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शिक्षा विभाग और राजनीति

शिक्षा विभाग और राजनीति
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उत्तर प्रदेश हो या बिहार दोनों प्रांतों के सरकारों के लिए यदि कोई विभाग टार्गेट पर रहता है तो वह है शिक्षा विभाग ।इन दोनों प्रांतो में यही एक विभाग है जो जनता और सरकार की आँखो में खटकता रहता है ।रही बात बिहार की तो जब लोकसभा या विधान सभा का चुनाव आता है तो सभी पार्टियों के लिए चार लाख नियोजित शिक्षक भगवान की तरह पूजे जाते हैं ।जदयू राजद और भाजपा तरह के वादे करने लगती हैं ।लेकिन जो भी पार्टी सरकार बनाती है तो वही नियोजित शिक्षक इनके लिए राक्षस नजर आने लगते हैं ।चुनाव से पहले शिक्षकों की सेवा अवधि साठ वर्ष से बासठ वर्ष करने की बात होती है लेकिन सरकार में आने के बाद उन्हीं शिक्षकों को पचास वर्ष में ही जबरन सेवानिवृत्ति देने की बात की जाती है ।वही बीजेपी के शीर्ष नेता जब नेता प्रतिपक्ष थे तो नियोजित शिक्षकों को समान का समान वेतन देने की वकालत कर रहे थे ।लेकिन जबसे उपमुख्यमंत्री बने हैं तबसे लग रहा है कि उनको साँप सुंघ गया है ।ठीक वैसी ही हालत उत्तर प्रदेश की है ।निवर्तमान सपा सरकार नियम की धज्जियां उड़ाकर शिक्षा मित्रों को सहायक अध्यापक के रूप में समायोजन कर अपना वोट बैंक बनाने का काम किया ।गौरतलब है कि उत्तर प्रदेश में लाखों बेरोजगार शिक्षक पात्रता परीक्षा पास करके सड़क पर घुम रहे हैं ।रही बात जनता कि तो इनके नजर में सरकारी स्कूल सिर्फ सरकारी लाभ जैसे एम डी एम, छात्रवृत्ति एवं पोशाक राशि प्राप्त करने का सेंटर है ।पिछले बिहार विधानसभा चुनाव के मद्देनजर,वोट के लिए, तत्कालीन सरकार ने छात्रवृत्ति वितरण के लिए विद्यार्थियों की उपस्थिति ,(75%)की बाध्यता तक हटा दिया था ।
-यह शिक्षा विभाग के साथ राजनीति नहीं है तो क्या है?
वर्षों से वेतनमान की रट लगाने वाले चार लाख नियोजित शिक्षकों को विधानसभा चुनाव में चाईनीज वेतनमान देकर तत्कालीन सरकार ने धोखा देने का काम किया एवं अभी तक सेवाशर्त भी नहीं बनाया ।
-यह शिक्षा विभाग के साथ राजनीति नहीं तो और क्या है?
शिक्षकों को गैर शैक्षणिक कार्य जैसे -जनगणना,चुनाव,बी एल ओ इत्यादि काम में प्रतिनियुक्ति करना सरकार की सोची समझी रणनीति है ।
जो शिक्षक बच्चों को पढ़ाता है यदि किसी कारणवश इनका बच्चा उपरोक्त सरकारी लाभ से वंचित हो जाय तो वही शिक्षक विद्यार्थियों और अभिभावकों के लिए दुश्मन बन जाता है और आये दिन विद्यालय परिसर में दोनों के मध्य विवाद होता रहता है ।जनता के बीच एक ही चर्चा अक्सर रहता है ,-"हेडमस्टर वा खूब लूटत बा ।"
सर्व शिक्षा अभियान के अंतर्गत संचालित मीड डे मील योजना से पठन -पाठन बहुत प्रभावित हुआ है ।शिक्षक मास्टर नहीं वेटर बन गया है ।विद्यालय शिक्षा मंदिर नहीं होटल बन गया है ।
सम्बन्धित अधिकारी भी उसी विद्यालय का निरीक्षण करता है जहाँ छात्र उपस्थिति सर्वाधिक है ।और पढाई की गुणवत्ता के जगह मीड डे मील की गुणवत्ता जाँच करता है ।एवं थोड़ी सी भी कमी पाये जाने पर मीड डे मील मद से ही घुस की मांग करता है ।हेडमस्टर,चाॅक -डस्टर की जगह नमक,तेल खरीदने में ही परेशान रहता है ।यदि वर्तमान शिक्षा प्रणाली में सुधार नहीं किया गया और शिक्षा को राजनीति से अलग नहीं किया गया तो विद्यार्थीयों को शिक्षित बनाना तो दूर की बात है, साक्षर भी नहीं बना पायेंगे ।

नीरज मिश्रा
बलिया (उत्तर प्रदेश )।
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