लॉक डाउन, पुलिस पर हमले, कारण और निवारण – प्रोफेसर डॉ. योगेन्द्र यादव

कोरेना संक्रमण न फैले, इसके लिए देश के प्रधानमंत्री के निर्देश पर पूरे देश में लॉक डाउन है। लॉक डाउन का अर्थ है कि स्वेच्छा से अपने-अपने घरों में रहना और कोरेना संक्रमण से बचने के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा जारी दिशा-निर्देशों का पालन करना । इन दिशा-निर्देशों को पालन कराने की ज़िम्मेदारी सभी प्रदेशों के मुख्यमंत्रियों ने अपने-अपने राज्य के पुलिस जवानों को सौंपी हुई है। सभी प्रदेशों के पुलिस जवान भी इसके अनुपालन के लिए दिन-रात अपने कर्तव्यों का निर्वहन कर रहे हैं । उनके मानवीय पहलू की प्रशंसा भी हो रही है। देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी खुद भी उनके इस मानवीय संवेदनाओं से बहुत प्रभावित हैं। अपने मन की बात में उन्होने इसका उल्लेख भी किया था। लेकिन सबसे अधिक चौकाने वाली बात यह है कि आए दिन उन पर हमले भी हो रहे हैं। आज के लेख में उन्हीं कारणों पर प्रकाश डालना है। इसके लिए मैंने कई चिंतनशील विद्वानों और पुलिस अधिकारियों से चर्चा की । कुछ भुक्त भोगियों से भी चर्चा हुई। लॉक डाउन के दौरान कवरेज के लिए अपना जान हथेली पर लेकर कवरेज कर रहे कुछ पत्रकारों से भी इस संबंध में चर्चा हुई है। अपने व्यापक चिंतन और प्राप्त तथ्यों के आधार पर पुलिस पर हमले, कारण और निवारण पर आज चर्चा कर रहा हूँ । अपने मूल बिन्दु पर आने के पहले सम्पूर्ण देश में पुलिस पर हुए कुछ हमलों की चर्चा कर लेना जरूरी है ।
कानपुर में हॉटस्पॉट बजरिया थाना क्षेत्र के जुगियाना में एक परिवार को क्वारंटीन करवाने के लिए पहुंची मेडिकल टीम और पुलिस जवानों पथराव किया गया। उन्हें नियंत्रित करने के लिए घटना स्थल पर अधिक संख्या में पहुंचे पुलिस-पीएसी पर भी भीड़ ने पथराव कर दिया। । इसके बाद उपद्रवियों पर लाठीचार्ज करके और सब इंस्पेक्टरों द्वारा पिस्टल निकाल कर गोली चलाने की चेतावनी देने के बाद उपद्रवी भागे। तनावपूर्ण स्थिति देखते हुए प्रशासन को वहाँ पीएसी तैनात करना पड़ा । इस संबंध में एसपी कानपुर नगर पश्चिम डॉ. अनिल कुमार ने मीडिया को बताया कि कल्याणपुर के मसवानपुर में एक कोरोना संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में आने पर बजरिया के जुगियाना के नौ लोग संक्रमित हो गए । उन्हें क्वारंटीन करने के लिए जब पुलिस टीम पहुंची तो भीड़ ने उन पर पथराव कर दिया और मेडिकल टीम को वहाँ से खदेड़ दिया । पुलिसकर्मियों ने भागकर जान बचाई। इस दौरान कुछ उपद्रवियों ने पुलिस की गाड़ी में तोड़फोड़ कर आगजनी का प्रयास किया। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इस मामले का संज्ञान लिया और उन्होने सभी उपद्रवियों पर कड़ी कार्रवाई करने के निर्देश दिये । इसके बाद पुलिस ने उपद्रवियों के धरपकड़ शुरू की और सभी को गंभीर धाराओं में निरुद्ध कर जेल भेज दिया ।
पुलिस पर हमले की वारदात उत्तर प्रदेश के रामपुर में भी हुई । पुलिस की टीम लॉक डाउन का पालन कराने के लिए दड़ियाल कस्बे की गलियों में गई और बेवजह घूम रहे दो बाइक सवारों को रोका तो वहां के लोगों ने हंगामा कर उन्हें छुड़ा लिया । स्थानीय लोगों ने पुलिस से हाथापाई भी की । अपने को पिटता देख पुलिस जवानों ने वहाँ से निकल लेना ही उचित समझा । वहाँ से भागने के बाद उन्होने इसकी सूचना प्रशासनिक अधिकारियों को दी। इसके बाद वहाँ भारी संख्या में पुलिस बल पहुंचा और हमले में शामिल 10 लोगों के खिलाफ नामजद मुकदमा दर्ज किया । इसके बाद वहाँ स्थिति तनावपूर्ण हो गई । इस संबंध में अपर पुलिस अधीक्षक अरुण कुमार सिंह ने मीडिया को बताया कि ज्वाइंट मजिस्ट्रेट टांडा, एसएचओ टांडा, चौकी इंचार्ज लॉक डाउन का पालन कराने के लिए पैदल मार्च भी किया ।
पश्चिम बंगाल में हावड़ा के टिकियापार में शाम को जब पुलिस लोगों से अपने घरों में रहने और बेवजह न घूमने की अपील कर रही थी, उसी दौरान कुछ लोगों ने पुलिस पर पत्थर और चप्पल फेके। पुलिस ने जब उन पर कार्रवाई की तो वहाँ उपस्थित भीड़ उग्र हो गई और पुलिस पर प्राणघातक हमला कर दिया। जिसमें कई पुलिस अधिकारी बुरी तरह घायल हो गए। इसके बाद प्रशासन को रेपिड ऐक्शन फोर्स बुलाना पड़ा। तब जाकर स्थिति नियंत्रण में आई । इस संबंध में जब वहाँ के पुलिस अधिकारियों से संपर्क किया गया, तो उन्होने बताया कि हमलावरों की शिनाख्त की जा रही है। जिसने भी पुलिस अधिकारियों पर हमला किया है। उन पर मुकदमा दर्ज करके कानूनी कार्रवाई की जाएगी ।
इसी प्रकार की एक घटना उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद में भी घटी । यह हमला तब हुआ जब पुलिस के जवानों के साथ स्वास्थ विभाग की टीम कोरेना संक्रमित परिवार को क्वारंटीन कराने के लिए गई । तभी वहाँ उपस्थित भीड़ ने उन पर हमला कर दिया । जिसमें डॉक्टर, एंबुलेंस चालक समेत कई पुलिस जवान गंभीर रूप से घायल हो गए । इस संबंध में मुरादाबाद के पुलिस अधीक्षक अमित पाठक ने बताया कि नागफनी थाना क्षेत्र के हॉटस्पॉट क्षेत्र में पुलिस और स्वास्थ्य विभाग की टीम को साथ लेकर दो दिन पहले कोरोना पॉजिटिव कारोबारी की मौत के बाद उसके परिवार और आस-पड़ोस के सदस्यों को क्वारंटीन कराने गई । तभी वहाँ लोगों ने स्वास्थ्य विभाग की टीम और पुलिस पर हमला बोल दिया । घटना की सूचना मिलते ही अधिकारियों ने वहाँ पहुँच मोर्चा संभाला, तब जाकर लोग शांत हुए । इसमें 17 लोगों के ख़िलाफ़ आईपीसी की धारा 147, 148, 149, 188, 269, 270, 332, 353, 307 में अभियोग दर्ज किया गया ।
पंजाब के पटियाला में सन्नौर रोड स्थित सब्जी मंडी के बाहर कर्फ्यू पास मांगने पर भड़के निहंग सिंह ने पुलिस पर तलवारों से हमला कर एक एएसआई के बाएं हाथ को कलाई काट डाला। हमले में तीन पुलिसकर्मी और एक मंडी बोर्ड का एक कर्मचारी भी घायल हो गया । आरोपी भागकर गुरुद्वारे में जा छिपे। इसकी सूचना मिलने पर पुलिस अधिकारियों ने कमांडो फोर्स बुलाया । उन पर भी उधर से फायरिंग की गई। बाद में 11 आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया गया। इस संबंध में एसएसपी मनदीप सिंह सिद्धू ने बताया कि सुबह करीब सवा छह बजे एक सफेद रंग की टाटा जेनन में चार निहंग सिंह और डेरा प्रमुख बलविंदर सिंह सन्नौर सब्जी मंडी पहुंचे। मंडी बोर्ड के मुलाजिमों ने इन्हें गेट पर रोका और कहा कि वह कर्फ्यू पास दिखाएं। आरोपियों ने मंडी बोर्ड मुलाजिम को धक्का दिया और गाड़ी से बैरिकेड तोड़कर आगे चले गए। वहाँ तैनात पुलिस जवानों ने जब उनको रोका, तो वे भड़क गए और गुस्साए निहंगों ने तलवारें और किरपाण निकाल कर पुलिस वालों पर हमला कर दिया। इसी तरह की कई घटनाएँ अन्य प्रदेशों में भी घटी, लेख में स्थान की मर्यादा होती है। उसे ध्यान में रख्त हुए अब मैं मूल विषय पर आता हूँ ।
जिस देश की जनता पुलिस के नाम से घबराती हो। पुलिस को देख कर सीधे चलने लगती है। किनार हो जाती है। वह पुलिस पर क्यों हमले कर रही है ? और अपने ऊपर संगीन धाराओं में मुकदमे दर्ज करवा रही है। जब इस संबंध में मैंने लोगों से बात की, और उससे निष्कर्ष निकाला तो दो बाते निकल कर आई। लोगों ने यह मान लिया है कि पूरी व्यवस्था पुलिस के हाथ में है। अगर उन्हें कोटेदार से चावल नहीं मिल रहे हैं, तो वह उसके लिए पुलिस को दोषी मान रही है। अगर उसके यहाँ बिजली नहीं आ रही है, तो भी पुलिस को दोषी मान रही है। अगर वह अपने बच्चों के लिए दूध नहीं खरीद पा रही है, तो भी वह पुलिस को ही दोषी मान रही है। अगर कोई व्यक्ति अपने पत्नी या माँ के लिए दवा नहीं ले पा रहा है, तो वह पुलिस को दोषी मान रहा है। अगर उसके घर में सप्लाई का पानी नहीं आ रहा है, तो वह पुलिस को दोषी मान रहा है । कोई अगर अपने कार्यालय नहीं जा पा रहा है, तो वह पुलिस को दोषी मान रहा है। कोई अगर अपनी दुकान नहीं खोल पा रहा है, तो वह पुलिस को दोषी मान रहा है। कहने का मतलब यह है कि लॉक डाउन के कारण अगर किसी प्रकार की किसी कोई को तकलीफ हो रही है, तो उसके लिए वह पुलिस को ही दोषी मान रहा है। इसका तात्पर्य यह है कि उसके मन में पुलिस के लिए भड़ास भरी हुई है ।
जिन जगहों पर यह बरदाते हुई, उन्होने कहा कि पुलिस और स्वास्थ्य विभाग की जब टीम आई, तो उसने हमें सूचना देना भी मुनासिब नहीं समझा, और धड़-धड़ घर में घुस गई और बिना कुछ कहे, बताए कार्रवाई करने लगी। जिस घर में बहुए हों, जवान बेटियाँ हों, वह घर में न जाने किस स्थिति में बैठी हों। हो सकता उन्होने दुपट्टा न ले रखा हो, हो सकता हो, साड़ी न पहन रखी हो। ऐसे में किसी अंजान व्यक्ति चाहे वह पुलिस और स्वास्थ्य विभाग की टीम ही क्यों न हो ? धड़धड़ाते हुए घर में घुस जाएगी, तो गुस्सा आना स्वाभाविक है। ऐसी ही छोटी – छोटी बातों को लेकर ये मामले शुरू होते हैं। दोनों तरफ से गम न खाने की वजह से बात बढ़ जाती है और लोग एक-दूसरे पर हमलावर हो जाते हैं ।
मूल रूप से दोनों ओर से यही मुद्दे हैं। पुलिस और स्वास्थ्य विभाग की टीम तो उनके भले के लिए जाती है, उन्हें जिंदगी देने के लिए जाती है, उन्हें क्वारंटीन कराने के लिए जाती है, फिर वे लोग हमले क्यों करते हैं ? इसके पीछे का एक और कारण बातचीत से समझ में आया कि उन्हें इसकी पूरी जानकारी नहीं है। इस पूरे मसले को कहीं न कहीं से धर्म से जोड़ कर उनके जेहन में भर दिया गया है। इस कारण उन्हें लगता है, कि ये लोग उनके धर्म पर हमला करने के लिए आ रहे हैं ।
पुलिस पर हो रहे हमले का निदान बहुत आसान है। एक तो पुलिस को और चाक चौबन्द होना पड़ेगा। जो उनकी ड्यूटी नहीं है, उस पर भी उन्हें निगाह रखना पड़ेगा । अगर कोटेदार के यहाँ उनकी ड्यूटी सोशल डिसटेंसिंग मेंटेन कराने के लिए लगी हुई है, तो उन्हें केवल वही काम नहीं करना है। यह भी देखना है कि उसका व्यवहार सभी के साथ सामान्य रहे। सरकार के निर्देश के अनुसार उसे राशन मिले। किसी के साथ अभद्रता न हो। इसी तरह के हर प्रसंगों पर उसे अधिक मानवीय होने की जरूरत है। जब भी वे किसी मुहल्ले में जाएँ, वहाँ की शांति कमेटी के लोगों को बुला लें, जिस घर को क्वारंटीन करना है, उस घर के मालिक से बात कर लें। और इसके बाद जब सभी औरतें अपने वस्त्र ठीक कर लें, तब उस घर में जाएँ। मान लीजिये अगर कोई महिला नहा रही हो, तो ऐसे में तो कोई उसके घर में नहीं घुस जाएगा। जब तक वह नहा न लें, तब तक इंतजार कर लें। इसके बाद स्वास्थ्य टीम अपना काम शुरू करें। इसके अलावा जिसके घर पुलिस और क्वारंटीन करने जाए, उसके साथ विनम्रता से पेश आए। स्टाफ बहुत कम है, और उन्हें पूरे देश को देखना है। इस पर भी विचार कर लें। इसके साथ –साथ केंद्र और प्रदेश सरकार को उन्हें जागरूक करना चाहिए कि इस बीमारी का धर्म से कोई लेना – देना नहीं है । अगर दोनों पक्ष एक – दूसरे के प्रति थोड़ी सी संवेदना बढ़ा दें, पुलिस और स्वास्थ्य टीम पर हमले रुक सकते हैं ।
प्रोफेसर डॉ योगेन्द्र यादव
पर्यावरणविद, शिक्षाविद, भाषाविद,विश्लेषक, गांधीवादी /समाजवादी चिंतक, पत्रकार, नेचरोपैथ व ऐक्टविस्ट