राष्ट्र के नाम उद्बोधन : भारत को आत्मनिर्भर बनाने के लिए मोदी का समाजवादी कदम – प्रोफेसर डॉ. योगेन्द्र यादव

कोरेना महामारी के वैश्विक संकट के बीच अपने- अपने देश की आर्थिक गतिविधियों को सुचारु रूप से संचालित करने की दिशा में सभी राष्ट्राध्यक्षों ने सोचना शुरू कर दिया । लॉक डाउन के अपने चौथे सम्बोधन में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी राष्ट्र को संबोधित करते हुए एक खाका प्रस्तुत करने के प्रयास किया । उन्होने इसके लिए जहां एक ओर 20 लाख करोड़ रुपये के पैकेज की घोषणा की, वहीं उन बुनियादी तथ्यों को भी उद्घाटित करने का प्रयास किया, जिस पर चल कर वे देश को हुए आर्थिक हानि से उबारने के साथ-साथ सभी हाथों को काम देने की बात की । प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब देश को संबोधित कर रहे थे। उनके भाषणों को सुन कर ऐसा प्रतीत हो रहा था कि जैसे चारो ओर संकटों से घिरे हुए डॉ. राम मनोहर लोहिया के शब्द प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मुंह से निकल रहे हों। समाजवादी दर्शन की सबसे बड़ी विशेषता यही रही है कि वह घोर से घोर संकट में भी अपना आत्मविश्वास नहीं खोता है। उसे अपने ऊपर, अपने देश के नागरिकों के अदम्य साहस और त्यागपूर्ण जीवन पर विश्वास होता है। ऐसे ही अदम्य विश्वास की झलक मुझे देश के प्रधानमंत्री में दिखाई पड़ी। राष्ट्र को संबोधित करते समय ऐसा प्रतीत हो रहा था कि जैसे देश पर इतना बड़ा कोई संकट ही न हो, जिसका समाधान न संभव हो। समाजवादी दर्शन के अनुसार ऐसे ही अदम्य साहस की झलक किसी भी आपातकालीन परिस्थिति में ऐसे ही दिखाई पड़ती है और अपने इसी अदम्य साहस की वजह से वह एक बार फिर सारी विपरीत परिस्थितियों को अपने पक्ष में कर लेता है ।
देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने इस अभियान को आत्मनिर्भर भारत अभियान नाम दिया । वे देश को Land, Labour, Liquidity और Laws के बल पर आत्मनिर्भर बनाने का सपना सँजोये हुए हैं । इसके लिए कुटीर और लघु उद्योगों पर बल दिया और कहा कि यही सूत्र हमारे संकल्प को पूरा करने के मजबूत आधार हैं ।
देश को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में जिन चार स्तंभों का जिक्र किया गया, वे स्तम्भ और उसकी प्रक्रिया भी समाजवादी दर्शन से ओत-प्रोत है । उन्होने लैंड, लेबर, लिक्विटी और ला की बात की । समाजवादी दर्शन में इन चारो का उपयोग होता है । समाजवादी दर्शन में भूमि और उससे जुड़े समस्त व्यवसायों को सर्वोपरि स्थान है। इसी कारण भूमि का उपयोग अन्न उपजाने के लिए करने वाले किसानो के लिए उसकी अधिकांश योजनाएँ होती हैं। यह कहना अतिशयोक्ति न होगी कि किसानों की ही बदौलत समाजवादी पार्टियां सत्ता में आती हैं । समाजवादी दर्शन के अनुसार किसान के बाद श्रमिकों के कल्याण पर सबसे अधिक बल देती है । क्योंकि भारत में जो अधिकांश मजदूर हैं, वे किसान पुत्र ही है। जो भूमिहीन हो चुके हैं, या तो उन्होने जमीने बेच दी हैं, या उनके पास इतनी कम जमीने थी, जिसे उन्होने अपने भाई या परिवारिजनों के हक में छोड़ दी। आज जिन प्रवासी मजदूरों की बात हो रही है, उनमें से अधिकांश ऐसे ही किसान पुत्र हैं, जिन्हें पढ़ने – लिखने के बाद जब रोजगार नहीं मिला, तो वे रोजगार की तलाश में दूसरे प्रदेशों में चले गए । ऐसे लोगों की बात देश के प्रधानमंत्री ने प्रमुखता के साथ की । तीसरे स्थान पर उन्होने पूंजी को रखा है। जिसका प्रबंध खुद 20 लाख करोड़ रुपये के रूप मे खुद सरकार कर रही है । चौथा बिन्दु जो प्रधानमंत्री ने सुझाया है, इन समस्त गतिविधियों को कानून सम्मत बनाना है। जिससे किसी के साथ अन्याय न हो सके । प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने इन समाजवादी दृष्टिकोण को विस्तार देते हुए कहा कि ये आर्थिक पैकेज देश के उस श्रमिक के लिए है, देश के उस किसान के लिए है जो हर स्थिति, हर मौसम में देशवासियों के लिए दिन रात परिश्रम कर रहा है। ये आर्थिक पैकेज हमारे देश के मध्यम वर्ग के लिए है, जो ईमानदारी से टैक्स देकर देश के विकास में अपना योगदान देता है।
उनके इस प्रकार के उद्बोधन से यह पूरी तरह से सिद्ध हो गया कि उन्होने यह कदम देश के किसानों, श्रमिकों, माध्यम वर्ग के कल्याण के लिए उठाया है। समाजवादी सरकारे भी यही करती रही हैं। सत्ता में रहते हुए समाजवादी सरकारों की सारी गतिविधियां किसानों, मजदूरों और मध्यम वर्ग के लिए होती हैं। लेकिन बड़े अफसोस के साथ कहना पड़ रहा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के उद्बोधन के बाद सोशल मीडिया पर उनके द्वारा जो प्रतिक्रिया व्यक्त की गई, वह बेहद ही निराशाजनक है। मैं नहीं कहता कि वे समाजवादी दर्शन से अनभिज्ञ हैं, लेकिन इतना जरूर कहूँगा कि उन्होने इस महामारी काल मे भी केवल और केवल विपक्ष के रूप मे ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के भाषण को सुना और अपनी-अपनी प्रतिक्रियाएँ दी ।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कोरेना संक्रमण और लॉक डाउन की वजह से उपजी परिस्थितियों की और आसन्न संकट के विकरालता का वर्णन करते हुए कहा कि इस संकट से बड़ी से बड़ी व्यवस्थाएं हिल गई हैं। लेकिन इन्हीं परिस्थितियों में हमने, देश ने हमारे गरीब भाई-बहनों की संघर्ष-शक्ति, उनकी संयम-शक्ति का भी दर्शन किया है। लेकिन इस दौरान भी उन्होने गरीबों, उनके संघर्ष शक्ति, संयम शक्ति का वर्णन किया। जो समाजवादी दर्शन की व्याख्या करते हुए बार – बार प्रयुक्त किए जाते हैं ।
उन्होने देश के समस्त नागरिकों से अपील करते हुए कहा कि आज से हर भारतवासी को अपने लोकल के लिए 'वोकल' बनना है, न सिर्फ लोकल प्रोडक्ट्स खरीदने हैं, बल्कि उनका गर्व से प्रचार भी करना है। मुझे पूरा विश्वास है कि हमारा देश ऐसा कर सकता है। अपने उद्भोधन में प्रधानमंत्री ने जो लोकल शब्द का उपयोग किया, उसमें तो पूरा समाजवादी दर्शन ही समाया हुआ है । समाजवादी दर्शन हमेशा स्थानीयता की बात करता है । समाजवादी दर्शन के अनुसार समाजवादी दर्शन में विकास की दिशा ही यही होती है। वह राष्ट्र के कल्याण की बात स्थानीय विकास और कल्याण के साथ करता है ।
अपने संबोधन में प्रधानमंत्री ने कहा कि एक वायरस ने दुनिया को तहस-नहस कर दिया है। विश्व भर में करोड़ों जिंदगियां संकट का सामना कर रही हैं। सारी दुनिया, जिंदगी बचाने की जंग में जुटी है। लेकिन थकना, हारना, टूटना-बिखरना, मानव को मंजूर नहीं है। सतर्क रहते हुए, ऐसी जंग के सभी नियमों का पालन करते हुए, अब हमें बचना भी है और आगे भी बढ़ना है। उन्होने कहा कि जब कोरोना संकट शुरु हुआ, तब भारत में एक भी पीपीई किट नहीं बनती थी। एन-95 मास्क का भारत में नाममात्र उत्पादन होता था। आज स्थिति ये है कि भारत में ही हर रोज 2 लाख पीपीई और 2 लाख एन-95 मास्क बनाए जा रहे हैं। उन्होने कहा कि विश्व के सामने भारत का मूलभूत चिंतन वसुधैव कुटुंबकम से आशा की किरण नजर आती है। भारत की इसी संस्कृति, संस्कार से हम इस लक्ष्य को प्राप्त कर लेंगे ।
समाजवादी दर्शन को मानने वालों की दृष्टि में हमेशा से ही वसुधैव कुटुंबकम की भावना रही है । जिसे वे अपनी संस्कृति और संस्कार भावना के माध्यम से पोषित करते हैं । और जब चिंतन में भारतीय संस्कृति और संस्कार की भावना रहेगी, तो संकुचित भावना आई नहीं सकती है। अगर संकुचित भावना नहीं होगी, तो निश्चित ही वह अपने उद्दात रूप मे विद्यमान होगी । ऐसे वह आत्मकेंद्रित नहीं हो सकती है। जैसा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी कहा कि मैं आत्मकेंद्रित व्यवस्था की वकालत नहीं करता। भारत की आत्मनिर्भरता में संसार के सुख, सहयोग और शांति की चिंता होती है। जो पृथ्वी को मां मानती हो, वो संस्कृति, वो भारतभूमि, जब आत्मनिर्भर बनती है, तब उससे एक सुखी-समृद्ध विश्व की संभावना भी सुनिश्चित होती है। भारत की प्रगति में तो हमेशा विश्व की प्रगति समाहित रही है। भारत के लक्ष्यों का प्रभाव, भारत के कार्यों का प्रभाव, विश्व कल्याण पर पड़ता है।
देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जिस तरह से अपनी भावनाओं का प्रयोग किया, उसके लिए जिन शब्दों का उपयोग किया। भारत को आत्म निर्भर बनाने के लिए जिन टूल्स का वर्णन किया, और उसे प्राप्त करने के लिए जिन टूलसों के उपयोग की बात की। वे सब समाजवादी हैं, समाजवादी न होते हुए भी उन्होने देश को इस संकट से निकालने के लिए समाजवादी रास्ता चुना । उससे देश के किसानों, श्रमिकों और मध्यम वर्ग को जोड़ा और उनके ही कंधों पर आत्म निर्भर बनाने का उत्तरदायित्व सौंपा । साथ ही यह भी कहा कि अगर भविष्य में फिर कभी इस तरह की महामारी आई, तो किसानों और श्रमिक ही सबसे कम प्रभावित होंगे। यही समाजवादी शिष्टाचार है ।
प्रोफेसर डॉ. योगेन्द्र यादव
पर्यावरणविद, शिक्षाविद, भाषाविद,विश्लेषक, गांधीवादी /समाजवादी चिंतक, पत्रकार, नेचरोपैथ व ऐक्टविस्ट