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जमीनी हकीकत, नरेंद्र मोदी और कोरेना से निपटने की रणनीति – प्रोफेसर डॉ. योगेन्द्र यादव

जमीनी हकीकत, नरेंद्र मोदी और कोरेना से निपटने की रणनीति – प्रोफेसर डॉ. योगेन्द्र यादव
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देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और समस्त राज्यों के मुख्यमंत्री एक ओर जहां कोरेना संकट के समाधान में लगे हुए हैं, वहीं दूसरी ओर प्रवासी मजदूरों को उनके जन्मस्थाली भेजने का भी कार्य कर रहे हैं। इस संबंध मंर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मुख्यमंत्रियों से वीडियो कान्फ्रेंसिंग के दौरान इसका जिक्र भी किया। उन्होने कहा कि मानव स्वभाव होता है कि वह अपने जन्म स्थली जाना चाहता है । इसलिए अपने पहले के निर्देशों में संशोधन करके उन्हें भेजने का निर्णय लिया गया । जब मैं उनके इस निर्णय पर विचार करता हूँ, तो ऐसा लगता है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पास जो सलाहकार हैं, उनके पास जमीनी जानकारी का अभाव है । देश में प्रधानमंत्री ने जिस दिन लॉक डाउन की घोषणा की, और यह कहा कि जो लोग जहां है, वहीं पर रहें, सरकार उनके भोजन का इंतजाम करेगी। इसका निर्देश भी उन्होने समस्त मुख्यमंत्रियों को निर्गत कर दिये। लेकिन ऐसा प्रतीत होता है कि प्रधानमंत्री की ही तरह प्रदेशों के मुख्यमंत्रियों के पास भी जमीनी हकीकत का अभाव है । इसलिए आइये मजदूरों की हकीकत पर थोड़ा विचार कर लेते हैं। देश के विभिन्न अंचलों से जो मजदूर महानगरों में रहने के लिए जाते हैं। उनके काम तो होता है, उसकी एवज में नियमित रूप से मजदूरी मिलने के कारण धन भी होता है, जिससे वे अपनी भूख का प्रबंध कर सकें। लेकिन उनके पास रहने का अभाव हो। इस देश के महानगर चाहे वे मुंबई हो, नई दिल्ली हो, कोलकाता हो, बंगलौर हो, या चेन्नई हो। इन महानगरों में एक ही कमरे में 5 से लेकर 12 मजदूर तक एक-एक कमरे में रहते हैं। उनके पास समान रखने की जगह नहीं होती है। इस कारण खाना पकाने के बर्तन और खाने – पीने के बर्तनों और कपड़ों के अलावा वे कुछ नहीं रखते हैं । जब शाम को वे अपने काम से लौटते हैं, तो पास की किसी किराना की दूकान से दो जून यानि शाम और सुबह के लिए भोजन सामाग्री खरीद कर लेते आते हैं। और सुबह खाना खाने के बाद उनके घर में फिर कुछ नहीं बचता । दूसरे प्रकार के वे मजदूर हैं, जो अपनी बीबी बच्चों के साथ मजदूरी करने के लिए विभिन क्षेत्रों से महानगरो में जाते हैं। ऐसे मजदूर हर हफ्ते अपने घरो में राशन भरते हैं। यानि उनके पास भी एक सप्ताह से अधिक का राशन नहीं होता है। उनके आस-पास दूकानों की भी हम थोड़ी सी चर्चा कर लेते हैं। जिस क्षेत्र में मजदूर रहते हैं, वहाँ राशन की छोटी-छोटी दुकाने होती हैं। यानि वे भी उतना ही राशन अपनी दूकानों में रखते हैं, जो एक सप्ताह चल जाए। यानि ये दुकानदार भी प्रतिदिन थोक विक्रेताओं के पास जाकर समान खरीद कर लाते हैं ।

इसी कारण जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लॉक डाउन लागू किया, तो राज्य सरकारों और सामाजिक संस्थाओं के तमाम प्रयासों के बाद भी मजदूरों में भुखमरी के हालात पैदा हो गए। लॉक डाउन के दौरान ऐसा कोई मजदूर परिवार नहीं होगा, जिसने इस लॉक डाउन के दूसरे चरण के बाद भरपेट भोजन किया हो। इसमें से बहुत मजदूर ऐसे रहे, जो एक सप्ताह के बाद से ही दो पूड़ी और सब्जी खाकर जीवन यापन करने को मजबूर हो गए । इसके लिए न तो प्रधानमंत्री को दोष देता हूँ, न ही मुख्यमंत्रियों को ही दोष देता हूँ। अगर इन सभी के पास जमीनी हकीकत की जानकारी होती, तो शायद वे और अधिक अच्छी तरह तैयारी करते और मजदूरों के पलायन की स्थिति नहीं आती ।

लॉक डाउन के पहले दिन से ही देश के विभिन्न अंचलों में रह रहे मज़दूरो के मैं लगातार संपर्क में हूँ, अगर उन्हे भरपेट भोजन मिलता, उनके छोटे-छोटे बच्चों को दूध मिलता तो शायद वे राज्य सकारों की तमाम सख्ती के सामने चुनौती बन कर खड़े नहीं होते है। जब उनके बच्चे भूख से मरने लगे, पहले लॉक डाउन की अवधि पूरी होने के बाद दूसरा और फिर तीसरे दौर का लॉक डाउन लागू हुआ, तब उन्होने अपने बच्चों को भूख से तड़फते देख कर मौत को चुनौती देते हुए अपने-अपने घरों की ओर जाना शुरू किया। उन्होने यह भी नहीं देखा कि उन्हें साधन मिलेगा कि नहीं, भोजन पानी की रास्ते में कैसे व्यवस्था होगी । वे चल पड़े। तमाम तकलीफ़ों को झेलते हुए कई तो अपने अपने गाँव पहुँच गए। भोजन और पानी के अभाव में कुछ लोगों ने अपनी जान गवां दी। कुछ हृदयविदारक दुर्घटनाएँ भी प्रकाश में आई । अंत में देश के प्रधानमंत्री को विशेष ट्रेन चला कर उन्हें उनके गाँव पहुँचाने का निर्णय लेना पड़ा।

तीसरे चरण का लॉक डाउन चल रहा है। पूरी हकीकत जानने के लिए प्रधानमंत्री ने एक बार फिर वीडियों कान्फ्रेंसिंग द्वारा राज्यों के मुख्यमंत्रियों से चर्चा की । जिसमें मुख्यमंत्रियों ने इस प्रकार अपने विचार प्रस्तुत किए -

तेलंगाना के मुख्यमंत्री ने कहा कि रेलवे की शुरुआत होने के बाद कोरोना संक्रमण और तेजी से साथ बढ़ेगा। राजस्थान के मुख्यमंत्री ने कहा कि अंतरराज्यीय सप्लाई चेन को सही तरीके से काम करने देना चाहिए। बिना राशन कार्ड के भी लोगों को राहत मिलनी चाहिए। गुजरात के मुख्यमंत्री ने कहा कि लॉकडाउन को कंटेनमेंट जोन तक ही सीमित रखा जाना चाहिए। सुरक्षात्मक उपायों के साथ आर्थिक गतिविधियों को शुरू करने के साथ ही और गर्मी छुट्टी के बाद स्कूल- कॉलेजों को खोलने और सार्वजनिक परिवहन को धीरे से शुरू करना चाहिए। तमिलनाडू के मुख्यमंत्री ने एनएचएम फंड जल्द और 2000 करोड़ रुपये की विशेष मदद और लंबित पड़ी जीएसटी की राशि जारी करने का अनुरोध किया । आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री कहा कि हमें सेल्फ आइसोलेशन के लिए आगे आना चाहिए। वैक्सीन तैयार होने तक इस कोरोना वायरस के साथ जीने के लिए तैयार करना चाहिए। हमें वायरस के संक्रमण को रोकने के लिए व्यापक तौर पर जागरूक करने की जरूरत है ।

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ने कहा कि केन्द्र को इस मुश्किल घड़ी में राजनीति नहीं करनी चाहिए। हम अंतरराष्ट्रीय सीमाओं और अन्य बड़े राज्यों घिरे हुए हैं और इसका सामना करना चुनौतीपूर्ण है। सभी राज्यों को बराबर का महत्व मिलना चाहिए और हमें टीम इंडिया की तरह काम करना चाहिए।

मुखमंत्रियों की बातें सुनने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सभी राज्य सरकारों की सराहना करते हुए कहा कि सभी सरकारों ने अपनी जिम्मेदारी को समझते हुए इस महामारी के खिलाफ लड़ाई में अपनी भूमिका निभाई है। हमने शुरू से इस बात पर जोर दिया था कि जो जहां हैं वहीं रहें। लेकिन घर जाना मानव का स्वभाव होता है, इसलिए हमने अपना निर्णय बदला। इसके बावजूद, हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि यह बीमारी गांवों में नहीं फैले। यही हमारी बड़ी चुनौती है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की भावना निश्चित रूप से पवित्र है। लेकिन उनके सलाहकारों और सूत्रों द्वारा जो जानकारी उन तक पहुंचाई जाती है, वह अपूर्ण होती है, इसलिए उनके निर्देश के बाद राज्य सरकारों द्वारा जो योजनयें बनाई जाती हैं, वह भी अपूर्ण होते हैं। प्रधानमंत्री ने यह जो आशंका व्यक्त की है कि प्रवासी मजदूरों को जाने के बाद कहीं यह बीमारी गावों ने न फ़ैल जाएँ। उनकी आशंका निर्मूल नहीं है। लेकिन उन्होने इसे चुनौती के रूप में स्वीकार करते हुए जो निर्देश राज्य सकारों को दिये हैं, वह सख्ती से पालन होना चाहिए । लेकिन वह होगा कैसे ? लगातार 45 दिनों से दिन-रात ड्यूटी करने के कारण विभिन्न प्रदेशों का पुलिस बल और कोरेना योद्धा भी शिथिल पड़ गए हैं। शुरुआती दिनों में जिस ऊर्जा के साथ इन लोगों ने काम किया, अब नहीं कर रहे हैं। ऐसे में राज्य सरकारों को पुलिस जवानों और कोरेना योद्धाओं को एक अंतराल के बाद छुट्टी देने और कुछ ऐसे प्रोग्राम चलाने की जरूरत है, जिससे वे खुद को ऊर्जावान महसूस कर सकें । चूंकि इसे परास्त करने के लिए लंबी लड़ाई लड़ने की जरूरत है । ऐसे में कोरेना और उससे बचाव की जानकारी से पूर्ण व्यापक स्तर पर जागरूकता अभियान चलाने की जरूरत है । लॉक डाउन इसका समाधान नहीं है। अगर समाधान के इस रास्ते को अख़्तियार करेंगे, तो निश्चित ही गरीब, मजलूम और मजदूर भूखों मरने लगेंगे। एक-एक नागरिक के साथ देश की आर्थिक स्थिति भी दयनीय हो जाएगी।

प्रोफेसर डॉ. योगेन्द्र यादव

पर्यावरणविद, शिक्षाविद, भाषाविद,विश्लेषक, गांधीवादी /समाजवादी चिंतक, पत्रकार, नेचरोपैथ व ऐक्टविस्ट

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