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लिपोमा के लक्षण और उसका नेचरोपैथी उपचार – प्रोफेसर डॉ. योगेन्द्र यादव

लिपोमा के लक्षण और उसका नेचरोपैथी उपचार – प्रोफेसर डॉ. योगेन्द्र यादव
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देश के गृहमंत्री अमित शाह द्वारा लिपोमा का आपरेशन कराने की वजह से पिछले दिनों इस बीमारी की चर्चा पूरे देश में रही । इसी चर्चा को सुनने के बाद मेरा भी ध्यान इस ओर गया। इसके बाद मैंने इस बीमारी का गहन अध्ययन और उसके नेचरोपैथी इलाज पर समग्रता के साथ विचार किया । मानव शरीर में जब कोई गांठ बन जाती है, जो लचीली होती है और शुरुआत के दिनों में उसमें किसी प्रकार का दर्द भी नहीं होता है। इस चर्बी से बनी गांठ को ही लिपोमा कहा जाता है । जो देखने में अजीब लगती है। शरीर की सुंदरता को बिगाड़ देती है । लेकिन अगर लिपोमा बिगड़ जाता है, तो वह कैंसर के रूप में परिवर्तित हो जाता है। इस कारण इससे पीड़ित व्यक्ति को समय से इसका इलाज करवा लेना चाहिए ।

लिपोमा होने के कारण

जब मैंने इसका गहन अध्ययन किया तो लिपोमा होने के निम्नलिखित कारण समझ में आए, जो इस प्रकार हैं -

1. आनुवंशिक : अपने अध्ययन में और कई केस हिस्ट्री को देखने के बाद मैं इस निर्णय पर पहुंचा कि एक उम्र के बाद शरीर में इस प्रकार की गांठ बनना आनुवांशिक भी हो सकता है। इसी कारण इस बीमारी का इलाज करने के पहले नेचरोपैथ पीड़ित से विभिन्न पहलुओं पर बात करके यह जानने का प्रयास करता है कि कहीं इसका कारण आनुवांशिक तो नहीं है ।

2. घाव के कारण : विभिन्न केस हिस्ट्री का अध्ययन करने पर मैं इस निष्कर्ष पर पहुंचा कि लिपोमा या शरीर में चर्बीयुक्त गांठ बनने का एक कारण पुराने समय में धूस की घाव लगना भी है । यह अक्सर देखा गया है कि कभी गिरने या अकस्मात ऐसी घाव लग जाने पर हम लापरवाह हो जाते हैं, जिसमें खून न निकला हो। यही घाव आगे चल कर लिपोमा का रूप धारण कर लेती है ।

3. मोटापा : इस बीमारी का एक कारण मोटापा भी है। मोटे व्यक्तियों को अतिरिक्त चर्बी जनरेट होने के कारण कभी-कभी यह किसी एक जगह पर कुछ अंत: कारणों की वजह से एक स्थान पर जमने लगती है, जो लिपोमा का रूप ले लेती है ।

4. अधिक शराब का सेवन : कई केस हिस्ट्री का अध्ययन करने पर मैंने पाया कि अक्सर लिपोमा ऐसे व्यक्तियों में अधिक मिलता है, जो लोग अक्सर मदिरापान करते हैं।

5. लीवर संबंधी रोग : अपने अध्ययन में मुझे यह मिला कि लिपोमा उन्हीं को होता है, जिन्हें लीवर संबंधी रोग होते हैं ।

नेचरोपैथी उपचार : लिपोमा का नेचरोपैथी इलाज भी हो सकता है, कोई सोच भी नहीं सकता है। आमतौर पर देखा गया है कि नेचरोपैथ भी इस दिशा में न तो कल्पना करता है, और न ही लिपोमा जैसे रोगों के इलाज में रुचि लेता है। आम आदमी की तरह उसे भी लगता है कि इसका सबसे कारगर इलाज आपरेशन है, अगर इससे थोड़ा और नीचे सोचता है, तो वह होम्योपैथी इलाज कराने की सलाह देता है। लेकिन तमाम केस हिस्ट्री का अध्ययन करने के बाद मैं इस नतीजे पर पहुंचा हूँ कि अगर लिपोमा ग्रसित व्यक्ति समय दे तो इसका इलाज नेचरोपैथ में भी संभव है ।

लिपोमा में सबसे पहले नेचरोपैथ बड़ी बारीकी से ग्रसित व्यक्ति की केस हिस्ट्री बनाता है । इससे वह यह जानने की कोशिश करता है कि इसके होने के कारण क्या हैं ? अगर पीड़ित मोटा है, तो उसके मोटापे को नियंत्रित करता है। अगर उसका लीवर खराब है, तो उसे ठीक करने के लिए नेचरोपैथी विधियाँ अपनाता है। अगर वह शराब पीता है, तो वह छूटे कैसे इसका प्रयास करता है । इसके बाद वह पंच कर्मों के साथ उसका इलाज करना शुरू करता है। पहले चरण में वह उसकी दिनचर्या नियमित करता है। सुबह टहलना, कसरत और योगाभ्यास कराता है। उसकी डाइट में उनका मिश्रण करता है, जो इस गांठ को गलाने में सहायक होती हैं ।

नेचरोपैथी में पीड़ित व्यक्ति पर ठंडे और गरम पानी का प्रयोग किया जाता है । गांठ वाले हिस्से को तीन से चार मिनट के लिए गर्म पानी में और फिर कुछ देर बाद उस हिस्से को दो मिनट के लिए ठंडे पानी में डुबाया जाता है । इसे कम से कम दस बार करें । इतना ही नहीं, पीड़ित व्यक्ति को इसी तरह गरम और ठंडे पानी से स्नान भी कराया जाता है। ठंडे पानी में दर्द निवारक गुण होता है, और गरम पानी रक्त संचार को बेहतर बनाता है ।एक कुशल नेचरोपैथ लिपोमा ग्रसित व्यक्ति को एक अंतराल के बाद नियमित रूप से नीबू पानी देना शुरू करता है और इसके साथ ही नीबू पानी की बराबर मात्रा करके उसे रूई के फाहे से उस गांठ पर लगाता भी है । नींबू में एंटी इंफ्लेमेटरी गुण पाए जाते हैं, जो सूजन को कम करने में मदद करते हैं। अगर नीबू नहीं उपलब्ध होता है, तो नेचरोपैथ उसके स्थान पर सेव के सिरके का इस्तेमाल करता है। कुछ नेचरोपैथ हल्दी के पेस्ट का भी उपयोग करते हैं । अगर व्यक्ति मोटा नहीं है तो उसे हल्दी मिला दूध भी पीने के लिए देते हैं।

हल्दी में एंटीसेप्टिक, एंटीइंफ्लेमेटरी और एंटीमाइक्रोबियल औषधीय गुण होते हैं। जो सूजन को कम करने के साथ बैक्टीरियल इन्फेक्शन कम करने का काम करता है । अगर गर्मी का दिन हैं तो हर नेचरोपैथ दिन में खाने के लिए तरबूज भी देता है, जो अपने एंटी आक्सीडेंट गुण के कारण शरीर के विषैलेपन को दूर करता है । लहसुन का उपयोग भी लाभकारी होता है । लहसुन में एंटीमाइक्रोबियल, एंटीऑक्सीडेंट, एंटीबैक्टीरियल और एंटीफंगल गुण पाए जाते हैं। जो गांठ को कम करने में मदद करते हैं । जायफल और शहद का मिश्रण भी बहुत उपयोगी होता है । वैज्ञानिक शोध के अनुसार एंटी इंफ्लेमेटरी एवं एंटीऑक्सीडेंट गुण के कारण यह गांठ की चर्बी दूर करने, उसकी सूजन उतारने और रक्त प्रवाह ठीक करने में सहायक होता है । लिपोमा ग्रसित को नेचरोपैथ सुबह उठ कर बिना कुल्ला किए एक गिलास गरम पानी पीने को देता है । उस गांठ पर नारियल का तेल भी लगाता है ।

एक नेचरोपैथ लिपोमा पीड़ित मरीज की हिस्ट्री के अनुसार लिपोमा पीड़ित मरीज को विटामिन ए और विटामिन ई युक्त खाद्य पदार्थ को उसके भोजन में प्रचुर मात्रा में शामिल करता है, जो लिपोमा को ठीक करने में बेहद सहायक होते हैं । विटामिन ए त्वचा, हड्डियों और शरीर की अन्य कोशिकाओं को मजबूत बनाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह एंटी आक्सीडेंट के रूप में भी काम करता है। जो कोशिकाओं को क्षतिग्रस्त होने से बचाता है और सूजन संबंधी समस्या नहीं उत्पन्न होने देता है । विटामिन ई एक बेहतरीन क्लीनर के रूप में काम करता है। मृत कोशिकाओं को सफाई करता है। लाल रक्त कणिकाओं के निर्माण में सहायक की भूमिका निभाता है। इसके आक्सीडेंट त्वचा की झुर्रियों को रोकने में अहम भूमिका निभाते हैं। त्वचा की प्रकृतिक नमी को बनाए रखता है। त्वचा संबंधी कोशिकाओं के निर्माण में अहम भूमिका निभाता है । इसमें कैंसररोधी गुण होते हैं, जो लिपोमा को कैंसर में परिवर्तित होने से रोकता है । यह डायबिटीज़ के खतरे को कम करता है, और इम्यून सिस्टम को मजबूती प्रदान कर एलर्जी से बचाता है। यह थायराइड और पिट्यूटरी ग्लैंड की क्रिया को सुचारु रूप से संचालित होने में मदद करता है । इसी कारण प्राय: यह देखा गया है कि एक नेचरोपैथ लिपोमा ग्रसित व्यक्ति को खाने में नियमित रूप से प्याज,तरबूज, पनीर, अंडे, मछली, गाजर,शकरकंद, हरी पत्तेदार सब्जियाँ, कद्दू, हरा धनिया, टमाटर, लाल शिमला मिर्च, अंकुरित गेहूं, बादाम, सूरजमुखी के बीज, मूँगफली और उसका तेल, सोयाबीन आयल, आदि देता है । इसके अलावा नेचरोपैथ रोगी को जल्द ठीक करने के लिए ऐसे सीजनल फलों और उसके रसों का भी उपयोग करता है ।

इसके अलावा कुछ भोज्य पदार्थ ऐसे भी हैं, जो लिपोमा ग्रसित व्यक्ति के ठीक करने में बाधक बन सकते हैं, इसलिए वह ऐसे पदार्थों को खाने से उसे मना भी करता है । वह उसे तेल व मसाले वाले खाद्य पदार्थ, नारियल,रेड मीट आदि भोजन में नहीं देता है ।

प्रोफेसर डॉ. योगेन्द्र यादव

पर्यावरणविद, शिक्षाविद, भाषाविद,विश्लेषक, गांधीवादी /समाजवादी चिंतक, पत्रकार, नेचरोपैथ व ऐक्टविस्ट

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