Janta Ki Awaz
लेख

बवासीर या पाइल्स के लक्षण और उसका नेचुरोपैथी इलाज – प्रोफेसर (डॉ.) योगेन्द्र यादव

बवासीर या पाइल्स के लक्षण और उसका नेचुरोपैथी इलाज  – प्रोफेसर (डॉ.) योगेन्द्र यादव
X


दीर्घ शंका करते समय जब असहनीय दर्द हो या दर्द के साथ खून आए, तो ग्रामीण लोग इसे बवासीर और शहरी लोग पाइल्स कहते हैं । इस रोग में दीर्घ शंका के पश्चात मलाशय के सबसे निचले हिस्से में सूजन और जलन का भी अनुभव होता है। अनुभवों के आधार पर यह कहा जा सकता है कि ग्रामीणों मे यह बीमारी 50 वर्ष की उम्र के बाद और शहरों में यह बीमारी 40 की उम्र के बाद अधिक संख्या में देखने को मिलते हैं।

प्रकार -प्रकृति के अनुसार बवासीर या पाइल्स दो प्रकार के होते हैं –

1. बादी या बाहरी बवासीर – जब दीर्घ शंका के दौरान असहनीय दर्द हो, लेकिन खून न निकले तो इस प्रकुरती को बादी या बाहरी बवासीर या पाइल्स कहते हैं । इस प्रकार की पाइल्स या बवासीर में मस्से गुदा के अंदर होते हैं, जिससे खुजली तो होती है, पर उन्हें खुजाया नहीं जा सकता है ।

2. खूनी या आंतरिक बवासीर – जब दीर्घ शंका के दौरान असहनीय दर्द के साथ खून निकले तो बवासीर या पाइल्स की इस प्रकृति को खूनी या आंतरिक बवासीर या पाइल्स कहते हैं। इस प्रकार की बवासीर या पाइल्स में प्राय: गुदा भाग में मस्से हो जाते हैं, जिसमें खुजली होती है। खुजाने के बाद आराम मिलता है। लेकिन अक्सर ये मस्से फूट जाते हैं, और खून बहने लगता है। दीर्घ शंका के समय जो खून आता है, वह इन्हीं मस्सों के फूटने के कारण आता है । कई बार दीर्घ शंका के दौरान मस्से बाहर आ जाते हैं और फिर अपनी यथा स्थिति पर नहीं पहुँच पाते। इसकी वजह से भी खून आने लगता है ।

कारण

1. गुदा की रक्त वाहिनियों में सूजन – गुदा की रक्त वाहिनियों में सूजन आ जाने के कारण यह रोग हो जाता है। इसकी वजह से मस्सों में सूजन आ जाती है। और दीर्घशंका के दौरान दर्द का अनुभव होता है।

2. गर्भावस्था – गर्भवती स्त्रियॉं में गर्भाशय का फैलाव होने के कारण रक्त वाहिनियों और आमाशय और गुदा द्वार में खिचाव आ जाने के कारण भी यह बीमारी होने की आशंका बढ़ जाती है ।

3. अधिक उम्र – यह बीमारी शहरों मे 40 वर्ष और गावों में 50 वर्ष की उम्र के बाद पाई जाती है। इस आधार पर हम कह सकते हैं कि अधिक उम्र होने के कारण भी यह बीमारी होती है।

4. डायरिया – कभी – कभी डायरिया होने की वजह से भी यह बीमारी हो जाती है ।

5. पुराना कब्ज – जिस व्यक्ति को पुराना कब्ज होता है, उसे पाइल्स या बवासीर की दोनों प्रकारों में कोई न कोई बीमारी जरूर होती है। क्योंकि बवासीर या पाइल्स का यह एक प्रमुख कारण है ।

6. देर तक एक ही स्थान पर बैठना – ऐसे लोग जो एक ही स्थान पर देर तक बैठ कर काम करते हैं, वे भी इस बीमारी के शिकार हो जाते हैं ।

7. भारी वजन उठाना – प्राय: यह पाया गया है कि कभी-कभी यह बीमारी अधिक वजन उठाने की वजह से भी हो जाती है ।

8. अधिक वजन – जो स्थूल काया के होते हैं, उन्हें यह बीमारी होने की आशंका अधिक होती है ।

9. अनुवांशिकी – मरीज की केस हिस्ट्री लेते समय यह भी तथ्य प्रकाश में आया कि बवासीर या पाइल्स अगर किसी के माता-पिता को है, तो उसे भी हो सकता है ।

बवासीर या पाइल्स का प्राकृतिक चिकित्सा से इलाज –

अन्य चिकित्सा पद्धतियों की अपेक्षा पाइल्स या बवासीर की बीमारी की सर्वोत्तम चिकित्सा नेचरोपैथ में उपलब्ध है । न इसमें किसी प्रकार का आपरेशन किया जाता है और न ही इसके इलाज के दौरान मरीज को कठिनाई होती है। बल्कि वह बड़ी सहजता से इस बीमारी से छुटकारा पा लेता है।

बवासीर या पाइल्स होने के पहले कुछ ऐसे लक्षण दिखाई पड़ते हैं, जिसके आधार पर यह अनुमान लगाया जा सकता है कि इस व्यक्ति को पाइल्स या बवासीर होने वाली है। अगर वह उन लक्षणों के आधार पर कुछ प्राकृतिक उपचार कर लेता है, तो फिर उसे बवासीर या पाइल्स नहीं होती है। इसका सबसे और सस्ता इलाज गावों में जब किसी बच्चे को चूना काटता है, यानि खुजली होती है, मल से तेल बदबू आती है और वह बार – बार दीर्घ शंका करता है, तो माँ उसके गुदा के भीतर उंगुली डाल कर अच्छी तरह से सरसों का तेल लगा देती है। दो तीन बार यह क्रिया करने पर पाइल्स और बवासीर होने के पूर्व ही ठीक हो जाता है । बड़े लोग भी इस क्रिया को दोहरा सकते हैं । वे सरसों के तेल की जगह नीम का तेल गुदा में अच्छी तरह लगा सकते हैं । लेकिन इसके साथ –साथ उन्हे किसी कुशल नेचरोपैथ की देख-रेख में अपनी कब्जियत का भी इलाज कराना चाहिए । अगर प्रारम्भिक अवस्था में ही अपना इलाज कर लेता है। तो उसे यह बीमारी नहीं होती है ।

पाइल्स या बवासीर पीड़ित कोई रोगी जब किसी प्राकृतिक चिकित्सक के पास आता है, तो सबसे पहले वह बातचीत या जांच के द्वारा इस बात का पता लगाता है कि इसका मूल कारण क्या है ? मूल कारण जानने के बाद वह दो दिशाओं में इलाज करता है। एक ओर वह मरीज को तुरंत आराम कैसे हो, इसका इलाज करता है, और दूसरी ओर उसके मूल कारण को समाप्त करने की दिशा में ध्यान देता है, और उसे भी निर्मूल करता है । जैसा कि मैंने अपने सभी लेखों में इस बात का उल्लेख किया कि एक कुशल नेचरोपैथ इलाज के साथ – साथ मरीज की दिनचर्या भी व्यस्थित करता है। खाद्य – अखाद्य पर भी ध्यान देता है। साथ में इलाज भी करता है। इसलिए आइये उसका बिन्दुवार वर्णन करते हैं –

1. एक गिलास गरम पानी – एक कुशल नेचरोपैथ मरीज को तड़के उठते ही एक गिलास गरम पानी पीने को देता है । इससे मुंह से लेकर आंतों तक सभी पाचन तंत्र ठीक से साफ हो जाते हैं ।

2. टहलना, योग व व्यायाम कराना – एक कुशल नेचरोपैथ इस प्रकार के रोगी को नियमित टहलने के लिए प्रेरित करता है। इसके बाद कुछ विशेष व्यायाम और योग भी अपनी देख-रेख में करवाता है।

3. खड्कर्म द्वारा पाचन व श्वसन नली की सफाई करना – एक कुशल नेचरोपैथ मरीज के पाचन तंत्र और श्वसन नली की सफाई करने के लिए षडकर्म विधि का उपयोग करता है ।

4. एनीमा – दीर्घशंका के दौरान अधिक तकलीफ होने पर एक कुशल नेचरोपैथ एनीमा का प्रयोग करता है। इसकी वजह से दर्द नहीं होता और पेट भी अच्छी तरह से साफ हो जाता है ।

5. कटि स्नान – बवासीर या पाइल्स के रोगी को एक कुशल नेचरोपैथ सुबह कटि स्नान कराता है । इसमें वह गरम और ठंडे पानी का उपयोग करता है । इसकी वजह से मांसपेशियाँ ढीली हो जाती हैं और यह रोग जल्द ठीक हो जाता है।

6. गुदा द्वार और पेट पर ठंडी मिट्टी की पुटलिस रखना – अपने इलाज के दौरान चिकित्सक पंच कर्म के अंतर्गत मिट्टी की पुटलिस का भी उपयोग करता है। वह गुदा द्वार और पेट पर मिट्टी की पुतलिस रखता है। जिससे जहां एक ओर कब्ज ठीक होती है, वहीं दूसरी ओर गुदा द्वार की सूजन भी समाप्त हो जाती है और मांसपेशियों का खिचाव भी खत्म हो जाता है ।

इसके साथ साथ पाचन क्रिया को ठीक करने के लिए एक कुशल नेचरोपैथ रोगी को फाइबर युक्त भोजन देता है। जिससे वह जो खाये, वह पच सके । साथ ही सीजनल फल खाने को देता है। काला नमक और जीरा मिला हुआ छाछ पीने को देता है । भोजन में दही का नियमित रूप से प्रयोग कराता है । सोने के पहले थोड़ी देर टहलने और पानी पीकर सोने की सलाह देता है। जिससे शरीर में पानी की कमी न हो, और उसकी वजह से मल सख्त न हो जाये । अंडा, माँस, मदिरा, कब्ज करने वाले भोज्य पदार्थ, मैदा, सूजी बेसन आदि से बने खाद्य पदार्थ और बिस्कुट और ब्रेड का सेवन न करने की सलाह देता है । हरी सब्जियों का किसी न किसी रूप में मरीज को खाने के लिए अवश्य देता है ।

बवासीर से बचने का एक नेचरोपैथ मरीज से यह कहता है कि दीर्घ शंका के बाद वह उंगली डाल कर अपने मल द्वार को अच्छी तरह से साफ करे । लेकिन इसके पहले वह उसका नाखून अच्छी तरह से कटवा देता है । शुरू-शुरू में इस प्रक्रिया से मरीज को कोफ्त होती है, लेकिन इससे जब उसे आराम मिलता है, तो फिर वह सहजता से बिना कहे करने लगता है । और सदा के लिए ठीक हो जाता है ।

प्रोफेसर डॉ. योगेन्द्र यादव

पर्यावरणविद, शिक्षाविद, भाषाविद,विश्लेषक, गांधीवादी /समाजवादी चिंतक, पत्रकार, नेचरोपैथ व ऐक्टविस्ट

Next Story
Share it