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मजदूर नहीं मुद्दा

मजदूर नहीं मुद्दा
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यदि ये महामारी नहीं आती तो उत्तर प्रदेश के गाँव के ओसारे विधानसभा और चौराहे संसद भवन को पछाड़ रहे होते । कई दारुप्रेमी ग्रामीण अघा कर लोट रहे होते , कई गृहणियां चमकउआ साड़ी पहन कर दारूबाज पति को कोस रही होतीं "रे मुँहझौंसा ! दारू के बदले एक ठो और साड़ी काहें नहीं माँग लिया ?"

मटरू चौधरी तय कर लिए थे कि चाहे दस लाख क्यों न खर्च हो जाएं , साले गाँव वालों को नटई तक पिला कर पागल कर देंगे , भकचोन्हर सब पगला - पगला कर फिर से जिता देंगे । इधर गुलछर्री भउजी भी घर - घर जाकर मूड़ी पटकने का अभ्यास अपने सास से शुरू कर चुकी थीं ,उन्होंने ठान लिया था कि इस बार अपने मनसिद्धू को प्रधानपति बना कर रहेंगी । मगर हाय रे विडम्बना ! इसी बीच कोरोना आ गया ।

जहाँ दारू की नदियाँ बहनी थीं , वहाँ अब उसकी एक - एक बूंद के लाले हैं । जिस ओसारे में दर्जनों राजनीतिक खिलाड़ियों की पंचायत होनी थी ,वहां चार जन बैठ कर संक्रमण के सापेक्ष मृत्यु का अनुपात निकाल रहे हैं । जो कम पढ़े लिखे हैं वो शक्तिमान देख रहे हैं ।

मटरू चौधरी की फिर भी चाँदी है । उड़ती - उड़ती खबर आई है कि महामारी का प्रकोप ऐसे ही रहा तो प्रधानी चुनाव स्थगित ही समझो । इस खबर ने गुलछर्री भउजी के सपनों पर दोहरी मार की । बेकल हो उठीं बेचारी ।

लेकिन!! भगवान सबकी सुनता है । भला हो बाहर से आये मजदूरों का । गाँव के ठंडे पड़े राजनीतिक चूल्हे इनके आते ही भकभका कर जल उठे ।

गुलछर्री भउजी ने सुना कि दुलारे का लड़का मुम्बई से ट्रक पकड़ कर गाँव आया तो कोरण्टाइन सेंटर पहुँच गईं । प्रभारी कोई था नहीं वहाँ पर , धीरे से नजदीक बुला कर बोलीं - " घर जाकर डेटॉल वाला साबुन से मल - मल कर नहा लो ! बहुरिया तुम्हारे इंतजार में पागल हुई जाती है । हमारे रहते हमारा वोटर जेल में नहीं रहेगा ।"

दुलारे का लड़का कसम खाकर गया " इस बार ब्रह्मा भी आपको हरा नहीं पायेगा भउजी "

गुलछर्री भउजी ने उस दिन तीन और लोगों को कोरोना मुक्त बताकर घर भेज दिया । सब गुलछर्री भउजी की जय जयकार करते घर गए ।

मटरू के लिए यह खबर उनकी पद और प्रतिष्ठा के लिए चुनौती तो थी ही , साथ ही अगर कहीं चुनाव हो जाते हैं तो जितने भी लोग प्राइमरी स्कूल में कोरण्टाइन हेतु ठहराए गए हैं उनके परिवार का वोट तो क्या एक बाल भी नहीं मिलना था । अगले दिन ही पूरा प्राथमिक विद्यालय खाली हो गया ।

चूँकि अब विद्यालय के सारे मजदूरों के घर जाते ही चुनावी तैयारी के बाबत मुद्दे समाप्त हो गए हैं तो नई परम्परा का श्रीगणेश करते हुए गुलछर्री भउजी और मटरू चौधरी के आदमी गाँव आने वाले हर रास्ते पर चौकसी कर रहे हैं । स्पर्धा लगी हुई है कि कौन सबसे पहले मजदूरों को रिसीव करके उन्हें उनके घर तक छोड़ पाता है और आगामी चुनावों में अपने वोट सुरक्षित कर पाता है ।

दूरभाष से बाहर फंसे मजदूरों से भी सम्पर्क साधा जा रहा है , इस आश्वासन के साथ कि " बिंदास आओ ! यहाँ हम सब संभाल लेंगे "

आशीष त्रिपाठी

गोरखपुर

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