रचनाकर्मी हितैषी और मुखर राजनीतिज्ञ – चंद्रशेखर
BY Suryakant Pathak8 July 2017 4:06 AM GMT

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Suryakant Pathak8 July 2017 4:06 AM GMT
आज चंद्रशेखर जी की पुण्यतिथि है.देश दुनिया में फैले तमाम उनके चाहने वाले उन्हें कई रूपों में याद कर रहे हैं.मैं भी उसी फेहरिस्त में शामिल हूँ.बचपन से ही राजनीति के ककहरे को सुनते-समझते बड़ा हुआ हूँ और आज जीवन के इस पड़ाव में पहुँचते हुए यह समझदारी विकसित हुयी कि राजनीति में असल बात विचार की होती है,जो नेता विचार के महत्व को अपने पूरे राजनैतिक जीवन में बनाये और बचाए रखता है.उसकी पहचान देश-देशांतर तक बनी रहती है और बदलते राजनैतिक दौर एवं गिरते मूल्यों के बीच भी उस नेता के नाम की प्रासंगिकता बढ़ती जाती है.
कुछ ऐसा ही व्यक्तित्व चंद्रशेखर जी का था.यंग इण्डिया के माध्यम से राजनीति और समाज के सवालों पर लेखनी चलाते हुए उन्होंने अपनी सामाजिक जिमेदारी का बखूबी निर्वहन किया.समाज के जागरूक और बुद्धिजीवियों के प्रति उनके मन में एक अलग ही अनुराग था.तमाम व्यस्तताओं के बाद भी पत्रकारों,साहित्यकारों सहित रचनाकर्मियों को समय देने में वे कोई कोताही नही बरतते थे.वैचारिक गोष्ठी,परिचर्चा,बैठकों में शामिल होने के प्रति हमेशा उत्साहित रहते थे.इसके पीछे उनका तर्क था कि ऐसे आयोजनों में शामिल होने से राजनीति करने वाले लोगों की मुद्दों के प्रति समझ बढ़ती है.साथ ही जनता के मूल स्वर को जानने में भी मदद मिलती है.जिसके फलस्वरूप शासन चलाने के लिए जरुरी अंतर्दृष्टि कार्य व्यवहार में सहज ही शामिल हो जाती है.यही वजह है कि उनके निधन के लम्बे अंतराल के बाद भी लिखने-पढ़ने और सोचने-समझने वाले वर्ग में चंद्रशेखर की याद आज भी शिद्दत की जाती है.
समाजवादी वैचारिक छात्र आन्दोलन से उपजे बृजभूषण तिवारी जी के साथ मुझे भी चंद्रशेखर जी के साथ मिलने का सौभाग्य मिला था.दिल्ली में उनसे कई छोटी मुलाकातों के क्रम में एक बार उनसे थोड़ी देर बात हुयी,जैसे ही उन्होंने मेरे इलाहाबाद विश्वविद्यालय के जुड़ाव और लिखने की अभिरुचि को जाना,उसके बाद ऊपर से सख्त दिखने वाले चंद्रशेखर जी का लहजा पूरी तरह बदल गया.हिन्दू हॉस्टल से लेकर इलाहाबाद में अपने संघर्ष की याद करते हुए उन्होंने कहा कि इलाहाबाद का जो गंवई अंदाज और अपनापन है उसे हमेशा बचाए रखना.मैं तो उनके व्यक्तित्व से ही इतना प्रभावित था कि उस समय की बहुत सारी बातें स्मरण में भी नही रही.
आज की छात्र-युवा राजनीति में जितनी जरुरत चंद्रशेखर जैसे युवा तुर्क की है जो व्यवस्था से पूरे मनोयोग से भिड़ सके, साथ ही गलत का विरोध करने का साहस मुखरता के साथ कर सके लेकिन ऐसे चंद्रशेखर के निर्माण के लिए पहले आचार्य नरेंद्र देव जैसे वैचारिक मूल्यों से संपन्न अभिभावक की खोज जरुरी है.जिससे युवा तुर्क जैसे नौजवानों की एक पंक्ति तैयार हो सके.जो देश में बढ़ते लोकतान्त्रिक संकट को दूर करने में सशक्त हो सकें.युवा तुर्क को याद करते हुए न केवल हम उनका स्मरण करें बल्कि उस पूरी परम्परा को जानते हुए आगे बढ़ाने में सहयोगी बने, जिससे यह आत्मबल विकसित होता है कि अकेले चलते हुए भी हिन्दुस्तान जैसे देश में जाति-धर्म से ऊपर उठकर,क्षेत्रीय पहचान का गौरवबोध लिए विसंगतियों की भरमार वाले राजनीति के क्षेत्र में एक ऐसी पहचान बनायीं जा सकती है, जो लम्बे समय तक एक आदर्श के रूप में समाज को जीवंत करती रहेगी.
युवा तुर्क चंद्रशेखर जी हमारी यादों में...
मणेंद्र मिश्रा'मशाल'
संस्थापक-समाजवादी अध्ययन केंद्र(सिद्धार्थनगर)
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