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महा पराक्रमी रावण से जुड़ी कुछ रोचक बातें :- (प्रेम शंकर मिश्र)

महा पराक्रमी रावण से जुड़ी कुछ रोचक बातें :-  (प्रेम शंकर मिश्र)
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रावण के दादाजी का नाम प्रजापति पुलत्स्य था जो ब्रह्मा जी के दस पुत्रो में से एक थे | इस तरह देखा जाए तो रावण ब्रह्मा जी का पडपौत्र हुआ ।

ऐसा माना जाता है कि रावण इतना शक्तिशाली था कि उसने नवग्रहों को अपने अधिकार में ले लिया था |

कथाओं में बताया जाता है कि जब मेघनाथ का जन्म हुआ था तब रावण ने ग्रहों को 11वे स्थान पर रहने को कहा था ताकि उसे अमरता मिल सके लेकिन शनिदेव ने ऐसा करने से मना कर दिया और 12वें स्थान पर विराजमान हो गये | रावण इससे इतना नाराज हुआ कि उसने शनिदेव पर आक्रमण कर दिया और कुछ समय के लिए बंदी भी बना लिया था ।

शिवजी ने ही रावण को रावण नाम दिया था | ऐसा कथाओं में बताया जाता है कि रावण शिवजी को कैलाश से लंका ले जाना चाहता था लेकिन शिवजी नहीं चाहते थे ।उसने कैलाश पर्वत को ही उठाने का प्रयास किया | इस पर शिवजी ने अपना एक पैर कैलाश पर्वत पर रख दिया जिससे रावण का हाथ दब गया था | दर्द के मारे रावण जोर से चिल्लाया ।शिवजी की शक्ति को देखते हुए उसने शिव तांडव किया था | शिवजी को ये देखकर लगा कि पीड़ा में होते हुए भी उसने शिव तांडव किया तो उसका नाम रावण रख दिया जिसका अर्थ था जो तेज आवाज में दहाड़ता हो।

जब रावण युद्ध में हार रहा था और अपनी तरफ से अंतिम शेष प्राणी वही बचा था ।तब रावण ने यज्ञ करने का निश्चय किया जिससे तूफ़ान आ सकता था ।लेकिन यज्ञ के लिए उसको पूरे यज्ञ के दौरान एक जगह बैठना जरुरी था | जब राम जी को इस बारे में पता चल तो राम जी ने बाली पुत्र अंगद को रावण का यज्ञ में बाधा डालने के लिए भेजा | कई प्रयासों के बाद भी अंगद यज्ञ में बाधा डालने में सफल नहीं हुए | तब अंगद इस विश्वास से रावण की पत्नी मन्दोदरी को घसीटने लगा कि रावण ये देखकर अपना स्थान छोड़ देगा ।लेकिन वो नहीं हिला | तब मन्दोदरी रावण के सामने चिल्लायी और उसका तिरस्कार किया और राम जी का उदाहरण देते हुए कहा की "एक राम है जिसने अपनी पत्नी के लिए युद्ध किया और दूसरी ओर आप है जो अपनी पत्नी को बचाने के लिए अपनी जगह से नहीं हिल सकते"। ... यह सुनकर अंत में रावण उस यज्ञ को पूरा किये बिना वहाँ से उठ गया था ।

रावण और कुंभकर्ण वास्तव में विष्णु भगवान के द्वारपाल जय और विजय थे जिनको एक ऋषि से मिले श्राप के कारण राक्षस कुल में जन्म लेना पड़ा था और अपने ही आराध्य से उनको लड़ना पड़ा था।

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