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कोरोना महामारी में भाजपा को शिकस्त देने की कांग्रेसी रणनीति – प्रोफेसर डॉ. योगेन्द्र यादव

कोरोना महामारी में भाजपा को शिकस्त देने की कांग्रेसी रणनीति – प्रोफेसर डॉ. योगेन्द्र यादव
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कोरेना महामारी में बस प्रकरण से मुखर हुई कांग्रेस ने देश के 22 प्रमुख क्षेत्रीय दलों के नेताओं के साथ मिल कर भाजपा को शिकस्त देने की अपनी रणनीति पर काम करना आरंभ कर दिया है। कोरेना संक्रमण की भयावहता की वजह से लॉक डाउन और जनता के लिए हितोन्मुखी योजनाएँ चलाने की वजह से भारतीय जनता पार्टी, मोदी सरकार और भाजपा शासित राज्य सरकारों की लोकप्रियता बढ़ती जा रही थी। इस दौरान प्रवासी मजदूरों के गृह मोह ने उनके सारे किए कराये पर पानी फेरना शुरू कर दिया । साधन के अभाव में लोग पैदल, सायकिल या जो भी साधन उन्हें मिले, उससे ही अपने घरों के लिए निकल पड़े। जिसमें उन्हेने असहनीय कष्ट सहने पड़े। लोगों के पैरों में बड़े-बड़े छाले पड़ गए। लोगों की चप्पलें टूट गई, जिसकी वजह से लोग नंगे पैर तपती दोपहर में जला देने की शक्ति से भरपूर सड़कों पर चलने को मजबूर होना पड़ा । इनका सोशल मीडिया पर जीवंत प्रसारण किया गया । जिससे हर संवेदनशील व्यक्ति का हृदय कराह उठा ।

लॉक डाउन की वजह से घरों की लक्ष्मण रेखा के भीतर रहने की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की नसीहत को भी लोगों ने दरकिनार कर दिया । और अपने घरों की ओर लोग निकल पड़े। पुलिस प्रशासन की सख्ती भी किसी काम नहीं आई। लोगों ने गालियां खाई, लाठी-डंडे की मार खाई, लेकिन अपने घरों की ओर बढ़ना नहीं छोड़ा । केंद्र सरकार ने श्रमिक ट्रेने चला कर उन्हें घर भेजने का कदम तो उठाया। लेकिन प्रबंधन की कमी और सख्या अधिक होने की वजह से उसके इस कदम की प्रशंसा कम, भद्द ज्यादा पिटी । ट्रेन पकड़ने के लिए हजारों लोग रेलवे स्टेशनो पर इकट्ठा हो गए। जिसकी वजह से कोरेना संक्रमण रोकने के लिए सोशल डिस्टेन्सिंग की धज्जियां उड़ गई । प्रदेश सरकारों और पुलिस द्वारा भी नरमी बरती गई । इससे सरकार की भद्द पिटने लगी । जो लोग प्रधानमंत्री की अपील के बाद घरों में बंद थे, वे भी आक्रोशित हो उठे । कोरेना संक्रमितों की संख्या में प्रतिदिन इजाफा भी होने लगा। संक्रमितों की संख्या एक लाख से ऊपर पहुँच गई। लेकिन केंद्र या राज्य सरकार द्वारा ढील जारी रही। केंद्र सरकार के निर्देश पर प्रदेश सरकार ने एक काम जरूर करना शुरू किया, जो भी लोग मजदूर अपने गाँव पहुंचे, उनका क्वारंटीन करना शुरू किया । संख्या बल अधिक होने की वजह से सरकार द्वारा की गई सारी की सारी व्यवस्थाएं नाकाफी सिद्ध होने लगी । इसकी वजह से जनमानस में आक्रोश दिखाई पड़ा ।

इसी समय दो राजनीतिक घटनाएँ ऐसी हुई, सत्ता पक्ष द्वारा उनका विरोध करने की वजह से शांत दिख रही कांग्रेस में भी हलचल दिखाई पड़ने लगी । पहली घटना कांग्रेस नेता राहुल गांधी द्वारा मजदूरों से उनके बीच में जाकर बात करना और दूसरी घटना प्रियंका गांधी द्वारा मजदूरों को लाने के लिए बसों की पेशकश करना । इन दोनों घटनाओ की वजह से कांग्रेस मुखर हुई । उसने पुरजोर केंद्र और उत्तर प्रदेश सरकार का विरोध किया। भाजपा की ओर से भी पुरजोर प्रतिकार किया गया। लेकिन देश की जनता दो खेमों में बंट गई। अपने साथ जनमानस जुड़ने के बाद कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने अपने समविचारी 22 प्रमुख राजनीतिक दलों के साथ वीडियो कान्फ्रेंसिंग कर उसे चौतरफा घेरने की रणनीति बनाई ।

इस चर्चा में लॉकडाउन लगाने, उसे बढ़ाने और अब राहत देने के तरीके पर गंभीर विचार विमर्श हुआ । राहत पैकेज की खामियों को उजागर कर उसे देश के साथ क्रूर मजाक साबित किया गया। सोनिया गांधी ने कहा कि भारत में कोरोना वायरस का पहला मामला सामने आने के पहले ही नोटबंदी और जीएसटी की वजह से देश की अर्थव्यवस्था संकट में थी । केंद्र सरकार की गलत नीतियों की वजह से देश की आर्थिक स्थिति लगातार बदतर होती जा रही थी। इसके बाद भी अपने अहम में डूबी भाजपा सरकार ने उसमें कोई सुधार नहीं किया । विश्व स्वास्थ्य संगठन ने 11 मार्च को कोरेना संक्रमण को वैश्विक महामारी घोषित किया। उसी आदेश पर अमल करते हुए देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने केवल चार घंटे की नोटिस पर 24 मार्च को लॉकडाउन घोषित कर दिया गया, जिसका सभी राजनीतिक दलों ने समर्थन किया। लॉक डाउन का पहला चरण 21 दिनों के लिए लागू किया गया । प्रधानमंत्री को यह विश्वास था कि 21 दिनों में देश की जनता के सहयोग से कोरेना को शिकस्त देने में हम कामयाब होंगे, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। इसके बाद फिर दूसरा चरण लागू किया गया। लेकिन कोरेना संक्रमितों की संख्या में लगातार इजाफा होता रहा। जिसके कारण तीसरा चरण लागू किया गया। लेकिन संक्रमितों की संख्या में वृद्धि नहीं रुकी । चौथे चरण तक आते सरकार ने कुछ ढील जरूर दी। लेकिन अभी भी लोग लॉक डाउन में रहने को मजबूर हैं।

लॉक डाउन को समाप्त करने के लिए सरकार के पास कोई योजना नहीं थी। न अस्पताओं की व्यवस्था थी, जांच किट आयात करने के मामले तक में उसकी किरकिरी हुई । हालांकि लॉक डाउन के दौरान केंद्र और प्रदेश दोनों सरकारों द्वारा इस क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य किए गए ।

इस बैठक में कोलकाता और उड़ीसा में आए तूफान पर भी चर्चा हुई। कहा गया कि देश पहले से ही कोरेना लड़ रहा था, ऐसे में अम्फान चक्रवात का आना दोहरा झटका है।

सभी दलों ने एक साथ इसे तत्काल राष्ट्रीय आपदा घोषित करने और तबाही के अनुसार आर्थिक मदद की भी केंद्र सरकार से मांग की । राहत और पुनर्वास को सर्वोच्च प्राथमिकता देते हुए इस आपदा के दौरान दूसरी बीमारियां न फैलें, उसकी रोकथाम की पहल करना चाहिए । कांग्रेस के प्रमुख नेता राहुल गांधी ने कहा कि लॉकडाउन के दो लक्ष्य बीमारी रोकना और आने वाली बीमारी से लड़ने की तैयारी करना है। जब संक्रमण तेजी से बढ़ रहा है, तब मोदी सरकार लॉकडाउन खोल रही है। इस प्रकार का कदम बिना सोचे-समझे क्यों उठाया जा रहा है, समझ में नहीं आता ।

लॉकडाउन से गरीब और मजदूर, छोटे व्यापारी रोड पर आ गए। लेकिन उनकी मदद नहीं की गई । उनके खातों में सीधे 7500 रुपये नहीं डाले गए, राशन का इंतजाम नहीं किया गया । अगर प्रवासी मजदूरों, किसानों, एमएसएमई की मदद नही की गई तो देश का मजदूर और अर्थव्यवस्था दोनों तबाह हो जाएंगे । लाखों करोड़ रुपयों के पैकेज के नाम पर कर्ज देने की बात को उन्होने गलत बताया और कहा कि पीड़ितों को कर्ज देने के बजाय उनकी सीधे मदद की जाए। हम देश के गरीबों, मजदूरों के साथ इस प्रकार का क्रूर मज़ाक नहीं करने देंगे । इसके खिलाफ हम सभी को आवाज उठाने की जरूरत है ।

कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने भी कहा कि अर्थव्यवस्था की स्थिति बेहद खराब है। गरीबों, मजदूरों, किसानों को राजकीय प्रोत्साहन की तत्काल जरूरत है। 20 लाख करोड़ रुपये का पैकेज देश की जनता के साथ क्रूर मजाक है। उन्होने आगे कहा कि इस महामारी में बिना पैसे, भोजन या दवाओं के सैकड़ों किलोमीटर पैदल यात्रा कर रहे लाखों प्रवासी मजदूर, जो अपने घर जाना चाहते हैं, उनकी अनदेखी से बड़ा क्रूर मज़ाक क्या हो सकता है ? उन्होने केंद्र सरकार से मांग की कि गरीबों को नकद पैसे, मुफ्त अनाज, प्रवासी मजदूरों के लिए लिए बस और ट्रेन की व्यवस्था, कर्मचारियों और नियोक्ताओं की सुरक्षा व सुरक्षा फंड की व्यवस्था की जाए । इस वीडियों कान्फ्रेंसिंग में शामिल 22 विपक्षी दलों ने अपनी मांगें इस प्रकार रखी -

1. श्रम कानून संशोधन अध्यादेश वापस लिया जाए । अगर संशोधन की जरूरत है तो मजदूरों संबंधी विधेयकों में संसद और विधानसभाओं में विशद चर्चा कराया जाए।

2. व्यापक और व्यावहारिक आर्थिक पैकेज लाया जाए। जो आर्थिक पैकेज केंद्र सरकार द्वारा लाया गया है, वह कर्ज पर आधारित है। ऐसे पैकेज का उपयोग करने के बाद गरीब, मजदूर, किसान, छोटे व्यापारी वर्ग की परेशानी और बढ़ जाएगी।

3. संसद के कामकाज और निरीक्षण को तत्काल बहाल किया जाए ।

4. प्रवासी मजदूरों के लिए मुफ़त परिवहन की व्यवस्था की जाए । पर्याप्त मात्रा में बसें और ट्रेने चलाई जाएँ । रिज़र्वेशन की प्रक्रिया को सरल किया जाए। फार्म अङ्ग्रेज़ी के अलावा हिन्दी और प्रादेशिक भाषाओं में भी दिये जाएँ ।

5. गरीबों के खाते में सीधे 7500 रुपये डाले जाएँ । जिससे वह राशन के अलावा अपनी अन्य जरूरतों को पूरा कर सकें ।

6. अभी तक जो राशन दिये जा रहे हैं, वे अपर्याप्त हैं। इसलिए राशनकार्ड हो या ना हो, सभी गरीब परिवारों को 25 किलो चावल/आटा, दाल एवं अन्य खाद्य सामाग्री आगामी छह महीने तक मुफ्त उपलब्ध कराया जाए ।

7. ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार सृजन के लिए मनरेगा और भोजन के अधिकार जैसी योजनाओं को सुचारु रूप से चलाया जाए ।

इसी तरह के हर छोटे – बड़े मसले पर सोनिया गांधी ने 22 प्रमुख राजनीतिक दलों के साथ विचार-विमर्श किया। और इसमें यह निर्णय किया गया कि इन मुद्दों को प्रमुखता से उठाया जाएगा और केंद्र सरकार से इसे लागू कराने की दिशा में प्रयास किए जाएंगे ।

सोनिया गांधी की इस बैठक में तीन प्रमुख क्षेत्रीय दलों के प्रमुखों द्वारा भाग न लेने की वजह भी चर्चा का विषय बनी रही। इसमें से दो राजनीतिक दल समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी हैं, और तीसरी दिल्ली की सत्ता पर काबिज आम आदमी पार्टी है। जब इस संबंध में मैंने इस राजनीतिक दलों के वरिष्ठ नेताओं के साथ चर्चा की तो ऐसा प्रतीत हुआ कि अपने राजनीतिक हितों को ध्यान में रख कर इन राजनीतिक दलों ने इस वीडियो कान्फ्रेंसिंग में भाग नहीं लिया । इससे भाजपा यह संदेश देने में कामयाब रही कि सभी विपक्षी राजनीतिक दल एकमत नहीं हैं ।

प्रोफेसर डॉ. योगेन्द्र यादव

पर्यावरणविद, शिक्षाविद, भाषाविद,विश्लेषक, गांधीवादी /समाजवादी चिंतक, पत्रकार, नेचरोपैथ व ऐक्टविस्ट

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