरा है। उस पर बंदिश लगी। हरे चारे के अभाव और आदत के कारण गाय या भैंस सिर्फ भूख मिटाने के लिए खाते। बार – बार घर की ओर देखते । थोड़ा बहुत जूठन वगैरह चलाने पर दो – चार कवर खाने के बाद फिर खाना बंद कर देते थे। इस कारण जो दूध देने वाली गाय और भैंसे थी, वे कम दूध देने लगी। कस्बों की दूकाने भी लॉक डाउन के दौरान बंद होने के कारण एक एक टाइम का दूध हम लोग बाजार ले जाते थे, उस पर भी बंदिश लग गई। एक टाइम के दूध से जो पैसे मिलते हैं, उसी से हम लोग चोकर चूनी और घर की अन्य आवश्यकताओं की पूर्ति होती है। चूनी चोकर के अभाव में जहां एक ओर दूध उत्पादन कम हुआ, वहीं दूसरी ओर घर में सब्जी और दाल बनना बंद हो गई । सभी लोग दूध, दही, छाछ पर निर्भर हो गए। घरो में सिर्फ रोटी और चावल बनने लगा, और उसे लोग अपनी-अपनी पसंद के अनुसार दूध या दही से खाने लगे । लेकिन दूसरी फसल पक कर खेतों में तैयार खड़ी थी, इस कारण उसके पूर्व फसल यानि धान से मिला पुआल और भूसा दोनों ही समाप्ति की ओर था। लॉक डाउन होने की वजह से मजदूर और मशीन दोनों नहीं मिल पा रही थी। जिससे जहां एक ओर गेहूं की कटाई की वजह से अन्न घर में नहीं आ पा रहा था, वहीं पशुओं के लिए चारा भी कम हो गया था । जो घर में थोड़ा बहुत बचा था, उसी से काम चल रहा था। इस कारण भी दूध देने वाले जानवरों और उत्पादन पर प्रभाव पड़ा ।

अब दुग्ध उत्पादन का तीसरा पक्ष भी देख लेते हैं। समय परिवर्तित हुआ। देश में काफी लागत लगा कर दूध डेयरी की स्थापना हुई। जो किसानों से सीधे दूध खरीद कर दूध से बनने वाले विभिन्न उत्पाद का निर्माण कर उसकी मार्केटिंग करने लगी। लॉक डाउन के दौरान इन दूध डेयरी को भी बंद रहना पड़ा। जो किसान दूध डेयरी पर अपना दूध देने के लिए दो या दो से अधिक गाय या भैस पाल रखे थे। उनके सामने दूध की खपत एक समस्या बन गई। घर में सीमित परिवार होने और दूध उत्पादन अधिक होने की वजह से वे खाने में उसका जितना अधिकतम उपयोग हो सकता था, उन्होने किया। इसके बाद बहुत सा दूध बच जाता था और उसे दही और घी बनाने में उपयोग किया जाने लगा। समस्या तो तब खड़ी हो गई, जब ऐसे कई घरों में जहां सिर्फ दूध बेचने का व्यवसाय होता था, घी बनाने की प्रक्रिया भी उस घर की औरतों को मालूम नहीं थी। ऐसे घरों मं बहुत नुकसान हुआ । इस प्रकार डेयरी पर आश्रित किसान भी लॉक डाउन के दौरान एक तरह से बर्बाद हो गए। डेयरी उद्योग भी बंद होने की वजह से घाटे में आ गए ।

इसके साथ-साथ करोना संक्रमण की रोक-थाम के लिए लगाए गए लॉक डाउन की वजह से दुधारू पशुओं के खरीद और बिक्री पर भी प्रतिबंध लगा हुआ था। जिसकी वजह से किसानों या दूध व्यवसायियों द्वारा उनके बेचने और खरीदने का सिलसिला बंद हो गया। दूध व्यवसायी मांग और जरूरत के मुताबिक गायों और भैंसो को खरीदते और बेचते रहते हैं। जिसमें एक बड़ी संख्या में लोगों को रोजगार मिला हुआ है। लॉक डाउन की वजह से ऐसे लोग भी प्रभावित हुए । परोक्ष रूप से दूध के उत्पादन पर असर पड़ा ।

इस अध्ययन के बाद हम इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि करोना संक्रमण महामारी की वजह से सिर्फ मनुष्य और उसकी गतिविधियां ही प्रभावित नहीं हुई। उसे ही अपने घर ही खुद को बंद नहीं करना पड़ा। बल्कि पालतू पशुओं को भी लॉक डाउन के दौरान विशेष यातना से गुजरना पड़ा । ऐसी स्थिति में मनुष्य ने किसी न किसी तरह अपने पेट की क्षुधा शांत करता रहा। लेकिन वहीं दूसरी ओर उसके पशु भूख और प्यास से तड़फते रहे। इसका प्रभाव सिर्फ पशुओं पर ही नहीं पड़ा। पशुपालकों पर भी पड़ा। पशुपालकों का आय का स्रोत ठप्प हो गया । जिसकी वजह से पशुओं को मिलने वाले पौष्टिक आहार भी मिलना बंद हो गए। जिसकी वजह से पशुओं के स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव पड़ा । उसके शरीर से बूंद – बूंद दूध निकालने की प्रवृत्ति ने उसे और कमजोर कर दिया । इस प्रकार लॉक डाउन से सिर्फ दूध व्यवसाय ही चौपट नहीं हुआ । बल्कि दुग्ध व्यवसायी या पशुपालक की भी रीढ़ टूट गई। अधिकांश दुग्ध व्यवसायी लोन लेकर ही गाय और भैंस खरीदते हैं। दूध की बिक्री खत्म होने की वजह से उनके ऊपर लोन की कई किश्तें बकाया हो गई। भविष्य में जिसका अधिक ब्याज भी उसे चुकता करना होगा । अनलॉक होने के बावजूद दुग्ध व्यवसाय को खड़ा होने में काफी समय लगेगा । सरकार को दूध उत्पादन में लगे किसानों – पशुपालकों को भी आर्थिक मदद करना चाहिए, जिससे अनलॉक होने पर उनकी भी गाड़ी पटरी पर आ सके ।

प्रोफेसर डॉ. योगेन्द्र यादव

पर्यावरणविद, शिक्षाविद, भाषाविद,विश्लेषक, गांधीवादी /समाजवादी चिंतक, पत्रकार, नेचरोपैथ व ऐक्टविस्ट

Next Story
Share it