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पर्यावरण संरक्षण नहीं किया तो आने वाले समय में पृथ्वी बन जाएगी आग का गोला – प्रोफेसर डॉ . योगेन्द्र यादव

पर्यावरण संरक्षण नहीं किया तो आने वाले समय में पृथ्वी बन जाएगी आग का गोला – प्रोफेसर डॉ . योगेन्द्र यादव
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(पृथ्वी दिवस पर विशेष )

कोरेना महामारी के खिलाफ अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे मानव जगत के लिए आज पृथ्वी दिवस ने एक बार फिर से चिंतन – मनन का मौका दिया है । जिस पृथ्वी पर चौबीसों घंटे मानव की गतिविधियां चलती रहती थी, आज वही मनुष्य अपने आपको बचाने के लिए स्वेच्छा से अपने-अपने घरों में खुद को बंद किए हुए है। 50 साल पहले आज ही एक दिन देश के वैज्ञानिकों ने पृथ्वी की रक्षा के लिए पर्यावरण संरक्षण का संकल्प लिया था। लेकिन इन पचास सालों में भी पृथ्वी को बचाने के दिशा में जो कदम बढ़ाना चाहिए था, जितनी तेजी और तीक्ष्णता के साथ बढ़ाना चाहिए था, नहीं बढ़ाए। जिसकी वजह से आज ऐसे हालात बन गए की चमगादड़ से निकलने वाले कोविड – 19 वायरस ने मनुष्य के सारे विकास की पोल खोल दी। आज कोरेना महामारी को हम सब सोचने के लिए मजबूर हो गए हैं की पृथ्वी के पर्यावरण के साथ शिकार करने वाले खुद ही किसी न किसी आपदा के शिकार बन गए और हड़प्पा, सिंधु घाटी की सभ्यता, मोहंजोदड़ों जैसी उच्च शिक्षित सभ्यताएं समाप्त हो गई। पृथ्वी वैसे ही बनी रही। अपने धर्म – कर्म के कारण कुछ लोग बच गए। जिससे एक बार फिर पृथ्वी पर मानव वंश का विकास हुआ। विकसित अवस्था में पहुँचते ही एक बार फिर मानव उसी पृथ्वी के पर्यावरण से छेड़छाड़ करने लगा। जिसका नतीजा ही आज लॉक डाउन है । ऐसे समय में जब हम लॉक डाउन में अपने – अपने घर की चहरदीवारी के अंदर रह रहे है। हम सभी को चिंतन करने की जरूरत है कि अगर फिर से कोरेना जैसी महामारी को निमंत्रण नहीं देना है, तो इसके बाद से सावधान हो जाना है ।

22 अप्रैल को दुनिया भर में पर्यावरण संरक्षण और समर्थन के लिए पृथ्वी दिवस का आयोजन किया जाता है। 1970 में इसकी स्थापना अमेरिकी सीनेटर जेराल्ड नेल्सन ने की थी । उन्हे आशा की थी कि इससे मानव के बीच में पर्यावरण शिक्षा को बढ़ावा मिलेगा और लोग पर्यावरण और पृथ्वी के प्रति अपने-अपने कर्तव्यों का निर्वहन करेंगे। अगर उन्होने पर्यावरण को प्रदूषित करने के लिए कोई गलत कदम उठाया होगा, तो उस पर पुनर्विचार करेगा और अपनी गलतियों को सुधारेगा। उनके इस कदम की सराहना करते हुए संयुक्त राष्ट्र संघ ने इसे स्वीकार कर सम्पूर्ण विश्व को पृथ्वी दिवस मनाने की हिमायत की । तबसे आज के दिन विश्व के सभी प्रदेशों में भी आज के दिन ऐसी मानव गतिविधियों पर विचार विमर्श होने लगा, जिससे पृथ्वी और उसके पर्यावरण को नुकसान पहुंचता रहा ।

कोरेना महामारी के सम्पूर्ण विश्व में घोषित हुए लॉक डाउन की वजह से एक बार फिर पर्यावरण शुद्ध हुआ। ध्वनि, वायु और जल प्रदूषण में रखांकित कमी आई । क्योंकि लॉक डाउन होने के कारण पूरे देश की सभी फ़ैक्टरियाँ बंद हो गई। सड़कों पर चलने वाले वाहनों की संख्या अपने न्यूनतम स्तर पर जा पहुंची / जिसकी वजह से पर्यावरण साफ हुआ । लॉक डाउन की वजह से सम्पूर्ण विश्व में पर्यावरण प्रदूषण अपनी न्यूनतम स्तर पर आ गया। जिसकी कभी किसी ने कल्पना नहीं की थी। पर्यावरण परिशुद्ध होने के कारण ही अप्रैल के अंतिम सप्ताह में जब भीषण गर्मी पड़ती थी, इस समय भी दिन का तापमान कम है और रातें सुहावनी हो रही हैं। इस संबंध में सीमैप के पूर्व वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. अहकिल आनंद ने कहा कि लॉकडाउन से कई गतिविधियां बद हो चुकी हैं। पॉलीथिन का प्रयोग भी लगभग समाप्त है। बीमारियां भी कम हुई हैं। दुर्घटनाओं में में कमी आई है। इसी प्रकार का मनोभाव सीडीआरआई के पूर्व वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. प्रदीप श्रीवास्तव ने कहा कि पिछले लगभग एक माह से चिड़ियों के चहकने और आसमान में तारों के स्पष्ट रूप से दिखने से तय है कि वातावरण बहुत स्वच्छ हो चुका है। पर्यावरण की वर्तमान वस्तु स्थिति को प्रकट करते हुए आईआईटीआर के निदेशक प्रोफेसर आलोक धवन ने अपने विचार इस प्रकार प्रकट किए - जीवन जीने व कार्य की नई संस्कृति मिली है। इसे अपनाना होगा। ऐसी व्यवस्था बननी चाहिए जिससे सप्ताह में एक दिन लॉकडाउन जैसी स्थिति रहे।

पृथ्वी दिवस के दिन आज गूगल ने भी उसकी 50वीं वर्षगांठ पर अपना डूडल पृथ्वी और मानव के लिए सबसे अधिक महत्वपूर्ण जीव मधुमाखियों को समर्पित करके नेट यूज करने वाली युवा पीढ़ी को पर्यावरण प्रदूषण, पृथ्वी और उस पर रखने वाले जीवों के संरक्षण के लिए जागरूक करने का प्रयास किया है । मधुमक्खियाँ मानव जीवन और पर्यावरण के लिए बहुत ही उपयोगी हैं। मानव को शहद और मोम देने के साथ –साथ वे पौधे के प्रकीर्णन में अपना महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं ।

आज कोरेना महामारी ने हमें संकेत दे दिया कि पृथ्वी के पर्यावरण और उस पर रहने वाले जीव-जंतुओं के साथ अगर हमने छेड़छाड़ की, उन्हे समाप्त करने की कोशिश की, तो निश्चित रूप से उसका खामियाजा पूरे विश्व को भुगतना पड़ेगा । उससे कोई बचा नहीं सकता । इस पृथ्वी पर रहने वाले कुछ धन-पशुओं ने 1970 के दशक से पहले ही अपनी धन की हवस को पूरा करने के लिए उजाड़ना शुरू कर दिया। वनों की अंधाधुंध कटाई शुरू हो गई। रातो-रात घने वनों को उजाड़ दिया गया। विकास की गति को तीव्र करने की गरज से हमने पृथ्वी के भौगोलिक पर्यावरण का भी ध्यान न रखा । जिसकी वजह से जहां एक ओर नदियों के किनारे के जंगलों, पेड़-पौधों को काट कर उन्हें नंगा कर दिया। वहीं दूसरी ओर जगह – जगह फैले हुए पठारों और पहाड़ों को भी न सिर्फ समाप्त कर दिया, अपितु उन्हें खोद-खोद कर उन्हे जमीन से खोद कर निकाल लिया। जिसकी वजह से वहाँ गहरी-गहरी झीलें बन गई। जिसमे वरिष का पानी भर गया और जहां पर ऊंचाई की जरूरत थी, अपने दुष्कर्मों के कारण वहाँ गहरी झील भर गई । धन पशुओं द्वारा लगातार की जा रही विध्वंशकारी गतिविधियों के कारण ग्लोबल वार्मिंग का संकट उत्पन्न हो गया । बर्फ के बड़े-बड़े शिलाखंड पिघलने लगे। गर्मी का स्तर दिन पर दिन बढ्ने लगा। मौसम ने अपना रूप बदलना शुरू कर दिया । पूरे वर्ष बारिश, तूफान और ओलावृष्टि होने लगी । किसान तबाह होने लगा और कहीं कहीं अनावृष्टि होने की वजह से वहाँ सूखा पड़ गया। और अकाल पड़ने की वजह से वहाँ के लोग भूखे मरने लगे। इस तरह से कहीं लोग सूखे से तो कहीं अतिवृष्टि की वजह से सब कुछ जाता रहा। समुद्र के किनार बसे हुए बड़े – बड़े शहर कब डूब जाएंगे। इसकी लोग कल्पना करने लगे। उसकी भविष्यवाणी होने लगी। वैज्ञानिक कहने लगे कि अगर ग्लोबल वार्मिंग इसी तरह बढ़ती रही, तो निश्चित रूप से मानव ही नहीं, पूरी पृथ्वी पर संकट से घिर जाएगी। अगर इसी तरह पृथ्वी की गर्मी बढ़ती रही, तो एक दिन यह पृथ्वी आग का गोला बन जाएगी। और पृथ्वी पर मानव जीवन के लिए संकट उत्पन्न हो जाएगा ।

अभी तो उस दिन की कल्पना ही हो रही थी। वैज्ञानिक समुद्र के बढ़ते हुए जल स्तर को नापने में ही मशगूल रहे। इधर बीमारियों ने भी अपना रूप हर साल बदलना शुरू कर दिया। चेचक, एड्स, डेंगू की महामारी का कारगर इलाज भी नहीं खोज पाये कि कोरेना वायरस ने आकर दस्तक दे दिया । उसका आक्रमण इतना तेज रहा कि जब तक लोग कुछ समझ पाते, पूरी दुनियाँ को उसने अपने आगोश में भर लिया। रोज वह बड़ी तेजी से फैलने लगा और लोगों को मौत देने लगा। इससे ही घबरा का पूरी दुनिया के सामने मानव जीवन बचाने का संकट उत्पन्न हो गया। विकास की तमाम फेहरिश्त किसी काम की नहीं रही। कोरेना संक्रमण के आगे औषधि विज्ञान की सारे खोजें निष्फल साबित हुई। कोई ऐसी दवा नहीं मिली, जिसे खिलाने के बाद कोरेना संक्रमित लोगों को ठीक किया जा सके ।

जब सम्पूर्ण विश्व ने अपनी हैसियत पहचान ली है कि अगर वह प्रकृति और पर्यावरण के प्रति सचेत नहीं हुआ, तो अभी कोरेना ही आया है, इसके बाद ऐसी – ऐसी महामारियाँ आएंगी, जिसके आगे घुटने टेक देने के सिवा विज्ञान के पास कोई चारा नहीं रहेगा। इसलिए आज पृथ्वी दिवस के अवसर पर एक-एक मानव को चिंतन करने और पर्यावरण और प्रकृति संरक्षण के प्रति संकल्प लेने का समय है । एक बात तो सिद्ध हो गई कि अगर पृथ्वी पर लालची धन-पशुओं के खिलाफ जनता और सरकारें खड़ी नहीं हुई, तो आगे आने वाले समय में इसी प्रकार से पृथ्वी पर मानव जाति के लिए दुश्वारिया आती रहेंगी और मानव अपने अपने घर में ही घुट-घुट कर दम तोड़ देगा ।

प्रोफेसर डॉ योगेन्द्र यादव

पर्यावरणविद, शिक्षाविद, भाषाविद,विश्लेषक, गांधीवादी /समाजवादी चिंतक, पत्रकार, नेचरोपैथ व ऐक्टविस्ट

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