मुझे राम ने नहीं मेरे अहंकार ने मारा है

भगवान श्रीराम के घातक बाण से बिंध कर मृत्युशैया पर पड़े किष्किंधा नरेश बाली ने पुत्र अंगद का हाथ अपने हाथ में लेकर कहा, "वे भगवान हैं पुत्र! स्वयं को सदैव उनकी सेवा में प्रस्तुत रखना।"
भय और शोक के साथ साथ आश्चर्य में डूबे अंगद में इधर उधर देखा, बाली के अंतिम क्षणों को समझ कर राम ने सबको उनसे दूर कर दिया था। राम जानते थे कि जीवन के अंतिम क्षणों में मनुष्य अपने पास उन्हें ही देखना चाहता है जिन्हें वह सर्वाधिक प्रेम करता हो। उसके पास केवल अंगद और तारा थे। अंगद ने कहा, "यह आप क्या कह रहे हैं पिताश्री? मैं अपने पिता के हत्यारे की सेवा कैसे कर सकता हूँ? और आप यह कैसे कह सकते हैं कि वे भगवान हैं?
बाली मृत्यु की पीड़ा में थे पर उनके होठों पर मुस्कान तैर उठी। बोले, " जानते हो पुत्र! मैं इतना शक्तिशाली था कि सुग्रीव, जाम्बवान जैसे महायोद्धा मेरे विरोधी होने के बावजूद कभी मुझसे युद्ध करने नहीं आये। मैंने सुग्रीव की पत्नी का हरण कर लिया, फिर भी वह प्राणों के भय से कभी मेरे समक्ष नहीं आया पर राम यह सब जानते हुए भी मुझसे युद्ध करने चले आये। जो व्यक्ति स्वयं से निर्बल के लिए स्वयं से शक्तिशाली के विरुद्ध शस्त्र उठाये वह देवता ही होता है।
"किंतु उन्होंने आपका वध किया है पिताश्री! मैं भला अपने पिता के हत्यारे का सहयोगी कैसे हो सकता हूँ?" अंगद बाली का कहा मान नहीं पा रहे थे।
"राम इस युग का सत्य हैं पुत्र! मैं देख पा रहा हूँ कि यह युग उनके प्रताप का युग होगा।उनका समर्थन समय का समर्थन होगा और उनका विरोध समय का विरोध। एक बुद्धिमान व्यक्ति दुनिया की सबसे शक्तिशाली सेना का विरोध भले करे, पर समय का विरोध नहीं करता। तुम्हे राम के साथ ही रहना चाहिए। और रही बात मेरे वध की, तो मुझे मेरे कर्मों का दण्ड तो मिलना ही था न! पुत्र समान अनुज के साथ किये गए दुर्व्यवहार के कारण मेरा अंत ऐसा ही होना था। मेरे वध से विचलित न होवो पुत्र, स्वयं को राम की सेवा में अर्पित कर दो।
बाली की सांसें टूटने लगी थीं। अंगद ने रोते हुए कहा, " आप तो संसार में सबसे शक्तिशाली व्यक्ति थे पिताश्री! फिर आपका वध कैसे सम्भव हो गया..."
बाली मुस्कुराए। बोले, "मुझे राम ने नहीं मेरे अहंकार ने मारा है। वे जानते थे कि बाली अत्यंत शक्तिशाली है, सो वे वृक्ष की ओट में छिप गए। उन्होंने छिपने में अपना अपमान नहीं समझा... और मैं तारा के लाख समझाने के बाद भी अपने अहंकार में डूबा यूँ ही चला आया। मेरी पराजय तो होनी ही थी पुत्र! राम की विजय उनकी सहजता की विजय है, और मेरी पराजय मेरे अहंकार की पराजय...
अंगद ने मुड़ कर देखा राम की ओर, राम सब समझ रहे थे। उन्होंने पुत्रवत स्नेह के साथ अंगद को हृदय से लगा लिया।
सर्वेश तिवारी श्रीमुख
गोपालगंज, बिहार।