हिंदी की ई-पत्रिका कंचनजंघा का हुआ लोकार्पण

हिंदी भाषी पाठकों को अन्य भाषा के साहित्य से अवगत कराएगी ई-पत्रिका कंचनजंघा
हिंदी ई-पत्रिका कंचनजंघा के प्रवेशांक का ई-लोकार्पण आज 16 मई 2020 को किया गया। ऑनलाइन माध्यम से आयोजित हुए एक कार्यक्रम में प्रो. अनंत मिश्र, पूर्व अध्यक्ष हिंदी, गोरखपुर विश्वविद्यालय, प्रो. चित्तरंजन मिश्र, पूर्व प्रति-कुलपति, अंतर्राष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा, एवं प्रो. अनिल राय, अध्यक्ष, हिंदी विभाग, दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय ने पत्रिका के प्रवेशांक को लोकार्पित किया।
250 पृष्ठों के इस अंक में 33 लेखकों की रचनाशीलता से पाठक परिचित होंगे। इस पत्रिका का प्रथम अंक पूर्वोत्तर के साहित्य पर केंद्रित होगा। अरुणाचली कहानी, असमिया कहानी, कविताएं आदि पूर्वोत्तर के साहित्य,कला एवं संस्कृति का परिचय हिंदी भाषा में इस पत्रिका के माध्यम से उपलब्ध होगा।
पत्रिका का लोकार्पण करते हुए प्रो. चित्तरंजन मिश्र, पूर्व अध्यक्ष हिंदी विभाग, गोरखपुर विश्वविद्यालय एवं पूर्व प्रति कुलपति, अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा ने कहा कि, " कंचनजंघा के प्रवेशांक मे प्रकाशित होने वाली सामग्री रचना विचार और कलाओं के अंतरावलंबन की प्रकृति को प्रत्यक्ष करने वाली है साथ ही संपादक के चयन के विवेक को भी प्रमाणित करती है। मुझे विश्वास है कि पत्रिका के आगामी अंक रचनात्मक विविधता वैचारिक विवेक और चयन के अपने मानदंडों को इसी तरह बल्कि और बेहतर ढंग से सामने लाने मे सफल होंगे। भारत का पूर्वोतर भाग अपनी सांस्कृतिक विविधताके साथ लोक साहित्य और लोक कलाओं के अपार वैभव से समृद्ध है। उस अपार वैभव की सर्जनात्मकता से हिन्दी के व्यापक समुदाय को परिचित कराने और पूर्वोत्तर के हिंदी प्रेमियों के बीच एक संवाद सेतु की तरह कंचनजंघा अपने बहुविध दायित्वों को अनुभव करते हुए एक सक्रिय मंच प्रमाणित होगी।"
पूर्व अध्यक्ष हिंदी विभाग एवं वरिष्ठ साहित्यकार प्रो. अनंत मिश्र ने अपनी शुभकामनाएं व्यक्त करते हुए कहा कि, कंचनजंघा पत्रिका के माध्यम भारत की मिली-जुली संस्कृति के स्वरुप को व्यक्त किया जाएगा। इस पत्रिका के माध्यम से अन्याय भारतीय भाषाओं के साहित्य से हिंदी पाठक परिचित होगा।
लोकार्पण कार्यक्रम में उद्बोधन देते हुए, प्रो. अनिल राय अध्यक्ष, हिंदी विभाग ने कहा कि, 'कंचनजंघा ' की अंतर्वस्तु वैविध्यपूर्ण है। लेख , कविता , कहानी , लोककथा और पुस्तक - समीक्षा जैसे स्तंभों के साथ इस अंक में पूर्वोत्तर के पौराणिक संदर्भों को प्रकाशित करती विभिन्न रचनाओं का संकलन इसका विशिष्ट आकर्षण है। विश्वास है कि आने वाले दिनों में अपनी प्रेरणादायी भूमिका के लिए पत्रिका का स्मरण किया जाएगा।
कार्यक्रम समन्वयक एवं संपादक मंडल के सदस्य डॉ. अखिल मिश्र, सहायक आचार्य, दी.द.उ. गोरखपुर विश्वविद्यालय, गोरखपुर ने पत्रिका का विवरण देते हुए बताया कि , "छमाही पत्रिका का यह पहला अंक है।इस प्रवेशांक की ज़्यादा सामग्री पूर्वोत्तर के साहित्य पर केंद्रित है। इसके माध्यम से नवोदित रचनाकारों की रचनाओं को भी प्रकाशित किया जाएगा। यह पत्रिका हिन्दी रचनाकारों-पाठकों और पूर्वोत्तर के रचनाकारों -पाठकों के बीच पुल का काम करेगी। इस अंक में नेपाली, असमिया,खासी, मणिपुरी भाषा की रचनाएं हिन्दी भाषा में उपलब्ध हैं। पूर्वोत्तर की सांस्कृतिक विरासत का परिचय भी इस पत्रिका के माध्यम से हिन्दी पाठकों के लिए सहज उपलब्ध होगा। जितेन्द्र श्रीवास्तव के नये कविता संग्रह की समीक्षा भी इसमें मौजूद है। असमिया लोक साहित्य में राम जैसे अनेक शोध आलेख से भी हिन्दी पाठक रु-ब-रू होंगे।"
पत्रिका के संपादक डॉ. प्रदीप त्रिपाठी, सहायक आचार्य, हिंदी विभाग, सिक्किम विश्वविद्यालय ने पत्रिका सम्बन्धी कार्ययोजना पर विचार रखते हुए बताया कि पत्रिका के प्रकाशन का उद्देश्य देश के अन्य भाषाई साहित्य से हिंदी क्षेत्र के लोगों को परिचित कराना है। इसका प्रत्येक अंक एक विशेष भाषा और क्षेत्र के साहित्य पर केंद्रित रखा जाएगा।
पत्रिका का लोकार्पण होने पर गोरखपुर विश्वविद्यालय के मीडिया प्रभारी प्रो. अजय कुमार शुक्ला, हिंदी विभाग के प्रो. विमलेश मिश्र, प्रो. कमलेश कुमार गुप्त, प्रो. अरविंद त्रिपाठी, प्रो. दीपक त्यागी, प्रो. प्रत्यूष दूबे,डॉ. दमयंती तिवारी, प्रो.राजेश मल्ल एवं समाजशास्त्र विभाग के डॉ. मनीष पाण्डेय आदि ने शुभकामनाएं व्यक्त की।