बाबा साहेब अंबेडकर की १२५वीं जयंती की पूर्व संध्या पर
दलित जन को गरिमा और गौरव के साथ जीने का अधिकार दिलाने वाले और भारत के समता-मूलक संविधान के निर्माता भारत रत्न डॉ. भीमराव अम्बेडकर को उनकी 125वीं जयंती पर कोटिश: नमन। बाबा साहब ने जीवनभर उन वर्गों को ऊपर उठाने की कोशिश की, जो सामाजिक-ऐतिहासिक कारणों से हाशिए पर जी रहे थे।
बाबा साहब सच्चे अर्थों में एक महा-मानव थे। तमाम कष्टों और अन्यायों को सहने के बावजूद उनके मन में कभी किसी के प्रति द्वेष अथवा प्रतिशोध की भावना नहीं रही। निश्चय ही बाबा साहब दलित और पीड़ित वर्ग को समाज और विकास की मुख्य धारा में लाने के लिये संघर्ष करते रहे, लेकिन समाज के दूसरें वर्गों के प्रति उनका भाव हमेशा सकारात्मक रहा। उनकी महानता का एक और पक्ष यह है कि वे सिर्फ दलित एक्टिविस्ट नहीं थे। उनकी चिंतन की व्यापकता में पूरे भारत का हित समाहित था। एक छोटा-सा उदाहरण यह है कि वह महिलाओं को तलाक, सम्पत्ति में उत्तराधिकार आदि के प्रावधान वाले हिन्दू कोड बिल को लागू करवाने के लिये जीवनभर संघर्ष करते रहे। उन्होंने वर्ष 1951 में इस बिल के पारित न होने पर देश के प्रथम कानून मंत्री के रूप में इस्तीफा दे दिया। यह, अपने सिद्धांतों के प्रति उनकी दृढ़ता का परिचायक है। भारत के सामाजिक, आर्थिक, कृषि और औद्योगिक विकास के क्षेत्र में उनका चिंतन बहुत व्यापक था, जो उनके द्वारा रचित पुस्तकों में मिलता है। राष्ट्र निर्माण, विदेश नीति निर्धारण, सामाजिक सुरक्षा, श्रमिक कल्याण सहित ऐसा कोई क्षेत्र नहीं है, जो बाबा साहब के चिंतन से अछूता हो।
बाबा साहब सच्चे अर्थों में एक महा-मानव थे। तमाम कष्टों और अन्यायों को सहने के बावजूद उनके मन में कभी किसी के प्रति द्वेष अथवा प्रतिशोध की भावना नहीं रही। निश्चय ही बाबा साहब दलित और पीड़ित वर्ग को समाज और विकास की मुख्य धारा में लाने के लिये संघर्ष करते रहे, लेकिन समाज के दूसरें वर्गों के प्रति उनका भाव हमेशा सकारात्मक रहा। उनकी महानता का एक और पक्ष यह है कि वे सिर्फ दलित एक्टिविस्ट नहीं थे। उनकी चिंतन की व्यापकता में पूरे भारत का हित समाहित था। एक छोटा-सा उदाहरण यह है कि वह महिलाओं को तलाक, सम्पत्ति में उत्तराधिकार आदि के प्रावधान वाले हिन्दू कोड बिल को लागू करवाने के लिये जीवनभर संघर्ष करते रहे। उन्होंने वर्ष 1951 में इस बिल के पारित न होने पर देश के प्रथम कानून मंत्री के रूप में इस्तीफा दे दिया। यह, अपने सिद्धांतों के प्रति उनकी दृढ़ता का परिचायक है। भारत के सामाजिक, आर्थिक, कृषि और औद्योगिक विकास के क्षेत्र में उनका चिंतन बहुत व्यापक था, जो उनके द्वारा रचित पुस्तकों में मिलता है। राष्ट्र निर्माण, विदेश नीति निर्धारण, सामाजिक सुरक्षा, श्रमिक कल्याण सहित ऐसा कोई क्षेत्र नहीं है, जो बाबा साहब के चिंतन से अछूता हो।
Next Story