कोरेना संकट में महात्मा बुद्ध की शिक्षाओं की प्रासंगिकता – प्रोफेसर डॉ. योगेन्द्र यादव

(बुद्ध पूर्णिमा पर विशेष)
इस समय पूरा विश्व कोरेना संक्रमण के कारण लॉक डाउन की प्रक्रिया से गुजर रहा है । भारत में लोकतन्त्र है। इस कारण देश के प्रधानमंत्री की यह अहम ज़िम्मेदारी बनती है कि वे एक – एक नागरिक को कोरेना संक्रमण से बचाएं । प्रधानमंत्री अपने इसी कर्तव्य का निर्वहन कर रहे हैं। आज बुद्ध पूर्णिमा है। लॉक डाउन का तीसरा चरण चल रहा है। पहले दो चरणों की घोषणा उन्होने खुद ही की थी, लेकिन तीसरे चरण की घोषणा गृह मंत्रालय की ओर से हुई। प्रधानमंत्री ने देश की जनता को संबोधित नहीं किया। इस पर तमाम नकारात्मक प्रतिक्रियाएँ भी की गई । लेकिन आज बुद्ध पूर्णिमा के दिन वे टीवी पर आए और वीडियो कान्फ्रेंसिंग के माध्यम से देश की जनता से बात की । उन्होने कहा कि इस बार परिस्थितियां अलग हैं। दुनिया मुश्किल समय से गुजर रही है। बुद्ध के कदम पर चलकर भारत आज दुनिया की मदद कर रहा है। फिर चाहे वो देश में हो या फिर विदेश में, इस दौरान लाभ-हानि को नहीं देखा जा रहा है। भारत बिना किसी स्वार्थ के दुनिया के साथ खड़ा है। हमें अपने, अपने परिवार के साथ ही दूसरों की भी सुरक्षा करनी होगी। संकट के समय हर किसी की मदद करना ही सबका धर्म है। हमारा काम निरंतर सेवा भाव होना चाहिए। दूसरों के लिए करुणा-सेवा का भाव रखना जरूरी है। भगवान बुद्ध कहना था कि मानव को निरंतर यह प्रयास करना चाहिए कि वह कठिन परिस्थितियों पर विजय प्राप्त करे, उनसे बाहर निकले। थक कर रुक जाना, कोई विकल्प नहीं होता। बुद्ध भारत के बोध और आत्मबोध, दोनों का प्रतीक हैं। बुद्ध किसी एक परिस्थिति तक सीमित नहीं हैं। वह हर किसी को मानवता की मदद करने का संदेश देते हैं। समय बदला, स्थिति बदली, समाज की व्यवस्थाएं बदलीं, लेकिन भगवान बुद्ध का संदेश जीवन में निरंतर विद्यमान रहा है। हम सभी के जीवन में उसका विशेष स्थान रहा है। बुद्ध सिर्फ एक नाम नहीं है बल्कि एक पवित्र विचार भी है। प्रत्येक जीवन की मुश्किल को दूर करने के संदेश और संकल्प ने भारत की सभ्यता को, संस्कृति को हमेशा दिशा दिखाई है। भगवान बुद्ध ने भारत की इस संस्कृति को और समृद्ध किया है। आज दुनिया में उथलपुथल है, ऐसे समय पर बुद्ध की सीख जरूरी है।
उनके इस सम्बोधन के बाद मन में महात्मा बुद्ध का जीवन और उनके द्वारा दी गई तमाम शिक्षाएं मानस पटल पर प्रकट होने लगी । निश्चित रूप से महात्मा बुद्ध भारत के एक ऐसे महापुरुष हैं, जिनके द्वारा चलाये गए धर्म के कई देश अनुयायी हैं। वे सभी सम्पन्न और विज्ञान की दृष्टि से भी समर्थ हैं। महात्मा बुद्ध ने कहा था कि इस पृथ्वी पर जब कोई घटना घटती है। आदमी यह हमेशा जानना चाहता है कि यह घटना घटी कैसे ? इसका क्या कारण हैं। कभी-कभी उसके फलित होने के कारण साफ – साफ दिखाई दी हैं। इस कारण लोग इसका जवाब खोज लेते हैं । लेकिन कभी-कभी आपदा और कारण में कोई संबंध नहीं दिखाई पड़ता है। ऐसे में प्राय: यह देखा गया है कि इसके लिए लोग परा शक्तियों के क्रुद्ध होने के कारण घटी है, ऐसा कहने लगते हैं । लेकिन महात्मा बुद्ध इसका प्रतिवाद करते हैं। और अपने उपदेश में कहते हैं कि घटना चाहे बड़ी हो, या छोटी, हर घटना के पीछे कोई न कोई मानवी कारण होता है । कोई ऐसी घटना हो ही नहीं सकती, जिसका परा प्राकृतिक कारण हो । इसी कारण वे प्राय: कहते हैं कि अगर आदमी को अपना स्वतंत्र अस्तित्व कायम रखना है, तो वह बुद्धिजीवी बने और सत्य की खोज करे । कोरेना के संबंध में भी हमें उनके इन्हीं उपदेशों को ग्रहण करना चाहिए । हमें कोरेना वायरस की प्रकृति और उसे नष्ट करने के लिए वैक्सीन निर्माण करने पर ध्यान देना चाहिए। जब तक उसकी निर्मिति नहीं हो जाती है, तब तक हमें जो ऐतिहात विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा बताए गए हैं, उसका पूरी तरह से पालन करना चाहिए ।
लेकिन भारत के ऐसा देश हैं, जहां पर आर्थिक स्तर में भिन्नता पाई जाती है। कुछ लोगों के पास इतना धन है कि उसका कोई हिसाब ही नहीं है और कुछ लोगों के पास इतना कम है कि अगर वे एक दिन काम न करें, या उन्हें काम न मिले, तो उन्हें और उनके परिवार के सामने भूखे मरने की स्थिति आ जाएगी। इसी कारण भारत में लॉक डाउन लागू की घोषणा के साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सरकार की ओर से ऐसे लोगों की रोटी की व्यवस्था तो की ही, देश के समाजसेवियों को भी सेवा करने के लिए आह्वान किया। पहले चरण तक तो सब कुछ ठीक रहा । सरकारें, प्रशासन और समाजसेवियों ने मिल कर संभाल लिया। दूसरे चरण में भी अमूमन स्थिति ठीक ही रही। मगर इस समय चल रहे तीसरे चरण के दौरान समाजसेवियों की आर्थिक स्थिति जवाब दे गई और सरकार भी शिथिल पड़ गई ।
महात्मा बुद्ध की शिक्षाओं, जिनका जिक्र प्रधानमंत्री ने किया, ऐसे मुश्किल समय में काफी उपयोगी हो सकती हैं। क्योंकि वे अधिक व्यावहारिक हैं। महात्मा बुद्ध ने अपने प्रवचनों में प्राय: कहा कि मनुष्य को अपने मन के मेल को दूर करने का निरंतर प्रयास करना चाहिये, जिससे वह निर्मल बन सके । महात्मा बुद्ध आगे कहते हैं कि मन ही सबका मूल है। मन ही मालिक है और मन ही कारण भी है । यदि मनुष्य का मन मैला हो जाएगा, तो वह दुष्ट वाणी बोलेगा, दुष्ट व्यवहार करेगा। इसलिए मनुष्य को अपना मन शुद्ध रखना चाहिए । जिससे उसकी वाणी भी शुद्ध हो जाएगी और उसका व्यवहार भी शुद्ध हो जाएगा। अगर ऐसा हुआ तो वह आज की स्थिति में तब तक भोजन नहीं करेगा, जब तक उसका पड़ोसी या उसके परिचित भोजन नहीं कर लेंगे । वे उसी धर्म को उचित मानते हैं, जो सभी के लिए ज्ञान का द्वार खोल दे। इस महामारी के समय उसमें ऊंच नीच की भावना समाप्त हो जाना चाहिए। दूसरे धर्म के प्रति विकर्षण भी समाप्त हो जाना चाहिए। सिर्फ मानव धर्म सर्वोपरि हो जाना चाहिए । अगर मानव धर्म की चिंतना मनुष्य में बन गई, तो निश्चित रूप से लॉक डाउन के समय उत्पन्न होने वाली समस्त विसंगतियों का हम अपने स्तर पर ही निराकरण कर लेंगे । महात्मा बुद्ध लोगों को सावधान भी करते हैं, वे कहते हैं कि मनुष्य का केवल विद्वान होना ही पर्याप्त नहीं है। उसका व्यवहारिक होना भी उतना ही जरूरी है। संवेदनशील होना भी उससे अधिक जरूरी है । आज की स्थिति में ऐसे ही विद्वानों की जरूरत है । महात्मा बुद्ध आवश्यकता पर बल देते हैं। वे कहते हैं कि मनुष्य को अपनी, समाज और देश की आवश्यकता के अनुरूप अपने में बदलाव लाना चाहिए । महात्मा बुद्ध मनुष्य की सारी बौद्धिक उपलब्धियों को निरर्थक मानते हैं । वे कहते हैं कि अगर बौद्धिक उपलब्धियों के साथ ही मानव करुणापूर्ण नहीं है, तो सब बेकार है। आज की स्थिति में अगर मानव में करुणा आ जाए, तो संकट चाहे कितना बड़ा क्यों न हो, हम उससे निजात पा ही लेंगे । महात्मा बुद्ध आगे कहते हैं कि करुणा भी तभी उपयोगी होगी, जब वह बिना किसी भेदभाव के सभी से मैत्री करेगा । इसके लिए उसे अपने मन के भीतर की वह सभी दीवारें गिरानी पड़ेगी, जो आदमी और आदमी में भेद पैदा करती हैं । इससे हर एक आदमी दूसरे आदमी को भी अपने समान मानने लगेगा और सभी से समान व्यवहार करने लगेगा। इसी कारण महात्मा बुद्ध का त्यागपूर्ण जीवन और उनकी लोक कल्याणकारी शिक्षाएं आज कोरेना महामारी से निपटने और लॉक डाउन से उत्पन्न विसंगतियों के समाधान के लिए अत्यंत आवश्यक हैं। बस देश के हर नागरिक को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तरह उसे आत्मसात करने की जरूरत है ।
प्रोफेसर डॉ. योगेन्द्र यादव
पर्यावरणविद, शिक्षाविद, भाषाविद,विश्लेषक, गांधीवादी /समाजवादी चिंतक, पत्रकार, नेचरोपैथ व ऐक्टविस्ट