गुलाब!
एक ठेठ देहात का व्यक्ति जो सरसों के फूलों से भरे खेत देख कर झूमता हो, उसके लिए बड़ा कठिन है गुलाब को फूलों का राजा मान लेना। पर गुलाब राजा है तो है, इसके विरुद्ध आंदोलन करने से उसका राज संकट में थोड़े आएगा...
सरसो और गुलाब दोनों का रङ्ग प्रेम का रङ्ग है, बस सरसो के पीतवर्ण में प्रेम के साथ साथ एक पवित्र आभा होती है, जो गुलाब में नहीं होती। गुलाब देख कर आंखें चहक उठती हैं, सरसो के फूलों पर मन चहक उठता है।
प्रेम भी दो रङ्ग का होता हैं। प्रेम जब पूर्णता भर दे तो आंखे बंद हो जाती हैं, तब उसका रंग पवित्र पीत हो जाता है। हल्दी, सरसो, गेंदा की तरह... तब प्रेमी अपने प्रिय का नाम सुन कर ही आनन्द में डूब जाता है। और प्रेम जब उन्मत्त कर दे तो उसका रंग गुलाबी हो जाता है। तब प्रेमी मरीचिका में फंसे मृग की तरह दौड़ दौड़ कर प्रिय को ढूंढने लगता है। उसे पाने का हर जतन करने लगता है। आजकल गुलाब के रंग वाले प्रेम का फैशन है।
गुलाब अधिक लुभावना होता है। उसका आकर्षण अधिक तीव्र होता है, छुरी की तरह धारदार... वह अपनी ओर जबरन खींच लेता है। जिस चीज में आकर्षण बहुत अधिक हो, समझ जाना चाहिए कि वह भ्रम है। सत्य कभी बहुत आकर्षक नहीं होता।
सरसो के फूल उस हल्दी से नहाई हुई लड़की की तरह लगते हैं जिसका लग्न चढ़ गया हो। या समधियाने से मिली पियरी धोती पहन कर इठलाते उस बुजुर्ग की तरह, जो मुस्कुरा कर बताए कि धोती समधिन अपने हाथ से रंग कर भेजी हैं। या तीन दिन पहले ही विदा हो कर आई नई दुल्हन की तरह, जो पीली चुंदरी पहने अपने आंगन में पायल की रुनझुन से सौभाग्य विखेरती चलती है।
गुलाब का सौंदर्य थोड़ा चटक है। आंखें चुंधिया जाती हैं उसके रङ्ग से... जैसे रेड कार्पेट पर लाल गाउन पहन कर चलती कोई हॉलिवुड की हिरोइन हो! या जैसे गुलाबी साड़ी पहन कर निकलती कोई राजकुमारी, जिसकी ओर आंख उठा कर देखने पर सर कलम कर देने की सजा निर्धारित हो। उसके सौंदर्य में विशिष्टता का दम्भ है। कुल मिला कर गुलाब फूलों का राजकुमार है।
गुलाब सामर्थ्यवान लोगों को बहुत पसंद आता है। नेहरू जी हमेशा अपने कोट में गुलाब खोंसते थे। शाहजहां की बेटी मेहरुन्निसा खुद को गुलाब कहती थी। सारी मुगल शाहजादियाँ गुलाब के इश्क में डूबी रहती थीं। राजा महाराजाओं के बाग पाटल पुष्पों से लदे रहते थे। हमारे राष्ट्रपति भवन का गार्डन भी भांति भांति के गुलाबों से भरा पड़ा है।
मैं सोचता हूँ कि आखिर सामान्य जन गुलाब पर इतना मोहित क्यों रहता है, जबकि गुलाब सामान्य जन की पहुँच से हमेशा बाहर ही रहा है। शायद पहुँच से दूर होना ही गुलाब के आकर्षण का मुख्य कारण है। जो चीज आसानी से नहीं मिलती वह बहुत सुन्दर लगती है। जैसे दूर के ढोल सुहावने होते हैं...
आजकल पचास रुपये में मिलता है एक गुलाब! उस समय जब गेहूं चौदह रुपये किलो बिकता है। मतलब एक गुलाब चार किलो गेंहू के बराबर है। बात केवल गुलाब की ही नहीं है, व्यक्ति अपना सौंदर्य बेचना सीख जाय तो उससे अधिक महंगा कुछ नहीं बिकता। गुलाब क्यों न बिके...
चर्चा है कि आज रोज डे है। प्रेयसी को गुलाब देने की अंग्रेजी प्रथा का दिन... किशोरावस्था के दिनों में मेरी कोई प्रेयसी रही होती तो उसका हाथ पकड़ कर खिली हुई सरसो के खेतों में घूमता। इससे अधिक सुंदर कुछ भी नहीं।
सर्वेश तिवारी श्रीमुख
गोपालगंज, बिहार।