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कोरेना, लोक डाउन, जोखिमभरी पत्रकारिता और पत्रकार – प्रोफेसर डॉ. योगेन्द्र यादव

कोरेना, लोक डाउन, जोखिमभरी पत्रकारिता और पत्रकार – प्रोफेसर डॉ. योगेन्द्र यादव
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चीन में जन्में कोरेना वायरस ने आज विश्व के सभी देशों को घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया है । विश्व के सभी देश कोरेना वायरस से संक्रमित हैं। कोरेना ने हर देश में लाखों लोगों को अपना शिकार बना लिया है और हजारों लोगों को रोज निकल रहा है। किसी भी देश के पास कोई ऐसी दवा नहीं है, जिससे इस रोग को ठीक किया जा सके। चूंकि यह संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में आने पर फैलता है । कौन कोरेना वायरस से संक्रमित है । पहले एक पखवाड़ा तो पता ही नहीं चलता है। इस कारण वह सामान्य लोगों की तरह व्यवहार करता है, और जब तक उसे पता चलता है, तब तक सैकड़ों लोगों को प्रसाद की तरह बांट चुका होता है। हर देश में प्रतिदिन कोरेना संक्रमित लोगों की संख्या में इजाफा हो रहा है। हालांकि इसे रोकने के लिए लगभग विश्व के सभी देशों ने एक – दूसरे पूरी तरह संपर्क समाप्त कर लिया है। सभी अंतर्राष्ट्रीय उड़ाने रद्द कर दी गई हैं। सभी देशों ने लॉक डाउन भी घोषित कर दिया है। इस तरह देश के अंदर भी लोगों का एक स्थान से दूसरे स्थान पर आना-जाना पूरी तरह से प्रतिबंधित है। अगर हम भारत देश की बात करें, तो इस समय पूरे देश में सख्ती से लॉक डाउन लागू है। उसका दूसरा चरण चल रहा है। सभी लोग अपने घरों में हैं और स्वेच्छा से लॉक डाउन का पालन कर रहे हैं। जो लोग इसका अनुपालन स्वेच्छा से नहीं कर रहे हैं। उन्हें पुलिस प्रशासन लॉक डाउन में घरों से निकलने पर अपने हिसाब से दंडित भी कर रहा है।

आइये थोड़ी सी जानकारी कोरेना के बारे में जानकारी प्राप्त कर लेते हैं। कोविड – 19 नामक वायरस से यह फ़ेल रहा है। इससे संक्रमित व्यक्ति को 100 फारेनहाइट से अधिक बुखार बना रहता है। धीरे –धीरे बुखार बढ़ता है। बुखार को नियंत्रित करने वाली जितनी भी मेडिसीन है। वे कारगर नहीं हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार कोरोना वायरस से संक्रमित होने पर 88 फीसदी को बुखार, 68 फीसदी को खांसी और कफ, 38 फीसदी को थकान, 18 फीसदी को सांस लेने में तकलीफ, 14 फीसदी को शरीर और सिर में दर्द, 11 फीसदी को ठंड लगना और 4 फीसदी में डायरिया के लक्षण दिखाई पड़ते हैं।

कोरोना वायरस के संक्रमण से जुकाम से लेकर सांस लेने में तकलीफ जैसी समस्या हो जाती है।

इस वायरस का संक्रमण दिसंबर में चीन के वुहान शहर में शुरू हुआ था. विश्व स्वास्थ्य संगठन के इस वायरस को फैलने से रोकने वाला अभी तक कोई टीका नहीं बना है । इसके लक्षण फ्लू से मिलते हैं । संक्रमित रोगी को बुखार, जुकाम, सांस लेने में तकलीफ, नाक बहना और गले में खरास हो जाती है। जिनको पहले से ही दमा या हृदय रोग है। उसके लिए कोरेना संक्रमण बहुत खतरनाक है। इसलिए अगर किसी व्यक्ति को सुखी खांसी के साथ तेज हो, उसका तापमान 100 डिग्री फ़ारेनहाइट से ऊपर हो तो उसे अवश्य जांच कराना चाहिए ।

देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कोरेना की भयावह स्थिति से देश को बचाने के लिए बिना किसी तैयारी के ही लॉक डाउन घोषित कर दिया। 21 दिन का पहला चरण पूरा होने के बाद भी जब संक्रमितों की संख्या में लगातार इजाफा हो रहा था। इसलिए उन्होने दूसरे चरण के रूप में 19 दिन के लिए फिर से लॉक डाउन घोषित कर दिया । इस समय दूसरा चरण चल रहा है। देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस महामारी में प्रत्यक्ष रूप से भागीदार सभी लोगों के लिए विशेष सुविधाएं और बीमा करवा रखा है ।

जब इतना संक्रामक वायरस हो। जिससे संक्रमित व्यक्ति का कोई निश्चित इलाज न हो। जो लोगों से संपर्क में आने फैलता हो, ऐसी अवस्था में पत्रकारिता कितनी जोखिमभरी होगी, इसका अंदाजा सहज लगाया जा सकता है। लोकतन्त्र का चौथा स्तम्भ माना जाने वाला मीडिया स्वेच्छा से एक दो दिन छोड़ दें, तो पूरे वर्ष बिना किसी अवकाश के दिन-रात समाचार संकलन और इसके प्रकाशन और प्रसारण में लगा रहता है। ऐसे समय में जब हर किसी को बाहर निकलने के लिए मनाही है। देश का पत्रकार सड़कों, गलियों में घूम-घूम कर समाचार संकलित कर रहा है। हाँ, इतना जरूर है कि पेशेवर पत्रकार हर विषय का पर्याप्त ज्ञान रखता है। यह कहें की विषय विशेषज्ञों से भी अधिक ज्ञान रखता है, तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। इसी ज्ञान के कारण वह विश्व स्वास्थ्य संगठन और भारत सरकार द्वारा जारी किए गए सभी नियमों का पालन करते हुए अपने पत्रकारिता धर्म को निभा रहा है। कोरेना संक्रमण की भयावह स्थिति और लॉक आउट के दौरान कितना जोखिम है, इस पर मेरी कई पत्रकारों से चर्चा हुई। उन लोगों ने यह स्वीकार किया कि वे लोग अपनी जान को दांव पर लगा कर समाचार संकलन कर रहे हैं। और हर रोज देश की जनता को वस्तुस्थिति से अवगत करा रहे हैं। सरकार ने उनके लिए न तो कोई सुविधा प्रदान की है और न ही किसी प्रकार का बीमा करवाया है। ऐसा किसी को न हो, लेकिन अगर खुदा न खासता किसी पत्रकार को कल कुछ हो जाए, तो उसके परिवार का क्या होगा ? इसकी चिंता हर पत्रकार को है। पत्रकारों ने चर्चा के दौरान बताया कि वे रोज सुबह मुंह पर मास्क लगाए घर से निकल जाते हैं। और देर शाम को घर लौटते हैं। इस दौरान उनके घर वालों का कई बार फोन आता है। कोरेना संक्रमण की वजह से उनका परिवार सतत चिंतित रहता है। पत्रकारों ने यह भी बताया कि इस समय फील्ड में काम करने वाले अधिकांश पत्रकारों को इस काम के लिए कुछ भी नहीं मिलता है। यानि उन्हें कोई नियमित तनख्वाह नहीं मिलती है। विभिन्न समयों पर अखबारों में छपने वाले विज्ञापन के मूल्य में से उन्हें जो चालीस-पचास प्रतिशत मिलता है। उसी से उनका काम चलता है। उनकी गाड़ी में पेट्रोल भी डलता है और उनके घर का पालन पोषण भी होता है। ऐसे पत्रकारों ने बताया कि तनख्वाह देने का प्रचलन तो कुछ बड़े समाचार पत्रों में हैं। जैसे दैनिक जागरण, अमर उजाला, दैनिक हिंदुस्तान, दैनिक भास्कर आदि जैसे एक दर्जन बड़े समाचार पत्रों में । लेकिन वे भी इतनी तनख्वाह नहीं देते हैं कि उससे ठीक से उनके गाड़ी में पेट्रोल ही पड़ जाए। कुछ समाचार पत्र तो केवल और केवल पेट्रोल एलाउंस ही देते हैं। इस तरह से पत्रकारिता के क्षेत्र में इस काम कर रहे करीब 95 प्रतिशत पत्रकार ऐसे हैं, जो हैंड टू माउथ हैं। लोकतन्त्र के इस चौथे खंबे को मजबूती प्रदान करते हुए बिना किसी नियमित वेतन या आय के अपने पत्रकारिता धर्म को निभाते हैं। जिस देश में अधिकांश पत्रकारों की यह स्थिति हो, कि उन्हें इतना भी पैसा न मिलता हो कि वे अपने परिवार का भरण-पोषण कर सकते हों, फिर भी कोरेना के संक्रमणकालीन अवस्था में भी वे दिन-रात फील्ड में घूमते हुए हॉस्पिटल से लेकर कोरेना संक्रमित लोगों के घरों से समाचार एकत्र करने का काम कर रहे हैं । इसे उनका देशप्रेम ही कहा जाएगा।

इस समय फील्ड में काम कर रहे पत्रकारों से मेरी जो बातचीत हुई है, उसके आधार पर मैं यह कह सकता हूँ कि इस समय पत्रकार सिर्फ और सिर्फ पत्रकारिता ही नहीं कर रहा है। बल्कि अपने मानवीय पक्ष का भी निर्वहन भी कर रहा है। देश के प्रधानमंत्री और अपने-अपने प्रदेश के मुख्यमंत्रियों द्वारा गरीबों और मज़लूमों के लिए जो योजनाएँ लागू की गई है। चाहे वह खाद्यान्न वितरण से स्मबंधित हों, या भोजन पैकेट वितरण से संबन्धित हों, इन सबमें भी अपना योगदान कर रहा है। क्योंकि दिन-रात गरीबों की झुग्गी बस्तियों में घूमने वाले पत्रकारों को ही जानकारी है कि कहाँ सरकार द्वारा दी गई सुविधाएं पहुँच रही हैं और कहाँ नहीं ? कहाँ के लोगों को भोजन मिल रहा है ? कहाँ के लोगों को नहीं ? इसकी भी सूचना वह सरकार और प्रशासन दोनों को दे रहा है। एक बात और लॉक आउट के दौरान स्वयं सेवी संस्थाएं भी मदद के लिए आगे आई हुई हैं, इस कारण वह उनको भी ऐसे स्थानों की सूचना दे रहा है। जिससे सही मायने में उनका भोजन पैकेट भूखे लोगों तक पहुँच रहा है। कई पत्रकारों ने चर्चा के दौरान बताया कि शुरू के दिनों में सरकार और प्रशासन की पूरी तैयारियों के बाद भी वे जरूरतमंदों के पास नहीं पहुँच पाते थे। ऐसे में हम पत्रकारों ने उनकी काफी मदद की। बातचीत के दौरान पत्रकारों ने यह भी कहा कि जिस तरह से कोरेना वायरस और उससे बचने के लिए बोर्ड पूरे शहर में जगह-जगह लगाए गए हैं। उसी प्रकार ऐसे भी बोर्ड शहर में लगाए जाने चाहिए थे, जिस पर टोल नंबर, संबन्धित क्षेत्र के अधिकारियों के मोबाइल नंबर, क्षेत्र के एसडीएम और सीओ और थानेदार, सब इंस्पेक्टर के नंबर भी दिये जाने चाहिए थे। क्योंकि शुरू के एक पखवाड़े जानकारी न होने की वजह से बहुत से परिवार या तो भूखे सोने को मजबूर हुए, या एकाध पूड़ी, रोटी खाकर शेष पानी पीकर सो गए। उनके बच्चे भी खाना मांगते हुए रोते-रोते सो गए ।

मीडिया की चाहे जितनी निंदा की जाए, लेकिन आज भी मीडिया ही वह माध्यम है, जिससे यह पता चलता है कि देश में कहाँ क्या हो रहा है ? लॉक डाउन के बाद भी कोरेना वायरस के संक्रमण की क्या स्थिति है, उसके रोगियों की संख्या बढ़ रही है कि घट रही है, यह बताने का काम भी पत्रकार ही कर रहा है। हर रोज कितने संक्रमितों को कोरेना निगल रहा है। इसकी भी जानकारी भी पत्रकार ही दे रहा है। पाठक या इस देश की जनता यह समझ नहीं पाती है, कि इस समय पत्रकार नहीं, मीडिया घरानों का वर्चस्व हो गया है । वे जो चाहते हैं, वह दिखाते हैं। अपनी रोटी-रोजी के लिए पत्रकार भी कभी-कभी विवश हो जाता है। उसे वही लिखना या दिखाना पड़ता है। जिस प्रकार से उसका मालिक चाहता है। पहले पत्रकार ही इलेक्ट्रानिक्स या प्रिंट मीडिया को चलाने के लिए जिम्मेदार होते थे। उनके ही संबंध होते थे। पैसे लगाने वाले मालिको का हस्तक्षेप कम होता था। लेकिन आज कल मालिकों का हस्तक्षेप अधिक हो गया है। इतना सब होने के बाद भी अगर कुछ घटनाओं को छोड़ दें, तो कोरेना संक्रमण, लॉक आउट के कारण जनता को होने वाली परेशानियों को उद्घाटित करने में पत्रकारों ने अपनी अहम भूमिका निभाई है। जब सवाल पूरी मानवता का है, जब पूरी सृष्टि के समाप्त होने का खतरा दुनिया पर मंडरा रहा है, ऐसे में देश के पत्रकारों ने भी बड़ी ईमानदारी से अपने पत्रकारिता धर्म को निभाया है। और निभा रहे हैं। उन्हें सरकार और प्रशासन से बहुत उम्मीदे रही, लेकिन किसी ने उनकी व्यथा और जोखिम को नहीं समझा । न किसी प्रकार की सहूलियत देने की घोषणा केंद्र सरकार ने की और न किसी प्रकार की मदद देने की घोषणा राज्य सरकारों ने की ।

अंत में देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और सभी राज्य सरकारों के मुख्यमंत्री विशेषकर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से कहना चाहता हूँ कि ऐसे समय में जब पूरा पत्रकार समुदाय अपनी जान जोखिम मे डाल पर पूरी शिद्दत के साथ अपने पतरकरिता धर्म का पालन कर रहा है। ऐसे में सभी सरकारों को भी उसके प्रति भी सहानुभूति रखते हुए कोरेना संक्रमण की महामारी और लॉक आउट के समय उसके परिवार के भरण पोषण की ज़िम्मेदारी अपने कंधों पर उठाना चाहिए । हर पल जान जोखिम में डालने वाले पत्रकारों का भी बिना किसी भेदभाव के बीमा करवाना चाहिए। जिससे निश्चिंत होकर वह अपने पत्रकारिता धर्म का निर्वहन कर सके। देश के प्रति अपने कर्तव्यों का पालन कर सके। और केंद्र और राज्य सरकारों से कंधा मिला कर आज की संक्रमणकालीन अवस्था में उनका साथ दे सके ।

प्रोफेसर डॉ योगेन्द्र यादव

पर्यावरणविद, शिक्षाविद, भाषाविद,विश्लेषक, गांधीवादी /समाजवादी चिंतक, पत्रकार, नेचरोपैथ व ऐक्टविस्ट

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