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उत्तर प्रदेश श्रम कानून संशोधन अध्यादेश : सरकार बनाम विपक्ष – प्रोफेसर (डॉ.) योगेन्द्र यादव

उत्तर प्रदेश श्रम कानून संशोधन अध्यादेश : सरकार बनाम विपक्ष – प्रोफेसर (डॉ.) योगेन्द्र यादव
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एक ओर पूरा विश्व कोरेना संक्रमण की त्रासदी से परेशान है। देश के प्रधानमंत्री और प्रदेश सरकारो के तमाम निर्देशों के बाद भी तीसरा लॉक डाउन आते-आते गरीब जनता और मजदूर बेहाल हैं। एक महीने से अधिक हो गए, मजदूरों को काम न मिल पाने की वजह से वे भुखमरी की कगार पर पहुँच गए हैं। केंद्र सरकार से लेकर प्रदेश सरकारो की वित्तीय स्थिति बदतर हो गई है। यह जानते हुए भी कि लॉक डाउन के दौरान अगर शराब की दूकाने खोली गई, तो सोशल डिस्टेन्सिंग की सारी कवायद पर सवालिया निशान लग जाएगा। फिर भी सरकार ने शराब की दूकानों को खोलने का कदम उठाया। तमाम विसंगतियाँ भी पैदा हुई। विपक्ष और बुद्धिजीवियों द्वारा कठोर आलोचना की गई, लेकिन सरकार ने शराब की दूकानों को खोलने का जो निर्णय लिया, वह उससे पीछे नही हटी । इसके अलावा उत्तर प्रदेश सहित अन्य राज्य सरकारों के सामने दूसरी जो सबसे बड़ी समस्या आ रही है, वह है प्रवासी मजदूरों को रोजगार देने की । इस समय प्रदेश से बाहर जाकर अपनी रोजी – रोटी कमाने वाले मजदूर बड़ी संख्या में रोज अपने घर आ रहे हैं। ऐसे लोगों को रोजगार देने के बारे में भी सभी राज्य सरकारों ने विचार करना शुरू कर दिया है। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने 5 लाख प्रवासी मजदूरों के रोजगार सृजन और उनके समायोजन की भी चर्चा सार्वजनिक रूप से की । लॉक डाउन के दौरान प्रदेश की वित्तीय स्थिति सुधारने और उद्योग धंधों को सुधारने के दृष्टिकोण से उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अगले तीन सालों के लिए एक अध्यादेश लाकर श्रम कानून में संशोधन कर दिया। जैसे ही यह संशोधन प्रकाश में आया । मजदूर संगठनों के साथ – साथ विपक्षी दलों ने इसका विरोध किया । वहीं सरकार ने भी अपने कुछ मंत्रियों को लगाया। जो श्रम कानून संशोधन विधेयक का जोरदार तरीके से समर्थन में जुटे हुए हैं। जनता, मजदूर सभी असमंजस में हैं कि ऐसा कोरेना संक्रमण की आड़ में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और उनकी सरकार ने ऐसा कौन सा संशोधन कर दिया, जिसकी वजह से राजनीतिक भूचाल आ गया । इस लेख में इसी प्रकार विचार कर रहा हूँ ।

इस अध्यादेश के बाद श्रम विभाग के अधीन जितने भी रजिस्टर्ड कारखाने हैं, उसमें मालिकों को यह छूट दी गई है कि वे युवा श्रमिकों से 12 घंटे काम ले सकते हैं । इस संशोधन के बाद अब मजदूरों को प्रतिदिन 12 घंटे और एक सप्ताह में 72 घंटे काम करना पड़ेगा ।

श्रम कानून के अनुसार अब तक एक दिन में हर मजदूर को अधिकतम आठ घंटे और एक सप्ताह में 48 घंटे काम कराने का नियम था। इसके बाद अगर वे काम पर लिए जाते थे, तो उन्हें ओवरटाइम दिया जाता था। लेकिन इस अध्यादेश के बाद अब ओवर टाइम का कालम ही समाप्त हो गया । अब शेष चार घंटे की मजदूरी ही मजदूर को मिलेगी। जो दुगुनी मिलती थी, उस पर रोक लगा दी गई है ।

उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा लाये गए अध्यादेश में श्रम विभाग में 40 से अधिक प्रकार के श्रम क़ानूनों का मजदूरों के हित में प्रावधान किया गया है। नए अध्यादेश में केवल आठ श्रम क़ानूनों को यथावत रखा गया है। इनमें 1976 का बंधुआ मजदूर अधिनियम, 1923 का कर्मचारी मुआवजा अधिनियम और 1966 का अन्य निर्माण श्रमिक अधिनियम के अलावा महिलाओं और बच्चों से संबंधित कानूनों के प्रावधान जैसे कि मातृत्व अधिनियम, समान पारिश्रमिक अधिनियम, बाल श्रम अधिनियम शामिल हैं। इसके अलावा मजदूरी भुगतान अधिनियम की धारा 5 को बरकरार रखा गया है, जिसके तहत प्रति माह 15,000 रुपये से कम आय वाले व्यक्ति के वेतन में कटौती नहीं की जा सकती है।

उत्तर प्रदेश राज्य औद्योगिक विकास प्राधिकरण क्षेत्रों में उद्योग शुरू करने की अवधि को एक वर्ष से बढ़ाकर एक वर्ष तीन माह किया गया है । राज्य में नए निवेश और पूर्व में स्थापित कल-कारखानों के लिए श्रम नियमों में 1000 दिनों की अस्थायी छूट दी गई है । उद्योगपतियों और मालिकों के लिए 'साथी पोर्टल' लॉन्च किया गया है ।

उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा लाये गए नए अध्यादेश के अनुसार ट्रेड यूनियन ऐक्ट, 1926 से भी उद्योगपतियों को छूट दे दी गई है। उद्योगपतियों द्वारा मजदूरों और कर्मचारियों का शोषण न हो, इसमें ट्रेन यूनियनें महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती रही हैं। वे उद्योगपतियों और उनके प्रबंध तंत्र पर दबाव डाल कर मजदूरों और कर्मचारियों के हितों में उचित मांग मनवा लिया जाता था। इस अध्यादेश के बाद अब अगले तीन साल तक किसी भी कारखाने में ट्रेड यूनियन होगी ही नहीं। प्रबंध तंत्र और उद्योगपतियों को खुली छूट होगी कि वे अपने कल- कारखाने चलाएं ।

उत्तर प्रदेश के सभी श्रम संगठनों ने इस पर आपत्ति दर्ज कराते हुए कहा है कि इस अध्यादेश में जो संशोधन किये गए हैं, उसके अनुसार मजदूरों को मिलने वाले कई लाभ स्वत: समाप्त हो जाएंगे । ग्रेच्युटी भुगतान से बचने के लिए उद्योग ठेकेदार के माध्यम से मजदूरों को लगाएंगे और इनफॉर्मल इकॉनमी में काम कराएंगे।

उनका यह भी आरोप है कि इस अध्यादेश से, कल-कारखानो के मालिकों को खुली छूट मिल जाएगी । जिससे वे किसी कर्मचारी को कभी भी नौकरी से निकाल सकते हैं । जबकि अभी तक श्रम कानून के अनुसार उद्योगपतियों को मजदूरों और कर्मचारियों को निकालने के लिए नोटिस देनी पड़ती थी। उसके जवाब से असंतुष्ट होने के बाद उन्हें निकाला जाता था। इस दौरान ट्रेड यूनियने भी मालिकों पर दबाव बनाती थी, जिससे किसी मजदूर को बिना विशेष गलती के नौकरी से हाथ न धोना पड़े ।

ट्रेड यूनियनों के अलावा उत्तर प्रदेश की प्रमुख विपक्षी पार्टियों ने इस अध्यादेश को लेकर अपनी-अपनी प्रतिक्रियाएँ दी हैं। समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष व पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने ट्वीट करके न केवल इस अध्यादेश का विरोध किया। बल्कि वे इस अध्यादेश को इतना खतरनाक मानते हैं, जिससे मजदूरों का भविष्य चौपट हो सकता है। उनकी आजादी छिन सकती है। इस कारण उन्होने प्रदेश सरकार से इस्तीफा तक मांग लिया । उन्होने अपने ट्वीट में लिखा कि उत्तर प्रदेश की भाजपा सरकार ने एक अध्यादेश के द्वारा मज़दूरों को शोषण से बचाने वाले 'श्रम-क़ानून' के अधिकांश प्रावधानों को 3 साल के लिए स्थगित कर दिया है । ये बेहद आपत्तिजनक व अमानवीय है। श्रमिकों को संरक्षण न दे पाने वाली ग़रीब विरोधी भाजपा सरकार को तुरंत त्यागपत्र दे देना चाहिए । समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने दो ऐसे शब्दों का उपयोग अपने ट्वीट में किया है, जो विचारणीय हैं। उन्होने इस अध्यादेश में किए गए संशोधनों को आपत्तिजनक और अमानवीय कहा है । कोई कार्य या संशोधन कब आपत्तिजनक होता है, कब अमानवीय होता है, जब उसमें सामाजिक और मानवीय दोनों पहलुओं को नजरंदाज कर दिया जाता है । इसे आपत्तिजनक और अमानवीय बताने के पीछे कई बिन्दु विचारणीय हैं। पहला कि मजदूरों के काम के घंटे बढ़ा कर 8 की जगह 12 कर दिये गए। पहले उसे ओवरटाइम करने पर दुगुना धन प्राप्त होता था। अब उसे सामान्य मजदूरी के हिसाब से ही शेष चार घंटे की मजदूरी मिलेगी। दूसरा इस संशोधन विधेयक से मालिक जब चाहेगा, उन्हे नौकरी से निकाल बाहर कर देगा। उसका पक्ष लेने वाली ट्रेड यूनियनों को भी इस संशोधन से निष्क्रिय कर दिया गया है, इसलिए वह अपने विरुद्ध लिए गए अमानवीय और अनैतिक कदम का विरोध भी नही कर सकेगा। इस संशोधन के बाद न तो वह कोर्ट जा सकेगा और न ही पुलिस के पास।

समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव के साथ इस समय उत्तर प्रदेश के मसलों में काफी सक्रिय दिखाई दे रही कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने अपने ट्वीट से न केवल इस अध्यादेश का विरोध किया, अपितु उसे तत्काल रद्द करने की मांग भी कर डाली । अपने ट्वीट में उन्होने लिखा कि

उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा श्रम कानूनों में किए गए बदलावों को तुरंत रद्द किया जाना चाहिए । आप मजदूरों की मदद करने के लिए तैयार नहीं हो । आप उनके परिवार को कोई सुरक्षा कवच नहीं दे रहे । अब आप उनके अधिकारों को कुचलने के लिए कानून बना रहे हो । मजदूर देश निर्माता हैं, आपके बंधक नहीं हैं ।

प्रियंका गांधी ने उन शेष बिन्दुओं को उठाया, जो समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव के ट्वीट में छूट गए थे। उन्होने मजदूरों के परिवार की सुरक्षा कवच का मसला उठाते हुए कहा कि मजदूर किसी के बंधक नहीं हैं बल्कि पूरी तरह से आजाद हैं। देश के निर्माण में उनकी अहम भूमिका होती है। इसलिए उनकि आजादी और उनकी परिवारों की सुरक्षा कवच को नष्ट करने वाले इस अध्यादेश को तुरंत समाप्त करना चाहिए ।

लेकिन उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ उनके इन आरोपों को निराधार बताते हुए अपने मंत्रियों को अपनी सरकार का पक्ष रखने के लिए आगे किया । इसलिए इस समय इस अध्यादेश को लेकर सरकार और विपक्ष आमने – सामने हैं । अगर लॉक डाउन न होता, तो इसके विरोध में विपक्षी पार्टियों के कार्यकर्ता और नेता अभी तक सड़कों पर विरोध प्रदशन कर रहे होते । उत्तर प्रदेश के श्रम मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्य ने इस अध्यादेश की जोरदार वकालत करते हुए कहा कि यह अध्यादेश मजदूरों और राज्य के पूरी तरह हित में है। विपक्ष बेकार में घड़ियाली आँसू बहा रहा है । हमने श्रमिकों के सभी हितों को सुरक्षित रखते हुए राज्य में नए निवेश के रास्ते खोले हैं। नए निवेश से बंद उद्योग-धंधे पुनर्जीवित होंगे। इससे जहां एक ओर प्रदेश में नए उद्योग धंधे लगेंगे, वहीं अधिक से अधिक प्रवासी मजदूरों को समायोजित करने में मदद भी मिलेगी।

अभी अध्यादेश का राजपत्र घोषित नहीं हुआ है। इसलिए उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और उनकी सरकार को विपक्ष के आरोपों पर गंभीरतापूर्वक विचार करते हुए उसके संशोधित स्वरूप का प्रकाशन करना चाहिए । अगर यह अध्यादेश वाकई मजदूरों के लिए इतना अमानवीय है, तो विपक्ष को भी अपनी सार्थक भूमिका निभानी चाहिए ।

प्रोफेसर डॉ. योगेन्द्र यादव

पर्यावरणविद, शिक्षाविद, भाषाविद,विश्लेषक, गांधीवादी /समाजवादी चिंतक, पत्रकार, नेचरोपैथ व ऐक्टविस्ट

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