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कोरेना महामारी और भारत में डिजिटल राजनीति का प्रारम्भ – प्रोफेसर (डॉ.) योगेन्द्र यादव

कोरेना महामारी और भारत में डिजिटल राजनीति का प्रारम्भ – प्रोफेसर (डॉ.) योगेन्द्र यादव
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आखिरकार मोदी सरकार और भारतीय जनता पार्टी ने कोरेना महामारी में भी राजनीति करने का तरीका निकाल ही लिया। अब वह नए तरीके से कोरेना संक्रमण से लड़ने के साथ-साथ वह अपनी राजनीति भी चमकाएगी । इसकी तैयारी वह पिछले कई सालों से कर रही है प्राप्त सूचनाओं के आधार पर तो यही कहा जा सकता है । भारतीय जनता पार्टी ने अपने सभी राष्ट्रीय, प्रादेशिक और जिला स्तरीय कार्यालयों को डिजिटल सुविधा से लैस किया है । राजनीतिक विश्लेषकों द्वारा ही नहीं, आम जनता द्वारा इस बात की प्राय: चर्चा की जा रही है कि कोरेना संकट लंबे समय तक चलेगा। ऐसे में राजनीति कैसे होगी ? पार्टियां चुनाव के दौरान अपना प्रचार-प्रसार कैसे करेंगी ? इस चर्चा के बीच ही सभी राजनीतिक दल संभावित मार्गों की तलाश भी कर रहे थे। इसकी शुरुआत सबसे पहले केंद्र और उत्तर प्रदेश में सत्तारूढ़ सरकार और भारतीय जनता पार्टी करने जा रही है । इसके लिए उसने मोदी सरकार की दूसरी बरसी की शुरुआत को चुना है । अभी तक जो सूचना प्राप्त हो रही है, उसके अनुसार भारतीय जनता पार्टी मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल की पहली बरसी डिजिटल माध्यम से मनाएगी। सरकार की उपलब्धियां गिनाने के लिए देशभर में वर्चुअल रैली और प्रेस कॉन्फ्रेंस की जाएंगी। मोदी ने पिछले साल 30 मई को दूसरी बार प्रधानमंत्री पद की शपथ ली थी। बताया जा रहा है कि यह कार्यक्रम भी 30 मई से शुरू हो सकता है। सभी बड़े राज्यों की इकाइयां कम से कम 2 और छोटे राज्यों की इकाइयां कम से कम एक वर्चुअल रैली करेंगी। हर रैली में कम से कम 750 लोग शामिल होना चाहिए। देशभर में 1000 से ज्यादा ऑनलाइन कॉन्फ्रेंस भी की जाएंगी। केंद्रीय मंत्रियों और पार्टी के वरिष्ठ नेताओं को मिलाकर 150 से ज्यादा नेता कॉन्फ्रेंस को संबोधित करेंगे। भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्‌डा भी फेसबुक लाइव से भाषण देंगे। इस कार्यक्रम में सोशल डिस्टेंसिंग का पूरा ध्यान रखा जाएगा। इस प्रकार का समारोह एक महीने तक चलाने का कार्यक्रम बनाया जा रहा है । मोदी सरकार के इस कार्यकाल में प्रचार के रूप में जनता से जुड़े सभी कार्यों को शामिल किया जाएगा । आर्टिकल 370, तीन तलाक, राम मंदिर निर्माण को प्रमुखता से प्रचारित किया जाएगा ।

इस कार्यक्रम की भव्यता देखते हुए एक बात तो समझी जा सकती है कि भारतीय जनता पार्टी इस समय तीन ध्रुवों पर काम कर रही है। पहला वह सरकार के रूप में कोरेना संकट के खिलाफ सरकारी और गैर सरकारी अमले के साथ जंग छेड़े हुए है। दूसरा एक राजनीतिक दल के रूप में वह अपने राजनीतिक कर्तव्यों, गतिविधियों और उत्तरदायित्वों की भी प्रतिपूर्ति कर रही है। तीसरा इन दोनों के मध्य समन्वय का काम राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ कर रहा है । इसकी बानगी देश की आम जनता को देखने को मिल रही है। वे देख रहे हैं कि देश के प्रधानमंत्री और उनका मंत्रिमंडल और जहां-जहां उनकी राज्यों में सरकारें हैं, वहाँ के मुख्यमंत्री और उनका मंत्रिमंडल पूरी शिद्दत के साथ कोरेना संकट से लड़ रहा है। वहीं दूसरी ओर विपक्ष को हर मसले पर घेरने का काम एक राजनीतिक दल के रूप में उसके नेता और प्रवक्ता कर रहे हैं। तीसरा सेवा कार्य की बागडोर राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ने संभाल रखी है। उसकी तरफ से जैसी सूचना और तथ्य उपलब्ध कराये जाते हैं, उसी के अनुरूप सरकार कार्य करती है ।

इससे एक बात तो तय है कि अब भारत में डिजिटल राजनीति की शुरुआत हो चुकी है ।

देश के दूसरे राजनीतिक दलों के सामने यह एक चुनौती है। क्योंकि न तो उन्होने इसके लिए तैयारी की है, और न ही उनको वोट करने वाला ही इस तरह की सामर्थ्य रखता है । जहां तक सवाल देश की दूसरी सबसे बड़ी पार्टी कांग्रेस का सवाल है। उसके सामने डिजिटल राजनीति करना कठिन जरूर है, लेकिन असंभव नहीं है। अगर कुछ कार्यालयों को छोड़ दें, तो हाल-फिलहाल तो उसके पास भी इस प्रकार का आधारभूत ढांचा नहीं है। लेकिन उसके पास देश के हर राज्य और उसके जिलों में इस तरह के भव्य कार्यालय हैं, जिसे डिजिटल फार्म मे परिवर्तित किया जा सकता है। कांग्रेस के पास डिजिटल राजनीति करने और उसे संचालित करने के लिए एक बड़ी टीम भी है। जो देश की राजधानी से लेकर सुदूर केरल राज्यों में विद्यमान है । इसलिए आने वाले समय में वह भी अपने आप को डिजिटल राजनीति के लिए आवश्यक आधारभूत ढांचे का निर्माण करते हुए उस दिशा में कदम बढ़ा सकती है। आज भी देश की जनता के बीच जब भाजपा के विकल्प के रूप में बात होती है, तो पहला नाम कांग्रेस का ही लिया जाता है। ऐसे में वह अपने को विकल्प के रूप में समय-समय पर प्रस्तुत भी करती रहती है। करीब 60 वर्षों तक इस देश की राजनीति में प्रमुख भूमिका निभाने और सरकार संचालित करने की वजह से उसके पास एक लंबा अनुभव भी है । जिसकी वज़ह से उसे अपने आपको डिजिटल राजनीति के रूप में परिवर्तित करने में ज्यादा दिक्कत नहीं होगी । इसमें सोशल मीडिया एक बड़ी भूमिका निभाएगा । इसमें कोई दो राय नहीं है । सोशल मीडिया पर भी भाजपा की तरह ही कांग्रेस के पास भी मजदूत टीम है ।

डिजिटल राजनीति के रूप में खुद को ढालने में सबसे अधिक कठिनाई क्षेत्रीय दलों के सामने आएगी । अगर हम दक्षिण भारत और महाराष्ट्र को छोड़ दें, तो अन्य राज्यों में स्थित क्षेत्रीय दलों के पास न तो डिजिटल राजनीति करने लिए आधारभूत ढांचा है, और न ही उस प्रकार की मानसिकता भी अभी तक बन पायी है । अगर हम राजनीतिक रूप से भूचाल लाने वाले उत्तर प्रदेश और बिहार के क्षेत्रीय दलों की बात करें, तो यह पाएंगे कि उत्तर प्रदेश में दो प्रमुख क्षेत्रीय दल हैं – समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी । इन दोनों के पार्टी प्रमुख उच्च शिक्षित हैं। सोशल मीडिया पर अपने संसाधन से इसके कार्यकर्ता अपनी उपस्थिति दर्ज कराने में सफल भी हुए हैं । लेकिन अगर लखनऊ से हट कर जब बात करते हैं। इसके जिला मुख्यालयों की बात करते हैं तो आज भी इनके पास सभी जिलों में जिला मुख्यालयों में अपनी खुद की बिल्डिंग नहीं है। किराए के भवन से अपना कार्य संचालित कर रहे हैं । इसके साथ ही इनके अधिकांश जिला अध्यक्षों के पास डिजिटल राजनीति करने की समझ भी नहीं है । अधिकांश जिलों के जिला अध्यक्ष तकनीकी ज्ञान और धनाभाव की वजह से परेशान रहते हैं । इधर – उधर से व्यवस्था करके अपने कार्यालय की गतिविधियों को संचालित करते हैं। इनके कार्यालयों पर काम करने वाले अधिकांश कर्मचारियों को भी कोई वेतन नहीं दिया जाता है । न ही उनके पास डिजिटल राजनीति का ज्ञान ही है। ले-देकर अगर थोड़ा बहुत ज्ञान है, तो सोशल मीडिया पर अपनी पोस्ट लिखने और कुछ पोस्टों को शेयर करने का । कुछ लोग ट्वीटर पर भी अपनी उपस्थित हैं, लेकिन संख्या के हिसाब से उनकी संख्या को उल्लेखनीय नहीं कहा जा सकता है ।

इसलिए उन्हें भवन से लेकर, कार्यकर्ता और सक्षम स्टाफ तक की व्यवस्था करने की आवश्यकता है। इनके मतदाता का भी वही हाल है, अगर ये लोग किसी तरह से एकाध साल की मेहनत के बाद डिजिटल सेटअप और उसके अनुरूप कार्यकर्ताओं / नेताओं को प्रशिक्षित कर देते हैं, तो भी उसे सुनने और सुनाने के लिए भीड़ कहाँ से ले आएंगे । क्योंकि इनके अधिकांश समर्थकों के पास एंडरायड मोबाइल तो हो सकते हैं। लेकिन उसे चलाने की समझ विकसित करने में उन्हें बहुत परिश्रम और कार्यक्रम आयोजित करने पड़ेंगे । यह भी कार्य बहुत कठिन इसलिए है क्योकि यह प्रशिक्षण देने के लिए भी डिजिटल इलेक्ट्रानिक्स का ही उपयोग करना पड़ेगा ।

इस प्रकार हम देख रहे हैं कि कोरेना महामारी ने केवल मनुष्य के व्यवहार को ही नहीं प्रभावित किया, अपितु देश की पूरी राजनीतिक के स्वरूप को भी परिवर्तित कर दिया । इसकी तैयारियों और संचालन में जो बाजी मार ले जाएगा, वही कल का सिकंदर होगा । फिलहाल अभी तो भाजपा सभी दलों से काफी आगे निकल चुकी है। और हाल-फिलहाल उसका कोई प्रतिद्वंदी भी दिखाई नहीं पड़ रहा है। टीवी चैनलों का भी उसने बखूबी प्रबंधन कर लिया है। जो उसकी भाषा समझते हैं और उसे बखूबी क्रियान्वित करते हैं।

प्रोफेसर डॉ. योगेन्द्र यादव

पर्यावरणविद, शिक्षाविद, भाषाविद,विश्लेषक, गांधीवादी /समाजवादी चिंतक, पत्रकार, नेचरोपैथ व ऐक्टविस्ट

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