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कैसे देंगे कोरेना संक्रमण को मात ? ठेकों पर आदमी और नलों पर औरतों की लग रही है लंबी-लंबी कतार – प्रोफेसर डॉ. योगेन्द्र यादव

कैसे देंगे कोरेना संक्रमण को मात ? ठेकों पर आदमी और नलों पर औरतों की लग रही है लंबी-लंबी कतार – प्रोफेसर डॉ. योगेन्द्र यादव
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इस समय पूरा विश्व कोरेना नमक वायरस के संक्रमण के प्रसार को रोकने के लिए अपने-अपने देश में लॉक डाउन लागू किए हुए हैं । भारत में भी लॉक डाउन का तीसरा चरण चल रहा है। लेकिन तीसरे चरण तक आते-आते सरकार ने सबसे पहले सबसे अधिक राजस्व प्रदान करने वाले आबकारी विभाग को शराब की दुकाने खोलने का निर्देश दिया । जिसकी वजह से उत्तर प्रदेश सहित पूरे देश में शराब की दूकाने खुली । रिकार्ड बिक्री हुई । कहीं दूकान बंद न हो जाए, इसलिए लोगों ने संग्रह करने की मंशा से अपने-अपने घरों ने स्टाक करने के लिए अधिक से अधिक शराब खरीदा । जिससे सभी प्रांतीय सरकारों को खूब राजस्व प्राप्त हुई । लेकिन लॉक डाउन के समय लागू सोशल डिस्टेन्सिंग की धज्जियां उड़ी । कोरेना पर शराब भारी पड़ी । लेकिन उत्तर प्रदेश के आबकारी मंत्री इसे स्वीकार नहीं करते । वे कहते हैं कि शराब के ठेके खोलने के निर्णय में लोगों की सुविधा का भी ध्यान रखा गया है । क़ानून व्यवस्था और सोशल डिस्टेंसिंग बनाए रखने के लिए पुलिस तैनात की गई है । उत्तर प्रदेश सरकार को शराब की बिक्री बंद होने से प्रति माह पौने तीन हज़ार करोड़ रुपए के राजस्व नुकसान हो रहा था । राजस्व वसूली तो एक मक़सद है ही लेकिन जनता की ज़रूरत का भी ध्यान रखा गया है । इस समय उत्तर प्रदेश में ही शराब की 18 हज़ार से अधिक दूकानें हैं । आबकारी विभाग के अफसरों के अनुसार सामान्य स्थितियों में एक महीने उत्तर प्रदेश सरकार को 2100 - 2200 करोड़ रुपये का राजस्व मिलता है। चूंकि लाकडाउन में ढील मिलने के बाद पहले दिन कुछ ज्यादा बिक्री हुई है । इसलिए यह राजस्व करीब100 करोड़ हो सकता है। उनका यह भी कहना है कि फुटकर दूकानों पर चूंकि स्टाक सीमित था और मांग बहुत ज्यादा थी इसलिए शाम होने से पहले ही स्टाक खत्म हो गया। सबसे ज्यादा अंग्रेजी शराब ही बिकी। विभाग से मिले आंकड़ों के अनुसार सामन्य दिनों में प्रदेश में एक दिन में करीब 13 लाख लीटर देसी शराब, 6.5 लाख बोतल अंग्रेजी शराब और 12 से 13 लाख के बीच बीयर के केन की बिक्री होती थी। मगर लॉक डाउन के दौरान पहले दिल खुली दुकानों पर देसी शराब और बीयर की बिक्री अपेक्षाकृत कम हुई।

प्रयागराज में एक ही दिन में जिले के लोगों ने पांच करोड़ रुपये की शराब की खरीद की है। आमतौर पर प्रयागराज में रोजाना औसतन दो करोड़ रुपये की शराब की बिक्री होती है।

इस आशंका में की कहीं दुकान फिर बंद न हो जाए लोगों ने एक के बजाए दो और चार बोतल खरीद ली। आमतौर पर होली की बंदी के पहले भी एक दिन में इतनी बिक्री नहीं होती है। आबकारी नीति के अनुसार जिन दुकानों का कोटा पूरा नहीं हुआ है वो अगले सात दिनों तक अपना कोटा पूरा कर सकती हैं। जिन दुकानों का रिन्यूअल हो गया है और वहां पर स्टॉक खत्म हो गया है उन दुकानों पर स्टॉक दिया जाएगा और जिन दुकानों का रिन्यूअल नहीं हुआ और लॉटरी में दूसरे को मिल गई हैं साथ ही इन दुकानों पर स्टॉक खत्म हो गया है ऐसे दुकानदारों को अपनी दुकान नए कोटेदारों को देनी होगी।

शराब अगले सात दिनों तक पुरानी दर पर ही बिकेगी। इसका दो कारण है एक तो अभी नए रेट लगे नहीं है और दूसरे गोदामों में भी माल भरा है। जबकि हॉट स्पॉट वाले इलाकों में दुकानों को बंद रखा गया।

यही स्थिति पूरे भारत के हर राज्य की रही । जिन राज्यों में शराब बिकती हैं वहां सरकार के कुल राजस्व का पंद्रह से पच्चीस फ़ीसदी हिस्सा शराब से ही आता है । उत्तर प्रदेश, कर्नाटक और उत्तराखंड अपने कुल राजस्व का बीस फ़ीसदी से अधिक सिर्फ़ शराब की बिक्री से हासिल करते हैं । हालांकि केरल, तमिलनाडु और महाराष्ट्र में सरकार कुल राजस्व का दस फ़ीसदी से कम शराब बिक्री से प्राप्त होता है । क्योंकि यहां शराब पर टैक्स दूसरे प्रांतों के मुक़ाबले कम है । शराब को जीएसटी से बाहर रखा गया है । इसलिए हर राज्य अपने हिसाब से कर निर्धारित करते हैं । गुजरात और बिहार में शराब की बिक्री पर रोक है और इन राज्यों में सरकार को शराब से कोई राजस्व हासिल नहीं होता ।

शराब की दूकानों को खोलने के निर्णय का आम जनता के साथ केवल एक संगठन ने विरोध किया । उसका नाम है फ़ेडरेशन ऑफ़ ऑल इंडिया ट्रेडर्स । इसके राष्ट्रीय महामंत्री ने मीडिया से बातचीत करते हुए कहा कि 'शराब की दुकानों को खोलना राज्य सरकारों के मानसिक दिवालियेपन और राजस्व प्राप्त करने के स्वार्थ का जीता जागता सबूत है । इस निर्णय से सरकारों ने नागरिकों के स्वास्थय के साथ खिलवाड़ है और लॉकडाउन के मूल उद्देश्य ही नाकाम हो जाएगा । फेडरेशन ऑफ आल इंडिया ट्रेडर्स के महामंत्री ने सरकार से पूछा कि क्या देश में कोरोना का ख़तरा कम हो गया है जो शराब की दुकानों को खोला जा रहा है. यदि शराब की दुकानें खोली जा सकती हैं तो आम कारोबारियों की दुकानें क्यों नहीं खोली जा सकती हैं ।

इससे तो एक बात साबित हो गई कि भारत और राज्य सरकारों ने शराब की दूकानों को खोलने का निर्णय सोच-समझ कर लिया है। जनता के तमाम विरोध के बावजूद भी वे इसे बंद करने नहीं जा रही हैं। कोरेना संकट पर सवाल पूछने के बाद जिस तरह का उत्तर प्रदेश के आबकारी मंत्री ने दिया। उससे तो यही लगता है।

दूसरी तरह अधिकांश नगरों से प्राप्त समाचार और डाटा के अनुसार पीने के पानी के लिए भी नलो और सार्वजनिक हैंड पाइपों पर लंबी – लंबी औरतों की कतारे लगती हैं। जैसे ही पानी आने का समय होता है। पानी के सभी बर्तन लेकर औरतें नल और हैंड पाइपों पर पहुँच जाती हैं। और पानी भरना शुरू कर देती हैं। पानी भरने के दौरान कुछ औरतें तो अपने-अपने पानी के बर्तनों के पास खड़ी होती हैं, लेकिन कुछ औरतें लंबी लाइन होने की वजह से एक साथ बैठ कर बाते करती हैं। इस दौरान उनके सर पर पल्लू होता है, लेकिन उनके मुंह पर न तो मास्क होता है, और न ही वे कोई कपड़ा ही लपेटी रहती हैं। किसी भी शहर के किसी भी नल पर सोशल डिस्टेन्सिंग को लागू कराने के लिए न तो महिला पुलिस की व्यवस्था होती है, और न किसी पुलिस जवान की ही ड्यूटी लगाई जाती है ।

इसलिए कोरेना संकट के दौरान लोक डाउन को लागू करवाने का जो जिम्मा केंद्र और प्रदेश सरकारों ने पुलिस प्रशासन को दे रखा है। इन दोनों जगहों पर दिखाई नहीं देता है। शराब के ठेकों पर मीडिया और जनता की नजर होने के कारण हो सकता है कि वहाँ पर पुलिस प्रशासन लगा कर शराब खरीदने वालों से सोशल डिस्टेन्सिंग का पालन करवा लिया जाए। उन्हें मास्क पहनने के लिए भी विवश किया जाए। वैसे भी भारत देश के शराबों के शौकीन लोग शराब पीने के लिए किसी भी पाबंदी का पालन कर सकते हैं। शराब खरीदने के लिए वे गज़ब का अनुशासन पालन भी कर सकते हैं ।

दूसरी तरह हम गरीब बस्तियों और झुग्गी – झोपड़ियों में जहां अधिकांशत: मजदूर तबका रहता है। उनके लिए पीने के पानी भरने के लिए कुछ जगहों पर ही नल लगे हुए हैं। कुछ हैंड पाइप भी दिखाई पड़ते हैं। लेकिन उनमें से अधिकांश हैंड पाइपों में या तो पानी नहीं आता या वे बिगड़े पड़े हैं। इस साल सरकार की तरफ से नए नल लगाने के लिए अभी तक कोई निधि जारी नहीं हुई है । ऐसा कई जन प्रतिनिधियों ने बताया । जबकि गरीब बस्तियो में जहां पर पीने का पानी आता है, वहाँ पर आमतौर पर वहाँ की महिलाओं की भीड़ होती है। लेकिन कोरेना संक्रमण को देखते हुए न तो केंद्र सरकार की ओर से और न राज्य सरकार की ओर से अभी तक कोई कदम उठाया गया । अगर वाकई केंद्र और राज्य सरकारें लॉक डाउन के दौरान सोशल डिस्टेन्सिंग को लागू करवाना चाहती हैं, तो नगरों में जितनी झुग्गी – झोपड़ियाँ हैं, वहाँ पर पीने का पानी भरने के लिए और अधिक हैंड पाइपों या नालों का कनेकशन देना होगा। जिससे नलो पर लगने वाली भीड़ को रोका जा सके । गावों में यह समस्या नहीं है । वहाँ पर अधिकांश घरों में हैंड पाइप हैं। और नहीं हैं, तो वहाँ की दिनचर्या ऐसी हो गई है कि हैंड पाइपों पर भीड़ नहीं होती है । शहरों के जिन मजदूरो को लॉक डाउन के दौरान सरकार और समाजसेवी संस्थाएं भोजन वितरण कर रही हैं, जिससे वे सोशल डिस्टेन्सिंग का पालन करें और अपने – अपने घरों में रहें। अगर पीने के पानी भरने के लिए नलों के कनेकशन नहीं दिये गए या हैंड पाइपों की संख्या नहीं बढ़ाई गई, तो फिर इसका पालन कैसे हो सकेगा ? सरकारों को इस पर भी कोई योजना बनानी चाहिए ।

नही तो ठेकों पर पुरुष लंबी-लंबी लाइने लगा कर सोशल डिस्टेन्सिंग के नियम का उलंघन करेगा और झुग्गी झोपड़ियों और गरीब बस्तियों मे रहने वाली महिलाएं पीने के पानी के नलों पर इकट्ठा होकर, झुंड बना कर सोशल डिस्टेन्सिंग के नियम को तोड़ेंगी । इस कारण देश के नागरिकों, प्रधानमंत्री, सभी राज्यों के मुख्यमंत्रियों, प्रशासन द्वारा कोरेना संक्रमण को रोकने का जो प्रयास किया जा रहा है। वह सफल नहीं होगा ।

प्रोफेसर डॉ योगेन्द्र यादव

पर्यावरणविद, शिक्षाविद, भाषाविद,विश्लेषक, गांधीवादी /समाजवादी चिंतक, पत्रकार, नेचरोपैथ व ऐक्टविस्ट

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