"मेरे भइया......"(कहानी)
उत्तर प्रदेश के गाजीपुर जिले में 'बारे' नामक एक गाँव है।मां गङ्गा की पावन तरंगों से आलोड़ित तट वाले इस गाँव में अधिसंख्य आबादी मुस्लिम है।इसी गाँव की कथा है।बहुत पुरानी बात है, इस गाँव में एक बड़े ही प्रतिष्ठित और सम्पन्न किसान रहते थे,नाम था असलम खान।ये वो युग था जब युवाओं को दैनिक संघर्षों से सन्तप्त होने के बाद अपने मन-मस्तिष्क को आराम देने के लिए किसी मल्टीप्लेक्स या पब की जरूरत नही पड़ती थी।उस युग का युवा अपनी शारीरिक और मानसिक क्लान्ति को दूर करने के लिए और भी अधिक शारीरिक और मानसिक परिश्रम करता था और इस कार्य के लिए प्रत्येक गाँव मे दो स्थल जरूर बनाए जाते थे-अखाड़ा और चौपाल।अखाड़ा शारीरिक क्लान्ति का इलाज था तो चौपाल मानसिक क्लान्ति की औषधि।असलम खान भी युवावस्था में अपने गाँव के अखाड़े के बादशाह हुआ करते थे।आस पास के गाँवों में कोई ऐसा पहलवान नही था जिसके दम्भ को उन्होंने पटखनी देकर चित्त ना कर दिया हो।भुजाओं में अतुलनीय बल और कुश्ती के दाँव पेंचों में दक्ष होते हुए भी असलम ने कुश्ती को अपना व्यवसाय कभी नही बनाया।उनकी गणना पूरे क्षेत्र के प्रमुख जमींदारों में होती थी और लोग उनका बड़ा सम्मान करते थे।असलम की एक छोटी बहन थी,महक।बहुत ही प्यारी और सबकी लाडली।बहुत स्नेह करते थे वो उसे।और महक..?उसके लिए तो पूरी कायनात में यदि कोई था तो वो थे उसके भइया।कोई खुशी मिले तो उसे बाँटने के लिए भी और दुख हो तो उसे काटने के लिए भी।दुनिया के सबसे महान और बलवान व्यक्ति।ये बहने भी बड़ी कमाल की होती हैं।सिर पे अगर भाई का हाथ हो तो उन्हें किसी खुदा की भी कोई जरूरत नही होती।उनके लिए तो उनका वीर ही दुनिया भर में सबसे बड़ा कारसाज होता है,जिसके लिए अपनी बहना की खातिर कुछ भी कर जाना बाएँ हाथ का खेल होता है।विपत्ति पड़ने पर उसे परमात्मा की नही बल्कि अपने भाई की ही याद आती है,इसीलिए तो द्रोपदी को विपत्ति से बचाने के लिए स्वयं परमात्मा को भी भाई का रूप ले कर ही आना पड़ा था।
महक भी ऐसी ही थी।भाई असलम का बाहुबल उसका स्वाभिमान था और जीवन की प्रत्येक परिस्थिति से जूझ जाने का एकमात्र सम्बल....'मेरे भइया हैं न..'
असलम ने अच्छा घर वर देख कर बहन की शादी कर दी।महक नए अरमानों के साथ एक नूतन संसार बसाने के लिए विदा कर दी गई।साथ छूट गया परन्तु विश्वास नही टूटा।उसने इस विश्वास के साथ सबसे विदाई ले ली थी कि जब तक उसके भइया हैं तब तक इस धरती पर कहीं भी उसे कोई दुःख नही सता सकता।
महक को शमसाद के रूप में बड़ा ही प्यार करने वाला पति मिला था।ससुराल के अन्य सदस्य भी बहुत अच्छे थे।दिन रूपी पखेरू पंख पसार उड़ते चले जा रहे थे।कुछ दिनों के बाद ही महक नवसृजन का माध्यम बनते हुए गर्भवती हुई।पूरा परिवार उसकी तीमारदारी में लग गया और कोई भी भारी काम उसके लिए सर्वथा निषिद्ध कर दिया गया।एक दिन की बात,,किसी कारण वश घर की आटा पीसने वाली चक्की को उसके स्थान से हटा कर किसी दूसरे स्थान पर रखने की जरूरत पड़ गई।बूढ़ी सास ने घर के नौकरों को आवाज लगाई लेकिन संयोग से उस समय घर में शमशाद के अलावा कोई और पुरुष नही था।माँ ने बेटे को ही आदेश दिया और आज्ञा का पालन करने के लिए शमसाद ने ताकत लगानी शुरू की।बहुत प्रयत्न करने के बाद भी वो उस चक्की को उठा नही पाया।महक दूर खड़ी ये सब देख रही थी।पति का हीन सामर्थ्य देख कर उसे हँसी आ गई।शमशाद ने अपमानित नजरों से उसकी ओर देखा लेकिन महक ने लापरवाही से हँसते हुए कहा-"ऐसे क्या देख रहे हैं।आप जिस चक्की को हिला भी नही पा रहे हैं ऐसी चक्कियों को मेरे भइया अपनी एक उंगली से ही उठा कर दूर फेंक देते हैं।"
हास मिश्रित व्यंग्य ने शमशाद को तिलमिला कर रख दिया।पुरुष हृदय की ये विशेषता होती है कि सारी दुनिया की पराजय तो वह भले ही बड़ी सहजता स्वीकार कर सकता है लेकिन स्त्री हृदय पर वह सदा ही अपनी विजय और एकाधिकार स्थापित करना चाहता है।उस स्त्री के हृदय में वह अपना सर्वश्रेष्ठ स्थान बनाना चाहता है जिसे वह प्रेम करता है और ये कभी नही चाहता कि वह स्थान किसी कोई भी पर पुरुष कभी ले पाए।महक ने अपने भाई के पराक्रम के सामने शमसाद को नीचा दिखाया था।उसकी अपमानित करती हुई हँसी शमसाद के अन्तस् को किसी तीर की तरह चीरती हुई चली गई।चेहरा गुस्से से तमतमा उठा,आँखों में खून उतर आया।परन्तु आज इस अपमान के ग्रास को उसने चुपचाप खा लिया लेकिन इस संकल्प के साथ कि वो इसका कर्ज सूद के साथ वापस करेगा और अवश्य करेगा।बात आई गई हो गई।कुछ ही दिनों के बाद महक ने एक चाँद के टुकड़े को जन्म दिया।पूरा परिवार हर्षित होकर नाच उठा।उत्सव की तैयारी होने लगी और दिन निश्चित करके सभी रिश्तेदारों के यहाँ संदेशवाहक भेज दिए गए।असलम खान ने सुना तो खुशी के मारे फूले नही समाए।मन भँवरे की तरह गुंजार कर उठा।हलवाई बुलाए गए और मिठाइयाँ बनने लगीं।जुलाहे के यहाँ से कपड़े की गाँठें खरीदी जाने लगीं।गाड़ीवानों ने गाड़ियाँ कसीं और कुल दस गाड़ियों पर तरह-तरह के नजराने सजा कर के लादे जाने लगे।असलम नही चाहते थे कि कोई कमी रह जाए जिससे उनकी बहन को ससुराल में नीचे देखना पड़े।
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शमसाद ने पुत्र प्राप्ति के उत्सव को मनाने की बड़ी भव्य तैयारी की थी।पूरे गाँव के भोजन की व्यवस्था थी और मनोरंजन के लिए क्षेत्र की मशहूर नर्तकियों को भी बुलाया गया था।गाँव से दूर खाली पड़े खलिहान में जलसे के लिए शामियाना सजाया जा रहा था।शामियाना लगाने वाले नौकरों ने आकर शमसाद को खबर दी कि "सरकार ! शामियाने का आकार बहुत बड़ा होने के कारण उसकी ज़द में एक बबूल का पेड़ आ जा रहा है।अगर आप कहें तो उसे काट दिया जाए?"
सुनकर शमसाद की आँखे किसी शातिर भेड़िये की तरह चमक उठीं-"नही ! चलो मैं देखता हूँ।"कहकर वह नौकरों के साथ चल पड़ा।खलिहान में पहुंच कर उसने उस पेड़ को देखा और कुछ सोचकर नौकरों को निर्देश दिया कि उस बड़े पेड़ को काट छाँट कर जानवरों को बांधने वाले खूँटे का आकार दे दिया जाय और शामियाने को इस प्रकार लगाया जाए कि वो खूंटा नर्तकियों के नाचने वाले स्थान के ठीक बीचो बीच आए।नौकरों ने ऐसा ही किया और शामियाना सज कर तैयार हो गया था।
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चहुओर उल्लास ही उल्लास बिखरा हुआ था।असलम खान बहन और भांजे से मिलकर बहुत प्रसन्न थे।आज इस मुबारक मौके पर वो अपना सब कुछ लुटा देने को तत्पर थे।भोजन समाप्त हो जाने के बाद नाच का कार्यक्रम शुरू होने वाला था।शमसाद साले साहब को साथ लेकर शामियाने में पहुँचा और बड़े ही आदर के साथ अपने पास बैठाया।संगीत प्रारंभ हुआ और नर्तकियों ने मीठी तान के साथ थिरकना शुरू किया।लेकिन नृत्य और संगीत का जादू अपना उतना असर नही दिखा पा रहा था।नाचने वालियों को अपनी कला के प्रदर्शन में असहजता सी हो रही थी और कारण था वह 'खूंटा',जो बार बार व्यवधान उत्पन्न कर रहा था।अंत में नर्तकियां झल्लाकर बैठ गईं-"अब तो नाच तभी होगा जब यह खूंटा यहाँ से हटाया जाएगा।" रंग में भंग पड़ गया।कोई दौड़कर कुल्हाड़ी ढूढ़ने लगा तो कोई फावड़ा लेकिन नृत्य का आनन्द लेने वाले कुल्हाड़ी-फावड़ा लेकर तो आते नही हैं।किसी ने कहा कि जाओ घर से लेकर आओ परन्तु 'उसमें तो बहुत देर होगी'।
"धत्त ! सारा मजा ही खराब हो गया।" कहीं से आवाज आई।
"अरे चिन्ता मत करो।"-अचानक शमसाद की आवाज़ सुनाई पड़ी-"जब इस महफ़िल में असलम खान जैसा महाबली बैठा है तो इस अदने से खूँटे की क्या बिसात है?"-शमसाद असलम को देखकर मुस्कुराते हुए बोला-"आइए साले साहब ! थोड़ी सी जोर आजमाइश हो जाए।" अपनी एक ठोकर से बड़ी बड़ी चट्टानों को उखाड़ फेंकने वाले असलम के लिए एक खूँटे को उखाड़ना वास्तव में चुटकी बजाने जितना ही आसान काम था।मुस्कुराते हुए वो उठे और धीरे धीरे चल कर खूँटे के पास पहुंचे।बड़े आराम से झुककर खूँटे को दोनों हाथों से पकड़ा और हल्की सी ताकत लगा कर एक झटका दिया।अगले ही पल चेहरे पर उदासी फैल गई-'धोखा' ! मस्तिष्क में बिजली सी कौंध गई।ये देखकर शमसाद के होठों पर कुटिल मुस्कान तैर गई-"क्या हुआ पहलवान साहब?आपकी बहन तो रात दिन आपकी तारीफों के पुल बाँधते नही थकती।हर काम में मेरे भइया...!मेरे भइया महाबली हैं,पहाड़ उखाड़ देते हैं और यहाँ भइया से एक खूंटा भी नही उखड़ रहा है।हाहाहा....बड़बोली बहन का कमजोर भाई।कोई बात नही,छोड़ दीजिए, रहने दीजिये।"
असलम खान अवाक रह गए।आँखों के सामने महक का फूल सा चेहरा घूमने लगा जो आज भोर की कुमुदिनी की तरह मुरझाया हुआ था।लोग उसे चारो तरफ से घेर कर उसका उपहास उड़ा रहे थे,चिल्ला चिल्लाकर ताने मार रहे थे 'यही हैं तुम्हारे भइया....?" असलम की आँखों में आँसू आ गए।"नही"-दाँतों को भींचकर वो बुदबुदाते हुए बोले-"असलम तुम्हारी बहन बड़बोली नही हो सकती।वो मासूम जिंदगी भर अपना स्वाभिमान खोकर और इस संसार से तिरस्कृत होकर कैसे जीवित रहेगी?उसके वचन के मान के लिए तुझे ये खूंटा आज उखाड़ना ही पड़ेगा,अपनी बहन के स्वाभिमान के लिए तुझे ये खूँटा उखाड़ना ही पड़ेगा।"
पहलवान ने जोर की साँस ली और अपनी पूरी ताकत लगा दी।पूरे शरीर की नसें तनकर उभर आईं।नाक और कान के रास्ते रक्त की धार फूट पड़ी।भीड़ हतप्रभ खड़ी थी।शमसाद को तो काठ मार गया।उसने ऐसे दृश्य की कल्पना भी नही की थी।वो तो बस अपनी पत्नी के हृदय में दुनिया के सर्वश्रेष्ठ पुरुष के रूप में निवास करना चाहता था।महक के हृदय से दुनिया के सबसे शक्तिशाली पुरूष के रूप में बसी असलम की मूर्ति को हटाना चाहता था बस-"देख लो महक ! जिस भइया को तुम महाबली समझती थी उनसे एक छोटा सा खूँटा नही उखड़ पाया।" लेकिन उसने जितना सोचा था बात उससे बहुत ज्यादा आगे बढ़ चुकी थी।पहलवान का रौद्र रूप देखकर उसके होश उड़ गए।सहसा असलम ने एक भीषण हुंकार भरी और अगले ही क्षण खूँटे के रूप वाला वह बबूल का पेड़ लगभग एक बिस्वा जमीन की मिट्टी अपनी जड़ों में समेटे उखड़ कर दूर जा गिरा।पहलवान गिर पड़ा।मुख से रुधिर की धार लग गई।लोग हाय हाय करते हुए दौड़े।असलम की आँखे बुझ रहीं थीं और उनके सामने था महक का स्वाभिमान की ज्योति से दमकता हुआ सुन्दर मुखड़ा जिसके होठों पर एक गर्वीली मुस्कान सजी थी।बहन ने बड़े फ़ख्र के साथ पुकारा-"मेरे भइया..!" और महाबली असलम की आँखें एक अलौकिक संतोष के साथ सदा के लिए बन्द हो गईं।
-संजीव कुमार त्यागी