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सनातन संस्कृति में संक्रमण से बचाव के उपाय:- (प्रेम शंकर मिश्र)

सनातन संस्कृति में संक्रमण से बचाव के उपाय:-  (प्रेम शंकर मिश्र)
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भारतीय सनातन संस्कृति/दर्शन में हजारों सालों से संक्रमण से बचने के लिए कुछ सूत्र हैं जो अब पूरी दुनिया अपना रही है!

घ्राणास्ये वाससाच्छाद्य मलमूत्रं त्यजेत् बुध:।(वाधूलस्मृति 9)

नियम्य प्रयतो वाचं संवीताङ्गोऽवगुण्ठित:।(मनुस्मृति 4/49))

नाक, मुंह तथा सिर को ढ़ककर, मौन रहकर मल मूत्र का त्याग करना चाहिए।

तथा न अन्यधृतं धार्यम् (महाभारत अनु.104/86)

दूसरों के पहने कपड़े नहीं पहनने चाहिए।

स्नानाचारविहीनस्य सर्वा:स्यु: निष्फला: क्रिया: (वाधूलस्मृति 69)

स्नान और शुद्ध आचार के बिना सभी कार्य निष्फल हो जाते हैं, अतः: सभी कार्य स्नान करके शुद्ध होकर करने चाहिए।

लवणं व्यञ्जनं चैव घृतं तैलं तथैव च। लेह्यं पेयं च विविधं हस्तदत्तं न भक्षयेत्।

(धर्मसिंधु 3 पू.आह्निक)

नमक, घी, तैल, कोई भी व्यंजन, चाटने योग्य एवं पेय पदार्थ यदि हाथ से परोसे गए हों तो न खायें, चम्मच आदि से परोसने पर ही ग्राह्य हैं।

न अप्रक्षालितं पूर्वधृतं वसनं बिभृयात्।(विष्णुस्मृति 64)

पहने हुए वस्त्र को बिना धोए पुनः न पहनें। पहना हुआ वस्त्र धोकर ही पुनः पहनें।

न चैव आर्द्राणि वासांसि नित्यं सेवेत मानव:।(महाभारत अनु.104/52)

न आर्द्रं परिदधीत (गोभिलगृह्यसूत्र 3/5/24)

गीले कपड़े नहीं पहनने चाहिए।

चिताधूमसेवने सर्वे वर्णा: स्नानम् आचरेयु:। वमने श्मश्रुकर्मणि कृते च

(विष्णुस्मृति 22)

श्मशान में जाने पर, वमन होने/करने पर, हजामत बनवाने पर स्नान करके शुद्ध होना चाहिए।

हस्तपादे मुखे चैव पञ्चार्द्रो भोजनं चरेत्।(पद्मपुराण सृष्टि 51/88)

नाप्रक्षालित पाणिपादौ भुञ्जीत।

(सु.चि.24/98)

हाथ, पैर और मुंह धोकर भोजन करना चाहिए।

अपमृज्यान्न च स्नातो गात्राण्यम्बरपाणिभि:।(मार्कण्डेय पुराण 34/52)

स्नान करने के बाद अपने हाथों से या स्नान के समय पहने भीगे कपड़ों से शरीर को नहीं पोंछना चाहिए, अर्थात् किसी सूखे कपड़े (तौलिए) से ही पोंछना चाहिए।

न धारयेत् परस्यैवं स्नानवस्त्रं कदाचन।(पद्मपुराण सृष्टि 51/86)

दूसरों के स्नान के वस्त्र (तौलिए इत्यादि) प्रयोग में न लें।

अब देख लीजिएआधुनिक अस्पताल और मेडिकल साइंस धराशाई हो चुके हैं और समस्त विश्व हजारों साल पुराने बचाव के उपाय अपना रहा है!

जय हो सनातन धर्म की और अपनी भारतीय संस्कृति की!

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