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राज्यों की अमानवीय उपेक्षा और प्रवासी मजदूर – प्रोफेसर (डॉ.) योगेन्द्र यादव

राज्यों की अमानवीय उपेक्षा और प्रवासी मजदूर – प्रोफेसर (डॉ.) योगेन्द्र यादव
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पिछले तीन महीने से पूरा विश्व कोरेना महामारी की चपेट में है। लॉक डाउन लागू होने के कारण सभी कल-कारखाने, स्कूल-कालेज, मार्केट सहित सब कुछ बंद करा दिया गया । जिसकी वजह से जो लोग अपने घरों से देश के दूसरे राज्यों या विदेशों में काम या व्यापार करने के लिए गए हुए थे। अपने-अपने घरों को लौटने लगे । जहां तक भारत का संबंध है। जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लॉक डाउन की घोषणा की, तब उन्होने ने देश के सभी नागरिकों से अपील की थी कि जो लोग जहां हैं, वहीं रहें, राज्य सरकारें उनके खाने-पीने की व्यवस्था करेंगी । 21 दिनी पहले चरण में तो लोगों ने उनकी अपील पर पूरा अमल किया। लेकिन जैसे ही दूसरा चरण शुरू हुआ, तो दूसरे प्रदेशों में रह रहे लोग अपने-अपने गाँव जाने की जिद करने लगे । चूंकि ट्रेन और बसें सहित सम्पूर्ण यातायात बंद था, इस कारण लोग मन मसोस कर रह गए । इसी बीच उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कोटा में प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे विद्यार्थियों के ट्वीट पर उन्हें बसे भेज कर उपक्रम किया। जिसके बाद से विपक्षी दल हमलावर हो गए । मजदूरों को भी उनके गाँव लाने का दबाव बनाने लगे। केंद्र सरकार ने उनकी बात मान विशेष श्रमिक ट्रेनें चलाने का निर्णय लिया । लेकिन प्रवासी मजदूरों की संख्या लाखों में होने की वजह से एक ही बार में उन्हें नहीं लाया जा सका। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के अनुसार अभी तक उत्तर प्रदेश में 22 लाख से अधिक प्रवासी मजदूर लाये जा चुके हैं ।

हालात उस समय कंट्रोल से बाहर हो गए, जब मजदूरों ने दूरी का ख्याल किए बगैर अपने परिवार और सामान के साथ अपने घरों से पैदल चल दिया। जैसे ही कुछ लोगों द्वारा इसकी शुरुआत हुई। राज्यों के मुख्य मार्गों पर उनकी भीड़ ही भीड़ दिखाई देने लगी। शुरू के दिनों में राज्य सरकारों ने उनके साथ सख्ती करने का प्रयास किया। लेकिन उनकी जिद के आगे पुलिस प्रशासन और राज्य सरकारों को भी झुकना पड़ा । पैदल या सायकिल से आने वालों में सभी प्रकार के लोग थे। बुजुर्ग महिलाएं और पुरुष व बच्चों को विशेष परेशानी का सामना करना पड़ा। दूरी अधिक होने के कारण उनकी चप्पलें टूट गई। जिसकी वजह से उन्हें नंगे पाँव ही चलना पड़ा। चप्पलें हों या न हों, अधिक दूरी चलने पर पैरों में छाले पड़ना एक सामान्य प्रक्रिया है । इस कारण पैदल चलने वाले या सायकिल से जाने वाले सभी प्रवासी मजदूरों के पैरों में छाले पड़े । जिसकी वजह से उनकी यात्रा अत्यंत कष्टकारक हो गई । सोशल मीडिया और मीडिया वालों ने इस प्रकार के यात्रियों की दशा को दिखाया भी लिखा भी। अंत में रेलवे को यह निर्णय लेना पड़ा कि महामारी के दौर में भी वह अपनी पूरी क्षमता के साथ सभी ट्रेनें चलाएगी और आगामी 10 दिनों में सभी प्रवासी मजदूरों को उनके घर पहुंचाने का काम करेगी ।

लेकिन आज का विषय यह है कि अगर प्रवासी मजदूरों को समय से भोजन, पानी, इलाज या अन्य सुविधाएं मिलती तो शायद वे अपने घरों के लिए एक साथ पलायन नहीं करते । सभी प्रदेश सरकारें बार-बार इस बात की घोषणा कर रही थी कि रेड जोन से बाहर स्थित सभी कल-कारखाने जल्द ही खोले जाएंगे। लेकिन इस घोषणा के बावजूद प्रवासी श्रमिकों ने इतना कष्टसाध्य कदम क्यों उठाया ? यह प्रश्न विचारणीय है । एक बात तो निश्चित है कि जिन राज्यों में प्रवासी मजदूर रह थे, वहाँ की सरकारों ने इन पर ध्यान नहीं दिया । केंद्र सरकार द्वारा सभी को भोजन और राशन वितरण के जो आदेश दिये गए, उसका पालन अपने राज्य के मूल निवासी गरीब मजदूरों के संदर्भ में ही किया । प्रवासी मजदूरों को न तो भोजन पैकेट दिये गए। न ही उनके इलाज की व्यवस्था की गई। और न ही उनको अन्य सुविधाएं ही प्रदान की गई । जिसकी वजह से उनके सामने भूखे मरने की नौबत आ गई। उनके बीबी –बच्चों की दारुण दशा ने उनकी सोचने समझने की शक्ति का हरण कर लिया और वे बिना दूरी का ख्याल किए पैदल या सायकिल से ही अपने घरों की ओर चल पड़े । उन्होने यह भी नहीं सोचा कि अगर रास्ते में खाने-पीने को नहीं मिला तो क्या होगा ? हालांकि यह भी बात सच है कि ऐसे तमाम प्रवासी मजदूरों को कई दिनों तक भूखे – प्यासे चलना पड़ा। कुछ लोगों ने भूख और प्यास की वजह से रास्ते में ही दम तोड़ दिया और कुछ ऐसे लोगों को जिन्हें दो-तीन दिन के बाद कुछ न कुछ खाने को मिलता रहा, वे जीवित अपने घरों को लौटे ।

राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने किस प्रकार प्रवासी मजदूरों के साथ व्यवहार किया, इसकी एक झांकी उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के एक बयान और एक ट्वीट में देखने को मिली । उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा है कि अब किसी राज्य को उत्तर प्रदेश की मैनपावर चाहिए, तो उसे हमारी अनुमति लेनी होगी। कोई राज्य सरकार हमारी अनुमति के बगैर उन्हें नहीं ले जा सकती है। जिस तरह हमारे कामगारों की दुर्गति हुई है, उनसे सौतेलेपन का व्यवहार हुआ है, वह बहुत ही दुखदायी है । उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने आगे कहा कि हमारे श्रमिकों में संक्रमण से जूझने की अद्भुत क्षमता है। वह मेहनत करके पसीना बहाता है। लोकमंगल की भावना से काम करता है। इसलिए सक्रंमित होने पर छह सात दिन में कोरोना निगेटिव में आता है, जबकि सामान्य लोग 14 से 20 दिन में ठीक होते हैं। जिन राज्यों में काम करने के लिए उत्तर प्रदेश के श्रमिक गए, प्रवासी मजदूरों के हुनर का फायदा लेकर गुजरात, महाराष्ट्र, पंजाब, हरियाणा व दिल्ली आदि राज्यों ने आर्थिक क्षेत्र में असीमित प्रगति की।

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने महाराष्ट्र सरकार और मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे पर तीखा करते हुए ट्वीट किया कि यदि महाराष्ट्र सरकार ने सौतेली मां बनकर भी सहारा दिया होता तो महाराष्ट्र से उत्तर प्रदेश के लोगों को वापस नहीं आना पड़ता। एक भूखा बच्चा ही अपनी मां को ढूंढ़ता है। यदि महाराष्ट्र सरकार ने सौतेली मां बनकर भी सहारा दिया होता तो महाराष्ट्र को गढ़ने वाले हमारे उत्तर प्रदेश के निवासियों को वापस नहीं आना पड़ता।

किसी भी राज्य के मुख्यमंत्री के पास प्रामाणिक सूचना प्राप्त करने के लिए कई सूचना तंत्र काम करते हैं। उनसे प्राप्त सूचनाओं और उत्तर प्रदेश को लौटे प्रवासी मजदूरों से किए गए संवाद के आधार पर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री ने जो कुछ कहा, वह निश्चित रूप से चिंतनीय है। ऐसे समय मेन जब पूरी मानवता के सामने संकट छाया हो, तब यह अपना है, यह पराया का भाव लाना निश्चित रूप से दानवी प्रकृति का प्रतीक है। मुख्यमंत्री के बयान से कुछ ऐसा ही अर्थ निकलता है। अन्य प्रदेश सरकारों के व्यवहार से आहत होकर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री को सिर्फ प्रवासी मजदूरों को रोजगार सृजन की दिशा में ही काम नहीं करना पड़ा। बल्कि एक बोर्ड गठित करके भविष्य में अगर उत्तर प्रदेश के मजदूरों की जरूरत है, तो प्रदेश सरकार की अनुमति का भी प्रावधान कर दिया ।

दोनों प्रकार प्रवृत्तियाँ सदैव विद्यमान रही हैं। लेकिन संकट काल में मानवीय पक्ष ही अधिक हावी रहा है। इसी कारण ऐसे भी उदाहरण है कि लोगों ने अपने कल की चिंता किए बगैर अपने क्षेत्र के गरीब, मजलूम और मजबूर लोगों के लिए रोटी की व्यवस्था की । इस संबंध में जब मैंने महाराष्ट्र के अपने कुछ मित्रों से बात की तो उन्होने कहा कि प्रवासी मजदूरों की संख्या अधिक होने की वजह से विसंगतियाँ हो सकती हैं, पर महाराष्ट्र सरकार की ऐसी कोई मंशा नहीं थी। स्थानीय स्तर पर कुछ अधिकारियों ने ऐसी ज्यादती की हो, तो कहा नहीं जा सकता है।

लेकिन भारत एक गणतन्त्र देश है। प्रशासनिक सुविधाओं और भौगोलिक आधार पर उसका विभाजन हो सकता है। लेकिन सभी हैं तो एक देश के ही नागरिक । एक संविधान सभी पर लागू होता है। इसलिए इस प्रकार की बातें होनी ही नहीं चाहिए । सभी को कहीं भी आने-जाने, काम करने की आजादी है। प्रवासी मजदूर अन्य प्रदेशों में करते हुए उसे अपने देश और प्रगति का हिस्सा मानता है। इसलिए ऐसी विपत्तिकालीन परिस्थितियों में उसकी भी गणना अपने नागरिक के रूप मे होना चाहिए और समस्त प्रकार की सहूलियतें उसे भी प्रदान की जाना चाहिए ।

प्रोफेसर डॉ. योगेन्द्र यादव

पर्यावरणविद, शिक्षाविद, भाषाविद,विश्लेषक, गांधीवादी /समाजवादी चिंतक, पत्रकार, नेचरोपैथ व ऐक्टविस्ट

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