(कहानी ) छाप..... : आशीष त्रिपाठी
रात के दो बज रहे थे लेकिन बाहर ओसारे में सोए कुशल को नींद नहीं आ रही थी । आज दिन में मन को बहलाने की लाख कोशिशें की उसने लेकिन न तो किसी खेल में मन लगा न ही किसी किताब में । स्कूल में सीखा याद रहे न रहे , हम समाज में रहते हुए जो देखते हैं , सीखते हैं , उसकी छाप ताउम्र जेहन में तारी रहती है । बूढ़े धुरकुल्ली का लड़का लम्पट था , उसके पड़ोसी ने उसकी जमीन पर बढ़कर मकान बनवाया , विवाद हुआ , पुलिस आयी । परिणाम कुछ यूँ रहा कि धुरकुल्ली और उसके लड़के की पिटायी भी हुयी और जमीन पर उसके पड़ोसी के कब्जे को थाने ने जायज भी करार दिलवा दिया ।
यह सरासर नाइंसाफी थी , सब जानते थे किन्तु समाज में धुरकुल्ली का अस्तित्व कुछ खास महत्त्व वाला न होने के कारण शेष समाज को उसकी सहायता हेतु खड़े होकर उसके सबल पड़ोसी से बैर लेना , लोक व्यवहार की दृष्टि से अनुचित जान पड़ा ।
इस वक्त कुशल के मन में यही डर बैठा था कि अगर सुरेश की धमकी सच निकली और पुलिस आ गयी तो क्या होगा ? वह तो भाग सकता है लेकिन बाबूजी कैसे भाग पाएंगे ? पुलिस की जो छवि उसने अपने सत्रह वर्ष की उम्र देखी थी उसमें उसने यही जाना था कि न्याय- अन्याय का उनसे कोई - लेना देना नहीं है , वो केवल कमजोर को मारना और गाली देना जानती है ।
कुछ दिन पहले उसके पट्टीदार सुरेश ने उसके खेत में बढ़कर मेड़ बांध लिया था । कुशल के पिता शम्भूनाथ ने झगड़ा करने की जगह थाने पर इसकी सूचना दे दी । अगले दिन सुरेश ने आकर धमकी दी -" थाने पर जो तुम लोगों ने एफ आई आर दिया है अब उसका परिणाम भुगतना , पुलिस क्या होती है ? यह मैं दिखाऊँगा।"
उस धमकी के बाद बाबूजी पर तो कुछ विशेष फर्क नहीं पड़ा , वे न्याय , नीति और धर्म की बातें कर परिवार को दिलासा देते रहे लेकिन हफ्ते भर पहले धुरकुल्ली के साथ घटी घटना उनकी परिस्थितियों से मेल खाती थी , अतः भविष्य को लेकर कुशल का किशोर मन आतंकित था ।
तीन बज चुके थे । वह लघुशंका हेतु उठा । निवृत्त होकर बिस्तर पर लेटा ही था कि एक दो नहीं बल्कि कई लोगों के बूटों की खट- खट सुनायी दी । दिल बैठने लगा था , वह भी उठकर बैठ गया और नजर बाहर सड़क पर गड़ा दी । तब तक लगभग दर्जन भर लोग सड़क पर आते दिखायी दिए । चांदनी रात में आसानी से पहचाना जा सकता था कि ये पुलिस वाले हैं । उस किशोर के मन की दशा क्या होगी जो पिछले दो दिन से इसी भय में जी रहा था । काठ बन कर खड़ा था कि टॉर्च की लाइट उसके मुँह पर पड़ी और कड़क आवाज में पूछा गया --''क्या नाम है ?"
-"गोलू !"
-"असली नाम बता !"
-"क..कुशल !"
-"क्या करता है ?"
-"इस साल बारवीं का पेपर दिया है ।"
-"शम्भूनाथ तेरा बाप है ?"
कुशल ने पहली बार अपने पिता के लिए इस प्रकार का सम्बोधन सुना । अब तक मास्टर साहब संबोधन ही सुनता आया था । चुप रहा ।
-"बोलता क्यों नहीं ?"
-"हाँ !..बाबूजी हैं मेरे ।"
-"बुला बाहर !"
कुशल ने झूठ बोला-" वो बनारस गए हैं ।"
-"क्यों ?"
-"मामा जी की तबीयत खराब है ।"
प्रश्न पूछ रहे दो स्टार वाले पुलिसिये ने सिपाही को निर्देशित किया -" दरवाजा खुलवाओ !"
कुशल ने विरोध किया , वह नहीं चाहता था कि बाबूजी थाने जाएं -" आप लोग सर्च वारंट लाये हैं ?"...यह शब्द उसने फिल्मों में सुना था । उसे नहीं पता था कि यह कानून कागजी है और इसका जमीन से कोई सरोकार नहीं ।
जवाब में उस दो स्टार वाले ने झपट्टा मारकर कुशल को पकड़ने की कोशिश की तो वह पीछे हट गया लेकिन उसकी बनियान उस पुलिसिये के हाथ में आ गयी , उसने इतनी जोर से खींचा कि बनियान तो फट ही गयी , कुशल भी ओसारे से नीचे दुआर पर जा गिरा -" तेरी माँ की $$ ..वारंट चाहिए तुझे ? तेरी सारी पढ़ाई लिखाई तेरे @@ में डाल दूँगा साले ! जिंदगी भर मुकदमा लड़ता फिरेगा , एक चपरासी की भी नौकरी लग जाए तो मेरे मुँह पर मूत देना ।"...कहकर उसने कुशल के गाल पर दो झापड़ बजा दिए । उसके कान में सीटियां बजने लगीं। बाहर का शोरगुल भीतर पहुँच चुका था । शम्भूनाथ दौड़कर आये और लड़के को उठाया । उन्होंने पुलिसवालों से कारण पूछा तो पता चला कि उनके और कुशल के खिलाफ सुरेश ने शिकायत दर्ज कराया है , दोनों को थाने चलना पड़ेगा ।
शम्भूनाथ जानते थे कि इस वक्त ये लोग बिना ले जाये नहीं मानेंगे । फिर भी मन में आयी बात कह गए -"शिकायत तो मैंने भी दर्ज कराया था साहब , मगर इस झूठी शिकायत पर आपने जो सक्रियता दिखायी है उसका एक प्रतिशत भी मेरी शिकायत पर नहीं दिखा पाये आप ।"
दारोगा के पास कहने को गाली के अलावा कुछ नहीं था -" चल बैठ जीप में $$वाले ।"
बहरहाल !
इस घटना को वर्षों बीत चुके हैं । सारे पुलिस वाले एक जैसे नहीं होते , किन्तु धुरकुल्ली और कुशल जैसे लोगों ने पुलिस का जो रूप देखा है , उसकी छाप उनके मन से नहीं मिटने वाली । कोई कदम उठाने से पहले कानून को अपनी आंखों पर लगी काली पट्टी थोड़ी देर के लिए उठा लेनी चाहिए ।
आशीष त्रिपाठी
गोरखपुर