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लॉक आउट में गरीबों को नहीं मिल रहा राशन, भूख से बिलबिला रहे उनके बच्चे – प्रोफेसर डॉ योगेन्द्र यादव

लॉक आउट में गरीबों को नहीं मिल रहा राशन, भूख से बिलबिला रहे उनके बच्चे – प्रोफेसर डॉ योगेन्द्र यादव
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इस समय पूरा विश्व कोविड – 19 से निपटने के लिए पूरी तरह से संघर्ष कर रहा है। लॉक डाउन के तहत सभी देशों ने अपने-अपने नागरिकों को घर से निकलने के लिए मना कर दिया है। जनसंख्या के हिसाब से विश्व में भारत दूसरे नंबर पर है। यहाँ के नगरों का जनसख्या घनत्व भी बहुत अधिक है। इसका अंदाजा सुबह – शाम सड़कों, बस स्टैंडों, रेलवे स्टेशनों पर उमड़ती भारी भीड़ को देख कर लगाया जा सकता है। ऐसे में भारत सरकार के सामने बड़ी ही गंभीर चुनौती है। लेकिन देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बिना एक क्षण गवाएं सम्पूर्ण भारत में लॉक डाउन घोषित कर दिया । उनके इस कदम की विरोधियों और आलोचकों ने आलोचना भी की। लेकिन जब यहाँ के जनसंख्या घनत्व और लोगों की आदतों को देख कर इस विषय पर चिंतन करता हूँ, तो ऐसा लगता है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का कदम उचित ही नहीं, बिलकुल उचित था ।

लॉक डाउन लागू करने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, केंद्र सरकार और राज्य सरकारों के सामने सबसे बड़ी चुनौती हर व्यक्ति को भोजन उपलब्ध कराने की थी। हालांकि तीसरे दिन प्रधानमंत्री के निर्देश पर वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने आपातकालीन बजट की घोषणा की। उस घोषणा को सुन कर सामाजिक चिंतकों ने राहत की सांस ली । इतना ही नहीं बजट घोषित होने के बाद गृह मंत्रालय ने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को पत्र लिखा कि केंद्र सरकार द्वारा घोषित बजट और प्रधानमंत्री अन्न योजना के तहत किए गए प्रावधान के अनुसार इसे गरीबों में वितरित करने का प्रावधान करें ।

लॉकडाउन से सबसे ज्यादा प्रभावित गरीबों, जिसमें पुरुष और महिलाएं दोनों शामिल हैं, को राहत देने के लिए प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना के तहत सरकार ने 1.70 लाख करोड़ रुपये का पैकेज केंद्र सरकार द्वारा घोषित किया गया । कोरेना संक्रमित लोगों के इलाज में लगे चिकित्सकों, पैरा मेडिकल स्टाफ के लिए 50 लाख के बीमा का प्रावधान किया गया । सरकार ने देश की जनता का विश्वास जीतने के लिए यह कहा कि देश के हर बीपीएल कार्ड धारक को 5 किलो अतिरिक्त गेहूं अथवा चावल और एक किलो दाल अगले तीन महीने तक फ्री मिलेगा । जिसका लाभ सीधे 80 करोड़ गरीब जनता तक पहुंचेगा । सरकार ने मानरेगा मजदूरों के पक्ष में बड़ा फैसला लिया। उनकी मजदूरी में इजाफा करते हुए उसे 202 रुपए कर दिया । इस स्माय 5 करोड़ लोग मानरेगा मजदूर के रूप में पंजीकृत हैं, इसका लाभ उन्हे मिलेगा । देश के किसानों को किसान सम्मान निधि के तहत 2000 रुपये उनके खातों में अगले तीन महीने तक ट्रांसफर किए जाएंगे। जिसे दो किश्तों में दिया जाएगा। अभी तक प्राप्त सूचना के अनुसार लगभग सभी राज्य सरकारों ने किसानों के खातों में पहली किश्त निर्गत कर दी है । इसके अलावा प्रधानमंत्री जन-धन खाता धारक महिलाओं को भी अगले तीन माह तक 500 – 500 रुपये उनके खातों में निर्गत करने का भी प्रावधान किया गया । प्रधानमंत्री उज्ज्वला स्कीम के तहत अगले तीन महीने तक 8 करोड़ सिलेन्डर धारकों को मुफ्त रसोई गैस भी दी जाएगी । इसके अलावा सरकार ने 3 करोड़ बुजुर्ग विधवा और विकलांगों को 1000 रुपये आर्थिक मदद देने की घोषणा की । 24 तारीख की रात 12 बजे से लॉकडाउन होने के बाद सबसे ज्यादा इस बात को लेकर ही चर्चा चल रही थी कि गरीब कैसे कमाएंगे और कैसे खाएंगे। सरकार की घोषणा के बाद इस चिंता पर तत्काल विराम लग गया है। केंद्र सरकार ने बिल्डिंग एंड अदर्स कंस्ट्रक्शन वर्कर्स वेलफेयर फंड के तहत निर्माण से जुड़े 3.5 करोड़ पंजीकृत श्रमिकों को राहत देने का प्रावधान किया गया है।

देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कोविड – 19 से निपटने के लिए लागू किए गए लॉक डाउन का कुप्रभाव किसी पर न पड़े, एक प्रभावी आपातकालीन बजट का प्रावधान कर दिया साथ ही देश के स्वयंसेवी संगठनों से अपील की कि देश में कोई भूखा न सोए। इसलिए वे मुक्त हस्त से लोगों को भोजन कराने का काम करें। इससे अधिक पुण्य का कोई काम नहीं होगा। प्रधानमंत्री के आह्वान पर स्वयंसेवी संस्थाएं, समाजसेवी लोग आगे आए और उन्होने अपनी – अपनी हैसियत के अनुसार लोगों के बीच में कोरेना से बचने के लिए मास्क लेकर भोजन वितरित करना शुरू किया । लेकिन क्या वाकई प्रधानमंत्री द्वारा लागू की योजनाओं का लाभ जनता तक पहुंचा । आज मैंने हिन्दी दैनिक अमर स्तम्भ के अपने दो पत्रकारों मित्रों अशोक जी और पप्पू जी को इसकी पड़ताल करने के लिए लगाया । कानपुर मजदूरों का हब है। आज भी उत्तर प्रदेश ही नहीं, भारत के अगर कुछ महानगरों को छोड़ दें, तो सबसे अधिक मजदूर यहीं पर काम करते हैं। उन्होने जो तस्वीर पेश की, वह चिंता में डालने वाली थी । पूरे दिन वे लोग पूरे कानपुर की गरीब बस्तियों में घूमते रहे, वहाँ से समाचार और तथ्य जुटाते रहे । इन दोनों मित्रों ने फोन पर बताया कि सरकार की तरह से जो टोल फ्री नंबर दिये गए हैं, उन नंबरों कोई उठा नहीं रहा है। या तो वे बंद हैं, या उनको रिसीव करने वाला कोई नहीं है। पत्रकार मित्र अशोक जी ने दोनों टोल फ्री नंबरों पर थोड़े – थोड़े समयान्तराल से लगातार कई बार फोन किया । लेकिन किसी ने उसे रिसीव नहीं किया । इससे साफ जाहीर है कि प्रदेश सरकार द्वारा जो लोग इस कार्य के लिए नियुक्त किए गए हैं, वे मुस्तैदी से अपने कार्य को अंजाम नहीं दे रहे हैं। मुझे लगता है कि जितने लोग भी इन टोल फ्री नंबरों पर काल करते होंगे, उन्हें निराशा ही हाथ लगती होगी और उनके मन में सरकार के प्रति एक नकारात्मक छवि बनती होगी । उनका भी दोष नहीं है। एक बार माता-पिता बिना खाये-पीए रह सकते हैं, पानी पीकर करके समय काट सकते हैं, लेकिन जब उनका लड़का या लड़की खाना मांगते होंगे, भूख से तड़फते हुए रोते होंगे, तो उन्हें भोजन न दे पाने पर उनके ऊपर क्या बीतती होगी। निश्चित रूप से उनकी आत्मा रो पड़ती होगी । और उन्हें लगता होगा कि भूख से तड़फ-तड़फ कर मरने के बजाए कोरेना से मर जाते तो अच्छा होता । पत्रकार मित्रों ने बताया कि चकेरी थाना अंतर्गत आने वाली सुजातगंज बस्ती में करीब 62 परिवार ऐसे हैं, जिनके सामने भूख से मरने की नौबत आ गई है। उनके घरों में खाने का एक भी अन्न नहीं है। और न ही उन्हें किसी प्रकार का खाद्यान्न अभी तक मिला है इसी तरह से नौबस्ता की गरीब बस्तियों में भी हालात बहुत बुरे हैं। लोगों को भरपेट भोजन नहीं मिल पा रहा है। सरकार की तरफ से किसी प्रकार की व्यवस्था नहीं की गई है। स्वयंसेवी संगठन वालों के द्वारा तीन-तीन चार-चार पूड़ी देने से उनकी क्षुधा शांत नहीं हो रही है। उन्होने बताया कि इन गरीब बस्तियों में रहने वाले किसी माँ-बाप को जैसे ही पता चलता है कि वहाँ पूड़ी सब्जी का पैकेट बंट रहा है, वे जाकर एक पैकेट लाते हैं, और अपने बच्चों में बाँट देते हैं। इन गरीब लोगों के घरों की हालात भी ऐसी है कि हर घर में कम से कम तीन से लेकर 6 बच्चे तक हैं। जिसकी वजह से एक-एक, आधी-आधी पूड़ी सब्जी ही सबके हिस्से में आती है। पत्रकार मित्रों ने यह भी बताया कि इसमें स्वयंसेवी संगठनों को दोष नहीं दिया जा सकता है। उनकी भी अपनी लिमिटेशन है। जबकि वे अपनी क्षमता से अधिक प्रयास कर रहे हैं। लेकिन जब तक सरकार की ओर से इसके लिए पहल नहीं की जाएगी, कब तक ये गरीब परिवार अपनी भूख को दबाये बैठेंगे । अगर ऐसा ही रहा तो जितनी मौते कोविड – 19 से नहीं होंगी, उससे ज्यादा लोग भूख से मर जाएंगे। उन्होने बताया कि मुस्लिमों की गरीब बस्तियों में तो और भी बुरा हाल है । उनके बच्चे तो लॉक डाउन पालन कराने के लिए पुलिस की नजर बचा कर अमीर लोगों के घरों रोटी मांगने जा रहे हैं। कोई दे देता है, कोई दुत्कार कर भगा देता है। गोविंद नागा के पास स्थित कच्ची बस्ती में भी स्थिति ठीक नहीं है। जब मैंने राशन देने की पड़ताल की तो पता चला कि जिनके पास राशन कार्ड नहीं हैं, उनको 15 तारीख के बाद राशन देने का निर्देश प्राप्त हुआ है। दूसरे कई कोटेदारों के पास बांटने के लिए अभी राशन पहुंचा ही है। इसलिए जिसके घरों में राशन नहीं है, जब वह प्रधानमंत्री की घोषणा के तहत उसे लेने के लिए कोटेदार के यहाँ पहुंचता है, तो उसे बैरन लौटना पड़ता है।

प्रदेश सरकारों को इस दिशा में सोचना होगा। जब केंद्र सरकार द्वारा 80 करोड़ गरीब परिवारों के लिए राशन की व्यवस्था कर दी गई है। तो उन्हें राशन मिलना चाहिए । वह कोटेदारों तक कैसे पहुंचे उसका प्रबंध करना चाहिए और वह सभी स्थानीय और क्षेत्रीय गरीबों के बीच कैसे बंटे, इसका इंतजाम करना चाहिए । इस पर प्रमुख विपक्षी नेताओं ने अपनी बात कही थी, लेकिन सरकार ने उसे अनदेखी की, जिसकी वजह से लोगों को भूखे सोने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है। कोविड – 19 के खिलाफ तभी लड़ाई सफलतापूर्वक लड़ी जा सकती है, जब देश के सभी नागरिकों को जीने के लिए भोजन मिलेगा। वरना लॉक आउट की वजह से भूख से गरीबों के मरने के भी समाचार सुर्खियों में आने लगेंगे । इससे जहां एक प्रदेश सरकारों की कलई खुलेगी, वहीं दूसरी ओर देश के प्रधानमंत्री की छवि भी खराब होगी । इसलिए उत्तर प्रदेश सरकार सहित सभी प्रदेश के मुख्यमंत्रियों को टोल फ्री नंबरों को रिसीव करने की व्यवस्था करना चाहिए और जहां कहीं भूख से लोग पीड़ित हैं। जिनके घरों में अनाज के दाने नहीं हैं, उन्हें भोजन और राशन देने की व्यवस्था करना चाहिए ।

प्रोफेसर डॉ योगेन्द्र यादव

पर्यावरणविद, शिक्षाविद, भाषाविद,विश्लेषक, गांधीवादी /समाजवादी चिंतक, पत्रकार, नेचरोपैथ व ऐक्टविस्ट

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