(कहानी ) प्रतिफल : आशीष त्रिपाठी
उस दिन रविवार को दूध लेने रजत खुद ही चल पड़ा । नौकरी ऐसी थी कि सुबह आठ बजे मोटरसाइकिल उठाता तो घर आते रात के आठ बज जाते , ज्यादातर रविवार भी इस प्राइवेट नौकरी की भेंट चढ़ जाते थे , लेकिन अच्छी तनख्वाह देख इसका मलाल जाता रहता । आज नहीं जाना पड़ा था तो सोचा दूध लाने के बहाने ही सही गांव का एक चक्कर हो जाएगा । लौटने लगा तो श्यामधर काका ने रोक लिया , हाल - चाल के बाद उन्होंने मन की बात कह डाली -" बचवा! यह चुन्नुआ कहीं सेट नहीं हो पायेगा क्या ? आखिर घूमता ही रहता है ।"
रजत को ध्यान आया कि उसके बॉस ने एक अच्छे डील डौल वाले आदमी की जरूरत बताई थी जो वाचमैन का काम देख सके -" जगह तो है काका ! तनख्वाह अभी तो बहुत ज्यादा नहीं है , लेकिन धीरे - धीरे बढ़ जाएगी । "
काका गदगद हुए -" अरे तनख्वाह का क्या है बचवा ! जैसी मेहनत करेगा वैसा फल पायेगा, तुम राह पकड़ा दो बस ।"
तय हुआ कि चुन्नू नहा धोकर कल रजत के घर पहुंचेगा और उसी के साथ शहर उसके ऑफिस चला जायेगा । रजत के बापू ने सुना तो फट पड़े - " बुजुर्गों ने कहा है कि जहाँ नौकरी करो वहां अपने गांव घर का कुत्ता भी न फटकने दो ।"
रजत पढ़ा लिखा आधुनिक विचारों वाला लड़का था । पिता के दकियानूसी विचारों को मुंह पर खारिज नहीं किया - " अभी तो जा रहा है , जरूरी नहीं कि साहब नौकरी पर रख ही लें ।"
बापू भुनभुनाते हुए निकल गए थे ।
ऑफिस में काम करते रजत को दो साल हो चुके थे । बॉस से अच्छी बनती थी । चुन्नू को मिलवाया तो इंटरव्यू के नाम पर बॉस ने उससे नाम पता पूछ कर कल से आ जाने को कह दिया ।
उस दिन चुन्नू को बॉस ने बुलाया - " तुम नौ बजे क्यों आते हो ? ऑफिस आठ बजे खुलता है न ?"
चुन्नू ने बताया - " मैं तो तैयार रहता हूँ साहब ! भगेलू भैया ही लेट से निकलते हैं । "
-"कौन भगेलू ?"
-"अरे वही अपने रजत भैया ! गांव में लोग भगेलू कहते हैं उन्हें । छोटे थे तो भाग कर सनीमा देखने चले जाते थे । हाईस्कूल में दो दफा फेल भी हुए इसी कारण , तो लोग भगेलू कहने लगे ।"
बॉस ने चुन्नू को बाहर भेजा और रजत को बुलाया -" तुम थोड़ा जल्दी आ जाया करो ! तुम्हारी वजह से एंट्रेंस एक घण्टे तक बिना वॉचमैन के रहता है । "
- " मगर सर ! मेरे डिपार्टमेंट का रिपोर्टिंग टाइम तो नौ बजे है न ?"....रजत ने हिम्मत कर के कहा ।
बॉस ने समझाया - " मैं शुरू से कहता हूँ कि यह फैमिली है , फैमिली में हम देखते हैं क्या कि उसकी बेहतरी के लिए हमें कितना एडजस्ट करना पड़ रहा है ? थोड़ा तुम भी एडजस्ट करो । "
रजत बाहर निकल आया ।
एक रविवार को श्यामधर काका घर आ गए - " बेटा ! तुम कहते थे कि समय के साथ तनख्वाह बढ़ जाएगी , लेकिन दो महीने हो गए अभी तक कोई बढ़ोत्तरी न हुई ? "
रजत क्या बोले - " काका ! ऐसे एकदम से आसमान में सुराख़ नहीं हो जाता । मैं ग्रेजुएट हूँ , बड़ा काम मेरे जिम्मे है फिर भी छः महीने बाद 500 रुपये बढ़े थे ।"
-"चलो ठीक है बेटा ! लेकिन चुन्नू बता रहा था कि तुम ऑफिस के बाकी लोगों के साथ चाय - नाश्ता करते हो लेकिन चुन्नू को कभी नहीं बुलाते , उसका बहुत कलेजा दुखता है । आखिर तुम्हारे कहने पर ही तो उसने ये नौकरी शुरू की थी ?"
रजत को समझ नहीं आया कि क्या जवाब दे । उठ कर भीतर चला गया । बापू घूरते नजर आ रहे थे ।
बॉस ऐसे कभी नहीं बिगड़ा था - " तुमसे मुझे ऐसी उम्मीद नहीं थी रजत ! तुमसे मैं अपनी कुछ पर्सनल बातें शेयर करता हूँ तो तुम उसे सबके सामने उछालोगे ? वो चुन्नू आकर मुझे किसी बाबा की भभूत दे गया है , ये कहते हुए कि इससे मर्दाना कमजोरी दूर होती है । आखिर हो तो दो बार के हाईस्कूल फेल ही , नकल वकल करके परीक्षा निकाली जा सकती है लेकिन जिम्मेदारी सच्ची शिक्षा पाने वाले के भीतर ही होती है । "
रजत को सांप सूंघ गया । साथ काम करने वाले फ्री टाइम में अक्सर बॉस की खिंचाई करते थे । एक दिन ऑफिस के गेट पर बनी चाय की टपरी पर रमेश ने कहा था - " यार ! ये बॉस ने बाउंड्री वाल पर वैद्य रहमानी का इश्तेहार लगवाने का परमीशन क्यों दे दिया ?"
तो रजत ने मजाक में कह दिया -" दवाएं फ्री में दे देता होगा । "
खूब ठहाका लगा । गेट पर खड़े चुन्नू ने बात सुन ली थी शायद । रजत ने सफाई देनी चाही लेकिन बॉस कुछ भी सुनने को राजी न था -" एकाउंट सेक्शन में जाकर अपना हिसाब कर लो , मैंने वहाँ बोल दिया है ।"
दो महीने बीत गए हैं , रजत जगह - जगह इंटरव्यू दे रहा है । चुन्नू की तनख्वाह पाँच सौ रुपये बढ़ चुकी है ।
आशीष त्रिपाठी
गोरखपुर