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लॉक डाउन, घरेलू हिंसा और उसका निदान – प्रोफेसर डॉ योगेन्द्र यादव

लॉक डाउन, घरेलू हिंसा और उसका निदान – प्रोफेसर डॉ योगेन्द्र यादव
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सम्पूर्ण विश्व इस समय कोविड – 19 के संक्रमण से बचने के लिए हर वह कदम उठा रहा है, जो विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार अपेक्षित है। जहां तक अपने देश भारत की बात है, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पहले चरण में 21 दिन का लॉक डाउन घोषित किया। कोरेना संक्रमित मरीजों की संख्या में हो लगातार वृद्धि और मरते हुए मरीजो की संख्या में हो रहे लगातार इजाफा को देख कर उन्होने दूसरे चरण में 19 दिन के लिए लॉक डाउन की अवधि और बढ़ा दी । इसमें से एक सप्ताह तो कड़ाई से पालन करने के निर्देश भी दिये। लेकिन इन 21 दिनों में के ही छत के नीचे, घर के अंदर रहने की वजह से घरेलू झगड़े और हिंसा में कहीं वृद्धि हुई, तो कहीं कमी भी आई । उसका संकेत विधायी संस्थाओं ने भी दिये ।

उत्तर प्रदेश के सभी जिला अधिकारियों सहित गाजियाबाद के जिला अधिकारी डॉ. अजय शंकर पांडेय ने बताया कि लॉकडाउन के दौरान घरेलू हिंसा के मामलों में भी वृद्धि हुई है। घरेलू हिंसा की शिकार कई महिलाओं ने यूपी डायल-112 पर फोन करके अपनी शिकायतें दर्ज कराया हैं।

दिल्ली महिला आयोग ने मंगलवार को कहा कि कोरोना वायरस का संक्रमण फैलने से रोकने के लिए लागू लॉकडाउन के दौरान उसके पास घरेलू हिंसा कमी आई है। जबकि राष्ट्रीय महिला आयोग ने लॉक डाउन के दौरान घरेलू हिंसा के मामलों में बढ़ोतरी का संकेत दिया है । इसके कई कारण हो सकते हैं – पहला तो यह कि हिंसा की शिकार महिलाएं प्राय: तब शिकायत करती रही हैं, जब उनका पति, पिता या भाई घर पर उपस्थित नहीं रहता था। लेकिन एक दूसरा भी पहलू है, जैसा कि महानगरों में हुआ है। जिन घरों में मार-पीट और झगड़े पति के घर के ज्यादा समय तक बाहर रहने और देर से लौटने के कारण होते थे, वहाँ झगड़े कम हुए हैं । लेकिन दूसरा तथ्य यह भी है कि लगातार 21 दिनों से एक ही छत, एक ही कमरे में रहने की वजह से कई मसलों पर मत भिन्नता होने के कारण मन-मुटाव और झगले कारण बन रहे हैं ।

घरेलू हिंसा अधिकनियम के अनुसार घर के अंदर होने वाली हिंसा को घरेलू हिंसा कहते हैं । इसमें महिला का शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक, मौखिक, मनोवैज्ञानिक या यौन शोषण उसके परिवारिजनों द्वारा किया जाता है।

घरेलू हिंसा महिला संरक्षण अधिनियम 2005 के अनुसार प्रतिवादी का कोई बर्ताव, भूल या किसी और को काम करने के लिए नियुक्त करना, घरेलू हिंसा में माना जाएगा यदि क्षति पहुँचाना या जख्मी करना या पीड़ित व्यक्ति को स्वास्थ्य, जीवन, अंगों या हित को मानसिक या शारीरिक तौर से खतरे में डालना या ऐसा करने की नीयत रखना और इसमें शारीरिक, यौनिक, मौखिक और भावनात्मक और आर्थिक शोषण शामिल है; या दहेज़ या अन्य संपत्ति या मूल्यवान प्रतिभूति की अवैध मांग को पूरा करने के लिए महिला या उसके रिश्तेदारों को मजबूर करने के लिए यातना देना, नुक्सान पहुँचाना या जोखिम में डालना ; या पीड़ित या उसके निकट सम्बन्धियों पर उपरोक्त वाक्यांश (क) या (ख) में सम्मिलित किसी आचरण के द्वारा दी गयी धमकी का प्रभाव होना; या पीड़ित को शारीरिक या मानसिक तौर पर घायल करना या नुक्सान पहुँचाना । माँ- बेटा, पिता- पुत्री, भाई- बहन, पति-पत्नी, सास-बहू, ससुर-बहू, देवर-भाभी, ननद, गोंद लिए गए पुत्र या पुत्री आदि रिश्तों को इसमें सम्मिलित किया गया है ।

इसके लिये कई कानूनी प्रावधान भी किए गए हैं । धारा 4 के अनुसार घरेलू हिंसा की सूचना कोई भी व्यक्ति दे सकता है । धारा 5 के अनुसार पीड़िता को समस्त जानकारी पीड़िता को उपलब्ध कराना होगा । धारा 10 के अनुसार सेवा प्रदाता, जो नियमतः निबंधित हो, वह भी मजिस्ट्रेट या संरक्षा अधिकारी को घरेलू हिंसा की सूचना दे सकता है। धारा 12 के अनुसार पीड़िता या संरक्षण अधिकारी या अन्य कोई घरेलू हिंसा के बारे में या मुआवजा या नुकासान के लिए मजिस्ट्रेट को आवेदन दे सकता है। जिसकी 60 दिनों के अंदर होना जरूरी है । धारा 14 के अनुसार मजिस्ट्रेट पीड़िता को सेवा प्रदात्ता से परामर्श लेने का निदेश दे सकेगा। धारा 16 के अनुसार पक्षकार की इच्छा के अनुसार कार्यवाही बंद कमरे में हो सकेगी।धारा 17 तथा 18 के अनुसार पीड़िता को साझी गृहस्थी में निवास करने का अधिकार होगा । धारा 19 के अनुसार पीड़िता और उसकी संतान को संरक्षण और सम्पत्ति का कब्जा वापस करने का भी आदेश दिया जा सकेगा। धारा 20 तथा 22 के अनुसार पीड़िता या उसकी संतान को घरेलू हिंसा हुए खर्च, भरण-पोषण एवं आदेश दिया जा सकता है। धारा 21 के अनुसार अभिरक्षा में रहने पर संतान से भेंट करने का भी आदेश मैजिस्ट्रेट दे सकेगा। धारा 24 के अनुसार आदेश की प्रति निःशुल्क न्यायालय द्वारा दिया जाएगा।

सवाल बड़ा है, तमाम कानूनी प्रावधान होने के बावजूद महिलाओं के प्रति हो रही घरेलू हिंसा में कमी नहीं आई है। बल्कि उसमें वृद्धि हुई है। एक बात यह भी हुई है कि घरेलू हिंसा की प्रकृति में बदलाव भी परिलक्षित हुआ है। जैसे – जैसे लोग शिक्षित हुए हैं। वे सोच – समझ कर हिंसा करने लगे हैं। इसका जीता-जागता उदाहरण देश के सबसे शिक्षित माने जाने वाले राज्य केरल में देखने को मिला। सबसे अधिक शिक्षित होने के बावजूद वहाँ घरेलू हिंसा में कमी नहीं आई, अपितु उसने संगठित और समझदारी के साथ अपराध का रूप धारण कर लिया। एक बात यह भी उतनी ही सच है कि महिलाओं के साथ जितनी भी घरेलू हिंसा होती है। उसमें प्रत्यक्ष या परोक्षा रूप से कोई न कोई महिला भी शामिल होती है । जबकि उसकी गणना नहीं होती। इसका कारण भी साफ है कि घरेलू हिंसा प्रत्यक्ष रूप से पुरुष द्वारा ही की जाती है। जबकि अधिकांश प्रकरणों में इसे उकसाने का काम महिलाएं ही करती हैं, यह भी अभिप्रमाणित है ।

सवाल यह है कि लॉक डाउन या अन्य दिनों में घरेलू हिंसा रोका कैसे जाए ? प्रेमपूर्ण रिश्तों के बीच जो हिंसा हो रही है, उसे अगर किसी कानून द्वारा रोका जा सकता, तो अब तक कब का वह रुक चुकी होती है। पति-पत्नी, माँ-बेटे, ननद-भाभी, श्वसुर – बहू आदि के बीच में जो हिंसा होती है, उसका कोई ठोस कारण ही हो, यह हमेशा सत्य नहीं होता है । घरेलू हिंसा की जब हम तह मे जाते हैं, तो प्राय: यह पाया जाता है कि अहंकार और एक दूसरे को नीचा दिखाने की वजह है । आज के युग में लोगों की सहनशक्ति लगातार कम हो रही है। किसी को किसी की झूठ तो छोड़िए सही बात भी नहीं बर्दाश्त होती है । कोई सही बात भी बोलता है, तो भी उसकी प्रतिक्रिया होती है। हमारे यहाँ भारतीय परिवारों की ऐसी संघटना की गई थी, जहां क्रिया की प्रतिक्रिया नहीं होती थी। अगर कुछ कहना भी होता था, तो लोग अपना पक्ष प्रस्तुतु करते थे।लेकिन इस युग में तो पुरुष एक बात बोलता है, तो पत्नी दो बात बोले बगैर रह ही नहीं सकती है। पत्नी एक बात बोलता है, तो पति के अहंकार को ठेस लगती है। वह सही बात को भी बर्दाश्त नहीं कर पाता । अपनी मर्दानगी दिखाने लगता है। अगर थोड़ा सी बात और बढ़ी तो, वह बात हाथापाई में बदल जाती है और इस तरह घरेलू हिंसा का जन्म होता है।

समस्त रिश्तों को लॉक डाउन के कारण जो साथ ही नहीं, चौबीसों घंटे जो साथ रहने का अवसर मिला है, उसका सदुपयोग करना चाहिए। एक दूसरे के बारे में सकारात्मक विचारधारा रखना चाहिए। कोई भी नकारात्मक धारणा नहीं बनाना चाहिए । अगर कोई कुछ बोलता या कहता है, तो उसे पाजिटिव अर्थ में लेना चाहिए। अगर कोई बात कहता है, जो हमारे कमियों को उजागर करता है, तो उस पर आत्ममंथन करना चाहिए, अगर हकीकत में उसकी वजह से लोगों को उससे तकलीफ होती हो, अपने अंदर बदलाव करना चाहिए । हर रिश्ते की बुनियाद प्रेम आधारित होती है। अगर त्याग की दीवार से उसे चुन दें और विश्वास की छत से उसका निर्माण कर दें, तो झगड़े कभी न हों, मन-मुटाव कभी न हों, घरेलू हिंसा यानि महिलाओं के प्रति का हिंसा का भाव भी उत्पन्न नहीं होगा। और चार दिन के लिए जो जिंदगी मिली है, अपने उत्तरदायित्वों को निभाते-निभाते जिंदगी कब बीत जाएगी, पता भी नहीं चलेगा। अगर इस बुनियाद पर रिश्ते बनेंगे, तो 21 दिन क्या ? और 19 दिन क्या ? अगर पूरी जिंदगी भी 24 घंटे एक ही छत के नीचे रहना पड़े, तो भी न तो ऊब होगी और न ही किसी प्रकार का मनमुटाव या हिंसा होगी।

लॉक डाउन के बहाने एक बार फिर हमें एक दूसरे को समझने, एक दूसरे के पार्टी चिंतन करने का समय मिला है। उसका हमें सहयोग करना चाहिए । लॉक डाउन में कहीं बाहर नहीं जाना है, इसका मतलब यह नहीं है कि हम आलसी बन जाएँ, एक ही बिस्तर पड़े-पड़े खाएं और फिर उसी पर सो जाएँ । बल्कि हमारी दिनचर्या पहले की तरह व्यवस्थित रहना चाहिए। सुबह से उठने से लेकर शाम को सोने तक का टाइम टेबल होना चाहिए। हमारी दृष्टि सकारात्मक रहे, इसके लिए हमें योगाभ्यास, कसरत, ध्यान आदि करके मन-मस्तिष्क के साथ-साथ शरीर को भी बलिष्ठ और नीरोगी बनाए रखना चाहिए । जब हमारा मन ऊर्ध्वगामी चिंतन करेगा, हमारा शरीर स्वस्थ रहेगा, चिंतन सकारात्मक होगा, संबंध प्रेमपूर्ण रहेंगे, एक – दूसरे के प्रति त्याग की भावना होगी, तो हमारी सहनशक्ति में इजाफा होगा और घरेलू हिंसा होगी ही नहीं।

प्रोफेसर डॉ योगेन्द्र यादव

पर्यावरणविद, शिक्षाविद, भाषाविद,विश्लेषक, गांधीवादी /समाजवादी चिंतक, पत्रकार, नेचरोपैथ व ऐक्टविस्ट

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